श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक संस्मरण – “कमज़ोर हिंदी और एड़ी चोटी का ज़ोर …“।)
अभी अभी # 621 ⇒ कमज़ोर हिंदी और एड़ी चोटी का ज़ोर
श्री प्रदीप शर्मा
हमारे हिंदी के अध्यापक महोदय को हम सर नहीं कह सकते थे। वे एड़ी से चोटी तक उनकी मातृ भाषा, राष्ट्रभाषा और राजभाषा हिंदी में रंगे हुए थे। कक्षा में उपस्थिति यानी प्रेजेंट लेते वक्त हर विद्यार्थी को उपस्थित महोदय या उपस्थित श्रीमान बोलना पड़ता था। प्रेजेंट सर बोलने वाले का फ्यूचर खराब भी हो सकता था।
जैसी भाषा वैसा परिवेश ! वे एड़ी से चोटी तक भारतीय परिवेश में रंगे हुए थे। सफेद धोती और कुर्ता, खादी का बिना प्रेस का, नील से भरा हुआ ! फटी एड़ियों में चप्पल, सर पर चोटी और आँखों पर मोटा चश्मा ! बस यही उनका बारहमासी परिधान था।।
वे व्याकरण के शिक्षक थे। आप चाहें तो उन्हें प्रशिक्षक भी कह सकते हैं। स्वर और व्यंजन की व्याख्या इतनी लंबी हो जाती थी कि पिछली पंक्ति के छात्रों का सूर्य और चंद्र स्वर चलने लगता था, अर्थात वे खर्राटे लेने लगते थे। व्यंजन अतिक्रमण कर सराफे की रबड़ी-जलेबी में प्रवेश कर जाता था।
एड़ी से चोटी तक अगर नापें तो गुरुजी का कद मुकरी से एक दो इंच अधिक ही होगा। ब्लैकबोर्ड अर्थात श्यामपट जहाँ से शुरू होता था, वहाँ उनकी ऊँचाई खत्म होती नज़र आती थी, फिर भी एड़ी चोटी का जोर लगाकर वे श्यामपट का भरपूर उपयोग कर ही लिया करते थे। मुहावरों में काला अक्षर भैंस बराबर उन्हें बहुत प्रिय था। जो भी उनके प्रश्न का जवाब नहीं दे पाता, उसे इस विशेषण से सम्मानित किया जाता था।।
हम विद्यार्थी कितना भी एड़ी चोटी का जोर लगा लें, हमारी पुस्तिकाओं अर्थात कॉपियों में कभी किसी को ठीक, उत्तम अथवा सर्वोत्तम नहीं मिला। कहीं मात्राओं की ग़लती, तो कहीं लिखावट कमज़ोर। बाकी विषय यहाँ तक कि विज्ञान और अंग्रेज़ी भी हिंदी की तुलना में आसान नज़र आता था।
परीक्षा में कितना भी एड़ी चोटी का जोर लगाओ, सब से कम नंबर हिंदी में ही आते थे। छः माही परीक्षा की उत्तर-पुस्तिका कक्षा में लाई जाती थी और हर विधार्थी की अर्थी निकाली जाती थी। उनकी छोटी-छोटी गलतियों को सार्वजनिक किया जाता था। जिसकी उत्तर-पुस्तिका का टर्न आता था, उसे कक्षा में सबसे आगे की बेंच पर बिठाया जाता था।।
मैं क्लास का सबसे कमज़ोर विद्यार्थी था, सेहत में भी और व्याकरण में भी। और न जाने क्यों अध्यापक महोदय का मुझ पर ही अधिक जोर रहता था।
वे अकारण ही मेरा व्याकरण मज़बूत करने में रुचि लेने लग गए थे, जब कि कक्षा में कई बुद्धिमान छात्र मौजूद थे। लेकिन उनका सिद्धान्त था कि वे कमज़ोर बच्चों पर एड़ी चोटी का जोर लगा उनका व्याकरण मज़बूत करना चाहते हैं।
कोई लाख करे चतुराई, करम का लेख मिटे ना रे भाई ! अध्यापक महोदय ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया, न तो हम सुधरे, न ही
हमारा व्याकरण। आज छोटी छोटी मात्राओं की ग़लती पर उनका स्मरण हो आता है। किसी को याद करने में हमारा क्या जाता है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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