श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “स्टेनो-टाइपिस्ट …“।)
अभी अभी # 663 ⇒ स्टेनो-टाइपिस्ट
श्री प्रदीप शर्मा
ढाई आखर स्टेनो का, पढ़े सो स्टेनोग्राफर होय ! आप इसे शॉर्ट हैंड अथवा आशु लिपि भी कह सकते हैं। कुछ विद्याएं बड़ी तेजी से आती हैं, हलचल मचाती हैं, और सुपर फास्ट ट्रैन की तरह गुजर जाती हैं। वह लिपि, जो रुकती ही नहीं, सरपट निकल जाती है। कितना प्यारा शब्द है, stay no ! रुको मत, सबसे आगे निकल जाओ। उधर मुंह से
कुछ शब्द निकले, और इधर कलम ने कुछ संकेत बनाए, और काम हो गया।
आजादी के बाद देश का विकास नेहरू जी के कंधों पर था, क्योंकि तब नेहरू जी ही कांग्रेस को कंधा दे रहे थे। अंग्रेज चले गए थे, अंग्रेजियत छोड़ गए थे। देश की युवा पीढ़ी कॉलेज में पढ़ने जाती थी, डॉक्टर इंजीनियर और आय. ए .एस . के सपने देखती थी, और दफ्तरों में बाबुओं की फ़ौज खड़ी हो जाती थी। जिन्होंने आजादी के सात दशक देखे हैं, उनमें से अधिकतर लोग तब लोअर और मिडिल क्लास के लोग थे। मोदीजी का बचपन उसका गवाह है। चिमनी और लालटेन में किसने पढ़ाई नहीं की। तब टाट पट्टी पर पट्टी पेम से ही पढ़ाई होती थी। हम आप सब एक जैसे थे। जैसे भी थे, हम एक थे।।
स्टेनो शब्द सुनते ही, एक सुंदर लड़की का चेहरा सामने आ जाता है, जो किसी शानदार दफ्तर में अपने बॉस से पहले डिक्टेशन लेती थी, और फिर बाद में, अपनी नाजुक उंगलियों से उसे टाइप करती थी। एयर होस्टेस और स्टेनो का दर्जा हमारी निगाह में तब एक जैसा था। पूत के पांव मां बाप को पालने में ही दिख जाते हैं। पढ़ाई के साथ बच्चों को टाइपिंग क्लास भी ज्वाइन करवा देते हैं, और कुछ नहीं तो बाबू तो बन ही जायेगा। बाद में अगर मेहनती होगा तो बड़ा बाबू और अफसर भी बन ही जाएगा। तब पंद्रह से तीस रुपए महीने में, हिंदी अथवा अंग्रेजी टाइपिंग के लिए खर्च करना इतना आसान भी नहीं था। शॉर्ट हैंड सीखना सबके बस की बात नहीं थी।
आज जिसके हाथ में मोबाइल है उसने एक स्टेनो टाइपिस्ट खरीद रखा है। वह इधर बोलता है, उधर टाइप ही नहीं होता, प्रिंट हो जाता है। अब अखबारों में, वांटेड में, विज्ञापन प्रकाशित नहीं होते, टाइपिस्ट चाहिए अथवा एक व्यवसायिक प्रतिष्ठान के लिए महिला स्टेनो टाइपिस्ट की तत्काल आवश्यकता है। सभी दफ्तरों के टाइपराइटर कब के रिटायर हो गए। अब कौन शॉर्ट हैंड सीखता और सिखाता है। Say no to Steno. Say yes to Air Hostess.
कितना अंतर आ गया इन सात दशकों में ! हमारी पीढ़ी टाइपिंग क्लास जाती थी, आज की पीढ़ी कोचिंग क्लास जाती है। हम बी.ए., एम.ए. ही करते रह गए और वे एम.बी.ए. हो गए। अगर कहीं P.R.O., यानी पब्लिक रिलेशन ऑफिसर बन गए, तो सीना छप्पन हो जाता था, आजकल तो बाबा लोग भी C.E.O., चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर यानी मैनेजिंग डायरेक्टर रखने लग गए हैं। आशु लिपि छोड़ें, द्रुत गति अपनाएं। आज की कन्याएं, होटल मैनेजमेंट की ओर नजरें घुमाएं।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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