डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के मुक्तक – नारी ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 271 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के मुक्तक – नारी ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆
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चांदनी जैसी प्यारी है उसकी हंसी । ।।
सांस महके गुलाबों की गुल में बसी।
छू गई जो हवा बन के पागल कहीं,
धड़कनें बजती है रागिनी सी फंसी।
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चाहे चलती हैं जोरो से भी आंधियां ।
मुश्किलों में भी रुकती नहीं नारियां ।
उसके हिम्मत के चर्चे बहुत है मगर ,
ऊंचा इतिहास रचती है ये नारियां।।
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जो धरा की तरह सब सहती रही
जो जल की तरह सिर्फ बहती रही
जो समझता है कमजोर दुनिया में,
लौह बनकर मजबूत होती रही।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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