हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 201 ☆ कविता – बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने… — ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता  – बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने …

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 201 ☆  

? कविता – बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने …  – ?

थाम कर , बच्चे सा मुझको

बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने

ओढ़ ली सारी जिम्मेदारी

बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने

 

पिरो कर माला में रिश्ते

सहकर खुद अकेले सब

बना कर बच्चे नव रत्नी

बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने

 

उठा कर बोझ सब हँस कर

रोशन कर के घर भर को

हर मुश्किल को कर आसां

बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने

 

भला लाऊं मैं क्या तोहफा

तुम खुद मेरा तोहफा हो

आई तुम जबसे जीवन में

बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #134 – कविता – “कविता– किसे  सुनाऊँ” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता कविता– किसे  सुनाऊँ)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 134 ☆

☆ कविता ☆ “कविता– किसे  सुनाऊँ” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’   

मैं कविता यहाँ सुनाऊँ ।

तो किस-किसको सुनाऊँ ?

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

 

एक से एक कवि हैं। 

जहां न पहुंचे रवि हैं।

ब्रह्मा बन कर लेटे हैं।

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

 

शब्दों के बाजीगर हैं।

हंसने -हंसाने का वर है।

बिन दुल्हन, दूल्हे से ऐंठे  हैं।

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

 

बातों के तीर चलाते हैं। 

हंसते, हंसाते, रुलाते हैं।

जागे हैं पर, मद में लेटे हैं।

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

 

सुनाएंगे बढ़-चढ़कर।

नहीं रहेंगे ये डर कर।

अपनी हद से ही ऐंठे हैं।

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

 

अपनी ही तो सुनाएंगे।

फिर चुपके से ही जाएंगे।

मन में मन के श्रोता लेटे हैं।

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

22-03-23 

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 152 ☆ यह अपना  नूतन वर्ष है… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 152 ☆

यह अपना  नूतन वर्ष है… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

(भारतीय नववर्ष विक्रम संवत 2080 के अवसर पर भारतीय नूतन वर्ष पर कोटिशः मंगलकामनाएं)

शस्य श्यामला धरती पर

हरषे नर्तन की शहनाई

तब अपना नूतन वर्ष है

मंद-सुगंध चले पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है।।

 

यह सर्द कुहासा छँटने दो

रातों का पहरा हटने दो

धरती का रूप निखरने दो

फागों के गीत थिरकने दो

कुछ करो प्रतीक्षा और अभी

प्रकृति को दुल्हन बनने दो

खुशियों में गाए अमराई

तब अपना नूतन वर्ष है।

 

मंद-सुगंध चले पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है।।

 

प्रतिप्रदा चैत की आने दो

धरती को सुधा लुटाने दो

चहुँदिश को ही महकाने दो

तन-मन में फाग सुनाने दो

यह कीर्ति सदा है आर्यों की

यह आर्यावर्त की प्रीत रही

जब धरा दुल्हन-सी मुस्काई

तब अपना नूतन वर्ष है।

 

मंद-सुगन्ध बहे पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार – जयपुर से ☆ प्रस्तुति – डॉ निशा अग्रवाल ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार – जयपुर  से  – डॉ निशा अग्रवाल🌹

🌹 नेपाल भारत साहित्य महोत्सव संपन्न 🌹

देश का प्रतिनिधित्व कर लौटी डॉ निशा अग्रवाल – भारत नेपाल मैत्री और साहित्यिक साहचर्य बढ़ाने पर चर्चा 

भारत नेपाल मैत्री को मजबूत करने पर दोनों देशों के बीच साहित्यिक साहचर्य को बढ़ाने के लिए नेपाल के विराटनगर में दोनों देशों के करीब 300 चुनिंदा साहित्यकार पहुंचे थे। इसमें जयपुर की डॉ निशा अग्रवाल भी शामिल हुई थी। डॉ निशा ने भारत के तरफ से इसमें हिस्सा लेते हुए अपनी रचना के साथ ही विभिन्न सत्रों में अपनी सहभागिता निभाई। इस अंतर्राष्ट्रीय आयोजन के दौरान नेपाल भारत साहित्य महोत्सव आयोजन समिति की ओर से उन्हें प्रमाण पत्र, प्रतीक चिन्ह और अंग वस्त्र देकर सम्मानित भी किया गया। बता दें कि प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ विजय पंडित की अगुआई में हर साल नेपाल में यह आयोजन किया जाता है और दोनों देशों के प्रमुख साहित्यकार शामिल होते हैं। इस बार यह कार्यक्रम 17 से 19 मार्च तक विराट नगर में हुआ। इसमें शामिल होने के लिए उन्हें नेपाल भारत साहित्य महोत्सव में आमंत्रित किया गया था ।

इस कार्यक्रम के दौरान भारत नेपाल के प्रसिद्ध शिक्षाविद, कवि, लेखक, समीक्षक, आलोचक के अलावा नेपाल के जनप्रतिनिधि और अन्य गणमान्य लोग भी शामिल होंगे। उन्होंने बताया कि कार्यक्रम का उद्देश्य वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना के साथ नेपाल भारत के ऐतिहासिक सम्बन्ध को मजबूत बनाना है और एक साहित्य सेतु का निर्माण करना है। साथ ही महाभारत कालीन ऐतिहासिक शहर विराटनगर को दुनिया के आगे सार्वजनिक करना, रामायण और बुद्ध सर्किट को महाभारत सर्किट से जोड़ने नवोदित व गुमनाम कलमकारों को वरिष्ठ साहित्यकारों के सानिध्य में एक अंतरराष्ट्रीय मंच प्रदान करने की कोशिश हुई। वे बताते हैं कि भारत और नेपाल का संबंध ना सिर्फ मां सीता और बौद्ध कालीन अवशेषों से है बल्कि द्वापर युग में भी यह अत्यंत प्रगाढ़ था। विराटनगर जैसे महाभारत कालीन नगर इसकी निशानी है। 

साभार –  डॉ निशा अग्रवाल

जयपुर ,राजस्थान  

 ☆ (ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)  ☆ एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री  ☆ 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ “सृजनोत्सव”… ☆ सौ राधिका भांडारकर ☆

सौ राधिका भांडारकर

 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ “सृजनोत्सव”… ☆ सौ राधिका भांडारकर 

आम्र वृक्षावरी

कोकीळ कूजन

सांगे पंचमात

वसंतागमन..

 

फुटता पालवी

नवा पर्ण भार

वृक्षांनी ल्यायला

जणू नटे नार…

 

जरी  वात उष्ण

गंध मोगर्‍याचा

शीतलता देई

सुवास चाफ्याचा…

 

फुलला बहावा

सडा पीत रंगी

पलाश नटला

कसा अंगअंगी.,.

 

गुलमोहर हा

रक्तीमा चढला

ऐट पहा त्याची

वसंती रंगला…

 

कोकणचा राजा

केशरी रसाळ

हापुस पायरी

ऋतुत मधाळ

 

 

चैत्रगौर पूजा

पन्हे आंबाडाळ

पडदे वाळ्याचे

साराच सुकाळ..

 

गुंजारव करी

मधुप परागी

कृष्णप्रेमी राधा

रूसे अनुरागी

 

सृजन सृष्टीचे

मानवा सांगते

प्रीतीचा संवाद

वसंताशी बांधते..

 

© सौ. राधिका भांडारकर

ई ८०५ रोहन तरंग, वाकड पुणे ४११०५७

मो. ९४२१५२३६६९

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #153 ☆ संत विसोबा खेचर… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 153 ☆ संत विसोबा खेचर… ☆ श्री सुजित कदम

संत विसोबा खेचर

करीतसे सावकारी

कापडाचे व्यापारी ते

वीरशैव निरंकारी…! १

 

वारकरी संप्रदाय

संत सज्जनांचा सेतू

विठू भेटवावा गळा

साधा सोपा शुद्ध हेतू…! २

 

ज्ञाना निवृत्ती सोपान

मुक्ताईचा द्रेष करी

मांडे भाजताना पाही

ज्ञानदेवा गुरू करी…! ३

 

सन्मानीले मुक्ताईस

विसरोनी अहंकार.

भक्ती योग चैतन्याचा

लिंगायत अंगीकार…! ४

 

योगविद्या अवगत 

नामदेवा उपदेश

अवकाशी फिरे मन

नाव खेचर विशेष..! ५

 

उचलोनी ठेव पाय

जिथे नाही पिड तिथे

गुरू विसोबा तात्विक

नामदेवा लावी पिसे…! ६

 

देव कृपा सहवास

तिथे भक्ता हवे काय

शंकराच्या पिंडीवर

गुरू विसोबांचे पाय..! ७

 

निराकार नी निर्गुण

पांडुरंग भेटविला

परब्रम्ह साक्षात्कार

विसोबांनी घडविला…! ८

 

लिंगायत साहित्यात

तत्व चिंतन पेरून

केले जन प्रबोधन

परखड वाणीतून …! ९

 

शिव मंदिरी बार्शीत

संत विसोबा समाधी

योग आणि परमार्थ

दूर करी चिंता व्याधी…! १०

 

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ गुढीपाडव्याचे महात्म्य… भाग – २ ☆ सौ. पुष्पा नंदकुमार प्रभुदेसाई ☆

सौ. पुष्पा नंदकुमार प्रभुदेसाई

?  विविधा ?

☆ गुढीपाडव्याचे महात्म्य… भाग – २ ☆ सौ. पुष्पा नंदकुमार प्रभुदेसाई ☆

या दिवशी पूजा करण्याचीही एक विशिष्ट पद्धत आहे. आजच्या पिढीला याची उपयुक्तता सांगणे गरजेचे आहे. आपल्या प्रत्येक रुढी ,परंपरेला शास्त्रीय आधार आहे.या दिवशी अभ्यंगस्नान करून, ब्रह्मदेवाची दवणा ( थंड असतो म्हणून ) वाहून नंतर महा शांती केली जाते. ” नमस्ते बहू रुपाय विष्णवे नमः।” हा मंत्र म्हणून विष्णुची पूजा करतात. इतिहास, पुराणे यांचे ज्ञान देतात. गुढीपाडव्या दिवशी जो वार असेल, त्याच्या देवतेचीही पूजा केली जाते. संवत्सर पूजा केल्याने, आयुष्य वृद्धी होते. शांती लाभते.आरोग्य लाभते. समृद्धी येते.अशी समजूत आहे. प्रत्यक्ष गुढी उभी करतांना, एका उंच वेळूच्या टोकाला ,भरजरी  खण किंवा साडी ,साखरेच्या गाठी, फुलांचा हार, आंब्याची आणि कडुलिंबाची  डहाळी, आणि या सर्वांवर तांब्याचा किंवा चांदीचा कलश  सजवून, गुढी दाराशी किंवा खिडकीशी उभी केली जाते.याला ब्रह्मध्वज असे ही म्हटले जाते. विजयाचे, मांगल्याचे आणि उत्साहाचे प्रतीक म्हणून ही गुढी असते. समोर रांगोळी काढून गुढीची पूजा केली जाते. कडुलिंब आणि आंब्याच्या झाडाच्या पंचांगांचे आयुर्वेद शास्त्रातील महत्त्व ओळखून हा सन्मान त्यांना दिला आहे. ( ते देववृक्ष आहेत. )कलश रुपी सूत्राच्या सहाय्याने वातावरणातील सात्विक लहरी घरात प्रवेश करतात. ( अँटेनाच्या कार्या प्रमाणे. )या दिवशी नववर्षाच्या पंचांगाची पूजा करून, वर्षफल श्रवण केले जाते. जेवणात पक्वान्नं करून, प्रसाद म्हणून ,कडूलिंबाच्या चटणीचा प्रसाद ग्रहण केला जातो. कटू संबंध दूर करून साखरेप्रमाणे एकमेकातले संबंध वाढावेत ,अशी एकमेकांना सदिच्छा देतात. शेतकरी जमीन नांगरणीस सुरुवात करतात. पारंपारिक वेषभुशा करुन, मिरवणूक काढून, आनंद लुटतात. कोणी नवीन खरेदी करतात. किंवा नवीन कामाला सुरवात करतात.

आपल्या प्रत्येक  सणाला शास्त्रीय आधार आहे. तो नवीन पिढीने अभ्यासायला हवा. जाणून घ्यायला हवा. या शुभ दिनानिमित्त येणारे नवीन शुभ कृती संवत्सर, शालिवाहन शके १९४५ हे सर्वांना सुखाचे, आनंदाचे आणि आरोग्यदायी जावो.

– समाप्त – 

©  सौ. पुष्पा नंदकुमार प्रभुदेसाई

बुधगावकर मळा रस्ता, मिरज.

मो. ९४०३५७०९८७

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ शंभरावा दगड… अज्ञात ☆ प्रस्तुती : सुश्री मृदुला अभंग ☆

? जीवनरंग ❤️

☆ शंभरावा दगड… अज्ञात ☆ प्रस्तुती : सुश्री मृदुला अभंग ☆

कथा

एक युवक साधूकडे गेला आणि म्हणाला, मी खूप प्रयत्न करतोय पण मला यश हुलकावणी देते, काय चूक होत आहे, मला कळू शकेल का?

साधू म्हणाले एक काम कर, बाजूला नदी आहे त्या नदीतून समान आकाराचे शंभर गोटे घेऊन ये, मग मी पुढे काय करायचं ते सांगतो. आज्ञेप्रमाणे युवक नदीकाठी जाऊन साधारण समान आकाराचे शंभर गोटे घेवून साधूकडे घेऊन आला. साधूनी पूढ़े सांगितले, हे पहा,  आपल्या आश्रमासमोर जे पटांगण आहे तिथे एक खांब रोवलेला आहे, त्या खांबापासून शंभर फुटावर एक चबुतरा आहे, तुला तिथे उभे राहायचे आहे आणि एक एक गोटा त्या खांबाला फेकून मारायचा आहे. तुझा जो गोटा खांबाला लागला, तिथे थांब आणि माझ्याकडे परत ये. तूझा फेकलेला गोटा खांबाला लागला तर जीवनात यशस्वी होशील आणि जर तुझा कोणताच गोटा लागला नाही तर तू आयुष्यात कधीच यशस्वी होणार नाहीस.

ठरल्याप्रमाणे युवक सर्व गोटे घेऊन खांबापासून शंभर फुटावर असलेल्या चबुतऱ्याजवळ उभा राहिला आणि एक एक गोटा त्या खांबाला मारत राहिला. पहिले पंचवीस तीस दगड त्या खांबापर्यंत पोहोचलेच नाहीत. या टप्यावर त्याने थोडीशी विश्रांती घेतली आणि पुन्हा बळ एकवटून एक एक गोटा फेकण्यास सुरुवात केली. आता त्याने मारलेले गोटे खांबाच्या आसपास पोहोचू लागले पण खांबाला मात्र एकही गोटा लागला नाही.

अर्थात तो थोडासा निराश झाला, पाहता पाहता त्याच्याकडे केवळ पाचच गोटे उरले जे त्याला अगदी मन लावून ते फेकणे आवश्यक होते. संपूर्ण एकाग्र चित्त  करून शेवटचे पाच गोटे पुन्हा जोर लावून फेकण्यास त्याने सुरुवात केली आणि काय आश्चर्य शंभरावा गोटा खांबाला अचूक लागला.

अत्यंत आनंदाने ओरडत, युवक पळत आश्रमात येऊन  साधू ना घडलेला वृत्तांत सांगू लागला. साधू म्हणाले, तुला यातून काय बोध घ्यायचा आहे ते मी आता समजावून सांगतो.

प्रथम माझ्याकडे भरपूर गोटे आहेत, आणि काम खूपच सोपे आहे, म्हणून मी ते सहज करू शकतो या विचाराने  पहिले काही गोटे तू बेफिकिरीने फेकलेस, म्हणून लागले नाहीत.

इथे तुझा दृष्टिकोन उथळ होता.

मात्र जेव्हा पहिल्या तीस पैकी एकही गोटा खांबाला लागला नाही, तेव्हा तुझ्या मनात कुठेतरी भिती निर्माण होऊ लागली, आणि तू किंचित चिंताग्रस्त झालास.

त्यानंतर तू एक छोटीशी विश्रांती घेतलीस, नियोजन केले, योजना आखलीस आणि पुन्हा नव्या दमाने उरलेले दगड फेकू लागलास. या काळात बेफिकिरी जावून हळू हळू तू एकाग्र होऊ लागलास, म्हणून तुझे दगड खांबाच्या आसपास पोहोचू लागले, यातून तुला दगड फेकण्याची विशिष्ठ लय सापडली.

लय सापडली खरी, पण अजुन तुझे चित्त म्हणावे तितके एकाग्र झाले नाही.

आता जेव्हा शेवटचे पाच गोटे उरले, तेव्हा तू गंभीर झालास. जर आता माझा कोणताच गोटा लागला नाही तर, मी आयुष्यात पूर्णतः अपयशी होणार ही भिती तुला सतावू लागली. इथे तू तुझ्या इष्ट दैवताचे नाव घेवून, चित्त एकाग्र करून, लय साधून गोटे फेकू लागलास, आणि तुझा शंभरावा दगड खांबाला अचूक लागला.

मला अंतर्ज्ञानाने माहित झाले होते की तुझा शेवटचा गोटा खांबाला लागणार आहे. पण मी जर तुला ते आधीच सांगितले असते तर, तू पूर्णपणे बेफिकीर राहिला असतास, त्याचा शेवट असा झाला असता की तुझा कोणताच गोटा खांबाला लागला नसता. याचा परिणाम म्हणजे, माझ्यावरचा तुझा विश्वास उडाला असता, आणि मी भोंदू आहे असा तू निष्कर्ष काढला असतास.

बोध

लक्षात ठेव, उथळ वृत्तीने केलेल्या कामात कधीच यश मिळत नाही. नोकरी, व्यवसायात सुद्धा आपले सातत्य, एकाग्रता, व चित्त केंद्रित असेल तरच यश मिळते. आता तूला लक्ष कसे साध्य करायचे याचे आकलन झाले आहे असे मी मानतो.

संग्राहिका – सुश्री मृदुला अभंग

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ “अथर्वशीर्ष… लंडनमधील मंदिरात…” – लेखिका : सौ.संजीवनी निमोणकर ☆ श्री मोहन निमोणकर  ☆

श्री मोहन निमोणकर 

? मनमंजुषेतून ?

☆ “अथर्वशीर्ष… लंडनमधील मंदिरात…” – लेखिका : सौ.संजीवनी निमोणकर ☆ श्री मोहन निमोणकर ☆

मुलगा-सून व नातू सध्या इंग्लंडमध्ये वास्तव्यास असल्याने त्यांच्याकडे जाण्याचा योग आत्तापर्यंत तीन वेळा आलाय. लंडनच्या दक्षिणेस केंट या काऊंटीत असलेल्या ‘ग्रेव्हज्एंड’ या शहरात ते रहातात. आम्ही जेव्हा त्यांच्याकडे जायचो, तेव्हा वेळात वेळ काढून तिथे जवळपास असणाऱ्या भारतीय मंदिरात आम्ही जात असू. त्यांच्या घराजवळच एक मोठे गुरुव्दारा आहे. एकदा तेथेच आम्हाला एका हिंदू मंदिराबद्दल समजले व आम्ही तेथे जाण्याचे ठरविले.

एका संकष्टी चतुर्थीच्या दिवशी आम्ही त्या मंदिरात गेलो होतो. मंदिरात पाऊल ठेवताच खूप प्रसन्न वाटले. राम-सीता, शंकर-पार्वती, गणपती, हनुमान अशा आपल्या देवांच्या अतिशय  सुंदर  संगमरवरी मूर्ती पाहून मन खूपच प्रसन्न झाले. त्या मंदिराच्या जागेच्या मालकीणबाई पंजाबी आहेत व तेथील पुजारी श्री.दुबे हेही मध्यप्रदेशातून आलेले आहेत. त्या दोघांनी आम्हाला मराठी भजनं म्हणण्याचा खूप आग्रह केला. आम्ही त्यांना म्हटले, आज संकष्टी चतुर्थी आहे तर आम्ही गणपतीची आरती म्हणतो. पुजारी श्री.दुबेंना मराठी आरती ‘सुखकर्ता’ माहित होती. ते तर खूप खूष झाले व त्यांनी म्हणायला सांगितली. त्या दोघांनीही आमच्या हातात टाळ दिले व पंजाबी आजी स्वत: मृदुंग वाजवून ठेका देऊ लागल्या. मग आम्ही सुखकर्ता व शेंदूर लाल चढायो ही गुजराथी आरती म्हटली. दोघेही एकदम खूष झाले. दुबेंनी तर त्यांच्या मोबाईलमध्ये व्हिडिओही घेतला व आता आम्ही येथील सर्व मराठी माणसांनाही तो पाठवू असे सांगितले. या सर्वाने आम्ही खूपच आश्चर्यचकित व प्रभावितही झालो.

आरत्यांनंतर आजींनी माईक आमची सून सौ.निवेदिताकडे दिला व पुन: मराठी भजन म्हणण्याचा आग्रह केला ! तिने गणपती अथर्वशीर्ष म्हणताच दोघेही खूप खूष… व आजी मृदुंग व दुबेगुरुजी व्हिडिओ काढण्यात दंग! मुलगा व सून दोघांनीही मनापासून गणपती अथर्वशीर्ष म्हटले. मंदिरात आलेल्या हिंदु-पंजाबी भक्तांमध्ये एक इंग्लिश महिलाही होती. ती नियमित दर सोमवारी तिथे येते असे नंतर समजले. त्या इंग्लिश महिलेने अगदी व्यवस्थित मांडी घालून, शांत चित्ताने आणि एकाग्रतेने, मनापासून आपल्या बाप्पाची आरती आणि अथर्वशीर्ष ऐकल्याचा आम्हाला सुखद धक्का तर बसलाच, आणि त्याहीपेक्षा, आपल्या प्रार्थनेमुळे तिथे त्यावेळी निर्माण झालेल्या भक्तिमय प्रसन्न वातावरणात, आपली भाषाही समजत नसलेली ती इंग्लिश महिला इतकी गुंगून गेलेली पाहून, आपल्या संस्कृतीचा आम्हाला खूप अभिमान व गर्वही वाटला

परदेशातही आपली संस्कृती जोपासली जाते आहे, आणि त्यात आपला मुलगा व सून यांचाही वाटा आहे, हे पाहून आम्हाला खरंच खूपच छान वाटले. एक अनामिक अभिमान वाटला. इंग्लंडमधल्या हिंदू देवळात मराठी आरत्या म्हटल्या गेलेल्या पाहून पंजाबी आजी व दुबे गुरुजी यांच्या चेहे-यावरही आम्हाला खूपच समाधान व आनंद दिसून आला. आम्ही दोघेही त्या वातावरणाने अतिशय भारावून गेलो होतो. नकळत मनाने पुण्याच्या घरी पोहोचलो होतो आणि आपण इंग्लंडमध्ये आहोत हेही क्षणभर विसरून गेलो होतो. तिथून परतलो ते पुढच्या  भेटीतही पुन: इथे यायचेच असा  निश्चय करूनच.

लेखिका : सौ.संजीवनी निमोणकर

प्रस्तुती : श्री मोहन निमोणकर

संपर्क – सिंहगडरोड, पुणे-५१ मो.  ८४४६३९५७१३.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ छंदोबद्ध पुरण – कवी अभिनव फडके ☆ प्रस्तुती – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? इंद्रधनुष्य ? 

☆ छंदोबद्ध पुरण – कवी अभिनव फडके ☆ प्रस्तुती – श्री सुहास रघुनाथ पंडित 

(एखाद्याचा “पुरण” या विषयावर किती अभ्यास असावा, त्याला “पुरण” किती आवडत असावं, त्याचा उत्तम नमुना) — 

श्री. अभिनव फडके यांच्या लेखणीतून…

इंद्रवज्रा:

चाहूल येता मनि श्रावणाची

होळी तथा आणखि वा सणाची

पोळीस लाटा पुरणा भरोनी

वाढा समस्ता अति आग्रहानी ||

 

भुजंगप्रयात:

सवे घेउनी डाळ गूळा समाने

शिजो घालिती दोनही त्या क्रमाने

धरी जातिकोशा वरी घासुनीते

सुगंधा करावे झणी आसमंते ||  

(जातिकोश – जायफळ)

 

वसंततिलका:

घोटा असे पुरण ते अति आदराने

घ्यावे पिळूनि अवघे मऊ कापडाने

पिळता फुटे गठुळ ते मऊसूत होते

पोळीमधे पसरते सगळीकडे ते ||

 

मालिनी:

अतिव मधुर ऐसे पुरण घ्यावे कराते

हळू हळू वळू गोळे पारिला सारणाते

कणिक मळूनी घ्यावी सैलशी गोजिरी ती

कडक नच करावी राहुद्या तैलवंती ।।

 

मंदाक्रांता:

घ्यावी पारी करतळ स्थळी अल्प लावोन पीठी

ठेवा गोळी अतिव कुतुके सारणाची मधे ती

बांधा चंबू दुमडुनि करे सारणा कैद ठेवा

पाटा ठायी पसरूनि पिठा लाटण्या सिद्ध ठेवा ||

 

पृथ्वी:

करे धरुन चेंडुला अधिक दाब द्यावा बळे

पटा धरुन लाटण्या सुकर होतसे आगळे

समान फिरवा रुळा पसरि चर्पटी सुस्थळे

असे न करता पहा पुरण बाहरी ओघळे ||

 

शार्दूल विक्रिडित:

हाताने उचला झणि प्रतल ते गुंडाळुनी लाटण्या

उत्कालू हलके तसे उलटता खर्पूस ही भाजण्या

वाफा येत जशा उमाळत सवे सूवासही दर्वळे

नाका गंध मिळे सवेच उदरी क्षूधा त्वरे उत्फळे ||

 

कवी – श्री अभिनव फडके

संग्राहक – सुहास रघुनाथ पंडित 

सांगली (महाराष्ट्र)

मो – 9421225491

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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