श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “काश का आकाश…“।)
अभी अभी # 630 ⇒ काश का आकाश
श्री प्रदीप शर्मा
जिस प्रकार आशा का आकाश होता है, एक आकाश काश का भी होता है। अभाव में भी सुख की अनुभूति ही काश है। हम भी अगर बच्चे होते ! हम इस उम्र में बच्चे तो नहीं बन सकते, लेकिन कल्पना में बचपन का आनंद तो ले सकते हैं। आइए, काश के सहारे ही ज़िन्दगी जी लें।
दो ही शब्द आशा के हैं, और दो ही काश के ! आशा उम्मीद है, सकारात्मकता है, एक खुला हुआ आकाश है। जब हमारी आशा निराशा में बदल जाती है, मन के आकाश में काले बादल छा जाते हैं, हम दुखी हो जाते हैं। ।
काश, यथार्थ के आगे अस्थाई आत्म – समर्पण है। बचपन में हम सोचते थे, काश बड़े होकर हमारा भी एक खुद का मकान हो, बड़ी सी कार हो। खूब पैसा हो। आज हो सकता है, हमारे पास वह सब कुछ हो, लेकिन हम काश फिर भी कुछ मांग बैठें ! काश हमें भी मन की शांति हो। कोई तो दो घड़ी हमारे पास बैठे, हमारे मन की बात सुने।
सोचिए, अगर जीवन में काश न हो तो जीवन कितना नीरस हो जाए !
कभी न कभी, कहीं न कहीं,
कोई न कोई तो आएगा।
अपना मुझे बनाएगा,
दिल से मुझे लगाएगा।
कभी न कभी
या फिर ;
दिल की तमन्ना थी मस्ती में,
मंज़िल से भी दूर निकलते।
अपना भी कोई साथी होता,
हम भी बहकते, चलते चलते। ।
काश में कोई गिला शिकवा नहीं, कोई शिकायत नहीं, एक तरह से उस ऊपर वाले से गुजारिश है। मेरी तकदीर के मालिक, मेरा कुछ फैसला कर दे। भला चाहे भला कर दे, बुरा चाहे, बुरा कर दे। कितना अफसोस होता है, जब बड़ी बड़ी इमारतें हमारी धूप खा जाती है और हम एक झोपड़ी की तरफ गिरती धूप देखकर कहते हैं, काश
यह धूप हमें भी नसीब होती।
दीवानेपन की भी हद होती है, गौर फरमाइए :
ऐ काश किसी दीवाने को,
हम से भी मोहब्बत हो जाए।
हम लुट जाएं, दिल खो जाए
बस, आज क़यामत हो जाए। ।
अब इसको आप क्या कहेंगे ;
गमे हस्ती से बस बेगाना होता
खुदाया, काश मैं दीवाना होता
ऐसा ही एक दीवानापन मुझ पर भी सवार है। काश कोई ऐसा वायरस इस दुनिया में फैल जाए कि नफ़रत इस जहान से हमेशा हमेशा के लिए अलविदा हो जाए। आमीन!
© श्री प्रदीप शर्मा
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