श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है बुंदेली पूर्णिका – सच्चाई को तुम झुठला रये का हुई है… । आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 254 ☆
☆ बुंदेली पूर्णिका – सच्चाई को तुम झुठला रये का हुई है… ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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बात जरा सी समझ ने पा रये का हुई है
सच्चाई को तुम झुठला रये का हुई है
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आपहिं आप खूब फेंक रये झूठी सच्ची
झूठ बोल खें आँख दिखा रये का हुई है
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कभू कोउ की मदद करी ने तुमने भैया
बेमतलब एहसान जता रये का हुई है
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कर्जा बनिया को मूढ़े धरत फ़िरत हो
कै कै थक गए कहां पटा रए का हुई है
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सीधी गैल कभू ने चल ख़ें तुम हो आए
अब काहे खो तुम चिल्ला रए का हुई है
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पी लओ खूब घाट- घाट को तुमने पानी
खुद को घाट खुदई बिसरा रए का हुई है
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खुद पै कभू लगाम धरी ने तुमने बबुआ
देख सूरतिया जी ललचा रए का हुई है
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बात सयानों की “संतोष” कभू ने तुमने मानी
हाथ धर खे अब पछता रए का हुई है
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈