हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ माइक्रो व्यंग्य # 180 ☆ “उगलत लीलत पीर घनेरी…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका  एक  माइक्रो व्यंग्य – “उगलत लीलत पीर घनेरी...”।)

☆ माइक्रो व्यंग्य # 180 ☆ “उगलत लीलत पीर घनेरी…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

कुछ दिनों से गंगू को कोई वामपंथी कहकर चिढ़ाता तो कोई दक्षिणपंथी कहता। गंगू जब तंग हो गया तो उसने अपने आप को टटोला, कुछ हरकतें वामपंथी जैसी दिखीं कुछ आदतें दक्षिणपंथी से मेल खाती मिलीं।

मां से पूछा -जब हम पैदा हुए थे तो वामपंथी जैसे पैदा हुए थे या दक्षिणपंथी जैसे ?

मां ने ज़बाब दिया- बेटा तुम्हारे पिता जी वामपंथी थे और मैं जन्म से दक्षिणपंथी थी जब तुम पैदा हुए थे तो तुम उल्टा पैदा हुए थे, ऊपर से दक्षिणपंथी और अंदर से वामपंथी।

मां की बातें सुनकर गंगू परेशान हो गया था, जंगल की तरफ भागकर गांव के पीपल के नीचे बैठकर चिंतन मनन करने लगा। थोड़ी देर बाद एक गांव वाला लोटा लिए कान में जनेऊ बांधे शौच को जाते दिखा।  गंगू ने रोककर पूछा – भाई ये बताओ कि इन दिनों मीडिया में वामपंथी और दक्षिणपंथी ‌की खूब चर्चा हो रही है। गांव वाले को जोर की लगी थी जनेऊ कान में उमेठते हुए बोला – जो जनेऊ न पहनें और जनेऊ बिना कान में बांधे शौचालय जाए फिर बाहर निकलकर  हाथ न धोये  वो वामपंथी और जो कान में जनेऊ लपेटकर दक्षिण दिशा में बैठकर शौच करे वो दक्षिणपंथी…

गंगू सुनकर सोचने लगा आगे चिंतन मनन करूं कि नहीं।

“फासले ऐसे भी होंगे, 

ये कभी सोचा न था,”

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 122 ☆ # ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 122 ☆

☆ # ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा… # ☆ 

ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा

ये महल रहेगा ना राज़ रहेगा

जहां सज रही थी रंगीन महफ़िले

ये रंगमहल रहेगा ना साज रहेगा

कुछ पल की ये रंगीनियां हैं

नाचती तितलियों की झलकियां हैं

कुछ प्रेम कहानियां बनी थी

वो आज भी अमर कहानियां हैं

ये ऊंचे ऊंचे महल ऐश्वर्य  बताते हैं

अपने वैभव की झलक दिखाते हैं

जिन्होंने जीती है कठिन लड़ाइयां

अपने शौर्य की निशानियाँ दर्शाते हैं

कितने हुए राजे रजवाड़े

उन्हें आज कौन याद करते हैं

जिन्होंने लगा दी जान की बाजी

ऊन शूरवीरों को जांबाज कहते हैं

उनके ही लगे हैं स्टेच्यू

हर शहर, हर चौराहे पर

उनके चरण छूकर ही

आजादी का आगाज़ करते हैं

जिन्होंने गद्दारी की वे मिट गये जमाने में

जिन्होंने मक्कारी की वे तिरस्कृत हैं फसानों में

जमाना वीरों को याद रखता है

जो गीत बनकर गाए जाते हैं दीवानों में

अहंकार, घमंड विनाश की राह है

छल कपट से आक्रमण बुजदिलों की चाह है

सत्य की जगह झूठ को मानने वाले

इतिहास में कायर, डरपोक, कमजोर और तानाशाह हैं /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मातारानी के दोहे” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

“मातारानी के दोहे” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

मातारानी है नमन्,सदा झुका यह माथ।

जननी तेरा नित रहे,मेरे सिर पर हाथ।।

नौ रूपों में आप तो,रहतीं हरदम भव्य।

रोशन तेरी दिव्यता,महिमा हर पल श्रव्य।।

साँचा है दरबार माँ,है कितना अभिराम।

जिसने भी श्रद्धा रखी,बनते उसके काम।।

माँ तुम हो नेहमय,देतीं हो आलोक।

सिंहवाहिनी की दया,करे परे हर शोक।।

नवरातें मंगल करें,शुभ करती हैं नित्य।

दिवस उजाला कर रहे,बनकर के आदित्य।।

विन्ध्यवासिनी माँ तुम्हें,बारंबार प्रणाम।

तुम से ही बनते सदा,मेरे बिगड़े काम।।

भक्त आपका कर रहे,श्रद्धामय हो जाप।

प्रबल शक्ति,आवेग है,प्रखर आपका ताप।।

संयम को मैं साधकर,शरण आपकी आज।

माता हे! सुविचारिणी,सब पर तेरा राज।।

माता हरना हर व्यथा,देना जीवनदान।

चलूँ धर्मपथ,नीतिपथ,कर पूरण अरमान।।

सदा आप में है भरा, ज्ञान, भक्ति, तप,योग।

हरतीं हो हे मातु ! नित,काम,क्रोध अरु रोग।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नवसंवत्सर… ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित संग्रह प्रकाशाधीन विविध छंद कलश।राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 200 से अधिक पुरस्कारों / सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ नवसंवत्सर… ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

चैत्र मास तिथि प्रतिपदा , बहुत हर्ष है आज।

नवसंवत्सर वार है , बनते शुभमय काज।।1!!

भजते माँ अम्बे रहे , नवसंवत्सर वार।

जले ज्योति है नौ दिवस , माँ करती उद्धार।।2!!

माँ अम्बे का सज रहा , खूब बड़ा दरबार।

रखे मात अम्बे कदम, हरती कष्ट अपार।।3!!

पूजा घर पर ही करें , भगवा ध्वज फहराय।

चरण शरण मैया पड़े , जीवन का सुख पाय।।4!!

धर्म जाति कोई रहे , माने खुश त्योहार।

भक्ति भाव मन में सजे , सुखद बने संसार।।5!!

नव कलिका मन की खिली , अब आनन्द विभोर।

नव संवत्सर की किरण , मन मे करती शोर।।6!!

चैत्र शुक्ल संवत रहे , सुखमय हो परिवेश।

बुरी बला जग से मिटे , मिले सुखद संदेश।।7!!

भारतीय नव वर्ष में , मना रहे त्योहार।

सत्य सनातन धर्म यह , नवसंवत शुभ सार।।8!!

जले ज्योति हर घर  सजे , हुआ तिमिर का नाश।

कलश स्थापना कर रहे , करते दूर निराश।।9!!

जीवन जी इस वर्ष में , करना सदा विशेष ।

ऊँचाई छूना सदा , अंतस मत रख द्वेष ।।10!!

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ वसंतोत्सव… ☆ सुश्री दीप्ती कुलकर्णी ☆

सुश्री दीप्ती कुलकर्णी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ वसंतोत्सव… ☆ सुश्री दीप्ती कुलकर्णी ☆

 

नवचैतन्ये वसंत नटला

तरुवेलींचा सुगंध सुटला ||धृ ||

 

      ‌ बहावा तरी सुंदर सजला

       पर्णपाचुतुनी बहरु लागला

       पीतफुलांनी डोलत सुटला

       पांथस्थांना खुणवु लागला ||१||

 

गुलमोहराच्या पायघड्यांनी

रस्ता सारा मखमली बनला

रक्तवर्ण हा तळपु लागला

ग्रीष्मासंगे फुलुनी आला ||२||

 

       पळस,पांगिरा,फुलांनी नटला

       हिरव्या कोंदणी ,ठसा उमटला

       मनासी वेधत,खुलवु लागला

       संगतीने ग्रीष्मात हरवला ||३||

 

आम्रतरुही मोहरुनी आला

कैरीफळांचे तोरण ल्यायला

कोकिळ कूजनी रंगुनी गेला

आमराईचे भूषण बनला ||४||

 

© सुश्री दीप्ती कोदंड कुलकर्णी

कोल्हापूर.

भ्र.९५५२४४८४६१

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 123 ☆ कृष्ण देव आठवतो… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 123 ? 

कृष्ण देव आठवतो

(अष्टअक्षर..)

 

मज आवडे एकांत, नको वाटतो लोकांत

वेळ पुरेसा मिळता, होई जप भगवंत.!!

 

मज आवडे एकांत, कृष्ण देव आठवतो

रूप त्याचे मनोहर, मनी माझ्या साठवतो.!!

 

मज आवडे एकांत, क्षण माझा मी जोपासे

धूर्त ह्या जगाची कधी, भूल पडे त्याच मिसे.!!

 

मज आवडे एकांत, शब्दाचे डाव मांडतो

नको कुणा व्यर्थ बोल, मीच मला आवरतो.!!

 

मज आवडे एकांत, राज हे उक्त करतो

शब्द अंतरीचे माझे, प्रभू कृपेने लिहितो.!!

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – विविधा ☆ विचार–पुष्प – भाग 62 – स्वामी विवेकानंदांचं राष्ट्र-ध्यान – लेखांक तीन ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर ☆

डाॅ.नयना कासखेडीकर

?  विविधा ?

☆ विचार–पुष्प – भाग 62 –   स्वामी विवेकानंदांचं राष्ट्र-ध्यान –  लेखांक तीन ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर 

स्वामी विवेकानंद यांच्या जीवनातील घटना-घडामोडींचा आणि प्रसंगांचा आढावा घेणारी मालिका विचार–पुष्प.

आपल्या समाजातील अज्ञान आणि दारिद्र्य दूर कसे होईल आणि भारताचे पुनरुत्थान कसे होईल?त्याच्या आत्म्याला जाग कशी येणार? याच प्रश्नावर जास्त वेळ चिंतन करत होते.

प्राचीन ऋषीमुनींनी दिलेले उदात्त आध्यात्मिक विचार आणि जीवनाची श्रेष्ठ मूल्ये खालच्या थरातील माणसांपर्यंत पोहोचवण्याची गरज आहे असे त्यांना तीव्रतेने वाटत होते. सामान्य माणसाच्या सेवेसाठी आणी उन्नतीसाठी आपण प्रयत्न करायचा असा स्वामीजींचा निर्णय झाला. हे करण्यासाठी पाच दहा माणसं आणि पैसा हवाच. पण या दरिद्री देशात पैसे कुठून मिळणार? त्यांना आलेल्या अनुभवा नुसार धनवान मंडळी उदार नव्हती.

आता अमेरिकेत सर्वधर्म परिषद भरते आहे. तिथे जाऊन त्यांना भारताच्या आध्यात्मिक संस्कृतीचा परिचय करून द्यावा आणि तिकडून पैसा गोळा करून आणून इथे आपल्या कामाची ऊभारणी करावी. आता उरलेले आयुष्य भारतातल्या दीन दलितांच्या सेवेसाठी घालवायचे असा संकल्प स्वामीजींनी केला आणि शिलाखंडावरून ते परतले. समाजाला जाग आणण्याचा आणि आपल्या देशातील बांधवांचे पुनरुत्थान घडवून आणण्याचा संकल्प त्यांनी केला. त्याच बरोबर स्वतविषयी अहंकार असणार्‍या पाश्चिमात्यांना आपल्या पौर्वात्त्यांच्या अनुभवापुढे नम्र होण्यास स्वामीजी प्रवृत्त करणार होते. आणि त्यासाठी भारताचा अध्यात्मिक संदेश जगभर पोहोचविणार होते. कारण सर्व मानव जातीने स्वीकारावीत अशी शाश्वत मूल्ये आपल्याला आपल्या पूर्वजांनी दिली आहेत. हे त्यांनी अनुभावातून आणि वाचनातून जाणून घेतलं होतं. 

स्वामीजींनी ध्यान केलं होतं जगन्मातेचं आणि चिंतन केलं होतं भारतमातेचं. तीन दिवस तीन रात्रीच्या चिंतनातून प्रश्नाचं उत्तर स्वामीजींना मिळालं होतं. २५ ,२६, २७ डिसेंबर १८९२ ला स्वामीजींच्या वैचारिक आंदोलनाने सिद्ध झालेल्या याच शिलाखंडावर भव्य असे विवेकानंद शिलास्मारक उभे आहे.

कन्याकुमारीचे विवेकानंद शिला स्मारक हा धर्म कार्याच्या विकासाचा पहिला टप्पा होता. त्यानंतर विवेकानंद केंद्र राष्ट्रीय पातळीवर सुरू झाले हा दूसरा टप्पा तर विवेकानंद केंद्र इंटरनॅशनल  ही पुढची संकल्पना . या पातळीवर स्वामीजींच्या स्वप्नातले विश्वव्यापी काम सुरू आहे.

स्वामीजींचे जीवन पाहता त्यांचे चरित्र आणि त्यांनी दिलेला संदेश खूप सुसंगत आहेत. ते हिंदुत्वाचे सर्वोत्कृष्ट प्रतींनिधी तर होतेच पण, ते सर्वाधिक थोर आणि जाज्वल्य असे आंतरराष्ट्रीयवादी ,आधुनिक भारतीय सत्पुरुष होते .  

स्वामीजी कन्याकुमारीला पोहोचले तेंव्हा ते एक संन्यासी होते. पण या तीन दिवसांनंतर परिवर्तन होऊन तो, राष्ट्र उभे करणारा श्रेष्ठ नेता,जगाला त्याग आणि सेवेचा नवा संदेश देणारा श्रेष्ठ गुरु, एक खरा देशभक्त म्हणून जगन्मान्य झाला. स्वामीजींच्या स्वप्नातल्या कार्ययोजनेला प्रत्यक्ष स्वरूप देणारं हे  वैचारिक आंदोलन केंद्रच आहे. आज ही श्रीपाद शिला विवेकानंद शिला म्हणून सर्वदूर परिचित आहे. या स्मारकाचे प्रेरणास्थान एकनाथजी रानडे आहेत. १९६३ मध्ये स्वामी विवेकानंद यांच्या जन्मशताब्दी निमित्त त्यांची आठवण म्हणून हे शिला स्मारक करण्याचा निर्णय घेतला. अनेक अडचणी आल्या.पण हे स्मारक आज या इतिहासाची साक्ष तर देतच आहे आणि कामासाठी प्रेरणा व विचार पण देतंय.

क्रमशः…

© डॉ.नयना कासखेडीकर 

 vichar-vishva.blogspot.com

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ आयुष्य हे… – लेखिका- सुश्री सायली साठे ☆ प्रस्तुती – श्री मेघःशाम सोनवणे ☆

श्री मेघःशाम सोनवणे

?जीवनरंग ?

☆ आयुष्य हे… – लेखिका- सुश्री सायली साठे ☆ प्रस्तुती – श्री मेघःशाम सोनवणे ☆ 

“आता फार काही करु नका डॉक्टर, आता 87 वर्षांची झाले मी, किती त्रास द्यायचा सगळ्यांना.” राजे आजी म्हणाल्या..

“अहो आजी, पण तुमच्याकडची माणसं सगळी चांगली आहेत, किती काळजी घेतात तुमची.. नाहीतर बरेच लोक एवढ्या म्हाताऱ्या लोकांची काळजीचं घेणं बंद करतात.. त्यांच्यासाठी तरी असं म्हणू नका ” डॉक्टरांनी आजींना समजावलं.

“ते बाकी खरंय, पण करायचं काय एवढ्या आयुष्याचं.” आजी निश्वास टाकत म्हणाल्या.

संध्याकाळी शेजारच्या बेड वर एक नविन पेशंट आला.. पोरगेलासा.. अगदी 22 23 वर्षाचा असेल.. आजींचे लक्ष जाताच त्यांच्याकडे बघुन हसला.. आजी नुसत्या बघत राहिल्या..

सकाळी काहीतरी गुणगुणत होता तो.. आजींचे लक्ष गेले तशी तो थांबला.. “किती दिवस झाले? नविन दिसत्ये आजे ” त्याने विचारले.

“हो, कालच ऐडमिट झाल्ये..” आजी उत्तरल्या..”

“मी परमनंट मेंबर बरं का, काही लागलं तर आपल्याला सांगायचं, इकडे सगळे ओळखतात आपल्याला.” तो हसत म्हणाला.. त्याची धीटाई बघुन आजींना पण हसू आले..

दुपारी आजींना एकदम आठवले तसे त्यानी विचारले, “सकाळी काय गुणगुणत होतास रे?” त्यांनी त्या मुलाला विचारलं.

मुलगा हसला, म्हणाला “त्याला रॅप म्हणतात आजे.. एक नंबर बनवतो आपण.. कोणत्या पण सब्जेक्ट वर.. तू तुझा आवडता सब्जेक्ट सांग.. मी तुला रॅप बनवून दाखवतो.”

आजी हसल्या. म्हणल्या, “माझा आवडता सब्जेक्ट म्हणजे माझा कृष्ण, त्याच्यावर करशील तुझा रॅप?”

“थोडा difficult सब्जेक्ट आहे पण जमेल.. थांब जरा” असं म्हणत त्याने थोड्या वेळात खरचं कृष्णावर रॅप म्हणून दाखवला.. थोड्या वेगळ्या ठेक्याचा गाण्याचा प्रकार ऐकुन आजींना मजा वाटली..

रोज त्याच्याशी बोलण्यात वेळ जाऊ लागला.. सतत काही ना काही बोलत असायचा.. बुधवार आला तसं आजींचा मुलगा आणी सुन हॉस्पिटल मधेच केक घेउन आले छोटासा.. त्यालाही दिला, तसं तो म्हणाला “एवढी म्हातारी वाटत नाही गं तू आजे..”

“झाले खरी एवढी म्हातारी, काय करु सांग.. आता काय येईल तो दिवस आपला.” आजी थोड्या नाराजीनेच  म्हणाल्या.

त्यांना निरखत तो म्हणाला “आजे, तुला देऊ का एक काम मग?”

हसू आवरत आजींनी विचारलं “कसलं काम रे, झेपणारं दे बाबा ह्या वयात.”

तसं तो म्हणाला, “काळजी करु नको आजे, तुला जमेल मस्त..  फक्त तू मनावर घ्यायला पाहिजे” तो म्हणाला..

“बघ आजे, मी काही दिवस आहे फक्त.. तुझ्यासारखं म्हातारं व्हायचं होतं मला पण तो तुझा कृष्ण तिकडेच बोलावतोय.. माझ्यासारखे किती असतील.. एवढं मोठं आणि छान आयुष्य मिळालंय तुला..

असं जेव्हा तुला वाटेल ना ,की फार आयुष्य आहे, तेव्हा आम्हाला आठव आणी आमच्यासारख्यांच आयुष्य पण तुच जग.. एकदम रापचिक स्टाइल ने.. आपल्या रॅप सारखं…” आजी त्याच्याकडे बघतच राहिल्या.

दूसऱ्या दिवशी आजीना डिस्चार्ज मिळाला.. तेव्हा शेजारचा बेड मोकळा होता.. आजी काय समजायचं ते समजल्या..

घरी आल्यावर आजींमधे खुप बदल झाला.. घरी एका खोलीत असणाऱ्या आजी आता सगळ्यांमधे मिसळत होत्या.. काहीबाही पदार्थ करत होत्या.. त्यांची आवडती पेटी माळ्यावरुन खाली आली होती.. घरातल्या सर्वांना फार फार बरे वाटत होते..

आजी आता भरभरुन जगण्याचा आनंद घेत होत्या.. ज्यांना मिळाला नाही त्यांच्यासाठी.. आणी.. त्याच्यासाठीही…

लेखिका- सुश्री सायली साठे

संग्राहक – मेघःशाम सोनवणे

मो 9325927222

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ “माझ्या आर्मी लाईफची एक झलक” भाग – 2 – लेखिका – सुश्री संध्या बेडेकर ☆ प्रस्तुती – सुश्री कालिंदी नवाथे ☆

??

☆ “माझ्या आर्मी लाईफची एक झलक” भाग – 2 – लेखिका – सुश्री संध्या बेडेकर ☆ प्रस्तुती – सुश्री कालिंदी नवाथे ☆

(हे सर्व खूप सोप्प नक्कीच नव्हतं, पण दुसरा पर्याय ही नव्हता. बरे असो,याचा प्रभावी परिणाम आता दिसतोय. सर्वांना कुठेही सहज adjust होता येत.) इथून पुढे —

आर्मी म्हणजे एक ‘स्टाइल ‘आहे. एक ‘Standard ‘आहे. ‘Status ‘ आहे. बायकांचा ‘ड्रेसिंग सेन्स’ छान असतो. खूप काही नसतानाही ‘Limited Budget ‘ मधे‌ व्यवस्थित राहणे जमते त्यांना.’clean and organised home ‘ ही विशेषता असते त्यांची. ‘Quality of life is v good.’ वेळेचे महत्व, Etiquette, Manners, Junior-Senior Respect, एक Protocol असतो. तो पाळायचाच असतो. अनुशासन कडक असते.

Lunch \ Dinner Party चे एक ‘स्टेटस’ असते.एक ‘पद्धत’ असते. तेथे मराठीपणा बाजूला ठेवूनच वागावे लागते. बायकांना खूप मान असतो. म्हणजे अगदी ज्युनिअर आॅफिसरच्या बायकोच्या वेलकमसाठी सिनीयर मोस्ट आॅफिसर सुद्धा उभा राहतो. आर्मीत कोणत्याही ‘Official ‘ फंक्शनला Seniority व Rank च्या हिशोबाने यायची वेळ दिली जाते.

आर्मी म्हणजे एक असे ‘Organization’ आहे,जेथे तुमचा ‘Personality Development Program ‘ सतत सहज सुरूच असतो. नवीन जागा, नवीन माणसे, त्या त्या शहराचे कल्चर तुम्हाला अनुभवायला मिळते. वेगवेगळे प्रसंग बघून तुमचे व्यक्तिमत्त्व खुलते, बहरते. विचारांची रेंज वाढते.’ Priorities’ बदलतात. बायकांना बऱ्याच activities मधे भाग घ्यावा लागतो. Ladies club, AWWA म्हणजे ‘Army Wives Welfare Association‘ जेथे आम्ही Unit च्या सर्व बायका एकत्र जमतो. काही तरी नवीन शिकतो, शिकवतो.  

म्हणतात ना,

” जिंदगी खट्टी मीठी होनी चाहिए ।”

आर्मीवाल्यांना फक्त खट्टा मीठाच नाही तर, सर्व प्रकारचे अनेक स्वाद सहज चाखायला मिळतात…आजही किती तरी प्रसंग मनावर कोरले गेले आहेत.

ताई म्हणाली, ”सगळयात कठीण posting / वेळ कोणती होती ग ???”

मी म्हटलं,  “अगं!!! अंदमान,नागालँड, सिक्कीम या थोड्या वेगळ्या postings होत्या. अंदमानला शाळा फक्त नावालाच होती.

मी जो कठीण काळ बघितला, तो म्हणजे ‘कारगिल युद्ध ‘. त्यात यांचा सहभाग होता. ते चार महिने हे नक्की कुठे आहेत ?? हेही माहीत नसायचे. सर्व पत्रांची ‘ ‘scrutiny ‘व्हायची. तेव्हा मोबाईल वगैरे वापरायची परवानगी नसतेच. प्रत्येक आठवड्यात एक ऑफिसर पंचवीस किलोमीटर दूर जाऊन आपल्या घरी फोन करून सर्वांची खुशाली कळवत असे.TV वरील रोजच्या बातम्या ऐकून जीव खालीवर व्हायचा. यावेळेस आपली जबाबदारी जास्त आहे, हेही समजत होतच. मुलींकडे लक्ष ठेवणे, त्यांना सांभाळणे हे महत्त्वाचे काम होते. मुलींनी मात्र खूप साथ दिली. विचलित न होता धैर्याने प्रत्येक जण आपले काम करत होता. या परिस्थितीत माझी responsibility फक्त माझे घरच नाही तर, ‘Unit ‘ च्या इतर families ला सांभाळणे ही पण होती. Unit च्या बायकांना मानसिक आधार देणे. त्यांचे छोटे मोठे प्रश्न सोडविणे, मुलांच्या आजारपणात त्यांची मदत करणे, ही पण जबाबदारी होतीच..

या नोकरीने आयुष्यात सर्व रंग दाखविले. चांगले -वाईट अनुभव, उतार चढाव बघितल्याने आता कोणत्याही परिस्थितीत आम्ही ‘मजेतच’ असतो.

आजही युनिफॉर्म घातलेला कोणी दिसला की आनंद होतो. सख्खा नातेवाईक भेटल्या सारखे वाटते.आमचे ‘ते ‘ दिवस पुन्हा एकदा नजरेसमोरून जातात. ऊर्जा वाढते.

‘Challenges’ प्रत्येकच नोकरीत असतात. काम कोणतेही सोपे नसतेच. प्रत्येक जण आपापल्या परीने सेवा /मदत करतोच. तरीही आर्मीत नोकरी करायची आवड / aptitude असावा लागतो. उगीच ओढून ताणून ही नोकरी करता येत नाही.

 ही नोकरी म्हणजे, 

” It’s different.”

‘Uniform ‘ ची एक ‘Grace’ असते– ‘वजन’ असतं. घालणाऱ्याच्या चेहऱ्यावर जबाबदारी पेलायचा ‘आत्मविश्वास ‘असतो. 

” मैं हुं ना ” चे आश्वासन चेहऱ्यावर दिसते.

अनेक वर्षापूर्वीचा तो दिवस मला आजही आठवतोय, जेव्हा आम्ही भेटलो होतो तेव्हा, 

“I asked him, how much do you earn?? 

 He said, roughly hundred salutes a day. And we got married.” 

मला लग्नात मिळालेला सर्वात मूल्यवान दागिना म्हणजे तो ‘green uniform’ व त्यावर लागलेले ते तीन. *stars* होते. त्यांची किंमत आखणारे किंवा ‘purity’ चेक करणारे मशीन कोणत्याही सोनाराजवळ नाही.

वयानुसार केस पांढरे होत गेले व खांद्यावरील *stars * वाढत गेले.जेवढं नशिबात होतं तेवढं मिळालं. पैशापेक्षा अनुभवाने श्रीमंत झालो आम्ही. एकाच जन्मात किती तरी बघायला मिळालं. अगदी रिटायर्ड व्हायच्या थोडे दिवस आधी ‘लेह लडाख ‘ मधे झालेल्या ‘ढग फूटी’ च्या वेळेस मेडीकल कव्हर द्यायला हे गेले होते.

‘फूल नाही पण फूलाची पाकळी ‘ एवढे आपले योगदान देऊन आम्ही ‘समाधानाने’ व ‘अभिमानाने ‘ रिटायर्ड झालो. 

या जन्मात आर्मी ऑफिसरच्या ‘बायकोची’ भूमिका होती. पुढच्या जन्मातही हीच भूमिका करायला मला नक्की आवडेल. 

आज मन किती तरी जागी फिरून आले. खूपदा डोळे भरून आले. 

माझ्या बहिणींच्या चेहऱ्यावरील मिश्रित भाव मी वाचू शकत होते..

 ” Proud To Be A Wife Of Indian Soldier.”

  ‘ जय हिंद ‘ 

— समाप्त —

– क्रमशः भाग पहिला. 

लेखिका : सुश्री संध्या बेडेकर

प्रस्तुती : सुश्री कालिंदी नवाथे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ अमरकंटक… एक दिव्य तीर्थ ! ☆ प्रस्तुती – सौ. विद्या पराडकर ☆

सौ. विद्या पराडकर

? इंद्रधनुष्य ?

☆ अमरकंटक… एक दिव्य तीर्थ ! ☆ प्रस्तुती – सौ. विद्या पराडकर ☆

अमरकंटक… जेथे भगवान शिवाने समुद्र मंथना नंतर “हलाहल” पचविण्यासाठी तप:साधना केली होती! अमरकंटक… नर्मदा मातेचं जन्म स्थान ! अमरकंटक … देवतांच्या सहवासाने पवित्र झालेली भूमी ! अमरकंटक … सिद्धांच्या  साधनेने सिद्ध झालेलं सिद्धक्षेत्र ! अमरकंटक… योग्यांना आकर्षित करणारे ऊर्जात्मक ठिकाण ! अमरकंटक … महर्षी मार्केंडेय, महर्षी कपिल ,महर्षी भृगू, महर्षी व्यास, च्यवन ऋषी, जमदग्नी ऋषी, अगस्ती ऋषी,दुर्वासा ऋषी , वशिष्ठ,कृतू,अत्री,मरिची, गौतम,गर्ग, चरक,शौनक… अशा किती तरी महान ऋषी-मुनींनी,योग्यांनी, सिद्धांनी, साधकांनी  जिथे तप केले… साधना केली… ऋचा- मंत्र रचले…ग्रंथांची निर्मिती केली…मानव जातीच्या कल्याणासाठी वैद्यक शास्त्र,रसायन शास्त्र, वास्तु शास्त्र , ज्योतिष शास्त्र अशा अनेक प्रांतांत वेगवेगळे शोध लावले अशी  गुढ-रहस्यमय  भूमी ! अमरकंटक…जिथे  जगद्गुरू शंकराचार्यांचे वास्तव्य देखील  काही काळ होते! खरंच , अमरकंटक म्हणजे अष्टसिद्धी प्राप्त करून देणारे एक तीर्थक्षेत्रच आहे!

अमरकंटक म्हणजे दुर्लभ औषधीय वनस्पतींचे भांडार आहे! चरक संहितेत वर्णन केलेल्या अनेक औषधी वनस्पती फक्त इथेच सापडतात! शेकडो दुर्लभ झाडं, पौधे, वेली, कंदमुळे, फळं, फूलं यांचा इथे खजिना आहे! जगात कुठेही न सापडणारी गुलबकावली केवळ अमरकंटकमधेच फुलते! सुमारे ६३५ औषधीय वनस्पती इथे सापडतात!

अशा या अमरकंटकमध्ये  विंध्य पर्वत आणि सातपुडा पर्वत जेथे एकत्रित येतात, तो उंच डोंगराळ भाग म्हणजेच मैकल पर्वत! येथेच शिवाने साधना केली.योगाभ्यासाद्वारे आणि येथील अगम्य वनौषधींच्या सहाय्याने हलाहलचा प्रभाव कमी  केला! साहजिकच कैलास नंतर शिवाचे आवडते ठिकाण कोणते,तर ते म्हणजे अमरकंटक! याच ठिकाणी नर्मदा मातेचा जन्म झाला ! अनेक प्राचीन ऋषींची अष्टसिद्धी प्राप्तीची तपोभूमी हिच! किंबहुना   अमरकंटक म्हणजे एक प्रकारे त्यांची प्रयोगशाळाच होती! होय प्रयोगशाळा… कारण अनेक महत्त्वपूर्ण गोष्टींचा शोध इथेच लागला! या अमरकंटक मध्ये! 

जमदग्नी ऋषींनी “संजीवनी” विद्या इथेच मिळवली!अश्र्विनी कुमारांनी च्यवन ऋषींसाठी “चवनप्राश” इथेच तयार केले! “वैज्ञानिक विचारांचे जनक” म्हणून ज्यांचा अभिमानाने उल्लेख केला पाहिजे, अशा कपील मुनींनी परमाणू या संकल्पनेवर रचना केल्या, त्यादेखील इथेच! महामृत्युंजय मंत्राचे प्रणेते महर्षी मार्केंडेय यांनी ” मार्केंडेय पुराणा”ची निर्मिती इथेच केली! वैद्यक शास्त्राची देवता आणि आयुर्वेदाचा प्रणेता ” धन्वंतरी ” इथेच अनेक रोगांच्या औषधांची उकल करायचा! इथे कोणी ज्योतिष शास्त्राचा अभ्यास केला. कोणी वास्तुशास्त्रातील शोध लावले.कोणी मंत्र रचले.कोणी  ग्रंथ निर्माण केले.कोणी संहिता लिहील्या .तर कोणी अष्टांग योगाच्या आधारे अष्टसिद्धी मिळविल्या!

कारण हे क्षेत्रच एकप्रकारे भारलेले आहे! अमरकंटकच्या वातावरणांतच  ‘जादू’ आहे! सहसा कुणाच्या लक्षात येत नाही, पण इथे तुम्ही नर्मदा स्नान करा  आणि शांत ध्यानाला बसा. तुमच्या दोन्ही नाड्या समान चालतात! सूर्य नाडी आणि चंद्र नाडी…! कपालभाती करण्याची गरजच नाही. म्हणूनच अनेक सिद्धांचा वास इथे असतो! म्हणूनच मत्सपुराणात अमरकंटकला  कुरुक्षेत्रापेक्षाही पवित्र तीर्थाचा दर्जा दिलेला आहे! पद्मपुराणामध्ये तर नारदमुनी युधिष्ठिराला सांगतात की, अमरकंटकच्या चारही दिशांना कोटी रुद्रांचे प्रतिष्ठान आहे! 

अशा पवित्र  अमरकंटकाचे नाव कधिकाळी ‘अमरकंठ’ असे होते. जे शिवा वरून पडलं होते.  पुढे अमरकंठचे अमरकंटक झाले! स्कंद पुराणात अमरकंटक या नावाची सुंदर फोड केली आहे. पुराणकार म्हणतात, अमर म्हणजे देवता आणि कट म्हणजे शरीर !  जो पर्वत देवतांच्या शरीराने आच्छादीत आहे तो पर्वत म्हणजे ‘अमरकंटक’ पर्वत! 

अशा प्रकारे अमरकंटकचा उल्लेख अनेक पुराणात आहे. रामायणात आहे. महाभारत आहे. अनेक ठिकाणी अमरकंटकचा उल्लेख वेगवेगळ्या नावांने आहे.  शिव पुराणात  

” ओंकारमरकंटके” असा याचा उल्लेख आहे,तर रामायणाने त्याला  “ऋक्षवान पर्वत” म्हटलेलं आहे. त्यावरून नर्मदेला  देखील ‘ऋक्षपादप्रसूता’ म्हटलं गेलं आहे!

महाभारतात  एका ठिकाणी याचा “वंशगुल्म तीर्थ” म्हणून उल्लेख आहे!तर महाभारताच्या वनपर्वात  ” आनर्त देश” असाही उल्लेख आहे!वाणभट्ट याला “चंद्र पर्वत” म्हणून नावाजतो. कोणीतरी याला “महारूद्र” देखील संबोधले आहे!कुठे “अनूपदेश” म्हणून…. तर कुठे “सर्वोदय तीर्थ” म्हणून…. काही ठिकाणी  “स्कंद” “मैकल”असाही उल्लेख आहे! कालीदास तर आपल्या साहित्यात या ठिकाणाचे “आम्रकूट”  नावाने सुंदर वर्णन करतो!  

अमरकंटकला कोणत्याही नावाने ओळखले तरीही यांचे निसर्ग सौंदर्य मात्र अप्रतिम आहे! उंच पर्वत …खोल दऱ्या … घनदाट जंगल…त्यातून वाहणारे झरे…नद्या…लहान- मोठे प्रपात…आकाशाला भिडणारे वृक्ष…वृक्षांवर बागडणारे हजारो पक्षी…त्यांचा किलबिलाट…फळा- फुलांची श्रीमंती…आणि त्याच बरोबर गर्द झाडीत ध्यानस्थ बसलेली प्राचिन मंदिरे! स्वर्ग- स्वर्ग म्हणतात तो हाच!

अशा या  निसर्गरम्य अमरकंटकचा उल्लेख  ज्याअर्थी रामायण – महाभारतात आहे, त्याअर्थी रामायणातील –  महाभारतातील नायक इथे नक्कीच आले असतील! पांडवांनी “नर्मदा पुराण” तर साक्षात मार्केंडेय ऋषींच्या मुखातून ऐकलेले आहे!  

अमरकंटक पासून  वीस एक किलो मीटर अंतरावर लखबरीया नावाचं गाव आहे. इथे लाखो मानव निर्मित गुंफा आहेत. म्हणून या गावाचं नाव “लखबरीया” पडलं आहे! आणि या गुंफा पांडवांनी वनवास काळात निर्माण केल्या होत्या , अशी  इथे  जनकथा आहे!लाखो गुंफा  इथे आहेत म्हणण्यापेक्षा त्या  होत्या असं म्हणणं जास्त  इष्ट ठरेल! कारण काळाच्या ओघात काही गुंफा बुजल्या गेल्या , काही बंद केल्या गेल्या!आज फक्त तेरा गुंफाच पर्यटकांसाठी उपलब्ध आहेत.वसंत पंचमीच्या दिवशी येथे छान पैकी जत्रा भरते!

रामायण काळातील अनेक जनजमाती आजही येथे सापडतात! इंद्रजिताने मूर्छित केलेल्या लक्ष्मणावर   ऐन युद्धकाळात  योग्य उपचार करणारा सुषेण वैद्य तुम्हाला आठवत असेल. हा सुषेण अमरकंटकच्या परिसरात वाढलेला. निषाद जमाती पैकी एक ! तेव्हाची “निषाद” जमात म्हणजे आजची ” बैगा ” जमात होय!  जी जमात फक्त अमरकंटक क्षेत्रातच जिवीत आहे! अमरकंटकला रामायणामध्ये ऋक्षवान पर्वत म्हटलेलं आहे. याठिकाणचा प्रमुख ऋक्षराज म्हणजेच रामाचा एक सेनापती ” जांबुवंत”!  पर्वत गाथा नावाच्या एका ग्रंथांनुसार तर रावणाने पुष्पक विमानातून अमरकंटक येथे येऊन तपश्र्चर्या केलेली आहे!

अमरकंटक हे शिवाचं प्रिय स्थान असले तरी, इथं शैव संप्रदायासह वैष्णव,जैन, शाक्त,गाणपत्य असे अनेक संप्रदाय आनंदाने नांदले आहेत! त्यामुळेच शेकडो- हजारो वर्षे हे स्थान भारतीयांचे आध्यात्मिक केंद्र राहिले आहे! इथे धार्मिक चर्चा होत असत!  यज्ञ व्हायचे!सत्संगाचे मेळे भरायचे! भारतीय समाजात आणि संस्कृतीमध्ये अमरकंटकचे महत्त्व अधोरेखित आहे!

संग्राहिका –  सौ. विद्या पराडकर

वारजे  पुणे..

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares