स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी भावप्रवण बुन्देली कविता – जी की तपन मिटानी।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 228 – जी की तपन मिटानी… ✍

(बढ़त जात उजयारो – (बुन्देली काव्य संकलन) से) 

एक झला पानी को बरसो

जी की तपन मिटानी

ऐंसी जी हो रओ तौ सबको

जैसे मुँजें  ममूदर   में

बात बात में कहत रहै सब

माँय जान दो लूगर में ।

अब जाकें जी में जी आओ

(सौ) तन की तपन मिटानी ।

 

जैसे चले गलिन में फूहर

वैसड़ जा हवा चलत ती

लट कोरी सी चनकट मारे

औ मारे उचट दुलत्ती ।

अब टूटो गरमी को गिरमा

सबरी तपन मिटानी।

 

पहलौटी सी खुसी उजागर

सब झूम झमक कें गाबें

नन्नी रस बुँदियन खों सब कोऊ

  चूमे  चाटें दुलराबें ।

 

ऐंसो लगो खजानो मिल गओ

तन मन तपन मिटानी ।

 

© डॉ. राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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