हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समष्टि और व्यष्टि (कोरोनावायरस और हम- भाग-4) ☆ श्री संजय भारद्वाज

 

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – समष्टि और व्यष्टि ☆

(कोरोनावायरस और हम- भाग-4)

“अलग कमरा है, बड़ा बेड है, तैयार भोजन मिल रहा है, टीवी है, अख़बार है, फोन है, सारी सुख सुविधाएँ हैं..,और क्या चाहिए? आराम से पड़े रहो, अपने दिन काटो..!”, वृद्धजन अपनी युवा संतानों या अन्य परिजनों से प्राय: ऐसी बातें सुनते हैं।

कोरोना संक्रमण के कारण देशव्यापी लॉकडाउन में अब युवा घर बैठे बोर हो रहे हैं।  ‘टाइमपास नहीं हो रहा…!’ ‘….आपस में कितनी बातें करें?’ ‘… मैं बाहर नहीं निकला तो बीमार पड़ जाऊँगा…!’ बोर होना तीन-चार दिन में ही बौराने में बदल रहा है। युवा मनोदशा में परिवर्तन के इस रहस्य को समझ नहीं पा रहा है।

आदिशंकराचार्य ने गृहस्थ जीवन के रहस्य को समझने के लिए एक राजा के शरीर में प्रवेश किया था। दूसरे की मनोदशा को समझने के लिए परकाया प्रवेश ही करना होता है।

अच्छा बेड, तैयार भोजन, टीवी, अखबार, सोशल मीडिया, सुख- सुविधाएँ सब तो हैं पर समय नहीं बीत रहा, ज़ंग चढ़ रहा है।

यही ज़ंग हमारे बूढ़े माँ-बाप-परिजनों पर भी चढ़ता है। इस ज़ंग से उन्हें बचाना हमारा दायित्व होता है जिससे प्रायः हम मुँह मोड़ लेते हैं। छोटी-सी कालावधि में हम आपस में बातें करके थक चुके जबकि वे वर्षों हमसे बातें करने के लिए तरसते हैं। अंतत: उन्हें एकांतवास भोगने के लिए विवश होना पड़ता है।

कोरोना वायरस से उपजे कोविड-19 से रक्षा के लिए आज कहा जा रहा है कि देहांत से बचना है तो एकांत अपनाओ। यही अखंड एकांत बूढ़ों को इतना सालता है कि वे देहांत मांगने लगते हैं।

समय ने एक अनुभव हम सबकी झोली में डाला है। इस अनुभव को हम न केवल ग्रहण करें अपितु सकारात्मक क्रियान्वयन भी करें। घर के वृद्धजनों को समय दें। उनसे बोले, सकारण नहीं अकारण बतियाएँ। गप लड़ाएँ, उनके साथ हँसे, मज़ाक करें। सपरिवार जब कभी घर से बाहर जाएँ तो उन्हें अपने साथ अवश्य रखें। कभी-कभी बाहर जाना केवल उनके लिए ही प्लान करें। कुछ बातें केवल उनके लिए ही करें ताकि परिवार में वे अपनी भूमिका और सक्रियता का आनंद अनुभव कर सकें। इससे जब तक श्वास रहेगा तब तक वे जीवन जीते रहेंगे।

स्मरण रहे, समष्टि का साथ व्यष्टि को चैतन्य रखता है।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रातः 7:11 बजे, 26.3.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 40 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है नववर्ष एवं नवरात्रि  के अवसर पर एक समसामयिक  “भावना के दोहे ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 40 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे 

 

शक्ति

नारी तू नारायणी, स्वयं शक्ति अवतार।

नारी के हर रूप की, महिमा अपरंपार ।

 

देवी

नारी अब अबला नहीं, नारी बड़ी महान।

देवी सी गरिमा मिले, देवी सा सम्मान।।

 

शारदा

मां मैहर की शारदा,  सजे सदा दरबार।

आल्हा करें आरती,नित्य नवल श्रंगार।।

 

शैलपुत्री

लक्ष्मी दुर्गा अम्बिका,शैलसुता हर रूप।

नारी को सब पूजते,देवी लगे अनूप।।

 

श्रद्धा

नारी मूरत प्रेम की,श्रद्धा की तस्वीर।

नारी से बनती सदा,सबकी ही तकदीर।।

 

नवबर्ष

आया है नववर्ष ये, सबका हो उद्धार।

कोरोना के कहर से,बचा रहे संसार।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]




English Literature – Poetry ☆ Endured  anguish ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

ravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry  “वेदनाएं ”  published previously as ☆ संजय  दृष्टि – वेदनाएं   We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

☆ Endured  anguish ☆

 

Smelted constantly

 in  ceaseless inferno,

  Amalgamated everyday

   in the  virulent  acid

 

Endured  anguish  of

 the gory bloodshed…

  Ever inflicting carnage

   Mutilated sensibilities…

 

Shell-shocked are they

on  my  stark  silence

  instead   of  expected

   hysterical cachinnations

 

How ruefully  are

they   unfamiliar

  with the process

   of   making  gold…!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM




हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नववर्ष ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

( ई- अभिव्यक्ति में डॉ निधि जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक  कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। यह काव्य संग्रह दो भागों में विभक्त है प्रथम भाग व्यक्तिगत पहलू पर आधारति है एवं दूसरा भाग सामाजिक पहलू पर आधारित है।  आज प्रस्तुत है आपकी नव वर्ष पर एक कविता ” नववर्ष”।)

KUCH LAMHEIN (Hindi Edition) by [Jain, Dr. Nidhi]

अमेज़न लिंक >> कुछ लम्हे 

☆ नववर्ष  ☆

 

हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,

हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।

 

स्वागत नियम है प्रकृति का, स्वागत करें हम मानव आकृति का,

सुबह की भोर ने स्वागत किया प्रकृति का सूरज के उजाले से,

हम करते हैं अपने पड़ोसियों का स्वागत तिलक के आलिंगन से,

हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,

हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।

 

द्वार की रंगोली से करते हैं हम स्वागत,

गिफ्ट पैकिंग से करते हैं हम स्वागत,

आपकी बिंदिया ने किया आपके श्रृंगार का स्वागत,

हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,

हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।

 

फूलों ने किया, अपनी खुशबू का स्वागत,

मुर्गे की बाँग ने किया सुबह की रोशनी का स्वागत,

शिक्षकों ने किया अपनी ज्ञान ज्योति का स्वागत,

हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,

हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।

 

प्यार की धरोहर को  लौटाना चाहते हैं अपने घनिष्ठों को,

सम्मान देना चाहतें हैं अपने गुरुवर की प्रतिष्ठा को,

सहयोग देना चाहते हैं और दिखाना चाहते हैं अपनी निष्ठा को,

हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,

हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे




हिन्दी साहित्य☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 31 ☆ संतोष के समसामयिक दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी  के  “संतोष के समसामयिक दोहे ”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 31 ☆

☆ संतोष के समसामयिक दोहे   ☆

 

शक्ति

माता इतनी शक्ति दे, कटे अंधेरी रात

हमको यह विस्वास है, होगा नवल प्रभात

 

शैलपुत्री

करें शैलपुत्री नमन , प्रथम दिवस नवरात

हरती विघ्न बाधाएं, देती नव सौगात

 

शारदा

ज्ञान दे माँ शारदे, हरिये भव के पीर

शरण चरण हम आपकी, करें नीर का क्षीर

 

श्रद्धा

दे दो श्रद्धा, भक्ति माँ, हम बालक नादान

दया आपकी बढ़ाती, हम सबका सम्मान

 

नववर्ष

स्वागत सब मिल कर करें, संवत्सर नववर्ष

खत्म आपके हों सभी, जीवन के संघर्ष

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मो 9300101799




मराठी साहित्य – कविता ☆ राजमाता जिजाऊ ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक अत्यंत भावपूर्ण कविता “राजमाता जिजाऊ “।)

☆ कविता –  राजमाता जिजाऊ  ☆

 

राजमाता जिजाऊने

इतिहास घडविला

सिंदखेड गाव तिचा

कर्तृत्वाने सजविला.. . . !

 

उभारणी स्वराज्याची

शिवबाचा झाली श्वास

स्वाभिमान जागविला

गुलामीचा केला -हास.. . . !

 

सोनियाच्या नांगराने

जनी पेरला विश्वास

माता, भगिनी रक्षण

कर्तृत्वाचा झाली ध्यास.

 

माय जिजाऊची कथा

मावळ्यांचा काळजात

छत्रपती शिवराय

दैवी लेणे अंतरात.. . !

 

वीरपत्नी, वीरमाता

संघटीत शौर्य शक्ती

भवानीचा अवतार

चेतविली देशभक्ती.. . . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.




सूचनाएँ/Information ☆ कनिष्ठ महाविद्यालयीन मराठी विषयाच्या शिक्षकांसाठी राज्यस्तरीय लॉकडाउन कथा स्पर्धा 2020 आयोजित – समाजभूषण बाबूराव गोखले ग्रंथालयाच्या आयोजन ☆ साभार – योगिता पाखले ( पुणे) ☆

सूचनाएँ/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆  समाजभूषण बाबूराव गोखले ग्रंथालयाच्या वतीने ☆

☆ कनिष्ठ महाविद्यालयीन मराठी विषयाच्या शिक्षकांसाठी राज्यस्तरीय लॉकडाउन कथा स्पर्धा 2020 ☆

? चला उचला पेन लिहा सुंदर कथा ?

महाराष्ट्र राज्यातील कनिष्ठ महाविद्यालयातील मराठी विषयाच्या माझ्या सर्व शिक्षक मित्र-मैत्रिणी व बंधु-भगिनींनो आपल्या देशावर ‘कोरोना’ चे प्रचंड मोठे संकट आले आहे. अशावेळी मा.पंतप्रधान, मा.मुख्यमंत्री, मा.शिक्षणमंत्री,  मा.आरोग्यमंत्री यांनी आपल्या सर्वांना स्वतःची काळजी घेण्यासाठी घरातून बाहेर न पडण्याची कळकळीची विनंती केली आहे. आपण त्या आवाहानाचे पालन करण्यासाठी, देशहितासाठी हातभार लावू या.

साधारण एक महिन्याचा हा कालखंड आपल्या सर्वांची परीक्षा बघणारा असला तरी वाचन,लेखन करणारांना ही संधी आहे. आपला हा वेळ सत्कारणी लागावा तसेच आपला लेखनाचा छंद जोपासता यावा यासाठी आमच्या ग्रंथालयाच्यावतीने ही स्पर्धा आयोजित केली आहे.

सहभागासाठी हे लक्षात घ्या…..

  • या स्पर्धेसाठी कोणतेही शुल्क नाही.
  • स्पर्धा फक्त कनिष्ठ महाविद्यालयातील मराठी विषय शिकवणाऱ्या शिक्षकांसाठी आहे.
  • कथा मराठी भाषेत असावी. पूर्वप्रकाशित असू नये.
  • कथा शब्दमर्यादा १५०० इतकी असावी.
  • कथा स्वतःची आहे याचे स्वतःच्या सहीचे प्रमाणपत्र जोडावे.
  • सोबत आपण कार्यरत असलेल्या कनिष्ठ महाविद्यालयाचे ओळखपत्र झेरॉक्स जोडावी.
  • आपले सध्याचे दोन आयडेंटिटी फोटो पाठवावे.
  • कथा कोणत्याही विषयावर असावी परंतु बीभत्स, अश्लील लेखन नसावे.
  • कथा कागदाच्या एकाच बाजूला स्वच्छ सुंदर अक्षरात लिहिलेली अथवा टाईप केलेली असावी. ईमेल पाठवू नये.पोस्टाने पाठवावी.
  • परिक्षकांनी नाकारलेल्या कथा संदर्भात कोणीही संपर्क साधू नये.
  • निवड झालेल्या कथा लेखकांना फोन अथवा पत्राद्वारे कळविले जाईल.
  • आपली कथा खालील पत्त्यावर दि.२५ एप्रिल ते १० मे २०२० पर्यंत पाठवावी. त्यानंतर आलेल्या कथांचा विचार केला जाणार नाही.
  • पहिल्या पाच कथांना ग्रंथ, सुंदर स्मृतीचिन्ह व रोख रक्कम देऊन गौरविण्यात येईल.
  • कथा पाठवताना त्याची मूळ प्रत पाठवून झेरॉक्स आपल्याकडे ठेवावी.
  • कथा स्वतःच्या जबाबदारीवर पाठवावी गहाळ झाल्यास आम्ही जबाबदार नाही.
  • कथा पोहचली की नाही यासाठी खालील फोनवर फोन करावा.
  • परीक्षकांचा निर्णय अंतिम राहिल.सगळ्याच कथा चांगल्या असतात. वादविवाद टाळा.
  • पहिले बक्षीस-स्मृतिचिन्ह, प्रमाणपत्र व रु.२०००/
  • दुसरे बक्षीस- स्मृतिचिन्ह, प्रमाणपत्र व रु १५००/
  • सरे बक्षीस- स्मृतिचिन्ह, प्रमाणपत्र व रु.१०००/
  • चौथे व पाचवे बक्षीस – स्मृतिचिन्ह, प्रमाणपत्र व रु.५००/प्रत्येकी.
  • इतर निवडक पंचवीस कथांना स्मृतिचिन्ह, प्रमाणपत्र देऊन गौरविण्यात येईल.
  • भविष्यात निवडक तीस कथांचा कथासंग्रह प्रकाशित करण्याचा मनोदय आहे.
  • बक्षीस समारंभास येण्यासाठी अथवा जाण्यासाठी कोणताही खर्च दिला जाणार नाही.

 

आपला नम्र

प्रा.दादाराम साळुंखे

अध्यक्ष- महाराष्ट्र राज्य कनिष्ठ महाविद्यालयीन मराठी विषय संघटना, शाखा सातारा.

कथा या पत्त्यावर पाठवावी.

समाजभूषण बाबूराव गोखले सार्वजनिक ग्रंथालय विद्यानगर सैदापूर ता.कराड जि.सातारा. पिन-४१५१२४

फोन नंबर –  9423816782, 9405848764

? चला उचला पेन लिहा सुंदर कथा ?

साभार – योगिता पाखले ( पुणे)




हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #30 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 30 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

गंगा जमुना सरस्वती, शील समाधि ज्ञान ।

तीनों का संगम हुवे, प्रकटे पद निर्वाण ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.  We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.

Email: [email protected]

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer




आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (22) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

रुद्रादित्या वसवो ये च साध्याविश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च ।

गंधर्वयक्षासुरसिद्धसङ्घावीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ।।22।।

 

रूद्र , वसु , आदित्य सह सिद्धों का समुदाय

विश्वदेव , अश्विनी दो , मरूत औ” पितर निकाय।

यक्ष , असुर , गंधर्व सब मिल कर के एक साथ

विस्मित हो सब तक रहे, ओर तुम्हारी नाथ ।।22।।

 

भावार्थ :  जो ग्यारह रुद्र और बारह आदित्य तथा आठ वसु, साध्यगण, विश्वेदेव, अश्विनीकुमार तथा मरुद्गण और पितरों का समुदाय तथा गंधर्व, यक्ष, राक्षस और सिद्धों के समुदाय हैं- वे सब ही विस्मित होकर आपको देखते हैं।।22।।

 

The Rudras, Adityas, Vasus, Sadhyas, Visvedevas, the two Asvins, Maruts, the manes and hosts of celestial singers, Yakshas, demons and the perfected ones, are all looking at Thee in great astonishment.।।22।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]




हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 23 ☆ लघुकथा – आ अब लौट चलें ☆ डॉ. ऋचा शर्मा

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं।  आप  ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक लघुकथा  “आ अब लौट चलें”।  यह लघुकथा हमें जीवन  के उस कटु सत्य से रूबरू कराती है जिसे हम  जीवन की आपाधापी में मशगूल होकर भूल जाते हैं।  फिर महामारी के प्रकोप से बच कर जो दुनिया दिखाई देती है वह इतनी बेहद खूबसूरत क्यों दिखाई देती है ?  वैसे तो इसका उत्तर भी हमारे ही पास है। बस पहल भी हमें ही करनी होगी। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस बेहद खूबसूरत रचना रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद – # 23 ☆

☆ लघुकथा – आ अब लौट चलें

वही धरती, वही आसमान, वही सूरज, वही  चाँद, हवा वही,  इधर- उडते  पक्षी भी  वही, फिर क्यों लग रहा है कि कुछ  तो अलग है ?  आसमान  कुछ ज़्यादा ही  साफ दिख  रहा है, सूरज देखो कैसे  धीरे- धीरे  आसमान  में  उग  रहा  है, नन्हें अंकुर सा,  पक्षियों  की आवाज कितनी मीठी है ?  अरे ! ये  कहाँ  थे अब तक ? अहा ! कहाँ  से आ  गईं   इतनी रंग – बिरंगी  प्यारी चिडियाँ  ? वह मन ही मन हँस पडा.

उत्तर भी खुद से ही  मिला   –   सब यहीं  था,   मैं  ही शायद   आज  देख रहा हूँ   ये सब  !  प्रकृति हमसे दूर होती  है भला  कभी ? पेड – पौधों   पर   रंग- बिरंगे    सुंदर फूल  रोज खिलते हैं,   हम ही इनसे दूर  रहते हैं ?  जीवन  की  भाग – दौड में हम जीवन का आनंद उठाते कहाँ  हैं ? बस  भागम -भाग  में  लगे रहते हैं,कभी पैसे कमाने और  कभी  किसी पद को पाने की  दौड, जिसका कोई अंत नहीं ? रुककर   क्यों  नहीं  देखते धरती पर   बिखरी  अनोखी सुंदरता को  ?  वह सोच  रहा था —–

-अरे हाँ, खुद को ही तो समझाना है, हंसते हुए एक चपत खुद को लगाई और फिर मानों मन के सारे धागे सुलझ गये. कोरोना के कारण  21 दिन घर में रहना  अब उसे समस्या नहीं समाधान लग रहा था. बहुत कुछ  पा  लिया  जीवन में, अब मौका मिला है धरती की सुंदरता देखने का, उसे जीने का —–

अगली अलसुबह वह चाय की चुस्कियों  के साथ  छत  पर  खडा पक्षियों  से घिरा  उन्हें दाना खिला रहा था. सूरज  लुकाछिपी कर आकाश में लालिमा बिखेरने लगा था. उसके  चेहरे पर ऐसी मुस्कान पहले कभी ना आई  थी.

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.