डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – पवनपुत्र हनुमान)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 273 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – पवनपुत्र हनुमान ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

पवन वेग से उड़ रहे, उड़ते हैं हनुमान।

वर्षा पुष्प की कर रहे, देव करे सम्मान।।

*

करते सीता खोज वह, उड़ते सागर पार

पर्वत से सागर कहे, बड़ा करो आकार।।

*

हाथ जोड़ मैनाक है, पवनपुत्र हनुमान।

आड़े आया आपके, कर लो कुछ आराम।।

*

निकले सीता खोज में, वंदन है हनुमान।

मेरे मन में आपका, बहुत बड़ा सम्मान।।

*

लंका की इस राह में, बाधा करें प्रहार।

करना सीता खोज है, पवन न माने हार।।

*

रामदूत हनुमान हूं, बीच करो ना घात।

रूप धरोना सिंहिका, करता हूं आघात।।

*

किया प्रवेश लंका में, भव्य भवन भंडार।

भेंट लंकिनी से हुई, करते पवन प्रहार।।

*

कहा लंकिनी ने बहुत, हे वीर हनुमान।

मेरा जीवन धन्य हुआ, वानर तुझे प्रणाम।।

*

अंत समय अब आ गया, हुए लंका में पाप।

ब्रह्म सत्य अब हो गया, मिला बड़ा ही शाप।।

*

 सीता की इस खोज में, हम है तेरे साथ।

मिलजुल कर हम खोजते, रघु का सिर पर हाथ।।

*

सूक्ष्म रूप से आपने, किया लंका प्रवेश।

सोते देख रावण को, आया है आवेश।।

*

चकित हुए यह देख कर, सुना राम का नाम।

रावण के इस राज्य में, कौन कहेगा राम ।।

*

परिचय पाकर आपका, हर्षित हुए हनुमान।

भाई छोटा लंकपति, है विभीषण नाम।।

*

भक्त राम के आप हैं, मैं भी भक्त श्री राम ।

देखा सीता माता को, पता कहां श्रीमान।।

*

सीता मैया सुरक्षित, वाटिका है विशाल।

घेरे रहती राक्षसी, करते नयन सवाल।।

 *

कहे विभीषण पवन से, प्रभु से कहो प्रणाम।

चरणों में माथा झुके, विनती है श्री राम।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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