डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपका एक भावप्रवण गीत – यही जज्बात दिल में हैं…।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 269 – साहित्य निकुंज ☆
☆ गीत – यही जज्बात दिल में हैं… ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆
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मुझे मजबूर करते हो
मगर तुम सुन नहीं सकते।
मेरे नैनों की भाषा को ,
कभी तुम पढ़ नहीं सकते।
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यही जज्बात दिल में हैं,
जिसे समझा नहीं तुमने।
तुम्हारी राह तकती हूँ,
मगर तुम आ नहीं सकते।
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मुझे अब दर्द सहना है,
जिसे तुम छू नहीं सकते।
मेरी गलियों से गुजरे हो,
मगर तुम रुक नहीं सकते।।
*
मुझे मिलना है तुमसे अब,
कभी क्या मिल नहीं सकते।
ख्वाबों में ही मिलते हो,
जिन्हे हम पा नहीं सकते।।
*
मिलन के रंग लाया हूँ ।
मगर तुम छू नहीं सकते।
तेरी बातों में जादू है
मुझे बहला नहीं सकते।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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