श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “गीत गाया पत्थरों ने …“।)
अभी अभी # 631 ⇒ गीत गाया पत्थरों ने
श्री प्रदीप शर्मा
सेहरा, झनक झनक पायल बाजे और लड़की सह्याद्रि की जैसी नृत्य और संगीतमय फिल्मों के निर्माता ने सन् १९६४ में एक और फिल्म बनाई, गीत गाया पत्थरों ने। हमने संगीत का असर देखा नहीं, लेकिन सुना जरूर है। तानसेन का दीपक राग बुझते दीयों को जला देता था और मेघ मल्हार की तो पूछिए ही मत। इसलिए हम तो मानते हैं कि जब पत्थर दिल इंसान भी पिघल सकता है, तो पत्थर गीत क्यों नहीं गा सकते।
यह फिल्म हमने भी देखी थी। थिएटर पुराना था, पंखे खराब थे, और सीटें फटी हुई। दर्शक फिल्म देखकर जब बाहर निकले, तो यही गीत गा रहे थे, काट खाया मच्छरों ने।।
तब घरों में कहां टीवी मोबाइल थे, एक अदद रेडियो अथवा ट्रांजिस्टर था, जिसकी आवाज सभी सुन सकते थे। रेडियो पर इसी फिल्म का शीर्षक गीत बज रहा था, और मेरे साथ मेरी पांच वर्ष की बिटिया भी गीत सुन रही थी। अचानक गीत खत्म हुआ और उद्घोषिका की आवाज सुनाई दी, अभी आपने सुना महेंद्र कपूर को, फिल्म गीत गाया पत्थरों ने।
पांच साल की उम्र इतनी छोटी भी नहीं होती, लेकिन कच्ची जरूर होती है। बिटिया अचानक चौंकी और प्रश्न किया, पापा ! गीत तो पत्थरों ने गाया था, और रेडियो वाली कह रही है, यह गीत महेंद्र कपूर ने गाया है। मैने उसे प्यार से समझाया, बेटा, वह तो फिल्म का नाम था, जिसका गीत गायक महेंद्र कपूर ने गाया है।
तब बच्ची जरूर समझ गई होगी लेकिन मेरे लिए एक प्रश्न खड़ा कर गई।।
मैं नहीं मानता, पत्थर बोलते हैं अथवा गीत गाते हैं। होती है पत्थर में प्राण प्रतिष्ठा और पत्थर भगवान हो जाता है, मंदिरों में स्थापित हो जाता है। मंदिर में उसी पत्थर की पूजा होती है, लोग उसके सामने हंसते गाते, भजन कीर्तन करते, अपना दुखड़ा रोते, चिल्लाते, गिड़गिड़ाते हैं। चूंकि वह अब पत्थर नहीं भगवान है, उसे पिघलना पड़ता है, भक्त की सुननी पड़ती है, उसका दुख दर्द दूर करना पड़ता है।
केवल एक प्राण प्रतिष्ठा से जब पत्थर भगवान बन सकता है तो इस इंसान में तो स्वयं भगवान ने ही प्राण फूंके हैं, प्राण की प्रतिष्ठा की है, तो क्या हम सिर्फ इंसान भी नहीं बन सकते !
मेहनत से इंसान जाग उठा और जागेगा इंसान जमाना देखेगा, जैसे गीत भी महेंद्र कपूर ने ही गाए हैं। जागने की बात आज भी हो रही है, लेकिन एक नेकदिल इंसान होने की बात कोई नहीं कर रहा। हमसे तो वह पत्थर ही भला, जो जड़ है, किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता। कहीं से एक इंसान आता है, उसे उठाता है, और किसी मासूम का सिर फोड़ देता है। शायद तब ही पत्थर पिघला, पसीजा होगा और उसने दर्द भरा गीत गाया होगा। गीत गाया पत्थरों ने।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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