श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “सुखद भविष्य की राह…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 239 ☆ सुखद भविष्य की राह… ☆
अपने भविष्य का निर्माता व्यक्ति स्वयं होता है, यदि आप में लगनशीलता का गुण नहीं है तो कुछ दिनों तक जोर शोर से कार्य करेंगे फिर अचानक से बंद कर देंगे, इससे आप अन्य लोगों की तुलना में जो अनवरत कुछ न कुछ कर रहे हैं उनकी अपेक्षा पिछड़ जाते हैं। इस सब में धैर्य का बहुत महत्व होता है, अधीर प्रवृत्ति वाले लोग जल्दी ही टूट जाते हैं और जो भी हासिल करते हैं उसे तोड़- फोड़ कर नष्ट कर देते हैं।
अन्य लोगों की अपेक्षा भले ही आप बौद्धिक व शारीरिक रूप से कमजोर हों पर आप में यदि सबके प्रति स्नेह व मिल – बाँट कर रहने की आदत है तो आप जितना दूसरों को देते हैं उससे कई गुना आपको वापस मिल जाता है। अतः निःस्वार्थ देने की प्रवृत्ति को अपनाएँ जिससे सबके साथ – साथ आपका भी कल्याण हो और अपने सुखद भविष्य के निर्माता स्वयं बन सकें।
आस के संग विश्वास जब आयेगा।
पुष्प बागों में सुंदर नज़र आयेगा।।
साथ श्रद्धा व नेकी की डोरी बँधे।
सत्य कर्मों से जीवन निखर आयेगा।।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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