हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रकृति और हम ☆ श्री राकेश कुमार पालीवाल

श्री राकेश कुमार पालीवाल

 

(सुप्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक श्री राकेश कुमार पालीवाल जी  वर्तमान में महानिदेशक (आयकर), हैदराबाद के पद पर पदासीन हैं। गांधीवादी चिंतन के अतिरिक्त कई सुदूरवर्ती आदिवासी ग्रामों को आदर्श गांधीग्राम बनाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। आपने कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें  ‘कस्तूरबा और गाँधी की चार्जशीट’ तथा ‘गांधी : जीवन और विचार’ प्रमुख हैं। श्री राकेश कुमार पालीवाल जी  की समसामयिक कविता प्रकृति और हम  एक विचारणीय कविता है। .)

☆ प्रकृति और हम ☆

 

लॉक डॉउन से

बहुत खुश हुए होंगे

गलियों के आवारा पशु,

कुत्ते, बिल्ली, मुर्गे, मुर्गियां

कोई नहीं है गरियाने लठियाने वाला

जहां तक चाहें वहां तक

घूम फिर सकते हैं बेरोकटोक

 

बहुत खुश हुए होंगे शहरों के पंछी

पार्कों और सड़कों के पेड़ों के आसपास

कोई आदमी नहीं है डरना पड़े जिसकी आहट से

 

खुश हुई होंगी शहर की सड़कें

बहुत कम रौंदी है उनकी देह

दुपहिया और चार पहिया वाहनों ने

 

खुश होंगी हैज की झाड़ियां

खरपतवार लान के

सुबह सुबह नहीं आया माली

बेरहमी से टहनियों पत्तों की कांट छांट करने

 

खुशगवार हैं सुबहो शाम की हवाएं

नहीं घुला जहर वाहनों के धुंए का

आसमान भी साफ है और दिन के मुकाबले

रात में तारों की जगमग है और दिनों से ज्यादा

 

आदमी की जरा सी धीमी रफ्तार से

कितनी खुशी मिली है

असंख्य जानवरों, पक्षियों

पेड़ पौधों और सड़कों और हवाओं को

 

प्रकृति मन ही मन

दे रही होगी धन्यवाद कोरोना को !

 

हमने नहीं समझा

सिसकती प्रकृति का गम

कितने दूर हो गए हैं

प्रकृति और हम !

 

जियो और जीने दो

प्रकृति का रस सबको पीने दो

 

© श्री राकेश कुमार पालीवाल

हैदराबाद




Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 30 – Heights ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem “Heights.  This poem  is from her book “The Frozen Evenings”.)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 30

☆ Heights ☆

For heights if you aspire

If high goals are your desire

It is only hard work, toil and perspiration

Which will carve out way for your destination.

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)




हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – वेदनाएं ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – वेदनाएं  ☆

 

नित्य आग में

जलाया जाना,

तेज़ाब में रोज

गलाया जाना,

लहुलुहान

की जाती वेदनाएँ,

क्षत-विक्षत

होती संवेदनाएँ,

अट्टहासों के मुकाबले

मेरे मौन पर

चकित हैं,

कुंदन होने की

प्रक्रिया से वे

नितांत अपरिचित हैं!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रातः 6:29 बजे, 25.3.19

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]




हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 39 ☆ जिसकी चिंता है, वह जनता कहां है ! ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  विचारणीय समसामयिक व्यंग्य   “ जिसकी  चिंता है, वह जनता कहाँ है !”।  यह वास्तव में  लोकतंत्र के ठगे हुए  ‘मतदाता ‘के पर्यायवाची  ‘जनता ‘ पर व्यंग्य है।  सुना है कोई दल बदल नाम का कानून भी होता है ! श्री विवेक रंजन जी  को इस  सार्थक एवं विचारणीय  व्यंग्य के लिए बधाई। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 39 ☆ 

☆ जिसकी चिंता है, वह जनता कहां है ! ☆

विधायक दर दर भटक रहे हैं, इस प्रदेश से उस प्रदेश पांच सितारा रिसार्ट में, घर परिवार से दूर मारे मारे फिर रहे हैं. सब कुछ बस जनता की चिंता में है. मान मनौअल चल रहा है. कोई भी मानने को तैयार ही नही है, न राज्यपाल, न विधानसभा के अध्यक्ष, न मुख्यमंत्री, न ही विपक्ष. सब अड़े हुये हैं. सबको बस जनता की चिंता है. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच रहा है. विशेष वायुयानों से मंत्री संत्री एड्वोकेटस भागमभाग में लगे हुये हैं. पत्रकार अलग परेशान हैं एक साथ कई कई जगहों से लाईव कवरेज करना पड़ता है जनता के लिये. कोई भी सहिष्णुता का वह पाठ सुनने को तैयार ही नही है, जिसकी बदौलत महात्मा गांधी ने सुभाष चंद्र बोस को थोड़ी आंख क्या दिखाई वे पंडित नेहरू के पक्ष में जीत कर भी अध्यक्षता छोड़ चुप लगा कर बैठ गये थे. या सरदार पटेल ने सबके उनके पक्ष में होते हुये भी महात्मा गांधी की बात मानकर प्रधान मंत्री पद से अपनी उम्मीदवारी ही वापस ले ली थी. हमारे माननीय तो जिन्हा और नेहरू की तरह अड़े खड़े हैं. किसी को भी मानता न देख, जनता के जनता के द्वारा जनता के लिए सरकार के मूलाधार वोटर रामभरोसे ने सोचा क्यों न उस जनता को ही मना लिया जाये जिसकी चिंता में सारी आफत आई हुई है.

जनता की खोज में सबसे पहले रामभरोसे सीधे राजधानी जा पहुंचा. उसने अपनी समस्या टी वी चैनल “जनता की आवाज” के  एक खोजी संवाददाता को बताई.   रामभरोसे ने पूछा, भाई साहब मैं हमेशा आपका चैनल देखता रहता हूं मुझे बतलायें जनता कहां है ? उसने रामभरोसे को ऊपर से नीचे तक घूरा,उसकी अनुभवी नजरो ने  उसमें टी आर पी तलाश की, जब उसे  ज्यादा टीआरपी नजर नही आई तो वह मुंह बिचका कर चलता बना. जनता मिल ही नहीं रही थी. ढ़ूंढ़ते भटकते हलाकान होते रामभरोसे को भूख लग आई थी, उसकी नजर सामने  होटल पर पड़ी, देखा ऊपर बोर्ड लगा था “जनता होटल”. खुशी से वह गदगद हो गया, उसने सोचा चलो वहीं भोजन करेंगे और जनता से मिलकर उसे मना लेंगे. जनता जरूर एडजस्ट कर लेगी और माननीयो का मान रह जायेगा, खतरे में पड़ा संविधान भी बच जावेगा. रामभरोसे होटल के भीतर लपका, बाहर ही भट्टी थी, जिस पर पूरी पारदर्शिता से तंदूरी रोटी पकाई जा रही थी,सब्जी फ्राई हो रही थी, और  दाल में तड़का लगाया जा रहा था. बाजू में  जनता होटल का पहलवाननुमा मालिक अपने कैश बाक्स को संभाले जमा हुआ था. टेबल पर आसीन होते ही कंधे पर गमछा डाले छोटू पानी के गिलास लिये प्रगट हुआ. रामभरोसे ने तंदूरी रोटी और दाल फ्राई का आर्डर दिया.पेट पूजा कर बिल देते हुये, होटल के मालिक से अपनी व्यथा बतलाई और पूछा भाई साहब जनता है कहां, जिसकी चिंता में सरकार ही अस्थिर हो गई है. पहलवान ने  दो सौ के नोट से भोजन का बिल काटा और बचे हुये बीस रुपये लौटाते हुये रामभरोसे को अजीबोगरीब तरीके से देखा, फिर पूछा मतलब ?  अपनी बात दोहराते हुये उसने जनता को मनाने के लिये फिर से  जनता का पता पूछा. पहलवान हंसा. तभी एक अखबार का पत्रकार वहां आ पहुंचा, जनता होटल के मालिक ने अपनी जान छुड़ाते हुये रामभरोसे को उस पत्रकार के हवाले किया और कहा कि ये “हर खबर जनता की ”  दैनिक समाचार पत्र के संपादक हैं, आप इनसे जनता का पता पूछ लीजिये. रामभरोसे ने भगवान को धन्यवाद दिया कि अब जब हर खबर जनता की के संपादक ही मिल गये हैं तब तो निश्चित ही जनता मिल ही जावेगी. किंतु संपादक जी ने गोल मोल बातें की, चाय पी और ” शेष अगले अंक में ” की तरह उठकर चलते बने.

रामभरोसे जनता के न मिलने से परेशान हो गया. उसे एक टेंट में चल रहे प्रवचन सुनाई दिये, गुरू जी भजन करवा रहे थे और लोग भक्ति भाव से झूम रहे थे. रामभरोसे को लगा गुरू जी बहुत ज्ञानी हैं वे अवश्य ही जनता को जानते होंगे. अतः वह वहां जा पहुंचा. कीर्तन खत्म हुआ, गुरूजी अपनी भगवा कार में रवाना होने को ही थे कि रामभरोसे सामने आ पहुंचा, और उसने गुरू जी को अपनी समस्या बताई, गुरूजी ने कार में बैठते हुये जबाब दिया “बेटा तू ही तो जनता है”. गुरूजी तो निकल लिये पर रामभरोसे सोच में पड़ा हुआ है, यदि मैं जनता हूं तो मुझे तो संविधान से कोई शिकायत नही है, अरे मैं तो वह चौपाई गुनगुनाता ही रहता हूं ” कोई नृप होय हमें का हानि, चेरी छोड़ न होईहें रानी “, कर्ज माफी हो न हो, कौन थानेदार हो, कौन कलेक्टर हो, मुआवजा मिले न मिले, मैं तो सब कुछ एडजस्ट कर ही रहा हूं फिर मेरे नाम पर यह फसाद  क्यों ? रामभरोसे ने एक फिल्म देखी थी जिसमें हीरो का डबल रोल था एक गरीब, सहनशील तो दूसरा मक्कार, धोखेबाज, फरेबी.रामभरोसे को कुछ कुछ समझ आ रहा है कि जरूर यह कोई और ही जनता है जिसके लिए सारे डबल रोल का खेल चल रहा है.

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८




मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 39 – वाचन संस्कृती विकसित करणारा नाविन्य पूर्ण कथासंग्रह – थॅक्यू बाप्पा  ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजित जी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है  उनके द्वारा श्री अनिल पाटील जी के काव्य संग्रह   “थँक्यू बाप्पा ” का  निष्पक्ष पुस्तक परिक्षण (पुस्तक  समीक्षा )। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #39☆ 

☆ वाचन संस्कृती विकसित करणारा नाविन्य पूर्ण कथासंग्रह – थॅक्यू बाप्पा  ☆ 

पुस्तक परिक्षण 

पुस्तकाचे नाव – थँक्यू बाप्पा

लेखक – अनिल पाटील

प्रकाशक – चपराक प्रकाशन,पुणे

बुकगंगा ऑनलाइन लिंक >>>> ‘थँक्यू बाप्पा

 

मी काही फार मोठा समिक्षक वैगरे नाही. पण बर्‍याच ठिकाणी परीक्षण केल्याने  वाचनाचा  आस्वाद शोधक नजरेने घेण्याची सवय लागली. लेखक अनिल पाटील यांचा थॅक्यू बाप्पा हा कथासंग्रह माझ्या सारख्या चोखंदळ रसिकांच्या  अपेक्षा आणि जिज्ञासा पूर्ण करणारा आहे.

चपराक प्रकाशनाने प्रकाशित केलेला एकशेवीस पानांचा हा कथासंग्रह मुखपृष्ठासह अतिशय सुंदर सजला आहे.  विषयाचे वैविध्य,  नाविन्यता,  चतुरस्र,  परखड, रास्त  आणि कणखर  मते मनोगतात वाचायला मिळाली.  कौटुंबिक जीवनातील बारकावे हळुवारपणे टिपून घेत  अनेक वैशिष्ट्य जोपासत हा संग्रह सजवला आहे.  मनापासून भावलेले शब्द साध्या सोप्या भाषेत पण प्रभावी पणे या कथांनी व्यक्त केले आहेत

किल्लारी येथे झालेल्या भुकंपाच्या पार्श्वभूमीवर बेतलेली ही कथा संग्रहाचे मुख्य  आकर्षण ठरली आहे. सामाजिक भान जपणारी आणि प्रखर वास्तव टिपणारी ही कथा संवेदनशील लेखनशैलीने परीपूर्ण झाली आहे. *भूकंपाच्या काळ्या ढगाला लागलेली रूपेरी कड* , प्रांतिक भाषेतील विशिष्ट संवाद शैली,  वैयक्तिक दुःख विसरून नेमून दिलेल्या कामात  एकरूप झालेला रामसिंग, ढिगा-यातून बचावलेली मुलगी पाहून भावविवश झालेला पिता,  वाचकांना खिळवून ठेवणारे सशक्त कथानक यांनी पहिलीच कथा गणेशाचा आशिर्वाद मिळवून देते.  आणि  प्रत्येक कथा ताकदीने व्यक्त करण्याचा श्रीगणेशा करते. रसिकांची पसंती या पहिल्याच कथेने जोरदारपणे घेतली आहे. भूमिकन्या गेली हा शब्द काळजात घर करून राहिला. *सुख के क्षण प्रदान करने वाला सुखकर्ता हे शब्द प्रयोग चपखल ठरले आहेत*  एका मुलीला  आणि पालकांना मिळालेला निवारा रामसिंगच्या परीवाराचे दुःख हरण करणारा आहे. त्यामुळे या कथेचे शिर्षक साहित्यात  एका विशिष्ट  उंचीवर ही कथा घेऊन जाते.  अनेक जाणिवा, नेणिवा आणि भावना  यांचे उत्कट दर्शन या कथेच्या  शब्द चित्रणातून झाले आहे.

प्रसिद्ध साहित्यिक  प्रा. व .बा. बोधे यांची मार्गदर्शन करणारी विस्तृत प्रस्तावना संग्रहाची लोकप्रियता  अधिक वाढवते. योग्य समिक्षण आणि परीक्षण सरांनी केले आहेच. संग्रहाचे  अचूक विश्लेषण त्यांनी केले आहे.

मराठवाड्यातील खेड्यातला भुकंपग्रस्त राजू फलाट नंबर दहा ते कारगिल व्हाया इराॅस हे नाविन्य पूर्ण नाव कथेची  उत्सुकता वाढवते. कलाटणी देणा-या अनेक घटना  एकाच कथेचे गुंफण्याची कला नाविन्य पूर्ण वाटली. राजूचे बदलत जाणारे व्यक्ती मत्व ,  परीवर्तन  आणि त्याचा होणारा सत्कार हा सर्व प्रवास रमणीय ठरला आहे. या सर्व प्रसंग चित्रणात वाचकांना खिळवून ठेवण्याचे सामर्थ्य आहे.  अनेक छटा  असलेली ही कथा खूप वेगळी  आणि दमदार वाटली. लेखकाने केलेली नायकाची कानउघाडणी आणि त्यातून झालेले त्याचे परीवर्तन,  भावनिक  आंदोलने या  कथेत खूपच भारदस्त पणे व्यक्त झाली आहेत.  माणूस माणसाला बदलवू शकतो हा संदेश देणारी ही कथा खूप आवडली.

*सबाह अल खेर* ही कथा परदेशातील संस्कृतीचे दर्शन घडविणारी सक्षम प्रेमकथा.  इराक मधील मिस स्वाद  आणि स्टेशन मास्तर  अमित यांची प्रेमकथा एका वेगळ्याच विश्वात घेऊन जाते. युद्धानंतरची इराकची परीस्थिती,  रान हिरवे डोळे,  लालचुटुक पातळ ओठ,  अरेबिक शब्दांची तोंड ओळख, भारतीय संस्कृतीचा गोडवा  आणि स्वतः विवाहित  असुनही रंगत जाणारी प्रेमकथा, खूपच नाविन्य पूर्ण पद्धतीने हाताळली आहे.

*रूपाताई तुस्सी ग्रेट हो* ही रूपा  आणि प्रकाश यांची कथा महापालिकेच्या भ्रष्ट कारभार  उघड करणारी आहे. ललवाणी संकुलातील ही कथा सामाजिक  आणि राजकीय हितसंबंधावर मार्मिक भाष्य करते.  एक  आघात करण्याची  क्षमता या कथेच्या  आशयात आहे.  आशयघनता  आणि समाज प्रबोधन करण्यात ही कथा यशस्वी ठरली आहे. संघर्ष  आणि लढा यांचे यथार्थ वर्णन या कथेत केले आहे.

पाऊलवाट चुकलेल्या मुलाची *पुंडलिक वरदे हारी विठ्ठल* ही कथा  असाच मनाला चटका लावून जाते. समीर आणि शबाना यांची प्रेमकथा  एका वेगळ्या पार्श्वभूमीवरून हाताळली आहे. दहशतवादाचा धोका, इसिस चे मायाजाल,  मुंबई मिशन ब्लास्ट चा गुन्हेगारी तडका देत  कल्पना  आणि वास्तवता यांच्या मिश्रणात ही कथा धार्मिक, कौटुंबिक, आणि सामाजिक बांधिलकी जपत  आपला स्वतःचा ठसा  उमटवून जाते.

झुकझुक झुकझुक  आगीनगाडी,कश्या साठी पोटासाठी? वचन पूर्ती, थॅक्यू बाप्पा या सर्व कथा नव नवीन पद्धतीने साकार झाल्या आहेत. रेल्वेतील कामकाज विभागाचे बारकावे,  रेल्वे विश्वातील प्रवास, या श्रेत्रातील सांकेतिक शब्द,  आणि वैशिष्ट्य पूर्ण विदेशी भाषा या संग्रहातून या विविध कथाद्वारे पुढे  आली आहे.

लेखकाची व्यक्ती गत  भावनिक ,कल्पनारम्य आणि वैचारिक  गुंतवणूक या लेखसंग्रहाचे आगळेवेगळे वैशिष्ट्य ठरली आहे.  गणपती बाप्पाला पत्र लिहिणारी छोटीशी  आरोही संपूर्ण कुटुंबाला पुर्ण पणे कसे सावरते हे  शब्द कौशल्य  अजमावण्या साठी हा कथासंग्रह पुन्हा पुन्हा वाचावा असा ठरला आहे.  कथेची शिर्षक नेहमीच्या पेक्षा वेगळी  असली तरी प्रत्येक कथेला  अनुरूप ठरली आहे. त्यामुळे हा संग्रह दर्जेदार आणि वैविध्य पूर्ण साहित्य निर्मिती करणारा ठरला आहे.  कथेच्या सर्व बारीक सारीक गोष्टी नाविन्यता जोपासत  अनिलजी आपण  आपले श्रेष्ठत्व सिद्ध केले आहे. रसिकांना खिळवून ठेवणारी शब्द शैली  आणि विचारांची नवी दिशा देणारे कथाबीज  आपण या संग्रहात खूप सुंदर रूजवले आहे.  अनेक ठिकाणी केलेले निरिक्षण, वाचन व्यासंग,  आणि शब्द सामर्थ्य यांनी समृद्ध झालेला थॅक्यू बाप्पा हा लेखन संग्रह मनोरंजनातून विचारांची देवाणघेवाण करणारा  एक चिंतन शील कथा संग्रह आहे. वाचन संस्कृती विकसित करणारा नाविन्य पूर्ण कथासंग्रह म्हणून या संग्रहाचा आवर्जून उल्लेख करावा लागेल.  खूप खूप गोष्टी या कथेतून लेखक म्हणून  आपण रसिकांना दिल्या आहेत.  रसिकांच्या  उत्तम साहित्य वाचनाच्या  अपेक्षा या संग्रहाने समर्थ पणे पूर्ण केल्या आहेत. या सर्व प्रवासात घनश्याम पाटील  आणि चपराक परीवाराचे योगदानही तितकेच महत्त्वाचे आहे.

आपल्या पुढील यशस्वी वाट  चालीस हार्दिक शुभेच्छा. आणि  अतिशय वेगळा आणि दर्जेदार कथासंग्रह रसिकांना दिल्या बद्दल  एक साहित्य रसिक म्हणून मनापासून थॅक्यू

 

*सुजित कदम, पुणे*




हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 11 ☆ समस्याओं का बाजार ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एकअतिसुन्दर सार्थक रचना “समस्याओं का बाजार।  इस सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 11 ☆

☆ समस्याओं का बाजार

मौसम चाहें कोई भी समस्याओं का रोना कभी खत्म नहीं होता। ये एक ऐसा खुला बाजार है जहाँ मॉल  कल्चर का दौर चल रहा है। इसे बिडंवना ही कहेंगे  कि कोई इस बात से परेशान है कि तन कैसे ढका जाए तो वहीं कोई इस बात को लेकर माथापच्ची कर रहा है कि कौन सी ड्रेस पहन कर पार्टी की शान बना जाए।  एक से एक परिधान बाजार में उपलब्ध हैं बस दुकान में जाइये। चेंजिंग रूम तो मानो आपके इंतजार में पलक पाँवड़े बिछा कर बैठा है। आजकल लोग एक ड्रेस भी  ठोक बजा कर लेते हैं। जब 100% पसंद आयी तभी अन्यथा दूसरी दुकान का रास्ता पकड़ लेते हैं। वैसे भी शहर में तरह – तरह के मॉल हैं जहाँ आकर्षक योजनाओं का अंबार लगा हुआ रहता है। कहीं एक के साथ एक फ्री की योजना तो कहीं अच्छी ख़रीददारी पर  डिस्काउंट कूपन, जो अगली खरीददारी में सहायक होगा,  तो कहीं आपके खाते में पॉइंट जुड़ रहे हैं जो भविष्य के लिए हैं। कहते हैं हर दिन एक सा नहीं होता सो पैसे वाले लोग जमकर खरीदारी करते हैं ताकि जब वक्त बदले तो पॉइंट सुरक्षित रहें। एक प्रकार से एफ डी ही समझिए ऐसा मैं नहीं कह रही ये तो मॉल वाली सेल्स गर्ल ने बताया है;  जिसके काउंटर पर सबसे अधिक सेल होती है। हो भी क्यों न उसे मार्केटिंग का सबसे बढ़िया तजुर्बा है, हमेशा मीठी वाणी बोलना, सुंदर ड्रेसअप व आकर्षक व्यक्तित्व की मल्लिका जो ठहरी । मेरी दीदी ने मुझे फोन करके बताया कि उनको “एक बैग पसंद आया जिसकी कीमत 10,000 थी पर सेल्सगर्ल  ने जल्दी- जल्दी मुझे समझाया कि आप तो हमारी नियमित ग्राहक हैं  दिखाइए आपके पास तो बहुत से पॉइंट होंगे, उसने गणना की तो मेरे 8 हजार रुपये के पॉइंट थे बस 2 हजार ही देने पड़े। अब  मेरे तो मानो पंख लग गए इतना सुंदर पर्स मेरे पास वो भी इतनी कम राशि देने के बाद।”

ऐसे ही बहुत से किस्से हैं जब समस्याओं का बाजार अपने चरम पर होता है। अभी तक  ऐसा लगता था मानो ये समस्या केवल कमजोर, पीड़ित, शोषित, दलित व अल्पसंख्यक की वपौती है पर जब गहरायी में झाँका तो समझ में आया कि यहाँ भी आभिजात्य वर्ग का ही कब्जा है। उनके पास तो इतनी समस्याएँ हैं कि उनको न दिन को चैन न रात को आराम। बिना नींद की गोली नींद ही नहीं आती। सूरज बाबा के दर्शन तो मानो दुर्लभ ही हो चुके हैं।  एक बात समझ में नहीं आती कि वैसे ही जीवन में बहुत आपाधापी है इस पर भी हम ऐसी – ऐसी समस्याओं से लड़े जा रहे हैं जहाँ यदि चाहें तो बच सकते हैं। क्या जरूरत है कि आईने में निहार- निहार कर ही ड्रेस ली जाए क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जो आपको आरामदायक हो, देखने में अच्छी हो, और अंग प्रदर्शन पर जोर न देती हो ऐसा चयन किया जाय; क्या जरूरत है इतनी मारा- मारी के बाद भी हम भारतीय संस्कृति को भुलाते हुए पश्चिम सभ्यता की ओर बढ़ें जबकि वे हमारी सनातन संस्कृति से जुड़ रहे हैं।

 

© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 41 – उन्माद ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

 

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  एक व्यावहारिक लघुकथा  “उन्माद । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं  # 41 ☆

☆ लघुकथा-  उन्माद  ☆

“हे माँ ! तूने सही कहा था. ये एक लाख रुपए तेरी बेटी की शादी के लिए रखे हैं. इसे खर्च मत कर. मगर मैं नहीं माना, माँ. मैंने तुझ से कहा था, “माँ ! मैं इस एक लाख रुपए से ऑटोरिक्शा खरीदूंगा. फिर देखना माँ. मैं शहर में इसे चला कर खूब पैसे कमाऊंगा.”

“तब माँ तूने कहा था, “शहर में जिस रफतार से पैसा आता है उसी रफ्तार से चला जाता है. बेटा तू यही रह. इस पूंजी से खेत खरीद कर खेती कर. हम जल्दी ही अपनी बिटिया की शादी कर देंगे. तब तू शहर चला जाना.”

“मगर माँ , मैं पागल था. तेरी बात नहीं मानी. ये देख ! उसी का नतीजा है”, कह कर वह फूट-फूट कर रोने लगा. लोग उसे पागल समझ कर उस से दूर भागने लगे.

वह अपने जलते हुए ऑटोरिक्शा की और देख कर चिल्लाया, “देख माँ ! यह ऑटोरिक्शा, उस की डिक्की में रखा ‘बैंक-बैलेंस’ और शादी के अरमान, एक शराबी की गलती की वजह से खाक हो गए.”

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675




हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र # 20 ☆ कविता – ☆ चटपटी चाट की तरह ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

 

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  एक समसामयिक रचना  “चटपटी चाट की तरह.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 20 ☆

☆ चटपटी चाट की तरह ☆

 

नित नए आविष्कार

करते चमत्कार

आदमी की तेज रफ्तार

घटता  प्यार

कहीं धन की शक्ति अपार

तो कहीं गरीबी से चीत्कार

सर्वत्र कोरोना से हाहाकार

तो कहीं बढ़ते

आतंकियों के प्रहार

आदमी से आदमी

खाता खार

 

वायु में जहर

धरती में जहर

नदियों में कहर दर कहर

अग्नि

जल

आकाश में

में भी घुल गया

जहर ही जहर

 

बढ़ते धरती पर

कंक्रीट के जंगल

देते अमंगल

डराता

आनेवाला कल

घटता बल

रसातल में पहुँचता जल

 

आदमी की बढ़ती मनमानी

अपने प्रति

प्रकृति के प्रति

गढ़ी जा रहीं हैं

हर दिन नई कहानी

 

बढ़ता पशु पक्षियों पर

अत्याचार

बढ़ता मांसाहार

ला रहा है तबाही

कब तक बचोगे

कोरोना से

नए-नए कोरोना

पैदा होते रहेंगे

 

कलयुगी आहार-विहार

आचार-व्यवहार

ढाएगा नए नए जुल्म

ये

भविष्यवाणी

मैं नहीं कर रहा

बल्कि ये आत्मा है

कर रही

 

वक्त है बहुत कम

सुधर जाना

नहीं भारी कीमत चुकाना

कंक्रीट का जंगल

हरा भरा होगा

बस खाने के लिए

और जल नहीं होगा

होगी प्रदूषित हवा

होंगे वायरस ही वायरस

जो फेंफड़ों को

चाट जाएंगे

चटपटी चाट की तरह

 

डॉ राकेश चक्र ( एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

 




हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ चिंतन करे पर चिंता मुक्त रहकर परिणाम सुनहरे होंगे ☆ श्री कुमार जितेन्द्र

श्री कुमार जितेन्द्र

 

(युवा साहित्यकार श्री कुमार जितेंद्र जी  कवि, लेखक, विश्लेषक एवं वरिष्ठ अध्यापक (गणित) हैं। आज प्रस्तुत है उनका एक विचारार्थ आलेख उनकी एक समसामयिक आलेख चिंतन करे पर चिंता मुक्त रहकर परिणाम सुनहरे होंगे। )

☆ चिंतन करे पर चिंता मुक्त रहकर परिणाम सुनहरे होंगे☆

 चिंता और चिंतन – ओह चिंता शब्द पढ़ते ही चिंता में डाल दिया है। क्या लिखे, क्या नहीं लिखे, क्या करे… क्या नहीं करे.. और जो लिखे या कुछ ऎसा करे वो किसी अनुकूल हो सकता है। अगर नहीं हुआ तो परिणाम क्या होगा। ऎसे हजारों अनगिनत प्रश्नों की मन में बौसार लग जाती है। यही चिंता है जिसका परिणाम भयंकर होता है। दूसरी तरफ किसी बात या कार्य को करने से पहले उस पर चिन्तन किया जाए तो परिणाम कुछ और होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि दोनो शब्दों में बहुत बड़ा फ़र्क है। वैसे फर्क होना भी स्वाभाविक है। तो आईए मित्रों आज हम कुमार जितेन्द्र “जीत” के साथ चिंता और चिन्तन को एक विश्लेषण से समझने का धीरे धीरे प्रसास करते हैं। विश्वास है मेरा विश्लेषण आपके के अनुकूल होगा।

मन में क्यों उत्पन्न होती है चिंता –  जी हां एक अच्छा प्रश्न उभर कर सामने आया है कि आख़िर हमारे मन में क्यों उत्पन्न होती है चिंता? क्या वजह है उसकी जो इंसान को अन्दर से खोखला कर देती है। सरल शब्दों में कहा जाए तो चिंता जब हम मन में किसी को पाने की चाहत रखते हैं, जो हमारे पास नहीं है और वह पूरी न हो या उसको खो जाने का डर लगा रहता है। किसी काम को तय समय पर पूरा नहीं करने से हमारा मन एवं बुद्धि दोनों अशांत से रहते हैं। जिससे चिंता उत्पन्न होती है। दूसरे रूप में नजर डाली जाए तो चिंता एक संज्ञानात्मक रूप, शारीरिक रूप, भावनात्मक रूप और व्‍यवहारिक रूप से उत्पन्न घटको की  मनोवैज्ञानिक दशा है।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार चिंताचिन्ता को अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। जिसमें से कुछ प्रमुख विश्लेषण निम्न है-

‘‘चिन्ता एक ऐसी भावनात्मक एवं दु:खद अवस्था होती है, जो व्यक्ति के अहं को आलंबित खतरा से सतर्क करता है, ताकि व्यक्ति वातावरण के साथ अनुकूली ढंग से व्यवहार कर सके।’’

‘‘प्रसन्नता अनुभूति के प्रति संभावित खतरे के कारण उत्पन्न अति सजगता की स्थिति ही चिन्ता कहलाती है।’’

 

‘‘चिन्ता एक ऐसी मनोदशा है, जिसकी पहचान चिन्ह्त नकारात्मक प्रभाव से, तनाव के शारीरिक लक्षणों लांभवित्य के प्रति भय से की जाती है।

‘‘चिन्ता का अवसाद से भी घनिष्ठ संबंध है।’’

‘‘चिन्ता एवं अवसाद दोनों ही तनाव के क्रमिक सांवेगिक प्रभाव है। अति गंभीर तनाव कालान्तर में चिन्ता में परिवर्तित हो जाता है तथा दीर्घ स्थायी चिन्ता अवसाद का रूप ले लेती है।’’

जानिए क्या होता है चिंतन –  जब हम किसी बात को लेकर मन में कुछ पल के लिए सोचे और सोचने के बाद हमें शांति, एकाग्रता, उत्साहपूर्ण और प्रेम की अनुभूति होने लगे तो उसे हम चिंतन कह सकते हैं।

चिंतन के रूप – वर्तमान समय में इंसान किसी बात को लेकर चिंतन जरूर करता है। आज हम आपको चिंतन के रूप के बारे जागरूक करेंगे। ताकि हमारी भविष्य की पीढ़ी अच्छी राह मिले।

सकारात्मक चिंतन –  ओह शब्द पढ़ते ही मन में कुछ अच्छे ख्याल आने शुरू हो जाते हैं। वैसे आना भी स्वाभाविक है क्योंकि हम ठहरे इंसान….. हाँ हाँ… थोड़ा हंस लेते हैं। मित्रों  वर्तमान परिस्थितियों में अगर देखा जाए तो एक गहरी चिंता पूरे विश्व के सामने खड़ी हो गई है। और वो हम सब जानते ही हैं। समझ भी गए होंगे… वो है नोवेल कोरोना वायरस का कहर जो पूरे विश्व में फैल गया है। जिसका इलाज पूर्णतः अभी हुआ नहीं है। हजारों की संख्या में लोगों की मौते भी हो गई है। अब अगर हम उस चिंता पर सकारात्मक ऊर्जा से चिंतन करना शुरू कर दिया जाए तो परिणाम अपने स्वयं, परिवार, समाज, क्षेत्र और देश के लिए अच्छा रहेंगा। कहने का तात्पर्य यह है कि कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए हम सरकार द्वारा जो हमे सावधानी रखने की सलाह दी जाती है। उन सावधानियों को समझे उस पर मनन करे। क्योकि वर्तमान स्थिति को देखते हुए कोरोना वायरस से बचने का एकमात्र उपाय बचाव ही है। यानी हम अपने आप को कितना सुरक्षित रख सकते हैं। *मित्रों* पूरी दुनिया विषम परिस्थितियों से गुजर रही है। हमे आवश्यकता है उस पर सकारात्मक चिंतन कर सभी को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए।

नकारात्मक चिंतन – ओह पड़ गए न सोचने की अब किसकी बात होने जा रही है। तो मित्रों आज हम चिंतन के दूसरे रूप जो सदियों से मानव जाति के लिए नुकसानदेह रहा है वो है नकारात्मक चिंतन। चलो हम वर्तमान परिस्थितियों पर ही विश्लेषण करे… आज हमारे सामने कोरोना वायरस के कहर को लेकर जो चारों ओर घमासान मचा हुआ है। हम उसको समझ नहीं रहे हैं। कुछ लोग उस पर नकारात्मक चिंतन करने में लगे हुए हैं। कोरोना वायरस के प्रभाव को हल्के में ले रहे हैं। उसके ऊपर न जाने कितने हँसी मजाक के संदेश, वीडियो बना रहे हैं। जो हमारे लिए घातक हो सकता है। क्योकि कोरोना वायरस की जागरूकता के बिना हम उसको रोक नहीं सकते हैं। और यह सब नकारात्मक चिंतन का ही एक भाग है। जिसका परिणाम कैसा होगा उसके बारे में हम कह नहीं सकते हैं। जैसा नाम वैसे परिणाम होंगे।

नकारात्मक चिंतन से फैलती है अफवाहें – ओह…. सबसे बड़ा वायरस जो कोरोना से भी तेज फैलता है वो है नकारात्मकत चिंतन से फैलती अफवाहें। *मित्रों*  वर्तमान में इन अफवाहें से बच के रहना होगा। किसी प्रकार का भ्रामक संदेश  फैलाने की कोशिश ना करे। हमें सोशल मीडिया पर सावधानी रखनी होगी। और एक अच्छे जागरूक इंसान बनने की कोशिश करनी होगी।

मित्रों आपसे सकारात्मक चिंतन में सहयोग की आशा –  मित्रों वर्तमान समय में साफ़ सफाई का विशेष ध्यान रखें। यही सबसे बड़ा उपाय है। किसी भीड़ भाड़ वाले इलाकों में एक पल भी नहीं रुके। किसी स्वास्थ्य संबधी कोई तकलीफ हो तो उसे छिपाने की कोशिश कताई ना करे। समय रहते अपने नजदीकी अस्पताल में दिखाने की मेहरबानी जरुर करे। तथा वर्तमान में अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो 24 घंटे का कर्फ्यू कोरोना वायरस चक्र में एक ब्रेक साबित हो सकता है। जी हां मित्रों 24 घंटे अगर कोरोना वायरस को नए इंसानी रूपी शरीर देखने को नहीं मिलेंगे तो वातावरण में मौजूद बड़ी संख्या में कोरोना वायरस खत्म हो जाएँगे। और हमारे लिए एक नए उजाले की किरण होगी।

मित्रों  हमारी सड़कें, बाज़ार ,दफ्तरों के दरवाजे, रैलिंग लिफ्ट आदि स्वतः ही स्टरलाइज हो जाएंगे। अंतः आप सभी से हाथ जोड़ कर निवेदन है कि आप इस मुहिम में साथ दें और सकारात्मक चिंतन कर अपने सकारात्मक विचारो से दूसरो को जागरूक करे । और हमारे लिए काम करने वाले जन सेवकों, चिकित्सकों व सैनिकों का उत्साह वर्धन करे।  चिंतन जरूरी है अवश्य करे, पर चिंता मुक्त रहकर

 

✍?कुमार जितेन्द्र

साईं निवास – मोकलसर, तहसील – सिवाना, जिला – बाड़मेर (राजस्थान)

मोबाइल न. 9784853785




हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #29 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 29 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

 

जो चाहे सुख ना घटे, होय दुखों का नाश ।

दासी बन तृष्णा रहे, मत बन तृष्णादास ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

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Our Fundamentals:

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer