हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – गाथा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – गाथा ☆

वास्तविकता,

काल्पनिकता,

एक सौ अस्सी अंश

दर्शाती भूमिकाएँ,

तीन सौ साठ अंश पर

परिभ्रमण करती

जीवनचक्र की

असंख्य तूलिकाएँ,

आदि की भोर,

अंत की सांझ,

साझा होकर

अनंत हो रही हैं,

देखो मनुज,

दंतकथाएँ, अब

सत्यकथाओं में

परिवर्तित हो रही हैं..!

 

# सुरक्षित रहना है, घर में रहना है।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

रात्रि 11.49 बजे,  28.4.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]




Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 35 – Love  Lost ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem Love  Lost.  This poem  is from her book “The Frozen Evenings”.)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 35

☆ Love  Lost ☆

(Dedicated to all those who suffer from ALZEIHMERS)

 

Oh Monu!

I heard someone calling an elderly man

By your name

And I was so annoyed!

 

Monu is ‘your’ name

Given to you by me so lovingly

And it shall remain so!

 

A gentleman came to me yesterday

And addressing me as “Sweetheart!”

Said,

“You are forgetting.

Monu has grown old!”

 

How silly was he!

How can I forget my only child?

 

This gentleman-

He troubles me a lot, Monu!

He makes me wear sweaters

When I feel warm

And want to wear skirts!

He says that I have never worn skirts!

So stupid! Isn’t he?

 

Oh, Monu!

Where are you?

Please, please come back

Into my arms

I want to kiss you, cuddle you!

 

Look that gentleman is again shouting

And wants me to prepare tea!

Can you imagine? Tea!

Have I ever made tea?

You explain him please

And let me sleep

For now!

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 45 ☆ व्यंग्य – अप्रत्यक्ष दानी शराबी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  एक  समसामयिक सार्थक व्यंग्य  “अप्रत्यक्ष दानी शराबी।  श्री विवेक जी  का यह व्यंग्य सत्य के धरातल पर बिलकुल खरा उतरता है। श्री विवेक जी  की लेखनी को इस अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए नमन । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 45 ☆ 

☆ अप्रत्यक्ष दानी शराबी 

देश ही नही, दुनियां घनघोर कोविड संकट से ग्रस्त है.सरकारो के पास धन की कमी आ गई है. पाकिस्तान तो दुनिया से खुले आम मदद मांग रहा है,” दे कोविड के नाम तुझको करोना बख्शे”. अनुमान लगाये जा रहे हैं कि शायद करोना काल के बाद केवल चीन और भारत की इकानामी कुछ बचेंगी, बाकी सारे देशो की अर्थव्यवस्था तो कंगाल हो रही है. महाशक्ति अमेरिका तक की जी डी पी ग्रोथ माईनस में जाती दिख रही है. ऐसे संकट काल में हमारे देश में भी सरकार ने जनता से पी एम केयर फंड में मदद के लिये आव्हान किया है. दानं वीरस्य भूषणम्. अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करते हुये सांसदो, विधायको ने अपने वेतन में कटौती कर ली है. सरकारी कर्मचारियो ने अपना एक दिन का वेतन स्वेच्छा से दान दे दिया है. सरकार ने कर्मचारियों के मंहगाई भत्ते की वृद्धि पर रोक लगाकर उसे अगले वर्ष जुलाई तक फ्रीज कर दिया है. अनेक सामाजिक संस्थाओ,  मंदिरों, गुरुद्वारो के द्वारा लंगर चलाये जा रहे हैं. सहयोग से ही इस अप्रत्याशित विपदा का मुकाबला किया जा सकता है. जन मानस के मन में घरों में बंद रहते करुणा के भाव जाग रहे हैं. अच्छा है.

मीडिया प्रेमी ऐसे दान वीर भी सामने आये जिनने  किलो भर चावल दिया और भीड़ एकत्रित कर अपने चमचों सहित हर एंगिल से  पूरा फोटो सेशन ही करवा डाला. दूसरे ही दिन नगर समाचार के पन्नो पर प्रत्येक अखबार में ये दान वीर सचित्र विराजमान रहे. फेसबुक और व्हाट्सअप पर उनकी विज्ञप्तियां अलग प्रसारित होती रहीं. दरअसल ऐसे लोगों के लिये संकट की इस घड़ी में मदद का यह प्रयास भी उनके कैरियर के लिये निवेश मात्र था. जो भी हो मुझे तो इसी बात की प्रसन्नता है कि किसी बहाने ही सही जरूरतमंदो तक छोटी बड़ी कुछ मदद पहुंची तो. एक सज्जन रात दो बजे एक गरीब बस्ती में गाड़ी लेकर पहुंचे, एनाउंस किया गया कि जरूरत मंदो को प्रति व्यक्ति एक किलो आटे का पैकेट दिया जावेगा, जिन्हें चाहिये आकर ले जावें. अब स्वाभाविक था रात दो बजे अधनींद में वही व्यंक्ति एक किलो आटा लेने जावेगा, जिसे सचमुच आवश्यकता होगी, कुछ लोग जाकर आटे के पैकेट ले आये. सुबह जब उन्होने उपयोग के लिये आटा खोला तो हर पैकेट में १५ हजार रु नगद भी थे. गरीबों ने देने वाले को आषीश दिये. सच है गुप्त दान महादान. बायें हाथ को भी दाहिने हाथ से किये दान का पता न चले वही तो सच्चा दान कहा गया है.

एक बुजुर्ग कोविड की बीमारी से ठीक होकर अस्पताल से बिदा हो रहे थे, डाक्टर्स, नर्सेज उन्हें चियर अप कर रहे थे. तभी उन्हें लगाये गये आक्सीजन का बिल दिया गया, उनके उपचार में उन्हें एक दिन  सिलेंडर से आक्सीजन दी गई थी. पांच हजार का बिल देखकर वे भावुक हो रोने लगे, अस्पताल के स्टाफ ने कारण जानना चाहा तो उन्होने कहा कि जब एक दिन की मेरी सांसो का बिल पांच हजार होता है तो मैं भला उस प्रकृति को बिल कैसे चुका सकता हूं जिसके स्वच्छ वातावरण में  मैं बरसों से सांसे ले रहा हूं. हम सब प्रकृति से अप्रत्यक्ष रूप से जाने कब से जाने कितना ले रहे हैं.

मेरा मानना है कि सबसे बड़ा दान अप्रत्यक्ष दान ही होता है. और टैक्स के द्वारा हम सबसे सरकारें भरपूर अप्रत्यक्ष दान लेती हैं . टैक्सेशन का आदर्श सिद्धांत ही है कि जनता से वसूली इस तरह की जावे जैसे सूरज जलाशयों से भाप सोख लेता है, और फिर सरकारो का आदर्श काम होता है कि बादल की तरह उस सोखे गये जल को सबमें बराबरी से बरसा दे. मेरे आपके जैसे लोग भले ही  केवल ठेठ जरूरत के सामान खरीदते हैं, पर अप्रत्यक्ष दान के मामले में हमारे शराबी भाई हम सबसे कहीं बड़े दानी होते हैं.शराब पर, सिगरेट पर सामान्य वस्तुओ की अपेक्षा टैक्स की दरें कही बहुत अधिक होती ही हैं. फिर दो चार पैग लगाते ही शराबी वैसे भी दिलेर बन जाता है. परिचित, अपरिचित हर किसी की मदद को तैयार रहता है. वह खुद से ऊपर उठकर खुदा के निकट पहुंच जाता है. इसलिये मेरा मानना है कि सबसे बड़े अप्रत्यक्ष दानी शराबी ही होते हैं. उनका दान गुप्त होता है. और इस तर्क के आधार पर मेरी सरकार से मांग है कि लाकडाउन में बंद शराब की दुकानों को तुरंत खोला जावे जिससे हमारे शराबी मित्र राष्ट्रीय विपदा की इस घड़ी में अपना गुप्त दान खुले मन से दे सकें.

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 25 ☆ नीति के दोहे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  आपके अतिसुन्दर “नीति के दोहे .)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 25 ☆

☆ नीति के दोहे  ☆

 

लोलुपता करती रही , मानव को कमजोर।

लोलुपता को छोड़कर, जीवन करें सुभोर।।

 

स्वाभाविकता सत्य है, मौलिकता है प्यार।

सरल, सहजता दिव्य है, है पावन उपहार।।

 

चंचलता करती सदा , संयम को निष्प्राण।

मानव वे ही श्रेष्ठ हैं, बांचें वेद पुराण।।

 

मादकता मद में भरे, शक्तिहीन सब बाण।

रावण से भी ना बचे, कहते वेद पुराण।।

 

नैतिकता ही श्रेष्ठ है, रखे मान-सम्मान।

तन-मन रहते हैं सबल, कभी न हो अपमान।।

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 16 ☆ जागते रहो ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एकअतिसुन्दर समसामयिक रचना “जागते रहो।  इस सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 16 ☆

☆ जागते रहो

जागते रहो , जागते रहो कहने- सुनने का दौर तो न जाने कब का चला गया । अब तो लॉक अप को खारिज कर लॉक डाउन का वक्त आ गया है । बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि हमेशा उन्नति करो पर ये क्या हमको तो बचने हेतु डाउन होने का सहारा ही एक मात्र उपाय दिख रहा है ।

एक दूसरे को डाउन करने की होड़  तो सदियों से चली आ रही थी ।  पीकर डाउन , शटर डाउन ,अप डाउन तो जानते थे  पर चीनी कृपा से लॉक डाउन  कैसा होता है ये जानने व  समझने का सौभाग्य आखिरकार मिल ही गया ।

अच्छे दिनों की उम्मीद को थामें हम सभी मन ही मन प्रसन्न थे पर अनुभव यही है  कि जब भी कुछ अच्छा होता दिखता है ; तो लोगों की नजर लगते देर नहीं लगती । वैसा ही कुछ सबके साथ हुआ,  जाने कहाँ से कोरोना महाराज चीनी चादर ओढ़कर पधार गए और रंग में भंग हो गया। अरे भाई अपना सारा व्यापार तो वे यहीं पर करते थे । होली के रंग से दीवाली की झालर व क्रिसमस  ट्री सब आपके बनाये सामानों से ही निखर रहा था ।  और तो और आपने कृत्रिम नींबू मिर्च भी बना कर सबके घरों और दुकानों तक पहुँचा दिए । लॉफिंग बुद्धा तो वैसे ही ड्राइंग रूम में बैठकर हँसता है कि अपनी सनातनी परंपरा को निभाने के बजाए हम पर विश्वास करते हो ।  नकली सिक्को की पोटली, कछुआ, बैम्बू , पिरामिड, क्रिस्टल में उन्नति ढूंढ रहे हो , अब भुगतो ।

जब भी कोई समस्या आती है तो साथ में समाधान अवश्य लाती है । ऐसे संकट के दौर में हम लोगों को याद आयी योग व आयुर्वेद की । ॐ मंत्र ने सबको मानसिक संबल दिया । इसी के साथ  अपने धर्म ग्रथों का पारायण करते हुए  भारतीय संस्कृति से बच्चों को जोड़ने का प्रयास भी इन दिनों लगभग हर घर में चल रहा है ।  नीम, तुलसी, गिलोय , एलोवेरा, आँवला आदि का सेवन भी  प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने हेतु किया जा रहा है ।

अभी तो शुरुआत है समय रहते जागो अपने पूर्वजों की थाती पर गर्व करो ।

 

© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 46 – बता ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

 

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  एक शिक्षाप्रद लघुकथा  “बता। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं  # 46 ☆

☆ लघुकथा –  बता ☆

“माना कि मानव ने वृक्षों का भरपूर उपयोग कर इमारतों के जंगल सजा लिया, मगर तू तो आरी है और यह भी जानती है कि हम सभी वृक्ष जीते जी भी काम आते है और मरने के बाद भी.“

“हाँ, यह निर्विवाद सत्य है .”

“मगर तू यह बता कि मरने के बाद मानव क्या काम आता है ?”

यह सुन कर आरी के साथ-साथ मानव की हंसी भी गायब हो चुकी थी.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

०१/०५/२०१५

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675




मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 44 – मला आज कळतंय ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजित जी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है  उनकी एक अत्यंत भावप्रवण कविता   “मला आज कळतंय ”। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #44 ☆ 

☆ मला आज कळतंय  ☆ 

 

मला आज कळतंय

की..

कामासाठी मी ..

गावापासून

किती लांब आलोय ते.. !

चार दिवस झालं

मी तहान भूक विसरून

गावच्या दिशेन चालतोय….!

पण गाव काय दिसंना..

आज पर्यंत इतकी वर्षे

गावापासून लांब पळणारा मी

आज गावातलं आणि..

माझ्यातलं अंतर

कमी होण्याची वाट पाहतोय. . !

 

© सुजित कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६




योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – Meditation/ध्यान – Meditation: Awareness of Body – Meditation Learning VIDEO #2 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆ Meditation: Awareness of Body ☆ 

Video Link >>>>

Meditation Learning VIDEO #2

This is the second video in a series of videos to learn and practice meditation by yourself by listening to and following the video.

It gives simple and straight instructions to meditate in pure form. Just follow the instructions and meditate.

You may start your journey of meditation from here but we would advise you to begin with the first video of the series on this channel and then come here after some days of practice.

Practice meditation on a daily basis listening to the video. When you feel confident that you are comfortable and ready, you may go to the next video in the series.

We will be happy to have your feedback and would answer any questions that you may have. Questions may be sent to us at [email protected].

Instructions:

Please sit down for meditation: legs folded crosswise, back straight and eyes closed.

Always be mindful of your breath as you breathe in and as you breathe out. Focus your attention on the nostrils as you breathe in and as you breathe out.

If you breathe in long, know: I am breathing in long. If you breathe out long, know: I breathe out long.

If you breathe in short, know: I am breathing in short. If you breathe out short, know: I breathe out short.

Keeping a watch on your breath in the background, look inwards to the major parts of your body: head, shoulders, hands, palms, chest, stomach, upper back, lower back, legs and the feet.

Sensitive to the whole body, breathe in. Sensitive to the whole body, breathe out.

Open your eyes gently and come out of meditation.

LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and trainings.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer




आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – द्वादश अध्याय (2) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वादश अध्याय

(साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय और भगवत्प्राप्ति के उपाय का विषय)

 

.श्रीभगवानुवाच

मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते ।

श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः ।।2।।

 

भगवान ने कहा-

मुझमें मन को लगाकर मुझमें जो अनुरक्त

मेरे मन से श्रेष्ठ वह श्रद्धामय जो भक्त ।।2।।

 

भावार्थ :  श्री भगवान बोले- मुझमें मन को एकाग्र करके निरंतर मेरे भजन-ध्यान में लगे हुए (अर्थात गीता अध्याय 11 श्लोक 55 में लिखे हुए प्रकार से निरन्तर मेरे में लगे हुए) जो भक्तजन अतिशय श्रेष्ठ श्रद्धा से युक्त होकर मुझ सगुणरूप परमेश्वर को भजते हैं, वे मुझको योगियों में अति उत्तम योगी मान्य हैं।।2।।

 

Those who, fixing their minds on Me, worship Me, ever steadfast and endowed with supreme faith, these are the best in Yoga in My opinion.।।2।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 45 – एकांत के इस शोर में ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  नका एक समसामयिक गीत  एकांत के इस शोर में।)

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 45 ☆

☆ एकांत के इस शोर में ☆  

 

एकांत  के  इस  शोर  में

संशय जनित सी भोर में

दिवसाभिनंदन गान है

दिग्भ्रमित सा इंसान है।।

 

है  मनुजता  पर  चोट  ये

किसकी नियत में खोट ये

क्या सोच कर किसने किया

है  संक्रमित  विस्फोट  ये,

खाली समय,भावी समय का

कर  रहा  अनुमान  है।

दिग्भ्रमित सा इंसान है।।

 

एकांत  में  सपने  बुनें

खाली समय में सिर धुनें

या चित्त को  एकाग्र कर

बिखरे  हुए  मोती  चुनें,

नैराश्य है इक ओर,दूजी ओर

शुभ सद्ज्ञान है।

दिग्भ्रमित सा इंसान है।।

 

विस्मय हवाओं में भरा

भयभीत है  सारी धरा

उपचार अनुमानित चले

न, निदान है कोई खरा,

अध्यात्म-संस्कृति बोध के संग

खोज में विज्ञान है।

दिग्भ्रमित सा इंसान है।।

 

विश्वास है इस यक्ष को

मावस  अंधेरे  पक्ष को

मिलकर समूल मिटायेंगे

फिर से जुटेंगे लक्ष्य को,

आत्म संयम,आस्था

इस देश की पहचान है।

दिग्भ्रमित सा इंसान है।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 989326601