डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – ग्रीष्म-वर्षा ऋतु)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 272 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – ग्रीष्म-वर्षा ऋतु ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

पंछी मन -मन डोलता, आ जाओ प्रिय पास।

चैन नहीं है रात दिन, बीत रहा  मधुमास।।

*

तेवर देखो ग्रीष्म के, जीवों से संग्राम।

बढ़ते उसके पाँव है, मिले नहीं आराम।।

*

कहे चिरैया सुन अभी, मेरे मन की बात।

जगह – जगह पर बाज है, रहें कहाँ दिन रात।।

*

कहते जिसको भारत ये, गौरैया का देश।

गौरैया दिखती नहीं, नहीं बचा अवशेष।।

*

 देखे पोखर राह तो, आए बारिश शाम।

प्रभु! अब बरखा कीजिए, दुष्कर जल बिन काम।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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Dr.Arti Smit

वाह! वाह!💐