श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 172 – मनोज के दोहे ☆

ग्रीष्म प्रतिज्ञा भीष्म सी, तपा धरा का तेज।

मौसम के सँग में सजी, बाणों की यह सेज।।

 *

सूरज की अठखेलियाँ, हर लेतीं हैं प्राण।

तरुवर-पथ विचलित करे, दे पथिकों को त्राण।।

 *

बना जगत अंगार है, धधक रहे अब देश।

कांक्रीट जंगल उगे, बदल गए परिवेश।।

 *

तपती धरती अग्नि सी, बनता पानी भाप।

आसमान में घन घिरें, हरें धरा का ताप ।।

 *

भू-निदाघ से तृषित हो, भेज रही संदेश।

इन्द्र देव वर्षा करो, हर्षित हो परिवेश।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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