श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “एक चिड़िया, अनेक चिड़िया…“।)
अभी अभी # 641 ⇒ एक चिड़िया, अनेक चिड़िया
श्री प्रदीप शर्मा
चिड़िया अगर एक पक्षी है, तो मैं एक इंसान। दोनों की अपनी अपनी मजबूरियां, अपनी अपनी जबान ! वह बोल नहीं सकती, मैं उड़ नहीं सकता। हमारे बीच एक अपरिचय का रिश्ता है। उसका एक ही नाम रूप है, मेरा भी एक ही नाम और एक ही रूप है। भाषा से संवाद संभव होता है। मैं तो सिर्फ उसकी बोली ही नहीं समझता, वह तो मुझे कुछ भी नहीं समझती। न कभी मेरे पास आती है, न मुझको कभी अपने पास आने देती है।
फिर भी, तेरे मेरे बीच में, कैसा है ये बंधन अनजाना। मैने नहीं जाना। तेरी तू जान बहना। तुझे और किस नाम से संबोधित करूं। छुई मुई, लाजवंती सी, मेरे सामने, लेकिन मुझसे दूर, कभी फुदकती हुई, तो कभी चहचहाती और ललचाती हुई, कभी हाथ ना आती हुई, एक चिड़िया, अनेक चिड़िया।।
रोज सुबह की अजान और मुर्गे की बांग से भी पहले, मंदिर की बजने वाली घंटियों से भी पहले, जिसे अमृत वेला कहा जाता है, मेरे कानों में अनायास किसी चिड़िया की आवाज मिश्री की तरह घुल जाती है। मेरे घर के दरवाजे, खिड़कियां बंद हैं, फिर भी उसकी वह चहचहाहट, मन के द्वारे, मेरे अंदर प्रवेश कर ही जाती है। यह एक ऐसा अलार्म है जो मुझे अलर्ट नहीं करता, आनंदित और आंदोलित करता है। मेरा यह मानना है कि जहां तक इस चिड़िया की आवाज पहुंचती है, वही स्वर्ग की सीमा है, जन्नत का द्वार है।
अभी कुछ दिन पहले, संयोगवश, एक मित्र के यहां, आयोजित कथा में सम्मिलित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। हॉल में ही कथा चल रही थी, लेकिन मेरा ध्यान घर के अंदर से आती पक्षियों की आवाज की ओर था। बाहर पंडित जी की कथा और अंदर मानो शुक -सारिका संवाद। एक जहाज के पंछी की तरह, मेरा मन बार बार पक्षियों की आवाज की ओर ही लौटे। और मैं बार बार अपने आप को आगाह करूं, पलट, तेरा ध्यान किधर है।।
कथा समाप्त होते ही, मेरी जिज्ञासा भी शांत हुई। घर के अंदर एक पिंजरे में एक चिड़ा – चिड़ी का जोड़ा विराजमान था। लव बर्ड शायद उनका ही नाम होगा। उनके संवाद को ही मैं शुक सारिका संवाद समझ बैठा था।
खैर साहब, श्रोता की फरमाइश पर उन्हें पिंजरे सहित बाहर लाया गया। हमने उस पंछी के जोड़े के पास से दीदार किए। कुछ समय वे संकुचित, शांत बैठे रहे, लेकिन शीघ्र ही आश्वस्त हो, चोंच से चोंच लड़ाने लगे, अर्थात् उनकी भाषा में वार्तालाप करने लगे। बिल्कुल वही आवाज, वही अंदाज, वही कर्णप्रिय संगीत, जो मैं रोज अमृत वेला में सुनता हूं।।
अमृत वेला अभी भी जारी है। संवाद कभी एक में नहीं होता। एक अगर बोलने वाला होता है, तो कहीं एक सुनने वाला भी होता है। पक्षियों का संवाद ही उनका जीवन है। क्या एक पक्षी का जोड़ा आत्मा और परमात्मा का प्रतीक नहीं। परम पुरुष तो वैसे भी एकमात्र परमात्मा ही है, और आत्मा जन्म जन्म से परमात्मा से मिलने को आतुर। इनका मिलन ही तो परमानंद सहोदर है।
बाहर पक्षियों का संवाद जारी है। मेरे मन, प्राण कहीं भी हों, लेकिन मेरे कान उस अक्षर संगीत की ओर ही लगे हैं। लगता है पक्षियों का यह मधुर संगीत मेरे अंदर के आकाश में प्रवेश कर गया है जिसमें मीरा द्वारा अनुभव की गई सभी राग रागिनियां शामिल हैं। वही शब्द रसाल और पायल की झंकार है। शायद चिदाकाश में यही अनहद नाद है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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