डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – पवनपुत्र हनुमान।)
☆
पवन वेग से उड़ रहे, उड़ते हैं हनुमान।
वर्षा पुष्प की कर रहे, देव करे सम्मान।।
*
करते सीता खोज वह, उड़ते सागर पार
पर्वत से सागर कहे, बड़ा करो आकार।।
*
हाथ जोड़ मैनाक है, पवनपुत्र हनुमान।
आड़े आया आपके, कर लो कुछ आराम।।
*
निकले सीता खोज में, वंदन है हनुमान।
मेरे मन में आपका, बहुत बड़ा सम्मान।।
*
लंका की इस राह में, बाधा करें प्रहार।
करना सीता खोज है, पवन न माने हार।।
*
रामदूत हनुमान हूं, बीच करो ना घात।
रूप धरोना सिंहिका, करता हूं आघात।।
*
किया प्रवेश लंका में, भव्य भवन भंडार।
भेंट लंकिनी से हुई, करते पवन प्रहार।।
*
कहा लंकिनी ने बहुत, हे वीर हनुमान।
मेरा जीवन धन्य हुआ, वानर तुझे प्रणाम।।
*
अंत समय अब आ गया, हुए लंका में पाप।
ब्रह्म सत्य अब हो गया, मिला बड़ा ही शाप।।
*
सीता की इस खोज में, हम है तेरे साथ।
मिलजुल कर हम खोजते, रघु का सिर पर हाथ।।
*
सूक्ष्म रूप से आपने, किया लंका प्रवेश।
सोते देख रावण को, आया है आवेश।।
*
चकित हुए यह देख कर, सुना राम का नाम।
रावण के इस राज्य में, कौन कहेगा राम ।।
*
परिचय पाकर आपका, हर्षित हुए हनुमान।
भाई छोटा लंकपति, है विभीषण नाम।।
*
भक्त राम के आप हैं, मैं भी भक्त श्री राम ।
देखा सीता माता को, पता कहां श्रीमान।।
*
सीता मैया सुरक्षित, वाटिका है विशाल।
घेरे रहती राक्षसी, करते नयन सवाल।।
*
कहे विभीषण पवन से, प्रभु से कहो प्रणाम।
चरणों में माथा झुके, विनती है श्री राम।।
☆
© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈