हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२१ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२१ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

हम लोग जैसे-जैसे सीढ़ियाँ चढ़ते जा रहे थे, पसीना से तरबतर होते जा रहे थे। अंत में तीखी चढ़ाई पर पेड़ों की मौजूदगी भी कम होती जा रही थी। तक़रीबन सौ-सवा सौ सीढ़ियाँ बची होंगी। वहाँ सीधी चढ़ाई पर भारी भीड़ अटी थी। चढ़ने वाले और उतरने वाले दोनों आमने-सामने अड़े थे। उनमें ध्यानु-ज्ञानु बकरों का विवेक नहीं था कि एक दूसरे को राह देकर निकल जाएँ। सीढ़ियों के आजूबाजू बहुत बड़े पत्थरों के ढेर थे। जिन पर बंदरों का हुजूम था। एक बंदर ने बच्चे के हाथ से कोल्ड ड्रिंक की बोतल छुड़ा, ढक्कन खोल गटागट पीना शुरू किया तो लोगों ने फोटो निकालना शुरू कर दिया। मानों पुरखों की पेप्सी पसंदगी को सहेजना चाहते हों। भीड़ इंच भर भी नहीं खिसक रही थी। ऊपर आंजनेय पहाड़ी पर जय हनुमान के जयकारे के साथ घंटों की टंकार ध्वनि गूँज रही थी। एक लाउड स्पीकर पर हनुमान-चालीसा चल रहा था। भक्त भी उसकी ध्वनि में ध्वनि मिला रहे थे कि शायद इस मुश्किल से मुक्ति मिल जाए।

एक प्रश्न मन में आया कि हम लोग तो हनुमान-चालीसा पढ़-सुन कर कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की राह देखते हैं। जब हनुमान जी पर मुश्किल आती थी तो वे बुद्धि-विवेक से राह तलाशते थे। जब बुद्धि-विवेक से संजीवनी बूटी सूझ नहीं पड़ी तो समूचा पर्वत उठा लाए थे। भूखी-प्यासी भीड़ निजात की राह तलाशते खड़ी थी। तभी उतरती भीड़ के कुछ युवक चट्टानों के बीच से रास्ता बना नीचे की तरफ़ उतरने लगे। हमने भी इसी तरह की कोशिश सोची। बाईं तरफ जूते-चप्पलों का एक छोटा सा ढेर दिखा। कई भक्त शनिवार को दर्शन करने आते हैं तो अपने जूतों के साथ शनि की बुरी दशा को भी उतार कर फेंक जाते हैं।

शनिदेव से जुड़ी से जुड़ी एक और परिपाटी है कि शनिदेव को तेल का दान करने से शनि के बुरे प्रभाव से मुक्ति मिलती है। जो लोग ये उपाय नियमित रूप से करते हैं, उन्हें साढ़ेसाती और अढय्या से भी मुक्ति मिलती है। लेकिन शनिदेव तेल चढ़ाने से क्यों प्रसन्न होते हैं।

ऐसी मान्यता है कि रावण की क़ैद में शनिदेव काफी जख्मी हो गए थे, तब हनुमान जी ने शनिदेव के शरीर पर तेल लगाया था जिससे उन्हें पीड़ा से छुटकारा मिला था। उसी समय शनि देव ने कहा था कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा भक्ति से मुझ पर तेल चढ़ाएगा उसे सारी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी। तभी से शनिदेव पर तेल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई। इसको लेकर कथा प्रचलित है कि रावण ने सभी नौ ग्रहों को बंदी बना रखा था। शनिदेव को उल्टा लिटा कर उनकी पीठ पर पैर रख सिंहासन पर बैठता था।  शनिदेव ने रावण से विनती की “हे राजन, मुझे चित लिटा कर मेरे ऊपर पैर रखकर बैठिए, मैं कम से कम आपके मुखारबिंद का दर्शन लाभ प्राप्त करता रहूँगा। विनाशकाले विपरीत बुद्धि कहावत चरितार्थ करते रावण ने शनिदेव को चित लिटा लिया। शनिदेव की वक्रदृष्टि रावण के चेहरे पर पड़ती रही। यहीं से रावण के अंत की शुरुआत होती है।

हनुमान द्वारा मुक्ति के समय शनिदेव ने कहा था कि जो भी व्‍यक्ति श्रद्धा भक्ति से मुझ पर तेल चढ़ाएगा उस पर मेरी वक्रदृष्टि नहीं पड़ेगी। उसे सारी समस्‍याओं से मुक्ति मिलेगी। एक साथी ने उत्कंठा वश जानना चाहा, क्या ऐसा होता है।

हमने कहा- एक चीज होती है- श्रद्धा और दूसरी चीज उसी से उपजती है- विश्वास। जब आपको हनुमान जी पर श्रद्धा है तो उनके कार्यों पर विश्वास भी होगा ही। नहीं तो विकलांग श्रृद्धा किसी काम की नहीं होती। पूरे भारत में शनिवार को शनिदेव पर तेल चढ़ाया जाता है। यह इसी पौराणिक आख्यान में विश्वास का द्योतक है और इन्ही विश्वासों से किसी देश की संस्कृति जन्म लेती है। आधुनिक मनोविज्ञान मानता है कि मुश्किलों से पार पाने में आत्म-विश्वास बड़े काम की चीज होता है।

हमने भी आत्म-विश्वास पूर्वक जूतों के ढेर पर से चलते हुए सीढ़ियों से हटकर रास्ता बनाया। पंद्रह मिनट में पर्वत की चोटी पर थे। दो साथी भी उसी तरीक़े से ऊपर पहुँच गए। ऊपर से नीचे सीढ़ियों की तरफ़ देखा तो हमारा दल बुरी तरह गसी भीड़ में पैवस्त था। किसी भी तरफ़ निकल नहीं सकता था। उन्हें भीड़ के साथ ही चींटी चाल से खिसक कर चढ़ना था।

हमको भूख लगी थी। एक जगह नारियल से नट्टी निकालने का उपक्रम चल रहा था। कुछ महिलाएं भक्तों का नारियल पत्थरों से कूट कर निकाल एक हिस्सा अपने पास रख बाकी भक्तों को दे देती थीं। हम उनके नज़दीक उनके नारियल निकालने की कला को देखते बैठ गए। एक भक्त हमको भी नारियल से नट्टी निकालने को देने लगे तो हमने तनिक देर सोचा, और नारियल लेकर पत्थरों की दो चोट से गूदा बाहर करके एक हिस्सा उन्हें पकड़ा दिया। दूसरा नीचे रख लिया। फिर तीन-चार भक्त और आ गए। करीब दसेक मिनट यह धंधा चला। भूख मिटाने योग्य नारियल को नल के पानी से धोया और चबाते रहे। कुछ भक्त प्रसाद में मीठी चिरौंजी दे गए। नारियल और चिरौंजी के ग्लूकोस से प्रफुल्लित हो,  दल के साथियों के आने तक पहाड़ी से नीचे तुंगभद्रा नदी के आलिंगन में बसे हनुमानहल्ली गांव के साथ सुंदर दृश्यावली का आनंद लिया।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 653 ⇒ त्याग पत्र उर्फ इस्तीफा ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “त्याग पत्र उर्फ इस्तीफा।)

?अभी अभी # 653 ⇒ त्याग पत्र उर्फ इस्तीफा ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

भोग से विरक्ति को त्याग कहते हैं, और पद से त्याग को त्याग पत्र कहते हैं। जिस तरह निवृत्ति से पहले प्रवृत्ति आवश्यक है, उसी प्रकार त्याग पत्र से पहले किसी पद पर नियुक्ति आवश्यक है। सेवा मुक्त भी वही हो सकता है जो कहीं सेवारत हो। सेवा से रिटायरमेंट और टर्मिनेशन से बीच की स्थिति है यह त्याग पत्र।

सेवा चाहे देश की हो अथवा समाज की, शासकीय हो अथवा गैर सरकारी, जिसे आजकल सुविधा के लिए प्राइवेट जॉब कहते हैं।

जॉब शब्द से काम, धंधा और मजदूरी की गंध आती है, जब कि सेवा शब्द में ही त्याग, सुकून और चारों ओर सुख शांति नजर आती है। शासकीय सेवा, भले ही सरकारी नौकरी कहलाती हो, लेकिन कभी शादी के रिश्ते की शर्तिया गारंटी कहलाती थी। लड़का शासकीय सेवा में है, यह एक तरह का चरित्र प्रमाण पत्र होता था। ।

वैसे तो सेवा अपने आप में एक बहुत बड़ा त्याग है, लेकिन कभी कभी परिस्थितिवश इंसान को इस सेवा से भी त्याग पत्र देना पड़ता है। जहां अच्छे भविष्य की संभावना हो, वहां वर्तमान सेवा से निवृत्त होना ही बेहतर होता है। ऐसी परिस्थिति में औपचारिक रूप से त्याग पत्र दिया जाता है और साधारण परिस्थितियों में वह मंजूर भी हो जाता है। आधी छोड़ पूरी का लालच भी आप चाहें तो कह सकते हैं।

एक त्याग पत्र मजबूरी का भी होता है, जहां आप व्यक्तिगत कारणों के चलते, स्वेच्छा से त्याग पत्र दे देते हैं। लेकिन कुछ देश के जनसेवकों पर लोकसेवा का इतना दायित्व और भार होता है, कि वे कभी पद त्यागना ही नहीं चाहते। अतः उनके पद भार की समय सीमा बांध दी जाती है। उस समय के पश्चात् उन्हें इस्तीफा देना ही पड़ता है।।

जो सच्चे देशसेवक होते हैं, वे कभी देश सेवा से मुक्त होना ही नहीं चाहते। जनता भी उन्हें बार बार चुनकर भेजती है। ऐसे नेता ही देश के कर्णधार होते हैं। इन्हें सेवा में ही त्याग और भोग के सुख की अनुभूति होती है।

लेकिन सबै दिन ना होत एक समाना। पुरुष के भाग्य का क्या भरोसा। कभी बिल्ली के भाग से अगर छींका टूटता है, तो कभी सिर पर पहाड़ भी टूट पड़ता है। अच्छा भला राजयोग चल रहा था, अचानक हायकमान से आदश होता है, अपना इस्तीफा भेज दें। आप हवाले में फंस चुके हैं। ।

एक आम इंसान जब नौकरी से रिटायर होता है तो बहुत खुश होता है, अब बुढ़ापा चैन से कटेगा। लेकिन एक सच्चा राजनेता कभी रिटायर नहीं होता। राजनीति में सिर्फ त्याग पत्र लिए और दिए जाते हैं, राजनीति से कभी सन्यास नहीं लिया जाता।

आज की राजनीति सेवा की और त्याग की राजनीति नहीं है, बस त्याग पत्र और इस्तीफे की राजनीति ही है। जहां सिर्फ सिद्धांतों को त्यागा जाता है और अच्छा मौका देखकर चलती गाड़ी में जगह बनाई जाती है।

अपनों को छोड़ा जाता है, और अच्छा मौका तलाशा जाता है। जहां त्याग पत्र एक हथियार की तरह इस्तेमाल होता है, और इस्तीफा, इस्तीफा नहीं होता, धमाका होता है।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ वी आर एस की रजत जयंती… ☆ श्री अ. ल. देशपांडे ☆

श्री अ. ल. देशपांडे

☆ व्यंग्य ☆ वी आर एस की रजत जयंती… ☆ श्री अ. ल. देशपांडे ☆

पच्चीस साल की बेदाग़ सेवाएँ देने के उपरांत बैंक ने हमारे उत्साहवर्धन एवं चुस्त दुरुस्त सेवाएँ देने की हमारी परम्परा को उज्जवल बनाए रखने हेतु चाँदी की तश्तरी से हमें सम्मानित करने का निर्णय लिया था। हालाँकि सराफ़े की अलग अलग 3 दुकानों से हमने ही तीन कोटेशन भरी धूप में तीन दिन में प्राप्त किए थे। हमारे मित्र श्रीवास्तव जी ने एक ही दुकान से अलग अलग लेटर हेड पर तीन कोटेशन तीन मिनट में प्राप्त कर के हमारे पहले ही प्रस्तुत कर हमें व्यवहार ज्ञान सीखने हेतु प्रेरित किया था। कोटेशन प्रस्तुत करने के बाद एक दुकान से चाँदी की तश्तरी ख़रीदने हेतु हमें स्वीकृति मिली थी।

सोने चाँदी की दुकान हमने इसके पहले कभी देखी नहीं थी ना सोना चाँदी। वैसे बचपन में मेरे कान में सोने की बाली तथा पैर में चाँदी का कड़ा था ऐसे घर के बुजुर्ग बताते हैं। हमारे ब्याह के समय पत्नी ने जो गहने मायके से लाए थे वही हमारी संपत्ति थी। इसमे हम रिटायर्ड होने तक कोई इज़ाफ़ा नहीं कर पाए। वास्तव में हमारी सोने जैसी बहुमूल्य पत्नी में ही मुझे अधिक विश्वास था तथा है अतः सोने चाँदी की दुकान की दहलीज़ हमने लांघी नहीं थी।

हमारी जेब मे एक दिन पूर्व, बैंक खाते से आहरित रुपये एक हज़ार मात्र जो रखे थे, का उपयोग कर एक चमचमाती हुई तश्तरी ख़रीदी थी एवं दूसरे दिन तश्तरी तथा रीएमबर्समेंट हेतु पक्की रसीद मैनेजर साहब को सौंप दी थी। उन्होने रसीद रख ली तथा बोले तश्तरी की क्या ज़रूरत है यह तो आप रख लो। मैं असमंजस में पड़ गया मुझे लगा की शाखा में सम्मान समारोह होगा, फूल मालाएँ पड़ेंगी गले में, समोसा रसगुल्ला रहेगा प्लेटों में। मैंने ज़िक्र किया तो मैनेजर साहब बोले “पंडितजी! कहाँ लगे हो? फूल मालाओं के पीछे! आपको समझता नहीं, एक टुकड़ा फेंक कर आपको मार्च के महीने में फूल बनाया जा रहा है।

मैंने मैनेजर सहाब का अधिक क़ीमती समय ज़ाया न करते हुए लाल रंग की पन्नी में लिपटी हुई तथा सुनहरे डिब्बे से सुसज्जित चाँदी की चमचमाती प्लेट को घर ले आया। श्रीमती तथा बच्चों को यह उपहार देखकर बेहद प्रसन्नता हुई। उन्हें अब बताया गया कि यह सब हमारी बेदाग़ पच्चीस वर्ष की बैंक सेवा का उपहार है। सब को इस बात पर प्रसन्नता हुई कि रोज़ रात्रि साढ़े आठ/ नौ बजे हमारे पति/पापा बैंक से लौटा करते थे तथा अवकाश के दिनों में दोपहर का खाना भी घर में चैन से नहीं खा पाते थे, को सम्मानित किया गया है। घर का वातावरण एकदम प्रसन्न हो गया। हमने उसी दिन तुरंत बच्चों के साथ बाज़ार जाकर एक अच्छी सी फ्रेम में तश्तरी मढवाने हेतु दुकान में दी। दूसरे दिन वह फ्रेम तथा भगवान बजरंग बली का एक और फ्रेम ख़रीद कर (जो हमें आज तक शक्ति प्रदान करते आ रहे थे) उसे अपने शयनकक्ष में स्थापित किया। सोते तथा जागते समय हमें तश्तरी एवं भगवान अंजनीसुत के दर्शन नियमित रूपसे होने लगे। पच्चीस वर्षों से तन मन तथा ईमानदारी से हम जो सेवाएं देते आ रहे थे उसमें चाँदी की तश्तरी देखकर और इज़ाफ़ा होता रहा। अब हमें विश्वास हो गया कि चाँदी, सोना तथा धन इसका मोह छोड़ने के लिए यह तश्तरी हमें प्रेरित कर रही है।

देखते देखते 31/03/01 को हम आज तक की बची हुई सर्विस बेदाग़ पूरी कर वीआरएस  के अंतर्गत सेवानिवृत्त हो गए। 1 अप्रैल को जब हम सुबह स्वास्थ्य लाभ हेतु टहल रहे थे तो मोहल्ले के एक बुजुर्ग ने हमें पास आकर धीरे से पूछा “कितने लाख मिले हैं?” हमने आख़िर तक हमारी कुल जमा प्राप्ति के बारे में मोहल्ले के बुजुर्गों को हवा नहीं लगने दी थी अतः वे हम से पूर्व में जितना स्नेह रखते थे उससे ज़्यादा दूरी रखने लगे। हिक़ारत की नज़र से देखने लगे। वीआरएस  की इस प्राप्ति से हमारे प्रगाढ़ संबंधों में दरार सी पढ़ने लगी। एक बुज़ुर्ग का ब्लड प्रेशर हमें प्राप्त राशि की सही जानकारी उन्हें न देने के कारण बढ़ गया था तथा नॉर्मल होने की संभावना दूर दूर नज़र नहीं आ रही थी।

हमने सोचा कि हमारी कुल जमा प्राप्ति के बारे में मोहल्ले के बुजुर्गों को बताना इतना आवश्यक हो गया है? इसके पहले प्रतिवर्ष बंद लिफ़ाफ़े में हमारी संपत्ति का विस्तृत ब्योरा बैंक को देने की परंपरा का निर्वाह हम बख़ूबी करते आए थे। लेकिन इन बुज़ुर्गों के समक्ष हमें अपने वीआरएस की प्राप्ति का लिफ़ाफ़ा खोलकर रखना आवश्यक हो गया था जिससे हमारे संबंधों में सुधार परिलक्षित हो।

हमने पेंशनर्स फ़ोरम में, (भोर में चहल कदमी करने वाला झुंड) उनके बहुत ज़ोर देने पर सही सही बताया कि 14.32 प्राप्त हो गए हैं। फ़ोरम के महानुभावों के चेहरे पर हमें प्रसन्नता की लकीर नहीं दिखाई दी उन्होंने अच्छा अच्छा कहकर हमें आगे बढ़ने दिया। मैं पेड़ की आड़ में खड़ा होकर बुजुर्ग वाणी की आहट पाने उत्सुकत था। आपस में वे बतिया रहे थे ‘फला दुबे जी कह रहे थे कि उन्हें 30, श्रीवास्तव जी को 50 और  पांडे जी को 40 लाख प्राप्त हुए हैं तथा उन सबने केवल बैंक एफ़डी में ही सब पैसा रखा है। अरे! यह पंडत झूठ बोल रहा है। निकम्मे थे सभी , तभी तो बैंक ने इन्हें वीआरएस में मुक्ति दिलायी है।

 

© श्री अ. ल. देशपांडे

संपर्क – “मथुरा”, मकान नंबर 4, विनोद स्टेट बैंक कॉलोनी, कैंप, अमरावती, महाराष्ट्र – 444602

मो. 92257 05884

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #272 ☆ भावना के दोहे – पवनपुत्र हनुमान ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – पवनपुत्र हनुमान)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 272 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – पवनपुत्र हनुमान ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

पवन वेग से उड़ रहे, उड़ते हैं हनुमान।

वर्षा पुष्प की कर रहे, देव करे सम्मान।।

*

करते सीता खोज वह, उड़ते सागर पार

पर्वत से सागर कहे, बड़ा करो आकार।।

*

हाथ जोड़ मैनाक है, पवनपुत्र हनुमान।

आड़े आया आपके, कर लो कुछ आराम।।

*

निकले सीता खोज में, वंदन है हनुमान।

मेरे मन में आपका, बहुत बड़ा सम्मान।।

*

लंका की इस राह में, बाधा करें प्रहार।

करना सीता खोज है, पवन न माने हार।।

*

रामदूत हनुमान हूं, बीच करो ना घात।

रूप धरोना सिंहिका, करता हूं आघात।।

*

किया प्रवेश लंका में, भव्य भवन भंडार।

भेंट लंकिनी से हुई, करते पवन प्रहार।।

*

कहा लंकिनी ने बहुत, हे वीर हनुमान।

मेरा जीवन धन्य हुआ, वानर तुझे प्रणाम।।

*

अंत समय अब आ गया, हुए लंका में पाप।

ब्रह्म सत्य अब हो गया, मिला बड़ा ही शाप।।

*

 सीता की इस खोज में, हम है तेरे साथ।

मिलजुल कर हम खोजते, रघु का सिर पर हाथ।।

*

सूक्ष्म रूप से आपने, किया लंका प्रवेश।

सोते देख रावण को, आया है आवेश।।

*

चकित हुए यह देख कर, सुना राम का नाम।

रावण के इस राज्य में, कौन कहेगा राम ।।

*

परिचय पाकर आपका, हर्षित हुए हनुमान।

भाई छोटा लंकपति, है विभीषण नाम।।

*

भक्त राम के आप हैं, मैं भी भक्त श्री राम ।

देखा सीता माता को, पता कहां श्रीमान।।

*

सीता मैया सुरक्षित, वाटिका है विशाल।

घेरे रहती राक्षसी, करते नयन सवाल।।

 *

कहे विभीषण पवन से, प्रभु से कहो प्रणाम।

चरणों में माथा झुके, विनती है श्री राम।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 155 ☆ मुक्तक – ।। यही  सच कि  सत्य का कोई जवाब नहीं है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 155 ☆

☆ मुक्तक – ।। यही  सच कि  सत्य का कोई जवाब नहीं है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

यही  सच कि  सत्य का कोई जवाब नहीं है।

एक सच ही जिसके चेहरे पर नकाब नहीं है।।

सच  सा  नायाब  कोई  और नहीं है दूसरा।

इक सच ही तो  झूठा  और  खराब नहीं है।।

=2=

सच  मौन   हो  तो  भी  सुनाई  देता है।

सात परदों के पीछे से भी दिखाई देता  है।।

फूस में चिंगारी सा छुप कर आता है बाहर।

सच ही हर मसले की सही सुनवाई देता है।।

=3=

चरित्र  के  बिना  ज्ञान एक झूठी  सी ही बात है।

त्याग बिन  पूजन  तो  जैसे दिन  में  रात  है।।

सिद्धांतों बिन राजनीति भी विवेकशील होती नहीं।

मानवता  बिन  विज्ञान  भी  गलत  सौगात  है।।

=4=

सत्य स्पष्ट सरल इसमें   नहीं  कोई  दाँव  होता है।

जैसे  धूप  में  लगती  शीतल  सी  छाँव  होता है।।

गहन  अंधकार  को  भी सच का सूरज है चीर देता।

सच के सामने नहीं टिकता झूठ का पाँव नहीं होताहै।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #220 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – परीक्षाओं से डर मत मन… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – परीक्षाओं से डर मत मन…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 220

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – परीक्षाओं से डर मत मन…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

धरा को जब तपा दिनभर प्रखर रवि झुलस देता है

तभी चंदा की शीतल चाँदनी की रात होती है।

क्षितिज तब जब कभी नभ को सघन घन घेर लेते

हैं कड़कती बिजलियाँ, तब ही सुखद बरसात होती है।

*

डुबा चुकता है जब बस्ती उतरता बाढ़ का पानी

हमेशा धैर्य से ही सब दुखों की मात होती है।

निराशा के अँधेरों में कोई जब डूब जाता है

अचानक द्वार पै कोई खुशी बात होती है ॥

*

परीक्षाओं से डर मत मन ये तो हिम्मत बढ़ाती है

सही जीवन की इनके बाद ही शुरुआत होती है।

नहीं होता किसी के साथ जब कोई अँधेरे में तो

तब हरदम अंजाने उसके हिम्मत साथ होती है॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ हनुमान जयंती विशेष – जय-जय हे! बजरंगबली ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ हनुमान जयंती विशेष – जय-जय हे! बजरंगबली ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

सदा सहायक देव प्रबलतम, परमवीर हनुमाना।

संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय जय दयानिधाना।।

मातु अंजनालाल शौर्यमय, असुरों को संहारें।

रामकाज करने को आतुर, पाप जगत के मारें।।

*

सूर्य निगलकर बने अनूठे, वायुपुत्र देवंता।

महावीर सुग्रीव सहायक, करें दुःखों का अंता।।

*

भयसंहारक, मंगलकारी, पूजन बहुत सुहाना।।

संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय-जय दयानिधाना।।

 *

दहन करी लंका हे ! देवा, तुम हो प्रलयंकारी।

परम शक्तियाँ तुम में रहतीं, बनकर के साकारी।।

*

हे हनुमंता, हे भगवंता, तेरा रूप निराला।

हर दिन है उजला हो जाता, हो कितना भी काला।।

*

जीवन सुमन खिलाते हरदम, जग ने तुमको माना।

संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय जय दयानिधाना।।

रामदूत, अतुलित बलधामा, जीवन देने वाले।

सब कुछ तुम गतिमय कर देते, काट व्यथा के जाले।।

*

सीता की कर खोज बन गए, तुम तो एक कहानी।

लक्ष्मण के प्राणों के रक्षक, परम शक्तिमय, ज्ञानी

*

शरण गया जो देव आपकी, दया मिली भगवाना।

संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय-जय दयानिधाना।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ तळ मात्र ठरलेलाच ! ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? कवितेचा उत्सव ?

☆ तळ मात्र ठरलेलाच ! ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित 

अस्वस्थतेची नदी दुथडी भरून वाहत असताना

चालावे का तिच्या काठाकाठाने

जराही स्पर्श न होऊ देता?

की घुसावे तिच्या पात्रात

आणि जावे बुडून तिच्यात गटांगळ्या खात?

*

नदीचा प्रवाह अखंड वाहत असताना

नकळतपणे अडकतोच आपण

एखाद्या भोव-यात !

वरुन खाली, खालून वर

घुसळून निघताना

पुढच्या क्षणाची नसते हमी

कधी वाहत जातो, कधी वाहवत जातो

हातापायांची धडपड,

केविलवाणी—

केवळ समाधानासाठी

*

काठ सापडेल, न सापडेल,

तळ मात्र ठरलेलाच

तळ मात्र ठरलेलाच !

© श्री सुहास रघुनाथ पंडित 

सांगली (महाराष्ट्र)

मो – 9421225491

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हनुमान जयंती विशेष – रामभक्त हनुमान…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव ?

☆ हनुमान जयंती विशेष – रामभक्त हनुमान…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कपी केसरी अंजनी,

करी शिव आराधना.

जन्मा यावे महादेव,

करी दांपत्य याचना…!१

*

वानरांचे रुपांमध्ये,

शिव पार्वती गमन.

माता पार्वतीचा गर्भ,

वात केसरी वहन..!२

*

अंजनीचे  पोटी आले,

शक्तीशाली शिवरुप.

वायुदेव केसरीचे,

भक्तीमय निजरूप..!३

*

भक्ती शक्तीचा वारसा,

रुप वानराचे घेई.

अंजनेरी पर्वताते,

शिवतेज जन्मा येई…!४

*

शारीरिक मानसिक,

धैर्य सामर्थ्य अफाट.

रामभक्त‌ मारुतीचे ,

शौर्य,साहस,अचाट…!५

*

त्याग,शौर्य सेवा,भक्ती ,

आले जेव्हा मूर्त रुप.

वायूपुत्र मारुती हा,

बजरंग निजरुप..!६

*

दैवी शक्ती वरदाने,

झेप घेई अकल्पित.

सूर्य बिंब गिळंकृत.

बाललीला संकल्पित…!७

*

सूर्य देव संकटात,

इंद्रदेव सजा देई.

वज्राघाते हनुवरी,

बालकांते दूर नेई…! ८

*

हनुर्भंग होता क्षणी,

नाम झाले हनुमंत.

असा बलशाली पुत्र,

चिरंजीवी गुणवंत…!९

*

गुण खोडकर वृत्ती,

देई त्यास अभिशाप.

पडे शक्तीचा विसर,

भोगीतसे भवताप…! १०

*

राजा सुग्रीवाचे धामी,

सेवा कार्य ते अर्पित.

राम भेट होता क्षणी,

केला देह समर्पित…!११

*

रामायणी हनुमान,

रामभक्त रामदूत

झाला भक्त बजरंग

महाबली कपीसूत…!१२

*

शक्ती सामर्थ्याची शक्ती,

नामातून चेतविली.

विस्मरणे गेली शक्ती,

जांबुवंते जागविली…!१३

*

जिथे जिथे राम नाम,

तिथे हनुमंत जागा.

चिरंजीव होऊनिया,

जोडी कैवल्याचा धागा…!१४

*

हाती आली दिव्य गदा,

शक्ती‌बल सामर्थ्याने.

पराभूत होणे नाही,

वीर अजिंक्य शौर्याने…!१५

*

निष्ठा आणि पराक्रम,

युद्ध कौशल्य विपुल.

दास रामाचा निस्वार्थी,

बुद्धी चातुर्य अतुल…!१६

 

*

कैक योजने उड्डाण,

सप्त सागर लांघन.

गदाधारी हनुमान,

साध्य शक्ती संघटन..!१७

*

इच्छाधारी लाभे रुप,

पिता देई वरदान.

सूक्ष्म विराट रुपात,

विहरतो हनुमान…!१८

*

त्याच वरदाने त्याने,

शोधियली सीतामाई.

साक्ष मुद्रिका घेऊनी,

दिली सुरक्षेची ग्वाही..!१९

*

राम नामाची महती,

कृतीतून दाखविली.

एका राम सेवकाने,

झणी लंका पेटविली…!२०

*

सीतामाई शोधताना,

केले लंका निरीक्षण.

हेर रामाचा होऊन,

केले गुप्त सर्वेक्षण…!२१

*

सीतामाई संवादात

सिंदुराचा लागे शोध

दीर्घायुष्य आरोग्याचा

रामभक्त घेई बोध…! २२

*

झाला भगवा केशरी,

सर्वांगासी विलेपन.

पाहुनीया हनुमंता,

संतोषले राममन…! २३

*

बजरंग दिले नाम,

जाणियली दिव्य शक्ती.

बजरंग बली रुप,

दर्शविते राम भक्ती…! २४

*

रामसेतू बंधनात,

बजरंग दावी दिशा.

राम जयघोषी सरे,

तमोमय दुःख निशा..! २५

*

राम रावण युद्धात,

हनुमान अग्रेसर.

दृढ विश्वास निष्ठेचा.

हाची एक रत्नाकर…!२६

*

कौमोदकी दिली गदा,

कुबेराचे वरदान.

हाती असेल जोवरी,

अजिंक्यसा बहुमान..!२७

*

वायु देवतेच्या कृपे,

प्राप्त झाल्या सिद्धी शक्ती.

रामायण प्रसंगात,

दृढ झाली राम भक्ती…! २८

*

सप्त सिंधू उल्लंघन,

घर्मबिंदू गर्भ रुप.

तोची हनुमंत सूत,

मगरीचे निजरूप..!  २९

*

करी घात कलंकीत,

काल नेमी एक पूत.

मामा असे रावणाचा,

दैत्य मारिचाचा सूत…!३०

*

रुप साधुचे घेउन‌,

हनुमंता अडविले.

द्रोणागिरी आणताना,

कार्य थोर थांबविले…!३१

*

ओळखून खरे रूप,

दिली सजा योग्य ठायी.

तोच दैत्य कालनेमी,

दिसे मारुतीच्या पायी..!३२

*

शनी पिडा निवारण,

करा मारुतीचे ध्यान.

भूत प्रेत सरे बाधा,

रक्षीतसे पंचप्राण..!.३३

*

जिथे जिथे राम नाम,

तिथे तिथे उभा दास.

यांच्या अंतरात आहे,

राम सीता सहवास…!३४

*

देव शक्तीशाली असा,

चिरंजीव भक्त रूप .

सेवा भक्ती साधनेत,

जळे रामनाम धूप..!.३५

*

आहे वज्र याचे करी,

मुष्ठीमधे आहे शक्ती.

बलशाली‌ हनुमान ,

शिकवितो दास्य भक्ती…!३६

*

तेज तत्व जिंकणारा,

वायु पुत्र हनुमान .

शक्ती,स्फूर्ती नी उर्जेचे,

आहे मारुती प्रमाण…!३७

*

शंकराचे पाशुपत,

वरदान अजेयाचे  .

शूल त्रिशुलादी शस्त्रे,

शक्ती सामर्थ्य दासाचे…! ३८

*

नखाग्राने रामनाम,

केळीच्याच पानावरी.

लिहितसे बजरंग ,

रामनाम वर्णाक्षरी…!३९

*

स्वामी निष्ठ‌ सेवकाला,

तेल शेंदूर अर्पण.

माळ रुईच्या पानांची,

भक्ती भावे समर्पण.४०

*

असा बजरंग बली,

बलोपासनेचे धाम.

होई हजर सत्वर,

उच्चारता राम नाम…!४१

*

कविराजे ‌वर्णियेला

यथाशक्ती हनुमान

शब्द शारदा पुरवी

अनुभूती वरदान..!४२

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ “विश्वास….” ☆ सौ विजया कैलास हिरेमठ ☆

सौ विजया कैलास हिरेमठ

? कवितेचा उत्सव ?

☆ “विश्वास ☆ सौ विजया कैलास हिरेमठ 

दिवसामागून दिवस जातात

ऋतू मागून ऋतू सरतात

प्रत्येकासाठी ते सारखेच असतात

तरीही वेगवेगळे का भासतात….

*

कधी हवेहवेसे कधी नकोसे

दिवस नसतात सगळे सारखे

नाही पाहत आपण जसेच्या तसे

म्हणूनच होतो सुंदरतेस पारखे….

*

एकच ऊर्जा सगळीकडे

सर्वांसाठी सारेच खुले

आपल्यालाच असते कोडे

काय आणि किती निवडावे…

*

खरे तर काहीच नसते अवघड

आपलीच असे आपल्यासाठी निवड

दृष्टीकोन असतो ज्याचा त्याचा

जग दुनियेकडे पाहण्याचा…..

*

अगाध, अथांग, अपरंपार

परमेश्वर देत आहे अपार

मानूया त्याचे मनापासून आभार

विश्वास हाच जगण्याचा आधार….

💞शब्दकळी विजया 💞 

©  सौ विजया कैलास हिरेमठ

पत्ता – संवादिनी ,सांगली

मोबा. – 95117 62351

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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