श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(हमप्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है आपके द्वारा श्री दीप त्रिवेदी जी द्वारा लिखित “मैं कृष्ण हूँ” पर चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 177 ☆
☆ “मैं कृष्ण हूँ” – उपन्यासकार… श्री दीप त्रिवेदी ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
पुस्तक चर्चा
दीप त्रिवेदी का उपन्यास “मैं कृष्ण हूँ”
प्रकाशक आत्मन इनोवेशन, मुंबई
मूल्य रु 349
चर्चा विवेक रंजन श्रीवास्तव
कृष्ण भारतीय संस्कृति के विलक्षण महानायक हैं। वे एक मात्र अवतार हैं जो मां के गर्भ से प्राकृतिक तरीके से जन्मे हैं। इसीलिए कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है, रामनवमी की तरह कृष्ण अष्टमी नहीं। कृष्ण के चरित्र में हर तरह की छबि मिलती है। दीप त्रिवेदी का यह उपन्यास कृष्ण के बचपन पर केंद्रित एक अनूठा और विचारोत्तेजक साहित्यिक प्रयास है उपन्यास भगवान कृष्ण के जीवन को एक मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है। उपन्यास न केवल कृष्ण के चरित्र की गहराई को उजागर करता है, बल्कि उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को आधुनिक संदर्भ में समझने का अवसर देता है। दीप त्रिवेदी, एक प्रख्यात लेखक, वक्ता और स्पिरिचुअल साइको-डायनामिक्स विशेषज्ञ माने जाते हैं। इस उपन्यास में कृष्ण को एक अलौकिक व्यक्तित्व के बजाय एक मानवीय और प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में चित्रित किया गया है।
कथानक
“मैं कृष्ण हूँ” पुस्तक कृष्ण की आत्मकथा के रूप में लिखी गई है, जिसमें वे स्वयं अपने जीवन की कहानी सुनाते हैं। यह आत्म कथा मथुरा के कारागृह में उनके जन्म से शुरू होती है, जहां वे कंस के अत्याचारों के बीच पैदा होते हैं, और गोकुल में यशोदा और नंद के संरक्षण में उनके बचपन तक ले जाती है। इसके बाद, कथा उनके जीवन के विभिन्न चरणों—कंस का वध, मथुरा से द्वारका तक का सफर, और महाभारत में उनकी भूमिका—को समेटती है। उपन्यास पारंपरिक धार्मिक कथाओं से हटकर कृष्ण के मन की गहराइयों को खंगालता है। लेखक ने उनके हर निर्णय, हर युद्ध, और हर रिश्ते के पीछे की मनोवैज्ञानिक प्रेरणाओं को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है।
कृष्ण का बचपन, युवावस्था और परिपक्व जीवन विस्तार से वर्णित है। इससे पाठक को कृष्ण के व्यक्तित्व के विकास को क्रमबद्ध तरीके से समझने में मदद करती है।
लेखन शैली
दीप त्रिवेदी की लेखन शैली सरल, प्रवाहमयी और प्रभावशाली है। उन्होंने हिंदी भाषा का उपयोग इस तरह किया है कि यह आम पाठक के लिए सहज होने के साथ-साथ विद्वानों के लिए भी गहन वैचारिक सामग्री प्रदान करती है। उपन्यास पढ़ते हुए पाठक को ऐसा लगता है जैसे वे कृष्ण की अंतरात्मा से सीधे संवाद कर रहे हों।
पाठकों को यह शैली थोड़ी उपदेशात्मक लग सकती है, क्योंकि लेखक समय-समय पर कृष्ण के जीवन से सीख देने की कोशिश करते हैं। यह दृष्टिकोण कथा के प्रवाह को कभी-कभी धीमा कर देता है, लेकिन यह किताब के उद्देश्य—जीवन के युद्धों को जीतने की कला सिखाने के लिए जरूरी है।
चरित्र-चित्रण
त्रिवेदी ने उपन्यास में कृष्ण को एक बहुआयामी व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत किया है। एक चंचल बालक, एक प्रेमी, एक योद्धा, एक रणनीतिकार, और एक दार्शनिक। कथा वाचकों की पारंपरिक कथाओं में जहां कृष्ण को चमत्कारों और अलौकिक शक्तियों के साथ जोड़ा जाता है, वहीं इस पुस्तक में उनकी मानवीयता और बुद्धिमत्ता पर जोर दिया गया है। उदाहरण के लिए, कंस के खिलाफ उनकी रणनीति को चमत्कार के बजाय उनकी बुद्धिमत्ता के रूप में वर्णित किया गया है।
अन्य पात्रों जैसे यशोदा, राधा, अर्जुन, और द्रौपदी भी, कथा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन वे मुख्य रूप से कृष्ण के दृष्टिकोण से ही चित्रित हैं। यह उपन्यास के आत्मकथात्मक स्वरूप को बनाए रखने में सफल रहती है।
संदेश
“मैं कृष्ण हूँ” का केंद्रीय संदेश यह है कि जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए हमें अपने मन को समझना और नियंत्रित करना होगा। लेखक ने कृष्ण के जीवन को एक प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत किया है, जो यह सिखाता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी हंसते हुए आगे बढ़ा जा सकता है। पुस्तक में बार-बार इस बात पर बल दिया गया है कि कृष्ण ने अपने जीवन में हर युद्ध—चाहे वह आर्थिक, सामाजिक, या राजनीतिक हो—अपने मन की शक्ति से जीता।
इसके अलावा, यह उपन्यास आधुनिक जीवन से जोड़ने की कोशिश करता है। कृष्ण की साइकोलॉजी को समझकर पाठक अपने जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित हो सकता है। यह किताब धार्मिकता से अधिक आत्म-जागरूकता और आत्म-सुधार पर केंद्रित है, जो इसे एक प्रेरणादायक और व्यावहारिक रचना बनाती है।
दीप त्रिवेदी का “मैं कृष्ण हूँ” एक ऐसी पुस्तक है जो न केवल कृष्ण के जीवन को नए नजरिए से देखने का अवसर देती है, बल्कि पाठक को आत्म-चिंतन और आत्म-विकास के लिए भी प्रेरित करती है।
कृष्ण का चरित्र हर भारतीय का जाना पहचाना हुआ है, अतः उपन्यास में रोचकता और नवीनता बनाए रखने की चुनौती का सामना लेखक ने सफलता पूर्वक किया है और एक जानी समझी कहानी को नई दृष्टि दी है।
पुस्तक पठनीय तथा चिंतन मनन योग्य है।
समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈