श्री एस के कपूर “श्री हंस”
☆ “श्री हंस” साहित्य # 153 ☆
☆ मुक्तक – ।। हो गये साठ के पार अभी असली इम्तिहान बाकी है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
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=1=
सफर जारी पर अभी तो आने को मुकाम बाकी है।
किया जा चुका बहुत कुछ पर अभी काम बाकी है।।
साठ के पार हो चुके तो कोई बात नहीं।
अभी तो नापी है ज़मीं अभी आसमान बाकी है।।
=2=
अभी अदा करने को शुक्रिया वह हर इन्सान बाकी है।
पूरे जो कर नहीं पाए वह हर अरमान बाकी है।।
अभी तो शुरू ही हुई है जीवन की दूसरी पारी।
जान लो कि जिन्दगी का असली इम्तिहान बाकी है।।
=3=
अभी भी दुनियादारी का कुछ लगान बाकी है।
कर नहीं पाए इस्तेमाल वह साजो सामान बाकी है।।
रुकना नहीं थमना नहीं तुम्हें इस बीच दौड़ में।
अभी भी जीतने को हर तीर कमान बाकी है।।
=4=
सेवा निवृत हो गए पर अभी अनुभव का सम्मान बाकी है।
कुछ नया करने सीखने को जज्बाऔर तूफ़ान बाकी है।।
अब तो वरिष्ठ नागरिक का दायित्व भी है कंधों पर।
अभी देखने घूमने को भी पूरा जहान बाकी है।।
=5=
चुप रह गई जो अब तक अभी वह जुबान बाकी है।
ऊपरवाले ने भी दिए कामअभी वह फरमान बाकी है।।
पूरा करना है हर काम इसी एक ही जिन्दगी में।
भागते रहे जिंदगी भर अब जरा सा चैन आराम बाकी है।।
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© एस के कपूर “श्री हंस”
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