श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख/व्यंग्य की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ व्यंग्य # 124 ☆ देश-परदेश – जब कोतवाल ही कातिल हो? ☆ श्री राकेश कुमार ☆
हमारे देश में उच्च न्यायालय के ज़ज का सम्मान ना सिर्फ पद पर रहते हुए होता है, वरन सेवानिवृति के पश्चात भी उनको मिलने वाली सुविधाएं और सम्मान उच्चतम स्तर का रहता हैं। कुछ दिन पूर्व किसी उच्चतम न्यायालय के एक जज के यहां आग लगने पर बहुत अधिक मात्रा में पांच सौ के नोटों का भंडार मिलना बताया जाता है।
हमारे देशवासियों को तो किसी भी मुद्दे की आवश्यकता होती है। पूरे सोशल मीडिया के साथ टीवी चैनल वालों को भी मौका मिल जाता हैं। चुटकले से लेकर वर्तमान के व्यंग कहे जाने वाले “मीम्स” भी इस विषय पर विगत दिनों से सक्रिय हैं।
चार दशक पूर्व हमारे एक मित्र, जिनका टिंबर का व्यवसाय था, के टाल में भीषण आग लग गई थी। हम कुछ मित्र उनके व्यवसाय स्थल पर सांत्वना व्यक्त करने भी गए थे। उनके टिंबर का स्टॉक, कोयले के ढेर में परिवर्तित हो चुका था।
हमारे एक ज्ञानी साथी ने उनसे कहा, इस कोयले को धोबियों को बेच कर कुछ भरपाई कर लेनी चाहिए। व्यवसायी मित्र ने कहा, अभी मुम्बई से बीमा विभाग के बड़े अधिकारी आयेंगे और कोयले की मात्रा के अनुपात में मुआवजा तय होने पर ही कोयले को बेचेंगे। ज्ञानी मित्र ने लपक कर कहा लकड़ी में जल की कुछ मात्रा भी रहती है, फिर कैसे सही मुआवजा तय होगा। व्यवसायी मित्र ने बताया वो लोग विशेषज्ञ होते है, किसी तयशुदा फार्मूले से मुआवजा तय करते हैं।
सुनने में आया है कि जज साहब के यहां भी बहुत सारे नोट जल गए हैं, और कुछ अधजले नोट भी हैं। हम तो ये सोच रहे है, कुल राशि का सही अनुमान लगाने के लिए भी कुछ सेवानिवृत बैंकर की सेवाएं लेनी चाहिए। अधजले नोटों और जले हुए नोटों की सॉर्टिंग कर कुल राशि का सही अनुमान निकाला जा सकता है। पुराने और खराब नोटों को जला कर नष्ट करने का एक लंबा तजुर्बा सिर्फ बैंकर्स के पास ही होता है।
हमारे यहां की कुछ महिलाएं तो तथाकथित जले हुए नोटों की राख क्रय कर बर्तन भी चमकाना चाहती हैं।
© श्री राकेश कुमार
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