श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सजल – मानवता से बड़ा न कुछ भी…” । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 168 – सजल- मानवता से बड़ा न कुछ भी… ☆

(समांत – अनापदांत – है, मात्रा भार – 16)

स्वाभिमान अब बहुत घना है।

भारत उन्नत देश बना है।।

माना सदियों रही गुलामी।

शोषण से हर हाथ सना है।।

 *

सद्भावों के पंख उगाकर।

दिया बसेरा बड़ा तना है।।

 *

आक्रांताओं ने भी लूटा।

इतिहासों का यह कहना है।।

 *

झूठ-फरेबी बहसें चलतीं।

कहना सुनना नहीं मना है।।

 *

रहें सुर्खियों में हम ही हम।

समाचार शीर्षक बनना है।।

 *

मानवता से बड़ा न कुछ भी।

इसी मार्ग पर ही चलना है।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

25/3/25

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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