श्री एस के कपूर “श्री हंस”
☆ “श्री हंस” साहित्य # 156 ☆
☆ मुक्तक – ।। परदा गिरने के बाद भी ताली यूं ही बजती रहे ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
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=1=
स्वीर इक दिन, दीवार पर टंग जाना है।
दुनिया से दूर हमें सितारों, सा रंग जाना है।।
कर जाएं सार्थक जीवन, अपना सत्कर्मों से।
बस यही सब ही उपर, हमारे संग जाना है।।
=2=
यह न जलती है और, यह न ही गलती है।
दुयाओं की यह दौलत, कभी नहीं मरती है।।
मत संकोच करो कभी, दुआ लेने और देने में।
जिंदगी के साथ और, बाद भी यह चलती है।।
=3=
इत्र की महक दामन में, नहीं किरदार में लाओ।
काम आकर सबके आदमी, दिलदार कहलाओ।।
नेकी बदी सब जिंदा रहती , हर एक दिल में।
बन कर जिंदगी के तुम, वफादार ही जाओ।।
=4=
अहम गरुर चाहत सब, इक राख बन जाती है।
मिट्टी की देह इक दिन, बस खाक बन जाती है।।
धन दौलत शौहरत नहीं, जबान मीठी है भाती।
यही चलकर तेरा नाम, सम्मान नाक बन जाती है।।
=5=
कर जाओ ऐसा, कि डोली यादों की सजती रहे।
मिलने को यह दुनिया, राह तेरी तकती रहे।।
हर दिल में जगह बन जाए, जरूर तेरे नाम की।
परदा गिरने के बाद भी, ताली यूं ही बजती रहे।।
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© एस के कपूर “श्री हंस”
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