श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१९ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

30 सितंबर 2023 को सुबह डॉक्टर राजेश श्रीवास्तव जी के नेतृत्व में हमारा हनुमान महोत्सव दल किष्किंधा क्षेत्र के आंजनेय पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान दर्शन को तैयार था। अंजनाद्रि पहाड़ियाँ हम्पी के निकट हनुमानहल्ली में स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार  अंजनी माता के गर्भ से हनुमान का जन्म हुआ था, इसीलिए हनुमान को आंजनेय भी कहा जाता था। अंजनेयाद्रि पहाड़ी की चोटी पर हनुमान मंदिर है। वहाँ लगभग 575 सीधी सीढ़ियाँ चढ़कर पहुँचा जा सकता है। हनुमान मंदिर के आसपास राम और सीता के मंदिर और अंजना देवी मंदिर भी हैं। रामायण  में इस स्थान की पहचान किष्किंधा क्षेत्र के नाम से की गई है। चलिए, पौराणिक आख्यानों में शिव के हनुमान अवतार की खोज पर चर्चा करते पहाड़ी चढ़ते हैं। किस्से-कहानी से एक तरफ़ आनंद आता है तो दूसरी तरफ़ सनातन सिद्धान्तों को समझने में भी सहूलियत होती है।

एक विद्वान वेट्टम मणि द्वारा 1921 में संकलित पौराणिक विश्वकोश में भारतीय और ग्रीक पुराणों की गाथाएँ संकलित हैं। जिसके अनुसार किष्किन्धा दक्षिण भारत में वानरों का एक प्राचीन राज्य था। रामायण काल में ऋक्षराज नामक एक वानर राजा किष्किन्धा का शासक था। वह निःसंतान था। इंद्र ने ऋक्षराज की पत्नी अरुणीदेवी को बाली नामक पुत्र और सूर्य ने सुग्रीव नामक पुत्र दिया। दोनों बालकों का पालन-पोषण गौतम ऋषि के आश्रम में हुआ। जब वे बड़े हुए, तो इंद्र ने उन्हें ऋक्षराज को सौंप दिया और इस तरह बाली और सुग्रीव किष्किंधा चले आए।

यह सुनने में कुछ अजीब सा लगता है कि इंद्र और सूर्य पुत्र उत्पन्न कर रहे हैं। इंद्र और सूर्य मनुष्य नहीं अपितु पौराणिक चरित्र हैं। वेदों में ही नहीं, ये दोनों सदैव ही ऊर्जा के केंद्र हैं। वैदिक काल में इनके हवन होते थे। इन्द्रियों को प्रजनन शक्ति भी इनकी ऊर्जा से उत्पन्न होती है। पुराणों में कथाओं को रोचक बनाने हेतु इन्हें व्यक्तिक स्वरूप प्रदान किया गया। ताकि वेदों के सिद्धांतों को पुराणों में उतारा जा सके। अग्नि, पवन, वरुण और अरुण भी वेदों से पुराणों तक यात्रा करते हैं। निरे सिद्धांत साधारण मनुष्य की समझ में नहीं आते। यहीं पुराणों की महत्ता प्रतिपादित होती है।

ऋक्षराज की मृत्यु के बाद बाली किष्किंधा का राजा बन गया और सुग्रीव अपने भाई की सेवा में रहने लगा। उस समय दुंदुभि नामक एक बहुत शक्तिशाली असुर था। युद्ध के लिए कोई भी योग्य न पाकर उसने वरुण को चुनौती दी। वरुण ने उसे हिमवान के पास भेजा, जिसकी चोटियों को उसने चीरकर उनसे खेला। तब हिमवान ने दुंदुभि से कहा कि वह शांत स्वभाव का है और बाली उस (दुंदुभि) के बराबरी का होगा। तदनुसार दुंदुभि ने बाली से युद्ध किया और मारा गया। बाली ने दुंदुभि के शव को फेंक दिया। दुंदुभि की नाक से बहता हुआ रक्त ऋषि मतंग के शरीर पर गिरा, जो ऋष्यमूक पर्वत पर तपस्या में लीन थे। अपनी दिव्य शक्तियों के माध्यम से, ऋषि ने अपने शरीर को दूषित करने वाले रक्त की उत्पत्ति का पता लगाया, और शाप दिया कि बाली उसी समय मृत्यु को प्राप्त  हो जाएगा, यदि वह ऋक्षराज पर्वत पर पैर रखेगा।

रावण द्वारा सीता-हरण के बाद उनकी तलाश के दौरान ऋष्यमूक पर्वत पर प्रभु राम की सुग्रीव से भेंट होती है। यहीं राम को सुग्रीव पर उसके भाई बाली द्वारा किए गये अत्याचार का पता लगता है। भगवान राम सुग्रीव को अपना मित्र मान कर उन्हें बाली के त्रास से मुक्त करवाते हैं और उन्हें किष्किन्धा का राजा घोषित करते हैं। इसी पर्वत के किनारे से होकर आज आँजनेय पर्वत की चढ़ाई करनी थी। दल सुबह नौ बजे नाश्ता करके तैयार हो बस के आसपास मंडराने लगा। हमने सीटी बजाकर सबको बस में चढ़वाना शुरू किया। राजेश जी की होटल मलिक से दोस्ती हो गई है। दोनों मुस्कुराते बस के नज़दीक पहुँचे। राजेश जी ने सभी यात्रियों की विशेषता का बखान करते हुए होटल मालिक से परिचय कराया। उन्होंने सबको यात्रा की शुभकामनाएँ दीं। बस ने आंजनेय पर्वत की दिशा में प्रस्थान किया। रास्ते में हॉस्पेट बस्ती का मुआइना करते बस्ती के बाहर निकले तो गोल बोल्डर पत्थरों के ढेर नज़र आने लगे। हमने सबको बताया कि आंजनेय इलाक़ा लग चुका है।

तुंगभद्रा नदी के किनारे चल कर उसे पार करते ही सड़क के दोनों तरह दुकानों का रेला आरंभ हुआ। तभी ज्ञात हुआ कि आज शनिवार को हनुमान जी की विशेष पूजा और दर्शन हेतु आसपास के दो तीन सौ गांव के हज़ारों तीर्थयात्री पर्वत पर पहुँचने वाले हैं। हमारी बस मेला क्षेत्र में खड़ी नहीं की जा सकती थी। थोड़ी देर बस ने सांस क्या ली, ट्रैफ़िक पुलिस ने बस पर डंडे बरसाना शुरू किया। इसलिए बस को चढ़ाई स्थल से आधा किलोमीटर दूर खड़ा करना पड़ा। बस में से आंजनेय पर्वत के दर्शन होने लगे तो कुछ यात्रियों के हौसले भी पस्त होने लगे। बस से नीचे उतर कर देखा तो भीड़ बिना जूता चप्पल के पर्वत की तरफ़ खिसक रही थी। चलते-चलते एक तिराहे पर पहुँचे। वहाँ किसी ने चाय पी, किसी ने गुटखा ख़रीदा, किसी ने प्रसाद ख़रीदा और किसी ने कुछ नहीं किया। बस दूसरों को ताकने का ज़रूरी काम करते रहे। पहाड़ की पहली सीढ़ी पर खड़े होकर सबको समझाया कि सभी एक साथ मिलकर चढ़ेंगे। पीने का पानी साथ रखें और निस्तार से फुरसत हो लें।

हमने सीटी से सबको एकत्रित कर चढ़ना शुरू किया। यह तय किया कि सभी साथ रहेंगे लेकिन थोड़ी ही दूर चलकर शारीरिक क्षमता के अनुसार यात्री आगे-पीछे होकर बिछड़ गए। भारी भीड़ में दोनों तरफ़ के यात्री उतरने और चढ़ने वाले सीढ़ियों को अवरुद्ध कर देते थे। इसका यह नुक़सान था कि चढ़ाई में देरी हो रही थी परंतु लाभ यह था कि यात्रियों को  सुस्ताने का समय मिलता जाता था। हमने भी सीटी का प्रयोग करके भीड़ को नियंत्रित करना आरंभ किया तो तीर्थयात्री हमे पुलिस समझकर नियंत्रित होने लगे। फिर क्या था साथियों को लेकर तेज़ी से चढ़ाई करने लगे।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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