हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 214 ☆ आलेख – निद्रा योग… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक आलेख  –निद्रा योग

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 214 ☆  

? आलेख निद्रा योग?

अनिद्रा एक ऐसी परेशानी है जो  शरीर के अनेक रोगों का कारण होती है । जब कोई व्यक्ति अनिद्रा से पीड़ित हो तो उसे यह समझना चाहिए कि उसके शरीर में कोई समस्या है, जो बाद में किसी अन्य रूप में विकसित हो जाएगी। अनिद्रा के कारण पाचन तन्त्र प्रभावित हो जाता है ।  जो लोग ठीक से  सो नहीं पाते , उनमें से अधिकतर लोगों का यकृत खराब हो जाता है। समय के साथ अनिद्रा के चलते शरीर की सामान्य क्रियायें अव्यवस्थित हो जाती हैं। जब स्नायु तन्त्र में समस्या उत्पन्न होती है तो हम दैनिक कार्य भी कर पाने में असमर्थ हो जाते हो, जल्दी थक जाते हैं।

 धुनिक चिकित्सा में जब कोई अनिद्रा से पीड़ित होता है तो उसे प्रायः नींद की गोलियाँ दी जाती हैं। नींद की गोलियाँ आराम तो देती हैं, इसमें कोई संदेह नहीं, परन्तु वे रोग के कारण को दूर नहीं कर पाती हैं। कई बार शरीर के हॉर्मोनों का ठीक से कार्य न करना अनिद्रा का कारण होता है। उदाहरण के लिए यदि एड्रीनल ग्रन्थि ठीक से कार्य न करें, तो विषाद रोग हो जाता है। कई बार जब हम जीवन के किसी पहलू को लेकर चिन्तित रहते हैं तब  अनिद्रा के शिकार हो जाते हैं,  अतः यह आवश्यक है कि लोग जानें कि स्वाभाविक रूप से अच्छी तरह कैसे सोया जाए। इस सम्बन्ध में योग की  भूमिका    महत्त्वपूर्ण है। नींद की समस्या के बढ़ते, विदेशों में स्लीप क्लीनिक तक खुल रहे हैं।

 योग के ऐसे अनेक अभ्यास हैं जिनसे अच्छी नींद आती है। मस्तिष्क में विद्युत की आवृत्तियाँ होती हैं जिन्हें मस्तिष्क तरंग कहते हैं। अलग-अलग समय पर ये तरंगें बदलती रहती हैं। ये तरंगें डेल्टा, थीटा, अल्फा और बीटा कहलाती हैं। मस्तिष्क की उच्च आवृत्ति को नीचे लाना आवश्यक है, विशेषकर रात्रि में जब मस्तिष्क में आवृत्तियाँ न्यूनतम हो जाती हैं, तो शरीर में क्रियाशीलता भी न्यूनतम हो जाती है और ऑक्सीजन की खपत भी न्यूनतम हो जाती है जब हम ठीक से सोते हैं तो  अगले दिन  अधिक शक्ति से सक्रिय हो पाते हैं।

 योग में निद्रा को बहुत महत्त्वपूर्ण समझा जाता है क्योंकि योग दर्शन के अनुसार निद्रा एक निष्क्रिय अवस्था नहीं है गहन निद्रा के समय व्यक्ति अचेतन तल पर बहुत सक्रिय हो जाता है और वह अपनी अन्तरात्मा के बहुत निकट आ जाता है। यही कारण है कि निद्रा  इतनी शक्ति इतनी ताजगी और इतना आनन्द देती है।  इसी कारण से योग ने कुछ अनुशासन बनाए हैं।

 योग में अनिद्रा से सम्बन्धित प्रथम अनुशासन यह है कि ज्यादा भरे हुए पेट के साथ नहीं सोना चाहिए।  यदि रात्रि में पेट में बिना पचा हुआ भोजन रहता है तो अति अम्लता से पेट में जलन होती है। 

पेट में एसिडिटी गैस के चलते रात्रि में बेतुके, विचित्र स्वप्न आते हैं जिससे निद्रा में व्यवधान उत्पन्न होता है अतः योग में यह सलाह दी गई है कि रात्रि के भोजन और सोने में कम-से-कम तीन घण्टों का फासला होना चाहिए। यह शाकाहारी लोगों के लिए है। मांसाहारी लोगों के लिए तीन घंटे से ज्यादा समय होना चाहिए ।

 दूसरा अनुशासन यह है की बाएँ करवट सोना चाहिए। कुछ लोग पीठ के बल सोना पसन्द करते हैं, अन्य लोग अपनी दायीं तरफ घूम कर सोना पसन्द करते हैं और अनेक लोग पेट के बल सोते हैं। ये तीनों स्थितियाँ वैज्ञानिक नहीं समझी जातीं। हाँ, जो लोग स्लिप डिस्क या सायटिका से पीड़ित हैं उन्हें पेट के बल सोना चाहिए, लेकिन एक आम व्यक्ति को बायीं तरफ सोना चाहिए, क्योंकि इससे हृदय पर बहुत कम दबाव पड़ता है।

 तीसरा यौगिक नियम है, बिस्तर पर जाने के पूर्व  दस से बीस मिनट के लिए शांत बैठ जाना चाहिए। यह केवल अनिद्रा से पीड़ित लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि हम सभी के लिए है, क्योंकि जब हम बिस्तर पर जाते हैं तो अवचेतन मन सक्रिय हो जाता है।

 निद्रा एक मानसिक अवस्था है और मन की एकाग्रता मन्त्र के रूप में होनी चाहिए। ‘ॐ ॐ ॐ का मानसिक उच्चारण करना चाहिए, क्योंकि ॐ एक सार्वभौमिक ब्रह्माण्डीय ध्वनि है । सोने के पहले मंत्र जप शान्ति और एकाग्रता उत्पन्न करती है। सत्ताईस दानों की एक छोटी माला रखना भी अच्छा है जिसमें कहीं कोई रुकावट न हो ज्यादातर मालाओं के बीच में एक विराम होता है, जिसे सुमेरु या शीर्ष कहते हैं, परन्तु रात में बिस्तर पर जाने के पहले  जिन मालाओं का उपयोग करते हैं उनमें यह व्यवधान नहीं होना चाहिए।

 चौथा महत्त्वपूर्ण अनुशासन है योगनिद्रा का अभ्यास योगनिद्रा एक बहुत शक्तिशाली विधि है।

  शरीर के अनेक अंग हैं, जैसे हाथों के अंगूठे और अंगुलियाँ, होंठ और नाक, नितम्ब और कमर, पैरों के अंगूठे और अंगुलियाँ। इस प्रकार तुम्हारे बाह्य शरीर में छिहत्तर केन्द्र हैं जिनके प्रतिरूप मस्तिष्क के एक विशेष भाग में स्थित होते हैं। जब हम एक-के-बाद-एक शरीर के इन अंगों पर ध्यान केंद्रित करते हैं तो विशेष प्रकार की सम्वेदना उत्पन्न होती है। यह सम्वेदना एक भावना के रूप में मस्तिष्क के केन्द्रों में संचारित होती है। जैसे ही इस सम्वेदना का संचार मस्तिष्क में होता है, अविलम्ब विश्राम का अनुभव होता है।  यह योगनिद्रा का अभ्यास है।

 योगनिद्रा प्रारम्भ करने से पूर्व एक अन्य महत्त्वपूर्ण अभ्यास है,रात को बिस्तर पर जाने से पूर्व एक प्रकाश पुंज  इस प्रकार रखें कि उसकी वह आँखों के स्तर से बहुत ऊँचा न हो और स्थिर रहे।  जितनी देर सम्भव हो उतनी देर उसे अपलक निहारते रहे, फिर  आँखें बन्द करने के बाद अपने मन को  माथे के मध्य पर एकाग्र करो और वहाँ प्रकाश के प्रतिरूप को देखने का प्रयास करो कुछ देर इसे करो और उसके बाद ओम मन्त्र का जप करो। फिर पीठ के बल लेट जाओ और थोड़ा योगनिद्रा का अभ्यास करो, तय है की गहरी नींद आ आएगी।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – जीवन यात्रा ☆ जुनून और जज्बे को सलाम… ☆ प्रस्तुति – श्री जयप्रकाश पाण्डेय ☆

श्री सूरज तिवारी

☆ जुनून और जज्बे को सलाम… दुर्भाग्य तुम्हारी ऐसी तैसी… ☆ प्रस्तुति – श्री जयप्रकाश पाण्डेय ☆

आप हैं मैनपुरी के सूरज तिवारी। २०१७ में ट्रेन दुर्घटना में दोनों पैर और एक हाथ गंवा चुके सूरज ने आज आईएएस परीक्षा में कामयाबी पाई है।

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के कुरावली कस्बे के रहने वाले सूरज तिवारी. सूरज एक मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं. उनके पिता दर्जी का काम करते हैं. सूरज यूपीएससी परीक्षा पहले अटेम्पट में पास की है. उन्हें 917 रैंक मिली है।

यकीनन, हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती…

💐 श्री सूरज तिवारी जी को ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से बहुत बहुत बधाई 💐 शुभकामनाएं 💐

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 161 ☆ बाल गीत – लंबी गर्दन लंबे पैर ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 161 ☆

☆ बाल गीत – लंबी गर्दन लंबे पैर ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

लंबी गर्दन लंबे पैर।

सदा वनों में करता सैर।।

 

थल पशुओं में सबसे लंबा

धरती का है बड़ा अचम्भा

अट्ठारह फुट ऊँचा होता

शाकाहारी जैसे तोता।।

 

जो भी इस पर हमला करता

मार दुलत्ती लेता खैर।

सदा वनों में करता सैर।।

 

अफ्रीका का जंतु अनोखा

नहीं आक्रमण का दे मौका

घास – पात है इसका चारा

चितकबरा है अद्भुत प्यारा।।

 

सदा शांत रहने वाला यह

नहीं किसी से रखता बैर।

सदा वनों में करता सैर।।

 

जू की सैर कर रहे सोनू

साथ में उनके भैया मोनू

थी जिराफ की उसमें प्रतिमा

हमें बिठाओ इस पर अम्मा।।

 

बैठे दोनों उड़े गगन में

खूब मजे में कर ली सैर।।

सदा वनों में करता सैर।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #139 – बाल साहित्य – “आत्मकथा– हवाई जहाज का जन्म” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है बाल साहित्य  – आत्मकथा – हवाई जहाज का जन्म)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 139 ☆

 ☆ बाल साहित्य – “आत्मकथा– हवाई जहाज का जन्म” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

मेरा जन्म 1900 की शुरुआत में ओहियो के डेटन में एक छोटे से वर्कशॉप में हुआ था। मेरे निर्माता ऑरविल और विल्बर राइट नाम के दो भाई थे। वे पक्षी की उड़ान से प्रेरित थे। वे कई वर्षों से मेरे डिजाइन पर काम कर रहे थे।

मैं एक बहुत ही साधारण मशीन था। मेरे पास दो पंख थे, एक प्रोपेलर और एक छोटा इंजन। लेकिन मैं भी बहुत नवीन था। मैं पहला हवाई जहाज था जो कुछ सेकंड से अधिक समय तक उड़ान भरने में सक्षम था।

17 दिसंबर, 1903 को मैंने अपनी पहली उड़ान भरी। मैं ऑरविल के नियंत्रण में था। विल्बर मेरे साथ दौड़ रहा था। वह एक रस्सी पकड़े था। मैंने 12 सेकंड के लिए उड़ान भरी। 120 फीट की यात्रा की। यह एक छोटी उड़ान थी, लेकिन यह एक ऐतिहासिक थी।

मेरी उड़ान ने साबित कर दिया कि इंसान उड़ सकता है। इसने अन्य अन्वेषकों को नए और बेहतर हवाई जहाज बनाने के लिए प्रेरित किया। और इसने दुनिया को हमेशा के लिए बदल दिया।

मैं अब 100 से अधिक वर्षों से उड़ रहा हूं। मैंने उस समय में काफी बदलाव देखे हैं। हवाई जहाज बड़े और तेज हो गए हैं। वे ऊंची और दूर तक उड़ सकते हैं। वे अधिक लोगों को ले जा सकते हैं।

लेकिन एक चीज नहीं बदली है: मैं अभी भी दुनिया की सबसे आश्चर्यजनक मशीन हूं। मैं लोगों को नई जगहों और नए अनुभवों के साथ ले जा सकता हूं। मैं लोगों को एक-दूसरे से और उनके आसपास की दुनिया से जुड़ने में मदद कर सकता हूं। मैं दुनिया को एक छोटी जगह बना दिया है।

मुझे मेरे हवाई जहाज होने पर गर्व है। लोगों को यात्रा करने और अन्वेषण करने में मदद करने पर मुझे प्रसन्न्ता होती है। मुझे मेरी प्यारी दुनिया के भ्रमण करने पर गर्व है।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

24-05-2021 

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनासूचनाएँ/Information ☆ समीक्षमेध पुस्तक मेला, सम्मान समारोह 2023 – 4 जून 2023 को जबलपुर में आयोजित ☆ प्रस्तुति – सुश्री छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

समीक्षमेध पुस्तक मेला, सम्मान समारोह 2023 – 4 जून 2023 को जबलपुर में आयोजित

जबलपुर – साहित्य संगम संस्थान, दिल्ली के तत्वाधान में मां नर्मदा के तट संस्कारधानी जबलपुर मध्यप्रदेश में समीक्षामेध, पुस्तक मेला का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम की संयोजिका छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ने बताया कि यह कार्यक्रम 04 जून 2023, रविवार को आर्य समाज भवन डॉ बराट रोड, जबलपुर में मनाया जा रहा है। ज्ञातव्य हो कि यह कार्यक्रम सुबह 10 बजे से रात्रि 08 बजे तक संचालित होगा। इस सत्र मे समीक्षा के साथ पुस्तक विमोचन होगा। जो कि 02 सत्र में आयोजित होगा।

मुख्य आकर्षण- पुस्तक मेले का उद्घाटन माननीय जगत बहादुर सिंह अन्नू जी महापौर -नगर निगम जबलपुर द्वारा किया जाना है। 

प्रथम सत्र प्रात: 10 बजे से दोपहर 01 तक होगा जिसकी अध्यक्षता डॉ श्रीनिवास शुक्ला सरस संस्थापक सोमालोब सीधी, मुख्य अतिथि श्री ओमकार द्विवेदी संस्थापक संयोजक मां नर्मदा महाआरती गौरीघाट, सारस्वत अतिथि महामहोपाध्याय आचार्य डॉ हरिशंकर दुबे, विशिष्ट अतिथि डॉ भानुप्रताप वेदालंकार, आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री, राजवीर सिंह मंत्र, एड. परितोष त्रिवेदी, ज्ञानेश्वरी दीदी, गीता शरद तिवारी, राजेश पाठक प्रवीण होंगे।

द्वितीय सत्र दोपहर 03 बजे से शाम 05 बजे के बीच सम्मान/अलंकरण समारोह होगा, जिसकी अध्यक्षता आचार्य संजीव सलिल (छंद शास्त्री, संस्थापक विश्ववाणी अभियान (समन्यवक प्रकाशन), मुख्य अतिथि इंजी. विनोद नयन (अध्यक्ष प्रसंग संस्थान) सारस्वत अतिथि डॉ राजलक्ष्मी शिवहरे वरिष्ठ उपन्यासकार, डॉ मीना भट्ट पूर्व जिला न्यायाधीश) विशिष्ट अतिथि अनिमेष अटल, पराग दीवान, आशीष ठाकुर, रंजीत राणा होंगे।

संयोजिका ने आगे जानकारी देते हुए बताया कि प्रतिनिधि कथाएं,व अविचल प्रभा ई पत्रिका मैया नर्मदा विशेषांक का विमोचन के अलावा उपस्थित साहित्यकारों की विभिन्न पुस्तकों का भी विमोचन होना तय है। साहित्य संगम संस्थान के समीक्षामेध, पुस्तक मेला में देश के विभिन्न हिस्सों से शिरकत करने साहित्यकार उपस्थित होगे।इस कार्यक्रम की अगुवानी डॉ भावना दीक्षित,ज्योति मिश्रा प्रभा, तृप्ति त्रिवेदी करेंगी।

साभार – सुश्री छाया सक्सेना, संयोजिका 

जबलपुर, मध्यप्रदेश 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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सूचना/Information ☆ सम्पादकीय निवेदन – सुश्री शोभना आगाशे आणि सुश्री मंजिरी येडूरकर – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

सुश्री शोभना आगाशे

सुश्री मंजिरी येडूरकर

💐अ भि नं द न 💐

आपल्या समूहातील ज्येष्ठ लेखिका व कवयित्री सुश्री शोभना आगाशे आणि सुश्री मंजिरी येडूरकर यांनी एकत्रितपणे लिहिलेल्या “ गीतांजली – जशी भावली तशी  या उत्कृष्ट काव्य संग्रहाला पुढील दोन पुरस्कार एकाच वेळी घोषित करण्यात आले आहेत हे सांगतांना विशेष आनंद होतो आहे. —–

१ ) नरेंद्र विद्यापीठ, कोल्हापूर यांच्यातर्फे उत्कृष्ट काव्य संग्रह पुरस्कार. 

२ ) मासिक सारांश (मिरज) साहित्य पुरस्कार – २०२३ — विशेष साहित्यकृती पुरस्कार. 

💐 या दोन्ही प्रतिष्ठित पुरस्कारांसाठी सुश्री शोभना आगाशे, आणि सुश्री मंजिरी येडूरकर या दोघींचेही आपल्या समूहातर्फे अतिशय मनःपूर्वक अभिनंदन, आणि पुढील अशाच यशस्वी साहित्यिक वाटचालीसाठी असंख्य हार्दिक शुभेच्छा.💐

संपादक मंडळ

ई अभिव्यक्ती मराठी

या दोघींच्या एका कवितेचा आस्वाद आज यानिमित्ताने घेऊ या… 

मुरली घेऊन दर्‍याडोंगरी

सूर चिरंतन निर्मित जाशी

त्या रुपाचे चिंतन करता

माझे अंतर स्पर्शून जाशी …. 

स्पर्शाने त्या पुलकित होते

शब्दातीत तुजसवे बोलते

तूच भारिसी चैतन्याने

तूच रिकामा आणि करिशी  …. 

कलश मम हा देहस्वरूपी

पुनःपुन्हा या धरणीपाशी

अमर्त्य आत्मा वेष बदलुनी

काळोखातून येत प्रकाशी …. 

माझी झोळी जरी तोकडी

दाता तू तर असीम असशी

युगे युगे तू देतचि जाशी

तरीही झोळीत जागा राही …. 

अनंत मी याचक युगांचा

असशी तू दाता कल्पांचा…

 – शोभना आगाशे 9850228658

 – मंजिरी येडूरकर  9421096611

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ लढा… ☆ सुश्री तृप्ती कुलकर्णी ☆

सुश्री तृप्ती कुलकर्णी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ लढा… ☆ सुश्री तृप्ती कुलकर्णी

जो तो सज्ज आहे येथे घनघोर लढण्याकरता

पण लढायचे कशासाठी याचे भान सुटले आहे

 

हरेक लढाई नसते केवळ सत्य-असत्यामधली

गैरसमजाची चाल येथे पट उधळत आहे

 

आपण सारे आहोत येथले घडीचेच प्रवासी

स्पर्धेच्या ईर्षेने पांथस्थ आपली वाट चुकतो आहे

 

आधी अन् अंत यानंतर नक्की काय बाकी उरते

काळाने हे खास गुपित त्याच्या पोटी दडवले आहे

 

खेळ किती हा युगायुगांचा माहीत नाही कोणा

जो तो आपुल्या शाश्वततेचा दावा करतो आहे

©  सुश्री तृप्ती कुलकर्णी

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #162 ☆ संत कनक दास… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 162 ☆ संत कनक दास☆ श्री सुजित कदम ☆

कर्नाटक राज्यामध्ये

धनगर कुटुंबात

जन्म कनकदासांचा

संतकवी साहित्यात….! १

 

नवे घर बांधताना

सापडले गुप्त धन

सोने चांदी जवाहिर

हिरे रत्न मण मण…! २

 

हंडा सुवर्ण धनाचा

जनलोकी केला दान

झाला कनक नायक

समाजाचे कृपादान…! ३

 

झाला ईश्वरी आदेश

माझा दास व्हावे आता

मान्य केले थिमाप्पाने

झाला दास केशवाचा…! ४

 

परमेश नाही असे

जगामध्ये नाही स्थान

कनकाच्या उत्तराने

गुरू कृपा वरदान…! ५

 

बांधियले देवालय

कृपादृष्टी ईश्वराची

केशवाच्या मंदिरात

पुजार्चना नायकाची…! ६

 

व्यासराया केलें गुरू

तलावांचे खोदकाम

यमराज अवतार

रेडा  रेडा जपनाम…! ७

 

दूर केला अडसर

हलविले पाषाणास

व्यास समुद्र तलाव

रेडा आला सहाय्यास….! ८

 

सामाजिक एकात्मता

हरिभक्ती कथासार

दंड नायक थिमाप्पा

दास कनक साकार…! ९

 

मोक्षप्राप्ती मिळविण्या

करा त्याग स्वार्थ सोडा

अहंकार मीपणाचा

नाते ईश्वराशी जोडा..! १०

 

गीत रचना धार्मिक

सामाजिक एकात्मता

विष्णु भक्ती कृष्ण स्तुती

हरिभक्ती तादात्म्यता…! ११

 

देई ईश्वर दर्शन

काल भैरव रूपात

ओळखले नाही कुणी

नाही दर्शन कुणास….! १२

 

नाना लिला चमत्कार

व्यंकटेश आशीर्वाद

दिला पितांबर शेला

तिरूपती सुसंवाद…! १३

 

देण्या‌ दर्शंन भक्तांस

कृष्ण मुर्ती फिरे पाठी

झालीं पश्चिमा भिमुख

क‌ष्णमुर्ती दासासाठी…! १४

 

कनकाच्य खिडकीची

आहे प्रासादिक स्मृती

कींडी कनक भिंतीत

प्रासंगिक आहे श्रृती….! १५

 

छंदोबद्ध रचनांचा

ग्रंथ हरिभक्त सार

दास दासांचा कनक

अनुभवी ग्रंथकार…! १६

 

नल चरीत्र लेखक

रमे कथा कीर्तनात

कण कण मंदिराची

आठवण अंतरात…! १७

 

पद नृसिंह स्तवन

रामधान्य चरीत्रात

अध्यात्मिक उंची होती

कनकांच्या साहित्यात….! १८

 

कार्य कनक दासांचे

जन कल्याणाचा वसा

दासकूटा संप्रदाय

वैचारिक शब्द पसा…! १९

 

घाव टाकीचे सोसले

अंगी आले देवपण

संत कनक दासांचे 

दिर्घायुषी सेवार्पण..! २०

 ©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ विरंगुळा… ☆ सुश्री दीप्ती कुलकर्णी ☆

सुश्री दीप्ती कुलकर्णी

? विविधा ?

☆ विरंगुळा… ☆ सुश्री दीप्ती कुलकर्णी ☆

“विरंगुळा” या शब्दाचा अर्थ काही कालावधीसाठी दैनंदिन दिनक्रमात केलेला बदल. अर्थात हा बदल मुख्यत्वे मनाशी निगडीत असतो. विरंगुळा म्हणून पूर्वी  महिला वर्ग थोड्या वेळासाठी एकत्र येऊन गप्पागोष्टी करीत. एखाद्या आवडीच्या गाण्याच्या कार्यक्रमासाठी थोडा वेळ काढणे हा विरंगुळा च ठरतो. काही लोक हख विरंगुळा म्हणून एखाद्या नृत्याच्या किंवा करमणुकीच्या कार्यक्रमाला जायचा बेत आखतील. तर काहीजच मित्र-मैत्रिणींसमवेत खाण्याचा कार्यक्रम ठरवितील. विरंगुळा म्हणजेवेळ चांगल्या प्रकारे घालविण्याचे विसावा घेण्याचे “क्षण.” स्नान, गृहकृत्ये, स्वयंपाकपाणी, बाजारहाट या रोजच्या बाबी आहेत च पण मन प्रसन्न, ताजे, टवटवीत ठेवण्यासाठी विरंगुळ्याची गरज असते. म्हणूनच तर अलिकडे. शहरात निरनिराळ्या ठिकाणी विरंगुळा केंद्रे उभारलेली दिसतात.

यापैकी बरीचशी “विरंगुळा केंद्रे ,”ज्येष्ठांसाठी विविध कार्मक्रमांचे आयोजन करतात. या केंद्रात महिन्यातील एखाद्या विशिष्ट दिवशी कधी व्याख्यान तर कधी गाण्याचे/नृत्याचे कार्यक्रम ठरविले जातात.. ज्येष्ठांना तरी याची विशेष गरज असते. महिन्यातून एखाद्या दिवशी सहभोजन आयोजित केलं जातं. त्यामुळे समवयस्क मित्र-मैत्रिणींसोबत आंनंदाने भोजनाचा आस्वाद घेतला जातो. इतकच नव्हे तर अनेक सणांच औचित्य साधून त्यानुसार विरंगुळा केंद्रत विविध कार्यक्रम आयोजित केले जातात. सरत्या वर्षाला निरोप किंवा नव वर्षाचे स्वागत करण्यासाठी नियोजन केले जाते.

अलिकडे फ्लॅट संस्कृतीत हादगा  जणू हद्दपार झाला आहे. मुलींनाही शाळा, क्लासेस यातून वेळ नसतो. मग ज्येष्ठ महिला सामुहिक हादगा आयोजित करतात नि वेळ आनंदाने घालवितात.

आजी-आजोबांनी नातवंडांना गोष्टी सांगणे हा दोघांसाठी विरंगुळा च. विरंगुळा म्हणूंन आवडीचे छंद जोपासण्याची संधी मिळते.

मृहणजेच निष्कर्ष काय तर “विरंगुळा ” ही प्रत्येकाचीच गरज आहे जी व्यक्ती आपापल्या आवडीनुसार ठरविते नि त्यातून आनंद लुटते.

© सुश्री दीप्ति कुलकर्णी

कोल्हापूर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ अखेरची इच्छा … भाग – १ ☆ डॉ. ज्योती गोडबोले ☆

डॉ. ज्योती गोडबोले

☆ अखेरची इच्छा … भाग – १ ☆ डॉ. ज्योती गोडबोले

कालच वैदेही  ऋचाला खूप रागावली होती. हल्ली ऋचाच्या मागण्या जरा जास्तच वाढल्या होत्या. रोहित अजून लहान होता, म्हणून अजून  तरी  आईचं ऐकत होता. ऋचा आता दहावीला होती आणि  मैत्रिणींकडे नवीन काही बघितलं की हिला ते हवंसं वाटे. यात तिची चूक नव्हती. ते वयच तसं होतं आणि अशा तिच्या मागण्याही काही फार अवास्तव नसत. पण फक्त विशालच्या एकट्याच्या पगारात भागवताना वैदेहीच्या नाकी नऊ येत. हे कोडे कसे सोडवावे, हेच तिला समजेनासे झाले होते हल्ली. मुलांकडे नीट लक्ष देता  यावे, म्हणून असलेली चांगली सरकारी नोकरी सोडली तिने आणि आता पश्चाताप करण्याखेरीज हातात काहीच उरले नाही !

तेव्हाही विशाल म्हणाला होता, की ‘ नको  सोडू नोकरी. आपल्याला अजून बरीच गरज आहे. अजून मोठा फ्लॅट घ्यायचाय ना, शिवाय मुलांसाठीही लागतीलच पैसे ! ‘ पण खुशाल सोडली आपण नोकरी. मैत्रिणी, बॉस   -सगळे सांगून थकले…. पण तेव्हा घर, मुलं यांचं भूत बसलं होतं डोक्यावर !आता लक्षात येतंय  की आपण नोकरी सोडल्याने काहीही फायदा झालेला नाही, उलट तोटाच झालाय. बहिणी म्हणाल्या होत्या की “ बरं झालं नोकरी सोडलीस. आता आईकडे तुला छान लक्ष देता येईल. आम्ही नोकऱ्या करतो, म्हणून फक्त सुट्टीच्या दिवशी येऊन जाऊ.” भाऊराया परदेशात स्थयिक झालेले, त्यांचे येणे कधीतरीच व्हायचे, आणि ते आले की मग काय ! तोचि दिवाळी दसरा व्हायचा आईला.   

अतुल आईचा अतिशय लाडका. अगदी उघड उघड ती त्याला देत असलेले झुकते माप लक्षात येण्यासारखेच असे. या तिघी बहिणी आणि हा एकुलता एक भाऊ. सगळ्यात धाकटा आणि सगळ्यात हुशार, म्हणून आईचा अत्यंत लाडका. त्याच्याच आवडीच्या भाज्या, त्याला आवडते म्हणून कायम घरात सणासुदीला जिलबीच. मुलींना आई फारसे महत्व द्यायचीच नाही. अतुल  म्हणेल ते प्रमाण. याचा परिणाम असा झाला, वरच्या दोघी जणींनी आपापली लग्नं ऑफिसमध्येच ठरवली आणि आईने  न बोलता लावूनही  दिली.

वैदेही त्यातल्या त्यात गरीब आणि भिडस्त ! सगळं दिसत असूनही बंड न करणारी आणि सोसणारीही. बहिणीही सांगून थकल्या– ‘अग वैदेही, नोकरी कसली सोडतेस? आम्ही नाही का केल्या नोकऱ्या? मुलंबाळं सांभाळून? तुलाही जमेल. मुलं काय ग, बघताबघता होतात मोठी, पण पैसा मात्र त्या प्रमाणात वाढत नाही,आणि गरजा मात्र वाढतात.’ 

पण वैदेहीला हे पटले नाही. कालांतराने तिचे वडील कालवश झाले  आणि आई एकटी पडली. बहिणींनी आधीच  खूप लांब घरं घेतली होती. वैदेहीचंच घर आईच्या जवळ होतं.  आई शिक्षिका होती आणि तिने स्वतःला  छान गुंतवून घेतलं होतं. पत्ते ग्रुप, भिशी ग्रुप, त्यांच्या समवयस्क मैत्रिणींच्या जवळपासच्या ट्रिपा, आईचा वेळ मस्त जायचा. आई एकटीही मजेत राहत होती. वैदेहीला आता वाटलं, किती मूर्ख आहोत आपण !

 मुलं बघताबघता सहजपणे मोठी होत होती, आणि लागलं सवरलं तर आई होती की बघायला . परवाच  ऋचा म्हणाली ते तिला आठवलं, “ आई, कशाला ग नोकरी सोडलीस तू? मला जर कमी मार्क मिळाले, तर तू म्हणणारच, आम्ही नाही हं तुला पेमेंट सीट देऊ शकत ऋचा ! माझ्या इतर मैत्रिणींच्या घरी दोघेदोघे नोकऱ्या करतात म्हणून सगळं कसं मस्त आहे. त्यांना नाही हा प्रॉब्लेम !”  वैदेहीला हसावे का रडावे हेच समजेना. या मुलीला चार महिन्यापासून पाळणाघरात नको टाकायला म्हणून  जीव नुसता तळमळला होता आपला, आणि म्हणून नोकरी सोडली ना आपण ! तर तीच मुलगी बघा काय म्हणतेय ! तिचंही बरोबरच होतं म्हणा. मागे त्यांची कुलू मनालीला ट्रिप होती. तर त्यावेळी आपण तेवढे पैसे देऊ शकलो नाही तिला. काय हे ! वैदेहीला पुरेपूर पश्चाताप झाला. विशाल तर काय ! त्याला कशाचेच सोयरसुतक नसायचे. ना कधी त्याने प्रमोशनसाठी धडपड केली, ना कधी काही नवीन गोष्टी शिकला ऑफिसमध्ये ! वर्षानुवर्षे तीच नोकरी करत राहिला… निर्विकार पणे !  आईला आता ऐशी वर्षे पूर्ण झाली. आता मात्र तिला एकटे राहवेना . तिघी बहिणींकडे ती आलटून पालटून राहू लागली. अतुल कायम अमेरिकेत स्थायिक झाल्यामुळे त्याचा प्रश्नच येत नव्हता. ताई माई जमेल तसं बघायच्या आईकडे.  त्याही आता  रिटायर झाल्याच होत्या. वैदेही सर्वात धाकटी. 

आईचा स्वभाव अतिशय हेकट, कुरकुरा आणि  कुणाशी  ऍडजस्ट करणारा नव्हता. आयुष्यभर मास्तरकी केल्यामुळे, मी म्हणेन तसंच झालं  पाहिजे ही वृत्ती लोकांना आता त्रासदायक  ठरू लागली. ताई माईंची घरं मोठी होती, तरी त्यांचीही मुलं सुना आल्या होत्याच ! आजीचं आणि नवीन नातसुनांचं एक मिनिट पटत नसे. सुना म्हणत, “अहो आई,, आजीचं नका सांगू काही करायला. त्यांना आमचं काहीही आवडत नाही. सतरा चुका काढत बसतात. तुम्ही त्यांचं सगळं करून जा. इतर कामं आम्ही करू”.   सुदैवाने वैदेहीकडे हे झगडे होत नसत. तिच्यात आणि ताई-माईमध्ये बरंच अंतर होतं म्हणून, आणि तिची मुलंही अजून कॉलेजमधेच शिकत होती. तरीही ऋचा रोहितचे आजीशी फार पटत असे. आजी फार लाडकी होती त्या दोघांची ! कुठे चाललीस, कधी येणार, हा काय ड्रेस घातलाय, अशी टीका टिप्पणी आजीची बसल्याबसल्या चालू असे.  आणि मुलांना ते मुळीच चालत नसे. मुद्दाम ऋचा आजीसमोर येऊन म्हणायची, ‘आजी हा स्कर्ट आवडला का? मांड्या दिसत नाहीत ना? आजी, गळा खोल आहे का टॉपचा?” – मुद्दाम आजीला चिडवून ऋचा म्हणे.. ‘हात मेले !’ आजी रागावून म्हणायची. किती वेळा तरी  वैदेहीने आईला सांगून बघितलं, की आई नको ग तू त्यांच्या   भानगडीत पडत जाऊस. आत्ताची मुलं आहेत ती. आम्ही घेतलं तुझं ऐकून, ती कशी घेतील? तू शांत बसत जा ना.” पण हे काही तिला जमायचं नाही. रोज रोज खटके! रोहित स्वतःच्या मेरिट वर मेडिकलला गेला. गव्हर्नमेंट मेडिकल कॉलेजमध्ये फी अगदी माफक, म्हणून तो अभिमानाने सांगे, “ मी खरा मेरिट होल्डर डॉक्टर होणार आजी!”

तरीही त्याला आजी म्हणायचीच ‘ हे काय लांडे कपडे ! ही कसली फाटकी पॅन्ट ! गुडघ्यावर फाटलीय ! आणि हे काय झबलं  घातलंय?” खोखो हसून रोहित म्हणायचा. आजी, ही अशीच  फॅशन असते, लै भारी असते बरं ! ‘पुरे मेल्यानो .. नसतं अवलक्षण,’  असं म्हणून आजी उठून जायची. रोहितवर आजींचा विशेष जीव ! एक तर तो अतिशय हुशार आणि दांडगोबा. आजी त्याचं सगळं ऐकायची.

आईची तब्येत चांगलीच होती. पण तरीही आता तिच्यासाठी म्हणून दिवसाची बाई ठेवावी, असा निर्णय मुलींनी घेतला. कारण मग त्याशिवाय यांना घराबाहेर पडताच येत नसे.  सुना बघायला अजिबात तयार नसत आणि वैदेहीच्या मुलांची कॉलेजेस दिवसभर ! ओळखीच्या एक चांगल्या बाई मिळाल्या आणि त्या सकाळपासून रात्रीपर्यंत येऊ लागल्या. आई खुशीने त्यांचे पैसे देऊ लागली. तिलाही सोबत, आणि गप्पा मारायला एक माणूस झालं. शांताबाई आजींना रिक्षातून देवाला, बागेत, आजी म्हणतील तिथे हिंडवून आणायच्या. मुलं चेष्टा करायची, “आजी भेळ खाल्ली का? आम्हाला नाही का आणली?” आजी खुशीत हसायची. वैदेहीची मुलंही मोठी झाली. आजी आता  नव्वदच्या जवळपास आल्या. ऋचाचं लग्न ठरलं आणि तिला खूप छान स्थळ मिळालं. आजीने वैदेहीला जवळ बसवलं आणि विचारलं, ‘ वैदेही, तुला काही पैसे हवे असतील तर निःसंकोचपणे सांग. माझ्या चार बांगड्याही मी देणार आहे ऋचाला. त्या मोडून तिला हवे ते कर हो तिच्या आवडीचे !”  वैदेहीच्या  डोळ्यात पाणी आले. तिला आत्ता खरोखरच गरज होती या मदतीची. “ अग वैदेही, मला समजत नाहीत का गोष्टी? तू नोकरी सोडलीस आणि मग तुझी फरपट सुरू झालेली मी डोळ्यांनी बघतेय ना. कानी कपाळी ओरडूनही तू माझं ऐकलं नाहीस. बघ बरं आता ! ताई माईंचे संसार बघ,आणि तू सगळ्यात उजवी, हुशार असून किती मागे पडलीस बघ बरं.  बाबांनाही फार वाईट वाटायचं ग तुझ्या बद्दल ! बरं, जोडीदार तरी धड निवडावास ! किती अल्प संतुष्ट आहे ग हा  विशाल. नुसता स्वभाव चांगला असून काय उपयोग ग ? महत्वाकांक्षा असायला नको का काही ? “ 

– क्रमशः भाग पहिला 

प्रस्तुती : डॉ. ज्योती गोडबोले

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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