सुश्री प्रणिता खंडकर
☆ कविता – “गहरे रिश्ते…” 🕯️ ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆
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ढूँढने से नहीं मिल रहा,
ना जाने कहाँ ये खो गया,
एक रिश्ता प्यार का,
दिल के बहुत जो करीब था!
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व्यस्त हुए है, हम कुछ ऐसे,
खबर हुई ना, ये ख्याल आया,
छूटता रहा संबाद और,
बढती गई ये दुरियाँ !
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कहाँ शिकायत दर्ज कराएँ,
कौन इसे वापस ले आए,
नहीं जरूरत कोई इसकी,
चलो प्यार से ये सुलझाएँ!
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प्यार और विश्वास की जड़ से,
गहरे है ये अपने रिश्तें,
व्यस्त अपने कार्यकलापों से,
फुरसत के चंद, पल निकालें!
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एक बार फिर से कर ले,
खट्टी-मीठी, थोडी बातें,
मिट जाएगा अंतर सारा,
धूल आईने से हट जाएँ!
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© सुश्री प्रणिता खंडकर
ईमेल – [email protected] वाॅटसप संपर्क – 98334 79845.
दिनांक.. 26/03/2025.
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈