श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता शब्द हैं अनमोल…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 210 ☆

☆ # “शब्द हैं अनमोल…” # ☆

वाणी में रस घोलिए

शब्द है अनमोल

दुनिया को भाते नहीं

कड़वे सच्चे बोल

 

चुभते हैं तीर से

शब्दों के कर्कश बाण

टीस रहती है उम्र भर

निकल जाते हैं प्राण

स्नेह के धागे होते हैं कमजोर

भावनाओं से ना तोल

दुनिया को भाते नहीं

कड़वे सच्चे बोल

 

कौन समझता है आंखों की भाषा

छुपी हुई है उसमें अभिलाषा  

जब टूटती है हर पल आशा

तब मन में जागती है निराशा

बसंत बाहें फैलाए खड़ा है

प्रियतम बस तू अपनी आंखें खोल

दुनिया को भाते नहीं

कड़वे सच्चे बोल

 

तेरी रचनाओं में धार है

विसंगतियों पर मार है

तेरे पथ में फूल नहीं है

पग पग पर विषैले खार है

भीड़ जुटा आगे बढ़

वरना है सब बेमोल

दुनिया को भाते नहीं

कड़वे सच्चे बोल

 

तू दीन दुखियों का मित्र है

गंगा जल सा तेरा चरित्र है

पाखंड से भरी इस दुनिया में

कितना आशावान तेरा चित्र है

हर आंख में रोशनी भर दे

फिर तू दुनिया से डोल

दुनिया को भाते  नहीं

कड़वे सच्चे बोल

 

वाणी में रस घोलिए

शब्द हैं अनमोल

दुनिया को भाते नहीं

कड़वे सच्चे बोल/

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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