श्री जगत सिंह बिष्ट
(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)
(ई-अभिव्यक्ति के “दस्तावेज़” श्रृंखला के माध्यम से पुरानी अमूल्य और ऐतिहासिक यादें सहेजने का प्रयास है। श्री जगत सिंह बिष्ट जी (Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker) के शब्दों में “वर्तमान तो किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर दर्ज हो रहा है। लेकिन कुछ पहले की बातें, माता पिता, दादा दादी, नाना नानी, उनके जीवनकाल से जुड़ी बातें धीमे धीमे लुप्त और विस्मृत होती जा रही हैं। इनका दस्तावेज़ समय रहते तैयार करने का दायित्व हमारा है। हमारी पीढ़ी यह कर सकती है। फिर किसी को कुछ पता नहीं होगा। सब कुछ भूल जाएंगे।”
☆ दस्तावेज़ # 23 – महाकुंभ 2025 – एक अविस्मरणीय अनुभव ☆ श्री जगत सिंह बिष्ट ☆
कुछ अनुभव ऐसे होते हैं जो मन पर स्थायी छाप छोड़ जाते हैं। वे केवल दृश्य नहीं होते, वे जीवन के भाव बन जाते हैं। महाकुंभ 2025 के अवसर पर तीर्थयात्रा हमारे लिए ऐसा ही एक अनुभव थी—एक दिव्य यात्रा, जो शरीर से अधिक आत्मा को स्पर्श कर गई।
हम तीर्थराज प्रयागराज पहुंचे, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर पवित्र महाकुंभ का आयोजन हो रहा था। यह कोई सामान्य आयोजन नहीं था, बल्कि जीवन में एक बार मिलने वाला दुर्लभ संयोग था, क्योंकि ग्रह-नक्षत्रों का ऐसा संयोग अब 144 वर्षों बाद ही होगा। यह जानकर ही मन रोमांचित हो जाता है कि हम इस दुर्लभ अवसर के साक्षी बन पाए।
हमने स्नान से पहले ही तय कर लिया था कि हमें सूर्योदय से पहले संगम तक पहुंचना है। सुबह-सुबह अंधेरे में हमने ई-रिक्शा लिया और फिर एक युवक की मोटरसाइकिल पर पीछे बैठकर बोट क्लब तक पहुंचे। ठंडी हवा, गहराता अंधकार और भीतर उठती श्रद्धा की लहरें—सब मिलकर एक अद्भुत वातावरण बना रहे थे।
(महाकुंभ 2025 के अवसर पर संगम में अप्रतिम सूर्योदय का विहंगम दृश्य )
नाव की यात्रा अपने आप में एक ध्यान-साधना बन गई थी। गंगा की लहरों पर तैरती हमारी छोटी सी नाव, आकाश में लालिमा बिखेरता सूरज, और बादलों के बीच से झांकती किरणें—यह सब किसी स्वप्न जैसा लग रहा था। नाव चलाने वाला नाविक साधारण पर बहुत अनुभवों से भरा हुआ था। उसके चेहरे पर शांति थी, बातों में अपनापन। वह वर्षों से यही करता आया था—श्रद्धालुओं को संगम तक ले जाना और वापस लाना। उसकी हर बात में जीवन की सादगी और गहराई थी।
(महाकुंभ 2025 के अवसर पर पवित्र गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर नाव यात्रा का अद्भुत अनुभव )
नाव धीरे-धीरे संगम की ओर बढ़ रही थी, और हमारा मन जैसे विचारों से मुक्त होता जा रहा था। जल का विशाल विस्तार, उसकी गहराई और तेज बहाव ने हमें भीतर तक छू लिया। जब हम संगम पहुंचे और डुबकी लगाई, तो वह सिर्फ एक स्नान नहीं था। वह एक आत्मिक अनुभव था। जैसे वर्षों से जमी हुई कोई चिंता, कोई संशय उसी क्षण जल में घुलकर बह गया हो। डुबकी लगाने के बाद एक अनकही शांति भीतर उतर आई। हमें यह जानकर संतोष हुआ कि हम केवल दर्शक नहीं रहे, हमने इन पुण्य पलों को जिया है।
(महाकुंभ 2025 के अवसर पर यमुना नदी पर साइबेरियाई पक्षी)
इसके बाद हम जब वापसी कर रहे थे, तो मन बार-बार उसी प्रश्न में उलझता रहा—क्या सच में यह केवल परंपरा है, या इसके पीछे कोई और गहरा आकर्षण है? तभी हमें संगम घाट की ओर बढ़ती वह अंतहीन मानव श्रृंखला दिखी। लोग पैदल चले आ रहे थे—महिलाएं, पुरुष, बुज़ुर्ग, बच्चे—हर उम्र, हर वर्ग के लोग। चेहरों पर थकावट नहीं, बस एक अपूर्व आस्था का भाव।
इनमें से कई लोग पढ़े-लिखे नहीं थे, साधनहीन थे, लेकिन उनके विश्वास में कोई कमी नहीं थी। न उनके पास रहने की निश्चित व्यवस्था थी, न भोजन की। फिर भी वे चले आ रहे थे—क्यों? क्योंकि उन्हें भरोसा था कि ईश्वर रास्ता बनाएगा, और धर्म की राह में कोई अकेला नहीं होता। यह आस्था देख कर हमारी आंखें नम हो गईं। हम सोचने लगे—क्या यही वह अदृश्य शक्ति है जो करोड़ों लोगों को इस महासंगम की ओर खींच लाती है?
प्रशासन ने अपनी ओर से व्यवस्थाएं की थीं—रास्ते में रैन बसेरे बनाए गए थे, जहां तीर्थयात्री निशुल्क ठहर सकते थे। जगह-जगह भंडारे लगे थे, जहां सेवाभाव से भोजन मिल रहा था। अस्थायी शौचालयों की भी व्यवस्था थी, ताकि लोगों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी हो सकें। जो लोग ये साधन जुटाने में असमर्थ थे, उनके लिए यह किसी वरदान से कम नहीं था। पर फिर भी जब करोड़ों लोग एक साथ किसी छोटे शहर में उतरते हैं, तो किसी भी तैयारी की सीमाएं झलकने लगती हैं।
हम भी भीड़ के साथ-साथ पैदल चलते रहे, धूप तेज़ हो चुकी थी लेकिन लोग रुक नहीं रहे थे। हमने कोशिश की कि उनके मन को समझें, उनकी भावनाओं को महसूस करें, पर एक गहराई थी जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। उलटे हमारी अपनी जिज्ञासा और बढ़ती चली गई, और साथ ही अध्यात्म के प्रति आस्था भी।
एक लम्बी यात्रा के बाद हम एक डिजिटल म्यूज़ियम पहुंचे, जहां महाकुंभ 2025 को आधुनिक तकनीक के माध्यम से दर्शाया गया था। वहां छोटे-छोटे वृत्तचित्रों के माध्यम से कुंभ मेले का इतिहास और उसका महत्व बताया गया। यह देखना सुखद अनुभव था कि परंपरा और तकनीक कैसे साथ चल सकते हैं।
शाम को बोट क्लब क्षेत्र के काली घाट पर लेज़र और ड्रोन शो का भी आनंद लिया। रौशनी और रंगों से सजी वह प्रस्तुति जैसे कुंभ की भव्यता को एक नए रूप में जीवंत कर रही थी।
संगम क्षेत्र और टेंट सिटी भीड़ से खचाखच भरी थी, लेकिन हम भाग्यशाली रहे कि प्रयागराज के सिविल लाइंस इलाके में हम ठहरे थे। यह क्षेत्र अपेक्षाकृत शांत था और वहां अच्छे रेस्टोरेंट, शॉपिंग आउटलेट्स और पीवीआर सिनेमा हॉल भी मौजूद थे। हमने विशेष रूप से ‘एल चिको’ रेस्टोरेंट में भोजन का आनंद लिया, जो हमारे दिन की थकान को सुकून में बदल गया।
प्रयागराज से रवाना होने के पहले हमने तय किया कि पास के ऐतिहासिक अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद पार्क में श्रद्धा सुमन अर्पित करें, जहां देशभक्ति की वह ज्वाला आज भी जीवित लगती है।
इस पूरी यात्रा के अंत में हमारे मन में एक ही भाव रह गया—
“हे ईश्वर, इस महाकुंभ की आध्यात्मिक ऊर्जा से हमारे जीवन में शांति, प्रेम और समरसता बनी रहे।”
© जगत सिंह बिष्ट
Laughter Yoga Master Trainer
A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈