श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “कहीं देर ना हो जाए…” ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 212 ☆
☆ # “कहीं देर ना हो जाए…” # ☆
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ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठे हैं हम
किस सोच में पड़े हैं हम
कहीं यह पल निकल ना जाये
कहीं देर ना हो जाए
बारुद अंदर धधक रही है
आग हर पल भभक रही है
कहीं आशियाना जल ना जाये
कहीं देर ना हो जाए
भरोसा हर दिन टूट रहा है
सब्र धीरे धीरे छूट रहा है
धैर्य कहीं छल ना जाये
कहीं देर ना हो जाए
सपने टूट रहे हैं
घरौंदे लुट रहे हैं
समय कालिख ना मल जाये
कहीं देर ना हो जाए
दिन गर्मी से तप रहा है
तम अंधेरे में छुप रहा है
कहीं मौसम बदल ना जाये
कहीं देर ना हो जाए
रिश्ते पल पल छल रहे हैं
मां-बाप हाथ मल रहे हैं
कहीं रिश्ते स्वार्थ मे ना जल जाए
कहीं देर ना हो जाए
प्रेम, स्नेह, अपनापन
अब नजर नहीं आता है
कहीं यह कड़वाहट इन्सान को निगल ना जाये
कहीं देर ना हो जाए
तिरस्कार कहीं घर ना कर जाए
आंखों का पानी मर ना जाए
फिर मानवता को खल ना जाये
कहीं देर ना हो जाए
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© श्याम खापर्डे
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