सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – प्रेम रंग डालें कान्हा…।
रचना संसार # 44 – गीत – प्रेम रंग डालें कान्हा… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
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नटखट कान्हा बीच डगर,
करता बरजोरी।
डूब रही है श्याम रंग,
ब्रज की भी छोरी।।
शोर मचाती निकली है,
मस्तों की टोली।
कान्हा मारे पिचकारी,
भीग गयी चोली।
रंग की फुहारें चलतीं,
जैसे हो गोली।।
तन मन भी भीगा राधे,
कैसी ये होरी।
प्रेम रंग डालें कान्हा,
छाईं है लाली।
राधे मदहोश रंग में,
मीरा मतवाली।।
चुपके से आती ललिता,
है भोली भाली।
हँसी ठिठोली करतीं सब
ब्रज की तो गोरी।।
मनहर मूरत मोहन की,
जादू है डाला।
चंचल चितवन कान्हा के
गले मणिक माला।।
छैल छबीला रसिया है,
गोकुल का ग्वाला।
मोहित ब्रज की हैं बाला,
पकड़ गई चोरी।
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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