श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 172 – मनोज के दोहे ☆
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ग्रीष्म प्रतिज्ञा भीष्म सी, तपा धरा का तेज।
मौसम के सँग में सजी, बाणों की यह सेज।।
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सूरज की अठखेलियाँ, हर लेतीं हैं प्राण।
तरुवर-पथ विचलित करे, दे पथिकों को त्राण।।
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बना जगत अंगार है, धधक रहे अब देश।
कांक्रीट जंगल उगे, बदल गए परिवेश।।
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तपती धरती अग्नि सी, बनता पानी भाप।
आसमान में घन घिरें, हरें धरा का ताप ।।
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भू-निदाघ से तृषित हो, भेज रही संदेश।
इन्द्र देव वर्षा करो, हर्षित हो परिवेश।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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