श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष”  की अगली कड़ी में प्रस्तुत है – उनका एक अत्यंत संवेदनशील, मार्मिक, गंगा जमुनी  तहजीब की मिसाल प्रस्तुत करती मानवीय दृष्टिकोण पर लिखा शिक्षाप्रद  सामयिक आलेख   “चीखती दीवारें !!!”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़  सकते हैं। ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 16 ☆

☆ चीखती दीवारें..!!! ☆

 

9 दिसम्बर स्थान अनाज मंडी दिल्ली में सुबह का सूरज एक नई रोशनी ले के आने ही वाला था कि सुबह होने के पूर्व ही अनाज मंडी स्थित एक बैग फैक्ट्री की दीवारों से एक साथ तमाम चीखें सुनाई देने लगीं..! दीवारों की खिड़कियों से बड़ी तेजी से लगातार धुआं निकल रहा था..!! सुबह सुबह ये नजारा देख आस पास के लोगों में दहशत फैल गई.!!किसी ने आनन फानन में पुलिस को इतला दी..!!

अंदर धुंए और आग से लोगों का दम घुटने लगा था कुछ लोग आग की लपेट में भी आ चुके थे.! पुलिस जब तक उस तंग गली में स्थित फैक्ट्री तक पहुँचे इस बीच अंदर फंसे व्यक्तियों की मनोदशा अंतिम चरण में पहुँच चुकी थी.!! बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था,चारों तरफ़ धुआं ही धुआं आग और घुटन बढ़ती ही जा रही थी..!! मुसर्रफ अली भी उन व्यक्तियों में से एक था..!! उसे अहसास हो चला था कि वह अब मौत के दरवाजे पर खड़ा है.!!उसे एक एक कर बीते वर्षों की हर एक बात बड़ी तेजी से याद आ रही थी अभी छह माह पूर्व ही उसके वालिद का इंतक़ाल हो गया था तब वो घर बिजनोर गये थे.! अपनी माँ की गोद में सिर रखने पर मिलता सुकून,दो नन्हे से बच्चे और अपनी प्यारी सी बीबी की याद बड़ी बेसब्री से आ रही थी..!!! फिर अचानक उसे अपने अज़ीज़ दोस्त मोनू अग्रवाल का ख्याल आया और तुरंत उसने उसे मोबाइल से काल लगाया.!! ये एक ऐसा वक्त था जब मुसर्रफ अपने दिल की हर बात अपने अज़ीज़ दोस्त मोनू को जल्द से जल्द बता देना चाहता था,और हुआ भी वही..!! दूसरी तरफ फोन पर मोनू की आवाज़ सुन मुसर्रफ बड़ी ही संजीदगी से बोला यार सुन अब मेरे पास वक्त बहुत कम है,यहाँ फैक्ट्री में आग लगी हुई है चारों तरफ धुआं ही धुआं और गर्द है मुझे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही है मोनू ने रोक कर कहा यार तू किसी तरीके से बाहर निकल अल्लाह सब ठीक करेगा तू फिक्र न कर यह सुन मुसर्रफ ने कहा सुन भाई मैं जो कहना चाहता हूँ मुझे बात करने में भी खासी तकलीफ हो रही है बमुश्किल बात कर पा रहा हूँ, तू मेरे बीबी बच्चों का ख्याल रखना जब तक वो बड़ें न हों जाएँ, पैरों पर खड़े न हों जाएँ अब तू ही एक सहारा है भाई.. मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है भइया, उसकी आवाज़ में लड़खड़ाहट और मौत का ख़ौफ़ नज़र आ रहा था !! और हाँ भइया मैंने कुछ दिन पूर्व इमामुद्दीन से पांच हजार रुपये लिए थे उसके ये पैसे भी आप याद से लौटा देना भइया..! मोनू दूसरी तरफ से सांत्वना देते हुए बोला अरे सब लौटा देंगे तू काहे टेंसन ले रहा है सब ठीक होगा मुसर्रफ.!! एक बात और सुन मेरे भाई मेरे मरने की बात एक दम से न बताना परिवार बर्दास्त न कर सके इसलिए धीरे समय देख बड़ों जैसे समझदारी से बताना.!! ये कहते हुए उसकी आवाज़ थम सी रही थी अंत में सिर्फ ये सुनाई दिया या अल्लाह मेरे घर की देख रेख करना मोनू ने यह सुन उसे फिर आवाज दी हेलो मुसर्रफ पर दुबारा उसकी आवाज सुनाई नहीं दी..!!

तभी अग्निशामक दल की गाड़ियां आ चुकीं थीं जो दूर से ही पाइप डाल कर आग बुझाने में लग गई..!!,दिल्ली पुलिस आस पास के लोगों से पूछताछ में लग गई..!! मीडिया टी आर पी बढ़ाने में लग गया..!! जांच अधिकारी आग के कारणों को खोजने,और फैक्ट्री मालिक की गिरफ्तारी में लग गए..!! कई सवाल उठने लगे कि आखिर तंग गलियों में फैक्ट्री की इजाज़त क्यों..? लेकिन इस बीच अग्निशामकों द्वारा जब 43 लाशें बाहर निकाली गईं तो स्थितियाँ बहुत ही मार्मिक एवं ह्रदय विदारक थीं.!

बहरहाल कारण जो भी हों पर इस अग्निकांड ने 43 लोग बे समय काल कलवित हुए..!! घटनाओं के बाद जैसे प्रायः होता आया है वही मजिस्ट्रेटियल जांच के आदेश, मुआवजा, देकर xइन वीभत्स कांडो पर पर्दा डालने के कुत्सित प्रयास भी नजर अंदाज नहीं किये जा सकते..!!  नगरीय प्रशासन,राज्य स्तरीय,और केंद्रीय प्रशासन संयुक्त रूप से दोषियों के खिलाफ कार्यवाही और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इसका हल खोजने के बजाय एक दूजे को दोषारोपण देने में ही व्यस्त रहे ..!!

यह अग्निकांड तमाम सवाल अपने पीछे छोड़ गया है, जिनका जबाब हमें खोजना है..!! जैसे तंग गलियों में फैक्ट्री की इजाजत कैसे,बिजली कनेक्शन,पानी,अन्य अग्नि से निपटने के उपकरण, आपातकालीन दरवाजे आदि आदि पर एक बहुत बड़ा संदेश भी इस अग्निकांड से हमें मिला है वो है सामाजिक समरसता, सौहार्द, आपसी भाईचारा, परस्पर प्रेम, ईमानदारी और विस्वास का..!! उस ख़ुदा के नेक वंदे ने अपने आखिरी वक्त में जो बातें कहीं वो पूरे समाज के लिए चिंतनीय, सोचनीय, और अनुकरणीय हैं.!! अल्लाह उनको जन्नत नसीब करें.! जहाँ आज चौतरफा एक दूजे को शक की निगाह से देखा जा रहा है आपसी सौहार्द खतरे में हो,इन हालातों में समाज के बीच ये खिंची हुई दीवारें भी चीख चीख कर मानो हमसे कह रही हों हमें गिरा दो..!! इन चीखती दीवारों की व्यथा न जाने कब सुनेगा ये तथा कथित सभ्य समाज…???

संतोष

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