डॉ सत्येंद्र सिंह
☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – कहाँ हैं जय प्रकाश? ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह ☆
कहाँ गए वे लोग नहीं, कहाँ जाते हैं ये लोग कहना पड़ेगा। अभी नवंबर 2024 में ही फेसबुक पर जयप्रकाश भाई ने पूज्य ज्ञान रंजन जी को जन्मदिन की शुभकामनाएँ दीं थीं। जय प्रकाश जी की फेसबुक पर हर पोस्ट देखता था । उनके द्वारा दी गई शुभकामनाएँ देखकर मैंने ज्ञानरंजन जी फोन किया और उनको अपनी ओर से शुभकामनाएँ दीं । ज्ञानरंजन जी ने कहा कि मेरा जन्मदिन 21 नवंबर था भाई तो मैंने उनसे कहा कि मुझे जय प्रकाश पांडे की फेसबुक पोस्ट से आपके जन्मदिन के बारे में पता चला। जय प्रकाश पाण्डेय का नाम सुनते ही ज्ञान सर ने तुरंत कहा,सत्येंद्र, अजय प्रकाश बहुत बीमार हैं। अभी इलाज कराकर नागपुर से लौटकर आए हैं, अभी काफी ठीक हैं, उनसे बात कर लो उन्हें बहुत अच्छा लगेगा। नंबर मेरे पास था ही, मैंने तुरंत बात की। मैं 1985 से 1990 तक जबलपुर में रहा। ज्ञानरंजन जी के आवास पर होने वाली गोष्ठियों में जय प्रकाश जी से मुलाकात होती। उनके साथ परसाई जी के यहां जाना भी हुआ। मेरे साथ अरुण श्रीवास्तव हमेशा रहते, रहते क्या वे ही मुझे लेकर जाते। लीलाधर मंडलोई जी और सुरेश पांडेय जी की उपस्थिति विशेष रूप से रहती। मयंक जी, कुंदन सिंह परिहार जी, राजेन्द्र दानी जी, द्वारका प्रसाद गुप्त गुप्तेश्वर, बाजपेई जी, अरुण पांडेय, विवेचना के हिमांशु जी और जिन जिन की याद आई, सबके बारे में खूब बात हुईं।
जय प्रकाश जी से आत्मीयता का एक कारण मुरलीधर नागराज भी रहे क्योंकि मुरलीधर नागराज जी से मित्रता मुंबई में ही हो गई थी जब तापसी जी ने सुर संगम का पुरस्कार जीता था। उस समय राजेश जौहरी हमारे बीच की कड़ी थे । मुंबई से जबलपुर ट्रांसफर पर आने पर मैं प्रसिद्ध सीबीआई ऑफिसर आई.एन. आर्य जी के साथ उनके जिस रेलवे क्वार्टर में रहता था उसके पास ही स्टेट बैंक की शाखा थी, जिसमें मुरलीधर नागराज थे। जय प्रकाश जी मुरलीधर जी के साथी और मित्र थे ही। इस प्रकार जयप्रकाश जी से दोहरी आत्मीयता थी। सन् 1990 में कोल्हापुर आने के बाद जबलपुर जाना नहीं हुआ परंतु फेसबुक पर जयप्रकाश जी से जुड़ा रहा। जब बीमारी की बात सुनकर मैंने उनसे बात की उन्होंने अपना पूरा हाल बताया की कब कब, क्या-क्या हुआ। नागपुर कब गए । कितने दिन दिन इलाज चला और एक ऑपरेशन होने वाला है। सब ऐसे बता रहे थे जैसे किसी और के बारे में बता रहे हों। पूरी उम्मीद थी उन्हें होने वाला ऑपरेशन भी सफल रहेगा । इन्हीं उम्मीद के साथ हमारी बातचीत खत्म होने वाली थी कि उन्होंने अचानक कहा कि हम लोग एक डिजिटल पत्रिका ई-अभिव्यक्ति निकलते हैं और स्टेच बैंक ऑफ इंडिया के कंप्यूटर विशेषज्ञ हेमंत बावनकर जी उसका पूरा काम देखते हैं। उसमें आप लिखा कीजिए और उन्होंने मुझसे अपना संक्षिप्त परिचय, फोटो और रचना व्हाट्सएप पर ही भेजने के लिए कहा और मैंने भेज दी। उन्होंने तुरंत उन्होंने ब्यौरा मेरा हेमंत जी को भेज दिया और 27 नवंबर 2024 को मैं हेमंत जी ने मुझे ई-अभिव्यक्ति से जोड़ लिया । चार पांच अंकों में ही मेरी रचना प्रकाशित हुई हैं। एक हफ्ते से मैं फेसबुक व्हाट्सएप कुछ नहीं देख पाया, पता नहीं क्यों, लेकिन आज हेमंत जी का मैसेज और ई-अभिव्यक्ति पर जब देखा तो का पूरा अंक जयप्रकाश पांडे जी को समर्पित करते हुए प्रकाशित किया है । तब मुझे पता चला जयप्रकाश भाई नहीं रहे । पता अंदर से बहुत कुछ टूट सा गया। ई-अभिव्यक्ति पर जय प्रकाश जी पर सभी मित्रों की संवेदनाएँ पढीं। फेसबुक देखा तो सैकड़ों मित्रों ने उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए हैं। कैसे कोई बात करते-करते, हंसता -खेलता आदमी चला जाता है, कहाँ गए वे लोग स्तंभ उन्होंने शुरू किया और खुद कहाँ चल दिए? सब कुछ पढकर दिल बहुत दुखी हुआ । जय प्रकाश जी जैसे लोग बिरले ही होते हैं । वे कभी अपनी व्यक्तिगत समस्या से घबराने वाली व्यक्ति नहीं थे आश्चर्य है कहाँ गए वे लोग कहने वाले प्रश्न छोड़ कर चले गए कि कहाँ जाते हैं लोग ?
मेरी विनम्र श्रद्धांजलि स्वीकार करें जय प्रकाश।
© डॉ सत्येंद्र सिंह
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈