हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 149 ☆ खाली झोली भरते देर नहीं लगती… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “खाली झोली भरते देर नहीं लगती…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 149 ☆

☆  खाली झोली भरते देर नहीं लगती… ☆

भागादौड़ी के चलते हर कार्य अधूरे रह जाना, सबको खुश रखने के चक्कर में सबको दुःखी कर देना, हर कार्य में मुखिया की तरह स्वयं को प्रस्तुत करना, ये सब जो भी करता है वो विलेन के रूप में अनजाने ही कार्यों को बिगाड़ने लगता है ।

अक्सर आपने देखा होगा कि जो व्यक्ति सबके दुःख सुख में शामिल होता है उसकी जरूरत के समय लोग उससे पल्ला झाड़ लेते हैं, क्योंकि कोई मानता ही नहीं कि उसने कभी कुछ अच्छा किया है। उसकी नकारात्मक छवि लोगों के हृदय में बन जाती है ।

कहते हैं जीत और हार एक सिक्के के दो पहलू  होते हैं। माना कि जीतना एक कला है किंतु इसे सम्हाल कर पाना एक कुशलता है। अयोग्य व्यक्ति को जब भी छप्पर फाड़ कर सफलता मिलती है तो थोड़े समय में ही थोथा चना बजे घना जैसी स्थितियाँ पैदा करते हुए वह उत्साह में खूब हो हल्ला करता है। पर जल्दी ही पता नहीं किसकी नज़र लग जाती है और सब कुछ एक झटके में बिखर जाता है ।

इधर जोड़- तोड़ के खिलाड़ी हारी बाजी को अपने तरफ करते हुए मुखिया के रूप में प्रतिष्ठित हो जाते हैं। जो लोग पूर्वाग्रह को छोड़कर  चरैवेति- चरैवेति  के सिद्धांत को अपनाते हैं, उनकी मदद ईश्वर स्वयं करते हैं। किसी ने सही कहा है- हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं।

मदारी की तरह भले ही डुगडुगी बजानी पड़े किन्तु लक्ष्य को सदैव सामने रखना चाहिए। खाली झोली भरते, चमत्कार होते देर नहीं लगती। बहुमत का क्या वो तो समय के अनुसार बदलता रहता है। वैसे भी कुरुक्षेत्र में एक नारायण के आगे पूरी नारायणी सेना को हारते देर नहीं लगती। सब कुछ छोड़कर बस ईमानदारी से चलते रहिए मंजिलें स्वयं आपकी झोली भरती रहेंगी।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 43 ⇒ कुछ मीठा हो जाए… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “कुछ मीठा हो जाए”।)  

? अभी अभी # 43 ⇒ कुछ मीठा हो जाए? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

हमारे भारतीयों के जीवन में मिठास का कारण हमारा मीठा स्वभाव, मीठे बोल, मीठे मीठे रस्म रिवाज हैं। गरीब से गरीब के घर में प्याज रोटी के साथ, एक गुड़ की डली तो आपको नसीब होगी ही। कलेक्टर के आवास में चपरासी रोज प्रवेश करता है, लेकिन कलेक्टर महोदय तो चपरासी के घर यदा कदा ही रुख करते होंगे और वह भी किसी विशेष प्रयोजन के अवसर पर। कितना खुश होता होगा, उनकी आवभगत करके, उनके साथ तस्वीर खिंचा के। उसे लगता है उसका जीवन धन्य हो गया।

अधिकतर कलेक्टर तो यह जिम्मेदारी भी अपने मातहत पर डाल देते हैं। इन छोटे लोगों को इतना मुंह लगाना ठीक नहीं। कल से ही मुंह लगने लगेगा।।

मीठे पर तो एक चींटी का भी अधिकार है। हमारे जीवन के सुख दुख मीठे नमकीन में ही गुजर जाते हैं। इस स्वाभाविक मिठास को भी बड़े अभियात्य तरीके से हमसे दूर किया जा रहा है। छोरा गंगा किनारे वाला, अपनी संस्कृति भूल भारतीय सांस्कृतिक उत्सवों पर कैडबरी चॉकलेट का विज्ञापन सालों से करते आ रहे हैं, कुछ मीठा हो जाए। थोड़े अपने दांत खराब कर लिए जाएं, बड़े बूढ़ों को लालच दिलाकर उन्हें शुगर का पेशेंट बनाया जाए।

परीक्षा का पर्चा देते वक्त, घर से निकलने के पहले मां के हाथ से एक चम्मच मीठा दही, कितना बड़ा शगुन था। मन में लड्डू फूट रहे हैं, शादी तय हो गई है, किससे कहें, किससे छुपाएं, चाची सब समझ जाती, कहती, लल्ला, आपके मुंह में घी शक्कर, ये बात कोई छुपने वाली है, रिश्ता तो हमने ही कराया है, घोड़ी भी हमीं चढ़ाएंगे।।

तब हमने कहां कॉफी, आइस्क्रीम और केक, पेस्ट्री का नाम सुना था। बस संतरे के शेप वाली गोली, जे. बी.मंघाराम के गोली बिस्किट और एकमात्र रावलगांव। आजकल तो बिस्किट को भी कुकीज कहने का फैशन है। हम दही छाछ पीने वाले क्या जाने कोक, पेप्सी और हेल्थ ड्रिंक का स्वाद।।

हमने कभी मीठे को स्वीट्स माना ही नहीं। हमारे लिए वह हमेशा लड्डू, पेड़ा, जलेबी, इमरती और रबड़ी ही रही। तब किसने सुन रखी थी, शुगर की बीमारी, ब्लड प्रेशर और कोलोस्ट्रोल का नाम। इधर खाया, उधर पचाया।।

हमने अंग्रेजों के दिन नहीं देखे, लेकिन इनके तौर तरीके सब सीख रखे हैं।हम उनकी तरह सुबह कलेवे की जगह ब्रेकफास्ट करने लग गए, लेकिन पोहे जलेबी और आलू बड़े का, और वह भी कड़क मीठी चाय के साथ। जमीन पर बैठकर खाना और पाखाना

दोनों हम भूल चले। 2BHK का फायदा। इस कुर्सी से उठकर बस उस कमोड कर ही तो बैठना है। इसे लैट्रिन, बाथ, किचन कहते हैं। कोई मेहमान आए हॉल में आकर हालचाल पूछने लगे। कुछ मीठा तो लेना ही पड़ेगा।।

बच्चे को कैडबरी पकड़ाई, खुश हो गया।

एक कैडबरी आपको कितनी परेशानियों से बरी करती है। कौन रवे, आटे, गाजर और बादाम का हलवा बनाए, लोग देखते ही मुंह सिकोड़ लेते हैं, एक चम्मच खाकर, मुंह बनाकर रख देते हैं, अच्छा है, क्या करू परहेज है।।

जो बिग बी से प्यार करे, वह कैडबरी से कैसे करे इंकार। बहन की राखी पर भी कैडबरी और कन्या की शादी की विदाई पर भी कैडबरी। लडकियां पन्नी से चॉकलेट निकाल चाटती जा रही है अपने लिपस्टिकी अधरों के बीच, और एक ऐसे वीभत्स रस का प्रदर्शन कर रही है, जो किसी अश्लील प्रदर्शन से कम नहीं।।

रात्रि का भोजन भी तब तक पूरा नहीं हो जाता, जब तक कोई मीठी डिश ना परोसी जाए। बड़ी बड़ी होटलों में तो स्टार्टर, तीन चार तरह के सूप और एक दर्जन सलाद और पापड़ तो अपीटाइजर में लग जाते हैं। पता नहीं, इन्हें भूख कब लगती है।पास्ता, मंचूरियन, मोमोजऔर पिज्जा की तो यहां भी खैर नहीं। बेचारे दाल चावल भी निराश हो जाते हैं, मेरा नंबर कब आएगा।

लेकिन जबान का पक्का आता है, एक चम्मच चावल और दाल ग्रहण कर उन्हें धन्य कर देता है।

जब आप जन गण मन की अवस्था में होते हैं, तो मैन शैफ आपसे अदब से पूछता है, सर कुछ डेजर्ट में लाऊं ? और आप बगले झांकने लगते हैं। सभी आइसक्रीम की वैरायटी, फ्रूट कस्टर्ड, खस शरबत, चीकू शेक और बनाना शेक। बहुमत जानता है, डेजर्ट क्या होता है, और आज का मुर्गा कौन है। बड़ी मुश्किल से आज पकड़ में आया है और फिर आइसक्रीम और चॉकलेट की ऐसी जुगलबंदी चलती है कि ठंड में नौबत तो हॉट आइसक्रीम तक आ जाती है। लगता है कोई आइसक्रीम में कार का जला हुआ ऑयल डाल रहा है। बंदर क्या जाने हॉट आइसक्रीम का स्वाद, जानकार लोग हमें क्षमा करें। फिर कभी मत कहना, कुछ मीठा हो जाए।।

    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #138– कविता – “अपनों को भी क्या पड़ी है ?” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता  – अपनों को भी क्या पड़ी है ?)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 138 ☆

 ☆ कविता –  “अपनों को भी क्या पड़ी है ?” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’         

वह भूख से मर रहा है। 

दर्द से भी करहा रहा है।

हम चुपचाप जा रहे हैं 

देखती- चुप सी भीड़ अड़ी है।

अपनों को भी क्या पड़ी है ?

 

सटसट कर चल रहे हैं ।

संक्रमण में पल रहे हैं।

भूल गए सब दूरियां भी 

आदत यह सिमट अड़ी है।

अपनों को भी क्या पड़ी है ?

 

वह कल मरता है मरे।

हम भी क्यों कर उससे डरें।

आया है तो जाएगा ही 

यही तो जीवन की लड़ी है।

अपनों को भी क्या पड़ी है ?

 

हम सब चीजें दबाए हैं।

दूजे भी आस लगाए हैं।

मदद को क्यों आगे आए 

अपनों में दिलचस्पी अड़ी है।

अपनों को भी क्या पड़ी है ?

 

हम क्यों पाले ? यह नियम है।

क्या सब घूमते हुए यम हैं ?

यह आदत हमारी ही 

हमारे ही आगे खड़ी है।

अपनों को भी क्या पड़ी है ?

 

नकली मरीज लिटाए हैं।

कोस कर पैसे भी खाएं हैं।

मर रहे तो मरे यह बला से

लाशें लाइन में खड़ी है।

अपनों को भी क्या पड़ी है ?

 

कुछ यमदूत भी आए हैं । 

वे परियों के  ही साए हैं।

बुझती हुई रोशनी में वे 

जलते दीपक की कड़ी है।

अपनों को भी क्या पड़ी है ?

 

कैसे इन यादों को सहेजोगे ?

मदद के बिना ही क्या भजोगे ?

दो हाथ मदद के तुम बढ़ा लो 

तन-मन  लगाने की घड़ी है।

अपनों को भी क्या पड़ी है ?

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

20-05-2021 

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 213 ☆ व्यंग्य – भाई भतीजा वाद… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक व्यंग्य  – भाई भतीजा वाद

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 212 ☆  

? व्यंग्य भाई भतीजा वाद?

अंधेर नगरी इन दिनों बड़ी रोशन है। दरअसल अंधेर नगरी में बढ़ रही अंधेरगर्दी को देखते हुए नए चौपट राजा का चुनाव आसन्न हैं। इसलिए नेताजी ए सी कमरे में मुलायम बिस्तर पर भी अलट पलट रहे हैं, उन्हे बैचेनी हो रही है, नींद उड़ी हुई है। वे अपनी जीत सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं। पत्नी ने करवट बदलते पति का मन पढ़ते हुए पूछा, एक बात सुझाऊं? हमेशा पत्नी को उपेक्षित कर देने वाले चौपट राजा बोले, बोलो। पत्नी ने कहा आप न उन्ही की शरण में जाओ जिनका तकिया कलाम जपते रहते हो बात बात पर।

मतलब? राजा ने पूछा।

दर असल चौपट राजा का तकिया कलाम ही था “बहन _ _ “।

सारी महिलाओं को बहन बनाकर “नारी की बराबरी ” नाम से कोई योजना घोषित कर डालिए, अव्वल तो आधी आबादी के वोट पक्के हो जायेंगे, महिला हितैषी नेता के रूप में आपकी पहचान बनेगी वो अलग। घर की महिलाएं आपकी समर्थक होंगी तो उनके कहे में पति और बच्चे भी आपको ही वोट देंगे।

चौपट राजा पत्नी की राजनैतिक समझ का लोहा मान गए, खुशी से पत्नी को बांहों में भरते हुए बोले वाह बहन _ _। दूसरे ही दिन जनसभा में नेता जी महिलाओ को “प्यारी बहन” बनाने का उद्घोष कर रहे थे। पीछे लगा बैनर तेज हवा में फड़फड़ा रहा था, जिस पर लिखा था हम परिवारवाद के खिलाफ हैं, देश में भाई भतीजा वाद, परिवार वाद नहीं चलेगा। चौपट राजा जनता से नए रिश्ते गढ़ रहे थे। पैतृक संपत्ति को लेकर उनकी सगी बहन का कानूनी नोटिस उनकी कार के डैश बोर्ड में पडा था।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 160 ☆ बाल कविता – पक्षियों की चौपाल ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 160 ☆

☆ बाल कविता – पक्षियों की चौपाल ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

पक्षी आए

हिलमिल कर सब दाना खाए।

अपनी अपनी बातें कहकर

ज्ञान बढ़ाए।।

 

कौए बोले हँसकर सारे –

 

आँख खोलकर करना काम

और सदा चौकन्ना रहना।

हिलमिल कर सब भोजन  खाना

आपस में तुम कभी न लड़ना।।

 

तोते बोले हरियल प्यारे –

 

मेहनत का फल सबको मिलता

करना सदा लगन से काम।

आलस तन में कभी न लाना

जीवन होता सुख का धाम।।

 

मीठे स्वर में बुलबुलें बोलीं-

 

सदा बोलकर मीठा – मीठा

परहित कर ही नाम कमाना।

व्यर्थ बात में कभी न पड़ना

खुद मुस्का कर और हँसाना।।

 

अपनी – अपनी बातें कहकर

उड़े सभी आसमान में प्यारे।

सोच रहे हैं कैसे पाएँ

आसमान के चंदा तारे।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचना/Information ☆ सम्पादकीय निवेदन – सुश्री नीलम माणगावे – सौ. वंदना अशोक हुळबत्ते – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

सुश्री नीलम माणगावे

💐अ भि नं द न 💐

ई-अभिव्यक्तीच्या नामवंत ज्येष्ठ लेखिका व कवयित्री सुश्री नीलम माणगावे यांना महाराष्ट्र साहित्य परिषदेतर्फे २०२२ या वर्षासाठीचा “ना.घ. देशपांडे पुरस्कार“ जाहीर झाला आहे. 

सौ. वंदना अशोक हुळबत्ते

💐अ भि नं द न 💐

तसेच आपल्या ग्रुपमधील प्रसिद्ध लेखिका सुश्री वंदना हुळबत्ते यांना त्यांच्या “गांडुळाशी मैत्री“ या पुस्तकासाठी, पश्चिम महाराष्ट्र साहित्य परिषदेचा बाल साहित्यासाठीचा पुरस्कार लाभला आहे. या पुस्तकाचे मुखपृष्ठही पुस्तकाइतकंच आकर्षक आहे, ज्याचा फोटो खाली देत आहे.

💐 💐  

 सुश्री नीलम माणगावे यांची एक कविता इथे प्रस्तुत करत आहोत. 

☆ नीलम ताईंची कविता ती ☆

ती चालायला शिकवते

धडपडायला लावते

पुराण पुरुषाच्या पुरुषत्त्वाला आव्हान देऊन

स्त्रियांच्या पाठीशी ठाम राहते

मनुवाद झिडकारून

मुक्ततेची वाट दाखवते

म्हणून तिला म्हणती मुक्ता !

 

ती इतिहासाचा वीररस

वर्तमानाचा धीररस

भविष्याचा स्वप्नरस

म्हणून ती आशा !

 

बाभळीच्या काट्यांवरच काय

विंचवाच्या डंखावरही

ती प्रेम करते

म्हणून ती स्नेहदा !

 

ती आद्य गुरु –  जगणं रुजवणारी

ती व्यवस्थापक –  शिस्त लावणारी

ती पहिली पाटी –  लिहिणं शिकवणारी

म्हणून ती शारदा !

💐 सुश्री नीलम माणगावे आणि सुश्री वंदना हुलबत्ते या दोघींचेही ई-अभिव्यक्तीतर्फे हार्दिक अभिनंदन व पुढील अशाच यशस्वी वाटचालीसाठी हार्दिक शुभेच्छा 💐

संपादक मंडळ

ई अभिव्यक्ती मराठी

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ दोन फुले… ☆ डॉ.सोनिया कस्तुरे ☆

डॉ.सोनिया कस्तुरे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ दोन फुले☆ डॉ.सोनिया कस्तुरे ☆

सावली मिळेल आशेने

ऊन्हात तू चालत राहावे

सावली धुंडाळताना

तुजमधूनि झाड निपजावे !

        मोद अखंड वेचून घ्यावे

        ग्रीष्म ऊन्हे ती झेलताना

        आनंदे उर भरुन यावे

        सावलीत कुणी येताना !  

पावसाशी कृतज्ञता

मृदेची जाणिव असावी

एकमेव नसतोच कधी

अहंकारी वृत्ती नसावी !

          निसर्गातून बहरण्याची

          संधी असे साऱ्यांकडे

          बहर ज्यास ठावे त्याने

          दोन फुले इतरांस द्यावे !

सावली शोधत आशेने

ऊन्हात मी चालत राहते

सावली धुंडाळताना

झाड मी होऊन जाते !

मोद = आनंद

© डॉ.सोनिया कस्तुरे

विश्रामबाग, जि. सांगली

भ्रमणध्वनी:- 9326818354

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

 

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #161 ☆ संत तुलसीदास… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 161 ☆ संत तुलसीदास☆ श्री सुजित कदम ☆

श्रेयस्कर जीवनाचा

महामार्ग दाखविला

राम चरित मानस

भक्ती ग्रंथ निर्मियला…! १

 

जन्म उत्तर प्रदेशी

 चित्रकूटी राजापूरी

श्रावणात सप्तमीला

जन्मोत्सव  घरोघरी…! २

 

मान्यवर ज्योतिषाचे

घराण्यात जन्मा आले.

राम राम जन्मोच्चार

रामबोला नाम झाले…! ३

 

जन्मताच गेली माता

केला आजीने सांभाळ

लहानग्या गोस्वामीची

झाली जन्मतः आबाळ…! ४

 

हनुमान मंदीराच्या

प्रसादात गुजराण

गेली आजी देवाघरी

मातापिता भगवान….! ५

 

नरहरी दास स्वामी

छोट्या तुलसीचे गुरु

वेद पुराणे दर्शने

झाले ज्ञानार्जन सुरू…! ६

 

लघुकथा आणि दोहे

गुरूज्ञान प्रसारित

उपदेश प्रवचन

रामभक्ती प्रवाहीत…! ७

 

भाषा विषयांचे ज्ञान

करी तुलसी अभ्यास

उपनिषदांचे पाठ

नाम संकीर्तन ध्यास…! ८

 

माया मोह जिंकुनीया

ठेवी इंद्रिये ताब्यात

दिली गोस्वामी उपाधी

वेदशास्त्री महात्म्यास…! ९

 

वाल्मिकींचे रामायण

केले अवधी भाषेत

ब्रज भाषा साहित्यात

लोक संस्कृती धारेत…! १०

 

अलौकिक आख्यायिका

प्रभु रामचंद्र भेट

ओघवत्या शैलीतून

ग्रंथ जानकी मंगल…! ११

 

काव्य सौंदर्याची फुले

बीज तुलसी दासाचे

सर्व तीर्थक्षेत्री यात्रा

भक्तीधाम चैतन्याचे…! १२

 

सतसई ग्रंथामध्ये

दोहे सातशे लिहिले

रामकृष्ण भक्तीयोग

संकिर्तनी गुंफियले….! १३

 

हनुमान चालीसा नी

दोहावली गीतांवली

ग्रंथ पार्वती मंगल

काव्य कृष्ण गीतावली…! १४

 

हनुमान रामचंद्र

झाले प्रत्यक्ष दर्शन

संत तुलसी दासांचे

प्रासादिक संकीर्तन….! १५

 

गाढे पंडित वैदिक

वेदांतात पारंगत

आदर्शाचा वस्तू पाठ

दिला नैतिक सिद्धांत…! १६

 

हाल अपेष्टां सोसून

दिले भक्ती सारामृत

संत तुलसी दासांचे

शब्द झाले बोधामृत…! १७

 

थोर विद्वान विभुती

दीर्घायुषी संतकवी

वर्ष सव्वाशे जगली

प्रज्ञावंत ज्योत नवी…! १८

 

जीवनाच्या अखेरीला

काशी श्रेत्रात निवास

राम कृष्ण अद्वैताचा

संत तुलसी प्रवास…! १९

 

गंगा नदीच्या किनारी

शेवटचा रामश्वास

अस्सी घाटावर देह

केला आदर्श प्रवास…! २०

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ पांढरा प्रकाश/white light… ☆ सुश्री विभावरी कुलकर्णी ☆

सुश्री विभावरी कुलकर्णी

 🌸 विविधा 🌸

☆ पांढरा प्रकाश/white light… ☆ सुश्री विभावरी कुलकर्णी ☆

विश्वातील असा स्रोत आहे ज्यामध्ये सकारात्मक ऊर्जा असते. सहाय्य, उपचार आणि नकारात्मक ऊर्जा किंवा अस्पष्ट कंपनांपासून संरक्षणासाठी पांढर्‍या प्रकाशाला कोणीही (बरे करणारे, सहानुभूती देणारे कोणीही!) आवाहन करू शकतात. महत्त्वाचे म्हणजे पांढर्‍या प्रकाशाचा वापर कोणालाही किंवा कशालाही इजा करण्यासाठी केला जाऊ शकत नाही. तसेच त्याने कोणत्याही प्रकारे नुकसान होऊ शकत नाही.

 व्हाईट लाइट बोलावणे पांढऱ्या प्रकाशासाठी ओरडणे किंवा गुडघे टेकून प्रार्थना करण्याची विनंती करण्यासारखे नाही. आपण धार्मिक असणे आवश्यक नाही, फक्त तो प्राप्त करण्यासाठी खुले असावे. प्रकाश सर्वांसाठी उपलब्ध आहे… जर तुम्ही त्याच्या उपचार आणि कंपनांना स्वीकारत असाल तर तो अधिक सहज उपलब्ध आहे.

शुद्धीकरण आणि परिवर्तनासाठी नकारात्मक किंवा  गलिच्छ  ऊर्जा पांढर्‍या प्रकाशाकडे पाठविली जाऊ शकते किंवा निर्देशित केली जाऊ शकते. उदाहरणार्थ तुम्ही विनंती करू शकता की तुम्ही तुमच्या मधून बाहेर काढलेल्या अशुद्धता शुद्धीकरणासाठी पांढर्‍या प्रकाशाकडे पाठवत आहे.

पांढर्‍या प्रकाशाच्या परिवर्तनाची संकल्पना अगदी सोपी आहे.जसे तुमचे सर्व घाणेरडे कपडे पॅक करण्याचा आणि ड्राय क्लीनला टाकण्याचा विचार करा. तुमचे कपडे जसे एका बॅग मध्ये भरून लॉंड्रीत देता आणि  काही दिवसांनी  ते स्वच्छ  होऊन परत येतात तसेच हे आहे.

पांढर्‍या प्रकाशाच्या क्षेत्रात जे काही प्रवेश करते किंवा ज्यावर पांढरा प्रकाश पडतो ते स्वच्छ आणि शुद्ध होऊन बाहेर येते.

पांढरा प्रकाश देवदूत,चांगल्या शक्ती घेऊन येतात.

विश्वास ठेवा की जेव्हा तुम्हाला पांढर्‍या प्रकाशाच्या संरक्षणाची इच्छा असेल तेव्हा तो तुम्हाला मिळेल. जसे की रिक्षा ला कॉल करणे. तुम्हाला फक्त दरवाजा उघडण्याची आणि प्रकाशाचे स्वागत करण्याची आवश्यकता आहे.

आपल्याला जीवनात मिळालेले धडे,वाईट अनुभव,नकळत केलेली चुकीची कर्म इत्यादी सर्व गोंधळातून बाहेर पडण्याचे ठिकाण आहे.तसेच अत्यंत विश्रांतीची जागा आहे.

पांढर्‍या प्रकाशाचे व्हिज्युअलायझेशन व्यक्तिपरत्वे भिन्न असू शकते. काहींना पांढर्‍या रंगात लहान धूमकेतूसारखे चमकणारे चमक दिसू शकतात, तर इतरांना चमकणारे मोठे पांढरे गोळे दिसू शकतात.काहींना पांढरे सोनेरी किरण दिसतात.काहींना प्रकाशाचा शॉवर दिसतो.काहींना उजेड दिसत नाही पण जाणवतो.काहीतरी आपल्या कडे येत आहे असे वाटते.अशा कोणत्याही स्वरूपात ही अनुभूती येते.

दिवसातून 10 मिनिटांनी सुरुवात करा, हळूहळू कालावधी 30 मिनिटांपर्यंत वाढवा.

श्वेत प्रकाश/white light ध्यान काय आहे आणि त्याचे फायदे काय आहेत?

तुम्हाला अनेक फायदे मिळू शकतात. त्यापैकी काही येथे आहेत:

🪷 तुमची प्रेरणा सुधारते आणि वाढवते .

🪷 दृढनिश्चय आणि सहनशक्ती सामर्थ्य देते.

🪷 तुम्हाला तुमच्या ध्येयांवर अधिक चांगले लक्ष केंद्रित करण्यात मदत होते.

🪷 तुम्हाला तुमचे ध्येय साध्य करण्यात मदत करते .

🪷 आत्मविश्वास सुधारतो.

🪷 यशाच्या मार्गात येणाऱ्या अडथळ्यांवर मात करण्यास मदत करते.

🪷 स्पष्ट विचार प्रक्रिया करण्यास मदत करते.

🪷 अडकलेला गाभा स्वच्छ आणि साफ करतो आणि अशा प्रकारे तुम्हाला आजारापासून दूर ठेवतो.

पांढऱ्या प्रकाशाच्या ध्यानाचा सराव करण्यासाठी तुम्हाला दिवसातून फक्त 10 मिनिटे लागतात. जेव्हा तुम्ही मनाच्या निवांत अवस्थेत याचा सराव करता तेव्हा परिणाम चांगले मिळतात, तुम्ही जागे होताच हे करणे सुरू करण्याचा सल्ला दिला जातो.

सर्वोत्कृष्ट परिणाम मिळविण्यासाठी तुम्ही काही गोष्टी तुमच्या मनात ठेवल्याचे सुनिश्चित करा.

🪷 धीर धरा.

🪷 प्रामाणिक रहा.

🪷 परिणामांची अपेक्षा ठेवून कधीही ध्यान करू नका.

🪷 नकारात्मक विचार नेहमी तुमच्या फोकसपासून दूर ठेवा.

🪷 नेहमी सकारात्मक उर्जेने वावरत रहा.

🪷 पूर्णपणे दयाळूपणे ध्यान करा.

श्वेत प्रकाश ध्यान हे शुद्धीकरण आणि आत्मज्ञान प्राप्त करण्याचा एक उत्तम मार्ग आहे. हे तुमचे शरीर आणि मन पुन्हा टवटवीत करण्यास मदत करते. आणि राग, चिंता आणि तणाव यासारख्या नकारात्मक भावनांवर नियंत्रण ठेवण्यास मदत करते . यात प्रत्येक अवयवांना व मन त्यातील विचारांना स्थिर,शुद्ध करणे हे होत असते. त्यामुळे आपल्यातील प्रेरणा आणि सहनशक्ती वाढते, चांगले विचार करण्याचे प्रमाण वाढते, उद्दिष्टांकडे लक्ष  केंद्रित करणे जमू लागते, दृष्टीकोन बदलतो, आत्मविश्वास वाढतो,आपण स्पष्ट आणि तर्कशुद्ध विचार करू लागतो. आणि शरीर शुद्ध होते. हे या ध्यान तंत्राचे काही प्रमुख फायदे आहेत. हे ध्यान दिवसातून किमान 10 मिनिटे आरामशीर मनःस्थितीसह स्वतःमध्ये हळूहळू परिवर्तन करण्यासाठी करा.

पांढरा प्रकाश ध्यान तुमची नैसर्गिक उपचार क्षमता वाढवते असे मानले जाते.

हे तुम्हाला तुमच्या ध्येयांवर लक्ष केंद्रित करण्यात मदत करते आणि तुमचा आत्मविश्वास आणि प्रेरणा सुधारते.

हे मन स्वच्छ करते आणि तुम्हाला तुमच्या भावनांवर नियंत्रण ठेवण्यास मदत करते.

सर्वोत्तम परिणाम मिळविण्यासाठी दयाळू, प्रामाणिक आणि संयमाने ध्यान करा.

© सुश्री विभावरी कुलकर्णी

सांगवी, पुणे

मोबाईल नंबर – ८०८७८१०१९७

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ ‘जे.बी.एल.’… ☆ सुश्री शांभवी मंगेश जोशी ☆

सुश्री शांभवी मंगेश जोशी

?जीवनरंग ?

‘जे.बी.एल.’… ☆ सुश्री शांभवी मंगेश जोशी

आला! काळा वड्डा! नाही नाही काळदेव! काळुराम! असं म्हणत, इश्मत, मुश्ताक आणि जेनीनं एकमेकांना टाळ्या दिल्या. त्यांच्या अचकट विचकट हसण्यानं जबीलच्या मस्तकात तीव्र सणक गेली. तेवढ्याच जोरात हातातला दगड जबीलने त्यांच्याकडे भिरकावला. इश्मतच्या डोळ्याला रक्ताची धार लागली.

प्रिन्सिपल मार्थासमोर जबील, भीतीनं, तेवढाच संतापानं आणि वेदनेनं, थरथर कापत उभा होता. आता जबरदस्त शिक्षा होणार हे त्याला कळून चुकलं होतं.

‘‘इसके पेरंट्सको बुलालो, इमिजिएट!’’ असं म्हणत, त्या जबीलच्या जवळ पोहोचल्या. एरवी प्रेमळ म्हणून प्रसिद्ध असलेल्या मार्था मॅडमचा जेवढा संताप, धाक अन् दरारा होता; तेवढाच जबीलच्या डोळ्यात त्वेष आणि संताप होता. हाताच्या मुठी घट्ट आवळून, त्या मागे बांधून जबील उभा होता.

लहानपणापासून काळा-काळा म्हणून चिडवणारी, हिणवणारी अनेक दृष्यं, त्याच्या डोळ्यासमोरून सरकत होती.

‘‘हात आगे!’’

मोठ्ठी छडी, त्याच्या डोळ्यासमोर नाचवत मार्था मॅडम ओरडल्या.

ओठ घट्ट आवळून, जबील टपोरे डोळे ताणून, त्यांच्याकडे बघत राहिला.

‘‘हात आगे! सुनाई नही देता?’’

तरीही जबील तसाच!

संतापाने बेभान झालेल्या मार्था मॅडमने त्याच्या खांद्यावर सटकन् छडी मारली.

त्याबरोबर जबीलच्या उजव्या हाताची मूठ पुढे आली अन् त्याच्या चारही बोटांनी मार्था मॅडमच्या हातावर काळ्याकुट्ट, तेलकट, वंगणासारख्या पदार्थाचा फटकारा मारला. मार्था मॅडमच्या गोर्‍या धप्प हातावर जबीलचे इवल्याश्या चार बोटांचे काळे कुट्ट फटकारे उठून दिसत होते. त्या जागी मॅडमना प्रचंड झोंबू लागलं. ‘‘स्स्… हां…!’’ करून त्या चित्कारल्या. हातातली छडी गळून पडली. त्या हाताकडे बघत राहिल्या. अनपेक्षित प्रकाराने सारेच गोंधळले. मॅडमच्या भोवती जमा झाले. संधीचा फायदा घेऊन जबीलने धूम ठोकली. शाळेच्या गेटवरून उडी मारून, तो पसार झाला.

मार्था मॅडम निवृत्त होऊन बरीच वर्ष झाली, तरी त्यांच्या हातावरची खूण मिटली नव्हती. त्यासाठी त्यांनी अनेक औषधोपचारही केले. पण ती जन्माचीच खूण त्यांच्या हातावर उमटली.

मार्था मॅडमच्या हातात एक पत्र होतं.

‘‘मॅडम, मी तुमचा विद्यार्थी आहे. माझ्या संशोधनासाठी मिळालेला पुरस्कार तुम्हाला प्रदान करण्याची इच्छा आहे…’’ असं म्हणून कार्यक्रमाला उपस्थित रहाण्याची विनंती केली होती.

खाली सही – J. B. L. अशी अक्षरं होती. जस्ट बी लव्हिंग – असा त्याचा विस्तार आणि अर्थही होता. कितीही डोक्याला ताण दिला तरी मॅडमना काही आठवेना. पण विद्यार्थ्यांच्या कौतुकासाठी कार्यक्रमाला जाण्याचं त्यांनी निश्चित केलं. कार्यक्रमाच्या वेळेपूर्वी मॅडमसाठी कार पाठवली होती. मॅडम व्यासपीठावर येताच, एका व्यक्तीनं त्यांच्या पायावर डोकं ठेवलं. मॅडमने त्याच्या खांद्याला धरून उठवलं.

‘‘मॅडम माफ केलंत का मला? मी जबील. ओळखलतं का मला?’’

मॅडमने आश्चर्यानं ‘आ’ केला. त्याचवेळेस त्यांचा उजवा हात डाव्या हातावरच्या खुणेवरून फिरत राहिला. J. B. L. अक्षराचा अर्थही उलगडला.

‘‘मॅडम, माणसांच्या कातडीचा काळा रंग बदलण्यासाठी मी औषध शोधून काढलं आहे. त्यासाठी मला हा पुरस्कार मिळत आहे. त्या दिवशी तुम्ही मारलेल्या छडीमुळेच मी हा शोध लावू शकलो. हा पुरस्कार मी तुम्हाला प्रदान करत आहे.’’ असं म्हणून जबीलनं मॅडमच्या हातात पुरस्कार ठेवला. त्यावरची जे. बी. एल. अक्षरं उठून दिसत होती.

‘‘जस्ट बी लव्हिंग’’ असं म्हणत जबीलनं डबीतलं औषध, मार्था मॅडमच्या हातावर प्रेमानं, हळुवार हातानं लावलं. म्हणाला, ‘‘मॅडम रोज हे औषध लावलं तर महिनाभरात हे व्रण नाहिसे होतील. एवढंच नाही, कोणताही काळा माणूस त्यामुळं गोरापान होईल. पण एकदा माफ केलं म्हणा.’’

मॅडमच्या पाण्यानं भरलेल्या डोळ्यापुढं, छोटा जबील दिसत होता. इतक्याश्या हातानं फटका मारणारा. समोर उभं राहून जबील विचारत होता, ‘‘माफ केलंत का मॅडम? सांगा ना.’’

© सौ. शांभवी मंगेश जोशी

संपर्क – सुमन फेज 4, धर्माधिकारी मळा, एस्सार पेट्रोल पंपामागे, सावेडी, अहमदनगर 414003

फोन नं. 9673268040, [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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