श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 345 ☆
लघु कथा – वॉइस नोट…
श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
बेटे बहू दुबई में बड़े पद पर काम करते हैं, रमेश जी उनके पास कुछ समय के लिए चले आया करते हैं। आज उनका वीजा समाप्त हो रहा था, उन्हें वापस दिल्ली लौटना पड़ेगा ।
रमेश जी के जागने से पहले ही बच्चे ऑफिस जा चुके थे। उन्होंने अपना बैग संभाला , तो केयर टेकर शांति दीदी दरवाजे पर एक थैले में टिफिन, पानी की बोतल और दवाइयों की छोटी डिब्बी लिए खड़ी थीं । रमेश जी बोले अरे यह रहने दो, मुझे फ्लाइट में ही खाने को कुछ मिलेगा ।
शांति ने कुछ कहा नहीं, उसने अपना मोबाइल चालू किया और एक वाइस नोट सुना दिया , शांति दीदी! वॉइस नोट में बहू की आवाज़ थी, “आज पापा दिल्ली वापस जा रहे हैं। वो मना करेंगे टिफिन ले जाने से, लेकिन आप उनकी मत सुनना। टिफिन पैक कर देना। दवाई और पानी भी साथ रख देना।”
रमेश जी चुपचाप बच्चे की तरह टिफिन तो लिया ही, साथ ही शांति के मोबाइल से वह वाइस नोट भी खुद को फॉरवर्ड कर लिया ।
दिल्ली में सुबह की चाय के साथ अपने कमरे में बैठे वे बारम्बार मोबाइल पर वही वाइस नोट सुन रहे थे । उनके चेहरे पर न दिखने वाली खामोश मुस्कान थी, और आँखों में नमी। वे रॉकिंग चेयर पर टिक गए। फिर से मोबाइल वही वाइस नोट दोहरा रहा था।
बहू से उनकी ज़्यादा बातें नहीं हो पातीं थी। वह ऑफिस में बड़े जिम्मेदारी के पद पर थी। लेकिन उन्हें एहसास हुआ कि उसकी अनबोली खामोशी में भी कितना अपनापन और फिक्र छुपी होती है।
वह वॉइस नोट सिर्फ शब्द नहीं थे , उसमें परिवार की धड़कन थी ।
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© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार
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