श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मुझे तुम याद आए…“।)
अभी अभी # 661 ⇒ मुझे तुम याद आए
श्री प्रदीप शर्मा
कोई हमें याद कब आता है, जब वह हमसे दूर होता है, लेकिन दिल के करीब होता है। वैसे याद आने के लिए किसी का होना भी जरूरी नहीं, जो चला गया अतीत हो गया, उसकी भी हमें याद आ सकती है। याद किसी की दया पर निर्भर नहीं, याद आने की कोई शर्त नहीं, कोई तिथि, तारीख, मुहूर्त नहीं। वो जब याद आए, बहुत याद आए।
यादों के दायरे में केवल परिचित स्वजन, मित्र, स्नेही, स्त्री पुरुष, अथवा छोटे बड़े ही नहीं आते, याद तो याद होती है, अपनी पालतू बिल्ली की भी कभी आपको याद आ सकती है।।
आपकी याद, आती रही रात भर ! जी हां, आपकी ही तो बात हो रही है। आखिर आप भी तो अपने ही हैं। किसी की याद आना, केवल स्मरण मात्र नहीं होता। याद में तुम, आप अथवा तू का भेद नहीं होता। यह मन की तरंगों का खेल है, याद आ गई, तो बस आ गई।
यादों का मामला एकांगी नहीं होता। ताली दो हाथ से बजती है। जहां प्रेम है, लगाव है, आसक्ति है, वहां अपेक्षा भी है। प्यार उपेक्षा बर्दाश्त नहीं कर सकता। घबराकर आखिर वह चीख उठता है। बेदर्दी बालमा तुझको, मेरा मन याद करता है।।
कहीं कहीं तो याद सिर्फ आती ही नहीं, सताती भी है। सारी सारी रात, तेरी याद सताए। नींद ना आए, और जी भी घबराए। अच्छे भले बैठे हैं, और हिचकी आना शुरू हो जाती है।
हिचकी का अपना विज्ञान है, पानी पी लें, हिचकी बंद हो जाएगी। लेकिन हमारी मान्यता तो आज भी यही है, जरूर किसी अपने ने याद किया होगा, और कमाल देखिए, आपका नाम लिया और हिचकी बंद हो गई।
यादों का सहारा ना होता, हम छोड़ के दुनिया चल देते। खट्टी मीठी यादें ही तो हमारे जीवन की पूंजी है, धरोहर है। जो हमसे बिछड़े उन्हें केवल हम ही याद कर सकते हैं, लेकिन हम जिनसे जनम जनम से बिछड़े हैं, क्या कभी हमें उनकी भी याद आती है।।
हम कभी परमेश्वर के अंश थे और उसी परमेश्वर का कुछ अंश आज हममें भी विद्यमान है, लेकिन हम उसे पूरी तरह से भुला चुके हैं।
सुबह शाम गमलों में पानी देने के समान उसे भी याद कर लिया करते हैं। जब ज्यादा याद आई तो साधन, भजन, कीर्तन। इतने व्रत, त्योहार हैं याद करने के लिए।
हर प्राणी में उसी ईश्वर का अंश है। अपने कल्याण के साथ सबके कल्याण की कामना करना भी एक तरह से उन्हें याद करना ही है। एक प्रेम की डोर ही हम सबको आपस में जोड़े रखती है। यह कड़ी ही हम सबको ईश्वर से भी जोड़ती है। हम सबका ईश्वर भी तो एक है :
जब जब बहार आई
और फूल मुस्कुराए
मुझे तुम याद आए।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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