मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – मावळला ‘अर्थ – सूर्य’ … – ☆ श्री आशिष बिवलकर ☆

श्री आशिष  बिवलकर

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

? मावळला ‘अर्थ-सूर्य’? श्री आशिष  बिवलकर ☆

अर्थ व्यवस्थेचा | गेला सरदार |

वित्त कारभार | सुधारून ||१||

*

विद्या विभूषित | श्रेष्ठ अर्थतज्ञ  |

राष्ट्रासी कृतज्ञ | देशसेवा ||२||

*

विसावे शतक | सरता सरता |

तारणहारता | व्यवस्थेचा ||३||

*

अर्थव्यवस्थेची | सुधारली नीती |

विकासाची गती | शिल्पकार ||४||

*

मुक्त धोरणाने | बदलली दिशा |

पल्लवीत आशा | देशासाठी ||५||

*

राजकारणात | अंगी मौनव्रत |

संयमी इभ्रत | राखुनिया ||६||

*

अर्थ माळेतील | मणी ओघळला |

आज मावळला | अर्थसूर्य ||७||

.. .. जेष्ठ अर्थतज्ञ डॉ. मनमोहन सिंग यांना भावपूर्ण श्रद्धांजली 💐

© श्री आशिष  बिवलकर

बदलापूर

मो 9518942105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – कहाँ गए वे लोग ? ☆ हेमन्त बावनकर ☆

💐 स्व. जयप्रकाश पाण्डेय 💐

☆ ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – कहाँ गए वे लोग ? ☆ हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

प्रिय मित्रों,

 वैसे तो इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति एक विशिष्टता लेकर आता है और चुपचाप चला जाता है। फिर छोड़ जाता है वे स्मृतियाँ जो जीवन भर हमारे साथ चलती हैं। लगता है कि काश कुछ दिन और साथ चल सकता । किन्तु विधि का विधान तो है ही सबके लिए सामान, कोई कुछ पहले जायेगा कोई कुछ समय बाद। किन्तु, जय प्रकाश भाई आपसे यह उम्मीद नहीं थी कि इतने जल्दी साथ छोड़ देंगे। अभी कुछ ही दिन पूर्व नागपूर जाते समय आपसे लम्बी बात हुई थी जिसे मैं अब भी टेप की तरह रिवाइंड कर सुन सकता हूँ। और आज दुखद समाचार मिला कि आप हमें छोड़ कर चले गए। इस बीच न जाने कितने अपुष्ट समाचार मिलते रहे और हम सभी मित्र परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करते रहे कि कुछ चमत्कार हो जाये और हम सब को आपका पुनः साथ मिल जाए। 

कहाँ गए वे लोग ?

इस वर्ष (२०२४) के प्रारम्भ से ही जय प्रकाश जी के मन में चल रहा था कि एक ऐतिहासिक साप्ताहिक स्तम्भ “कहाँ गए वे लोग?” प्रारम्भ किया जाये जिसमें हम अपने आसपास की ऐसी महान हस्तियों की जानकारी प्रकाशित करें जो आज हमारे बीच नहीं हैं किन्तु, उन्होने देश के स्वतंत्रता संग्राम, साहित्यिक, सामाजिक या अन्य किसी क्षेत्र में अविस्मरणीय कार्य किया है।  और २८ फरवरी २०२४ को इस श्रृंखला की पहली कड़ी में पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी की स्मृति में एक आलेख प्रकाशित कर इस श्रृंखला को प्रारम्भ किया। भाई जय प्रकाश जी की रुग्णावस्था में इस कड़ी को भाई प्रतुल श्रीवास्तव जी ने सतत जारी रखा। हमें यह कल्पना भी नहीं थी कि जिस श्रृंखला को उन्होने प्रारम्भ किया हमें उस श्रृंखला में उनकी स्मृतियों को भी जोड़ना पड़ेगा। इससे अधिक कष्टप्रद और दुखद क्षण हमारे लिए हो ही नहीं सकते। 

हम भाई जय प्रकाश जी और श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी के साथ मिलकर सदैव नूतन और अभिनव प्रयोग की कल्पना कर उन्हें साकार करने का प्रयास करते रहते थे। इसके परिणाम स्वरूप हमने महात्मा गांधी जी के150वीं जयंती पर गांधी स्मृति विशेषांक, हरिशंकर परसाई जन्मशती विशेषांक, दीपावली विशेषांक जैसे विशेषांकों को प्रकाशित किया। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी के 85 वे जन्मदिवस पर “85 पर – साहित्य के कुंदन” का प्रकाशन उनके ही मस्तिष्क की उपज थी। ऐसे कई अभिनव प्रयोग अभी भी अधूरे हैं और कई अभिनव प्रयोग उनके मन में थे जो उनके साथ ही चले गए। 

व्यंग्यम और व्यंग्य पत्रिकाओं से उनका जुड़ाव 

व्यंग्यम संस्था तो जैसे उनके श्वास के साथ ही जुड़ी थी। ऐसी कोई चर्चा नहीं होती थी जिसमें व्यंग्यम, अट्टहास और अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं की चर्चा न होती हो। व्यंग्यम के वरिष्ठ सदस्यों और व्यंग्यकार मित्रो के दुख का सहभागी हूँ।

व्यंग्य लोक द्वारा – “व्यंग्य लोक स्व. जयप्रकाश पाण्डेय स्मृति व्यंग्य सम्मान” की घोषणा 

श्री रामस्वरूप दीक्षित जी द्वारा प्राप्त सूचनानुसार व्यंग्य लोक द्वारा – “व्यंग्य लोक स्व. जयप्रकाश पाण्डेय स्मृति व्यंग्य सम्मान” की घोषणा की गई है। इस सम्मान में रु 5000 राशि प्रदान करने की घोषणा की गई है। साथ ही पहला सम्मान स्व. जयप्रकाश जी के गृहनगर जबलपुर में प्रदान किया जाएगा। यह एक प्रशंसनीय कदम है। 

डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी के अनुसार उन्होने सोशल मीडिया में 700 से अधिक मित्रों द्वारा अर्पित श्रद्धांजलियां और शोक संदेश देखे हैं जो उनके सौम्य व्यवहार और लोकप्रियता के प्रतीक हैं।  व्यंग्यम, अट्टहास, व्यंग्य लोक और अन्य पत्रिकाओं से जुड़े सभी वरिष्ठ साहित्यकारों और व्यंग्यकार मित्रो ने मेरे अनुरोध को स्वीकार कर इस विशेष अंक में भाई जय प्रकाश जी से जुड़ी हुई अपनी स्मृतियाँ और संक्षिप्त विचार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी, श्री प्रतुल श्रीवास्तव जी और श्री रमाकांत ताम्रकार जी के माध्यम से  प्रेषित किए।

इस प्रयास में हम आपके संस्मरणों/विचारों को श्रद्धासुमन स्वरूप भाई जय प्रकाश जी को समर्पित करते है।  

बस इतना ही।

हेमन्त बावनक, पुणे 

वर्तमान में बेंगलुरु से 

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – एक हरदिल-अज़ीज़ इंसान का विदा होना ☆ डॉ. कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – एक हरदिल-अज़ीज़ इंसान का विदा होना ☆ डॉ. कुंदन सिंह परिहार

भाई जयप्रकाश पांडेय अचानक ही, असमय, संसार से विदा हो गये। अल्पकाल में ही बीमारी ने उनका जीवन-दीप बुझा दिया, और हम सब उनके मित्र ठगे से देखते रह गये। उनके परिवार के लिए यह अकल्पनीय आघात है। प्रकृति ऐसे ही बेलिहाज हमें जीवन की अनिश्चितता और क्षणभंगुरता का आभास कराती है।

जयप्रकाश जी से संबंध 40-45 वर्ष पुराने हुए। कभी वे एक लेखक संगठन के स्थानीय सचिव और मैं उसका स्थानीय अध्यक्ष हुआ करते थे। तब कई बार विपरीत स्थितियों के विरुद्ध खड़े होने की उनकी दृढ़ता और संगठन-क्षमता का मुझे भान हुआ। वे बड़ी-बड़ी समस्याओं को शान्ति से निपटा देते थे, लेकिन यथासंभव वे लोगों से अपने पुराने संबंधों को बिगड़ने नहीं देते थे। उनके मित्रों की संख्या विशाल थी क्योंकि उनकी नज़र मित्रों की कमियों, कमज़ोरियों पर कम जाती थी। अभी उनके देहान्त के बाद फेसबुक पर मैंने उनके लिए लगभग 700 लोगों की श्रद्धांजलियां देखीं।

मैंने पाया कि पांडेय जी बड़े स्वाभिमानी थे। व्यर्थ में किसी के सामने झुकना उन्हें पसन्द नहीं था। अपने सम्मान के प्रति वे सचेत रहते थे। वे वैज्ञानिक सोच वाले थे। अंधविश्वासों, ढकोसलों के फेर में नहीं पड़ते थे।

जयप्रकाश जी सहज ही मित्रों का उपकार करते थे। मैं लगातार अपनी जन्मतिथि को छिपाता रहा क्योंकि मैं आत्मप्रचार को पसन्द नहीं करता, लेकिन पचासी पर पहुंचने पर उन्होंने मुझे पकड़ लिया और अपने निवास पर आयोजन कर डाला। उन्होंने मेरे ऊपर एक 80-85 पेज की टाइप्ड पुस्तिका निकाल दी जिसमें कई लोगों से लेख मंगवाकर शामिल किये। ऐसे ही मेरे एक व्यंग्य- संग्रह का विमोचन अपने निवास पर कर डाला। पत्रिकाओं में मुझसे पूछे बिना ही वे मेरी रचनाएं भेज देते थे। लोकप्रिय पत्रिका ‘अट्टहास’ के अक्टूबर 24 के अंक के अतिथि संपादक के रूप में उन्होंने जबलपुर के कई व्यंग्यकारों की रचनाएं छापीं। उसमें मेरी एक रचना मुझसे मांगे बिना ही भेज दी। बाद में दिसंबर अंक के लिए भी मेरी एक रचना भेज दी।

जबलपुर में ‘व्यंग्यम’ समूह की अधिकतर बैठकें उन्हीं के निवास पर हुईं जहां वे उपस्थित लेखकों की पूरी खातिरदारी करते थे। बीमारी के दौर में भी उनकी इच्छा पर यह सिलसिला चलता रहा। बीमारी को पराजित करने की उन्होंने पूरी कोशिश की, लेकिन अंततः बीमारी उन पर हावी हो गयी और हमने अपने बहुत प्यारे मित्र और समाज ने एक बहुत मूल्यवान व्यक्ति को खो दिया।

पांडेय जी के द्वारा छोड़े गये शून्य के मद्देनज़र मुझे शायर निदा फ़ाज़ली का शेर याद आता है—

‘उसको रुख़सत तो किया था, मुझे मालूम न था,

सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला।’

डॉ कुंदन सिंह परिहार

59, नव आदर्श काॅलोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर – 2 

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – जय प्रकाश पाण्डेय: मेरे भाई, सहकर्मी, और साहित्यिक मित्र ☆ श्री जगत सिंह बिष्ट☆

श्री जगत सिंह बिष्ट

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – जय प्रकाश पाण्डेय: मेरे भाई, सहकर्मी, और साहित्यिक मित्र ☆ श्री जगत सिंह बिष्ट 

जय प्रकाश पांडेय अंततः चले ही गए। अचानक नहीं गए, धीरे-धीरे जाते रहे। प्रतिदिन अपडेट मिलते थे। वे काफी समय से अस्वस्थ चल रहे थे और उनके हालचाल ठीक नहीं थे। पूछने पर गोलमोल उत्तर देते रहे। कल जब वो चले गए तो सब कुछ शून्य-सा हो गया। काफी देर तक कुछ सूझ ही नहीं रहा था। बस एक शांतता। एक वैराग्य भाव।

इसी वर्ष, मार्च-अप्रैल में, मैं उत्तराखंड भ्रमण के लिए गया हुआ था। उस दिन मैं मुनस्यारी से रानीखेत की ओर जा रहा था। रास्ते में, जयप्रकाश का फोन आया, “आप कहां हैं इस समय? वहां से जिम कार्बेट नेशनल पार्क कितनी दूर है? वहां मेरे एक अच्छे मित्र हैं, बहुत अच्छे इंसान हैं, आप ही की तरह। वो भी बिष्ट ही हैं। आपके कॉर्बेट भ्रमण की बढ़िया व्यवस्था कर देंगे। मैं उनसे कहता हूं। “

उनके सौजन्य से अति उत्तम व्यवस्था भी हो गई। लौटे, तो उन्होंने पूछा कि लगभग कितना खर्च आता है वहां का। इस वर्ष, वहां जाने का उनका मन था!

मेरा उनसे परिचय लगभग पचास वर्ष पुराना है। वर्ष 1975 से। तब मैं जबलपुर विश्वविद्यालय के रसायन-शास्त्र विभाग में स्नातकोत्तर कक्षा के फाइनल ईयर में पढ़ रहा था। वो प्रीवियस ईयर में आए। कालांतर में, वे मित्र से ज्यादा भाई की तरह हो गए। उनमें आत्मीयता बहुत थी।

संयोगवश, हम दोनों ने भारतीय स्टेट बैंक ज्वॉइन किया। अनेक बार सहकर्मी बनकर साथ-साथ काम करने का अवसर मिला।

वर्ष 1990-91 के आसपास की बात है। कादम्बिनी पत्रिका ने अखिल भारतीय व्यंग्य कथा प्रतियोगिता का आयोजन किया जिसमें मेरी एक रचना पुरस्कृत हुई। जयप्रकाश मुझसे पत्रिका से प्राप्त पत्र मांगकर ले गए। एक प्रेस विज्ञप्ति बनाई और दैनिक भास्कर में स्वयं पहुंचाकर आए। इस प्रसंग का उल्लेख इसलिए कर रहा हूं ताकि पाठक समझ सकें कि आयोजनधर्मी जयप्रकाश जी की कार्यशैली किस प्रकार थी।

परसाई जी के जन्मदिन के अवसर पर, लगभग उन्हीं दिनों, उन्होंने एक भव्य आयोजन लगभग अपने ही दम पर सफलतापूर्वक आयोजित किया था। इस प्रसंग की चर्चा खुद परसाई जी ने भी अपने एक लेख में की है। उन्होंने मना किया था, पर जयप्रकाश कहां मानने वाले थे!

मेरे पहले व्यंग्य-संग्रह की भूमिका हेतु वे ही मुझे डॉ कुंदन सिंह परिहार के पास ले गए थे। ‘पहल’ के आयोजन के अंतर्गत, मेरी पहली पुस्तक का ज्ञानरंजन जी के द्वारा विमोचन का श्रेय भी भाई राजेंद्र दानी और उनको जाता है।

जयप्रकाश जी दूसरों के लिए आयोजन करने में काफी समय और ऊर्जा खर्च करते रहे। समझाने पर भी उन्होंने अपने लेखन की ओर गंभीरता से कोई तवज्जो कभी नहीं दी। अब उनके लेखन का मूल्यांकन तो आलोचक ही करेंगे, मेरी क्या बिसात? लेकिन मैं इतना अवश्य कहूंगा कि उनमें जितनी गहरी संवेदना और परख थी, उसके मद्देनजर उनके समक्ष असीम संभावनाएं थीं। उन्होंने कितना लिखा, कितना न्याय किया, यह तो केवल उन्हीं को मालूम होगा। भोले बनकर, मंद-मंद मुस्कुराते हुए, अपने मन की करते जाना ही उनकी प्रवृत्ति थी, यही उनकी प्रकृति थी।

वे हमसे दूर चले गये हैं जहां न कोई दर्द है, न कोई पीड़ा। कोई बंधन नहीं, वहां पूर्ण स्वतंत्रता है। वहां भी उन्होंने अब तक कोई बड़े आयोजन की तैयारी शुरू कर ही दी होगी, ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है!

उन्हें हृदय से मेरी अश्रुपूरित, विनम्र श्रद्धांजलि। ॐ शांति, शांति, शांति!

श्री जगत सिंह बिष्ट

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – जयप्रकाश पांडेय जी का यूँ चले जाना ☆ डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ ☆

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – जयप्रकाश पांडेय जी का यूँ चले जाना ☆ डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

मैं जब तक अपने ये विचार फेसबुक पर पोस्ट कर रहा हूँगा तब तक जयप्रकाश पांडेय जी का पार्थिव शरीर चिता की लपटों में राख बन गया होगा…

जाने क्यूँ इक ख़याल सा आया

मैं न हूँगा तो क्या कमी होगी

ख़लील-उर-रहमान आज़मी की इन पंक्तियों ने मुझे झकझोरकर रख दिया। रह-रहकर मुझे जयप्रकाश पांडेय जी की याद सताने लगी। उनके पार्थिव शरीर के जलने की कल्पना मुझे व्यथित कर रही है। जी हाँ, मुझे जयप्रकाश पांडेय जी की कमी बड़ी खल रही है।

“व्यंग्य की नगरी का एक दीप बुझ गया

वह हँसता-मुस्कुराता चेहरा न जाने कहाँ गया

परसाई की नगरी जबलपुरवासी जय प्रकाश पांडेय जी का स्वर्गवास समकालीन हिंदी व्यंग्य साहित्य के लिए वह अपूरणीय क्षति है, जिसे शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है। ऐसा लगता है मानो व्यंग्य आंगन का दुलारा हमें छोड़कर चला गया है। उनकी लेखनी की धार, उनके शब्दों का जादू और उनकी सादगी भरी शख्सियत ने न जाने कितने साहित्य प्रेमियों के दिलों को छुआ।

हरिशंकर परसाई जी जैसे महान साहित्यकार की रचनाओं में जय प्रकाश पांडेय जी का नाम उल्लिखित होना, उनके लिए किसी सौभाग्य से कम नहीं था। लेकिन पांडेय जी ने इस सौभाग्य को केवल स्वीकारा ही नहीं, बल्कि इसे अपनी जिम्मेदारी समझकर समकालीन हिंदी व्यंग्य साहित्य में अपनी महत्वपूर्म उपस्थिति दर्ज कराई।

इसी वर्ष 10 अप्रैल को जब हरिशंकर परसाई जी का मकान ढहा दिया गया, तो उस घटना ने व्यंग्य साहित्य प्रेमियों के दिलों को झकझोर कर रख दिया। पांडेय जी इस पीड़ा को अपनी पीड़ा मानते हुए सोशल मीडिया पर इस घटना को प्रमुखता से उठाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। उनका कहना था कि परसाई का नाम लेने मात्र से कुछ नहीं होता, उन्हें जीने की कोशिश करना असली परसाइयत है। इसी कड़ी में मध्य प्रदेश के द क्लिफ न्यूज अंग्रेजी अखबार ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया। राज्य सरकार का संस्कृति विभाग निरुत्तर हो गया, लेकिन पांडेय जी के प्रयासों ने यह साबित कर दिया कि साहित्यकार केवल लेखनी से ही नहीं, अपने कर्मों से भी समाज को दिशा देते हैं।

जय प्रकाश पांडेय जी ने देशभर के बड़े साहित्यकारों को इस मुहिम में जोड़ा। आदरणीय प्रेम जनमेजय जी, विष्णु खरे जी, ज्ञानरंजन जी, रमेश सैनी जी, सुभाष चंदर जी, रमेश तिवारी जी, कुंदन परिहार जी और स्वयं पांडेय जी ने इस घटना की कड़ी भर्त्सना की। यहां तक कि जापान से पद्मश्री तोमियो मिजोकामी जी भी इस आंदोलन का हिस्सा बने। यह उनकी दूरदृष्टि और अथक प्रयासों का परिणाम था कि परसाई जी की स्मृति रूपी धरोहर को बचाने की मुहिम ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई।

जय प्रकाश पांडेय जी केवल व्यंग्यकार नहीं थे, बल्कि व्यंग्य की धरोहर को बचाने वाले सच्चे सिपाही भी थे। उनकी लेखनी में समाज के हर पहलू को सजीव रूप में प्रस्तुत करने की कला थी। वे विसंगतियों के माध्यम से समाज की गहराईयों को छूने में सक्षम थे। उनके शब्द न केवल चोट करते थे, बल्कि सोचने पर मजबूर भी कर देते थे।

जय प्रकाश पांडेय जी का व्यक्तित्व बेहद सरल, मिलनसार और प्रभावशाली था। उनकी आवाज में अपनापन और उनके विचारों में गहराई थी। वे मुझसे घंटों फोन पर बात करते और कहते, “उरतृप्त जी, आपकी लेखनी का मैं बड़ा प्रशंसक हूं। ” उनकी प्रशंसा न केवल प्रेरणा देती थीं, बल्कि आगे बढ़ने का हौसला भी।

उनसे मेरी दो बार भेंट हुई थी। पहली बार दिल्ली में व्यंग्ययात्रा सम्मान के दौरान और दूसरी बार रायपुर में महेंद्रसिंह ठाकुर द्वारा आयोजित सम्मान कार्यक्रम में। हर बार उनकी सादगी और बौद्धिक गहराई ने मन को छू लिया। उनका स्नेह और उनका मार्गदर्शन हमेशा याद रहेगा।

आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं, तो ऐसा लगता है मानो हिंदी व्यंग्य लोक का एक सितारा टूट गया हो। उनका जाना व्यंग्य प्रेमियों के लिए किसी असहनीय पीड़ा से कम नहीं है। उनकी हंसी, उनका व्यंग्य, और उनकी लेखनी हमें हमेशा उनकी याद दिलाती रहेगी।

“अलविदा कह गए, दिल को तोड़ गए,

साहित्य के आंगन में हमें अकेला छोड़ गए। “

जय प्रकाश पांडेय जी के योगदान को शब्दों में समेटना असंभव है। उनका नाम हिंदी व्यंग्य में हमेशा याद किया जाएगा। उनके विचार, उनकी लेखनी और उनकी यादें हमें सदैव प्रेरित करती रहेंगी।

“अब रह गई बस यादें, और अश्रुधारा,

पांडेय जी, आप थे हमारी आँखों का तारा। “

उनकी आत्मा को शांति मिले और हम सभी को उनकी लेखनी और विचारों से प्रेरणा लेकर उनके अधूरे सपनों को पूरा करने का साहस मिले। जय प्रकाश पांडेय जी, आप हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे।

अंत में अहमद आमेठवी के शब्दों में –

ज़िंदगी है अपने क़ब्ज़े में न अपने बस में मौत

आदमी मजबूर है और किस क़दर मजबूर है

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

हैदराबाद

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – याद आओगे जयप्रकाश ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – याद आओगे जयप्रकाश ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव 

डांस इंडिया डांस के व्यंग्यकार पांडे जी का जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है। इस कृति के प्रकाशन हेतु मैने ही उन्हें प्रकाशक से मिलवाया था। पुस्तक मेले से पहले भागम भाग आपाधापी में किताब छपी थी। ई अभिव्यक्ति सहित कई संपादन हमने साथ किए। पाठक मंच में उन्होंने मेरे साथ सह आयोजक की भूमिका निभाई, हम प्रायः फोन संपर्क में रहे।

जब वे नारायण गंज, मंडला में पदस्थ थे, वे चुटका परमाणु संयंत्र के संदर्भ में जन जागरण अभियान से जुड़े रहे, चूंकि इस परियोजना का सर्वे से लेकर प्रोजेक्ट रिपोर्ट तक के सारे प्रारंभिक कार्य मैं ही कर रहा था, हम संपर्क में आए थे।

व्यंग्यधारा के संचालन हेतु भी हम दोनों ने ही श्री रमेश सैनी जी का नाम सुझाया था। कुछ कार्यकम उनके साथ आयोजित किए। कई गोष्ठियों में साथ साथ सहभागिता रही।

जब मैने अट्टहास का विमोचन जबलपुर में इंस्टिट्यूशन आफ इंजीनियर्स में करवाया था तब एवं ‘मिली भगत’ के विमोचन अवसर पर उनका पूरा सहयोग मिला। उनके घर पर व्यंग्यम की कई गोष्ठियों में मैने व्यंग्य पढ़े हैं। उनकी पुस्तक की समीक्षा भी की।

मेरी किताब ‘खटर पटर’ के लिए उनके सुंदर हस्त लेख में लिखा पत्र मेरे पास सुरक्षित है।

वे बातचीत में उनकी कैंसर की बीमारी के ठीक होने के प्रति पूर्ण आश्वस्त लगते थे, उन्होंने मेरे टाटा मेमोरियल जाने के सुझाव को पहले विचार में ही नकार दिया था।

परमात्मा को शायद उनकी वहां ज्यादा जरूरत थी।

विनम्र श्रद्धा सुमन ही अर्पित कर सकते हैं।

याद आओगे जयप्रकाश।

विवेक रंजन श्रीवास्तव भोपाल

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – जय प्रकाश : दिखने में आम, फिर भी खास ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆

श्री अभिमन्यु जैन

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – जय प्रकाश : दिखने में आम, फिर भी खास ☆ श्री अभिमन्यु जैन 

मित्रों, जय प्रकाश विगत 40 वर्षों से भी अधिक समय से लेखन में रत हैं. जयपुर से प्रकाशित नई गुदगुदी में अपने लेख के साथ उनके लेख भी देखते मिलते रहे. सेवा निवृति पश्चात जबलपुर में निवास हुआ. पिछले 8 वर्षों से उनके सतत संपर्क में रहा. व्यंग्यम की स्थापना, बिना किसी पदाधिकारी के निर्वाचन या मनोनयन के हुई. कई आयोजन भी हुए. जय प्रकाश जी का लेखन कालजयी था. उन्होंने खूब लिखा, खूब नाम और यश कमाया. आकाशवाणी के अनेक केंद्रों से कहानी और व्यंग्य का दीर्घ कल तक प्रसारण, कई पत्र -पत्रिकाओं में कविता, कहानी, व्यंग्य का प्रकाशन, अनेक पत्रिकाओं में अतिथि सम्पादक की भूमिका भी निभाई. कबीर सम्मान, अभिव्यक्ति सम्मान, कादम्बिनी अखिल भारतीय व्यंग्य लेखन प्रतियोगिता में, एवं रविंद्र भवन भोपाल में नाट्य विधा में पुरस्कार प्राप्त.. बहुत लम्बी फेहरिस्त है. वे पुरस्कार का नहीं, पुरस्कार उनका पीछा करते रहे. पांडे जी ने जी भर के लिखा, और छपे भी जी भर के. उनका लेखन किसी भी रावण की लंका जलाने में स क्ष म है. कई जगह शब्दों का तुलनात्मक प्रयोग करके व्यंग्य को सहज और सरल बनाया. यह उनके लेखन की ताकत है. रचनाओं में फ़िल्मी गीतों का बहुत अच्छा प्रयोग किया है. कहीं कहीं तो ऐसा हुआ की सवाल और जवाब भी इन्हीं गीतों के माध्यम से हुआ. लेखन से सत्ता को जितना नंगा किया जा सकता था उन्होंने किया. उन लेखकों को आईना दिखाया है जो सत्ता का प्रवक्ता बनने के लिए अपने आपको किसी भी कीमत पर सर के बल खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं. खूब लिखने, प्रकाशन होने के बावजूद भी उनकी एक मात्र कृति डांस इंडिया डांस ही प्रकाशित हुई. इसकी प्रति समीक्षार्थ भेंट की जिस पर मैंने समीक्षा लिखी. प्रकाशित भी हुई.

 जय प्रकाशजी जिंदादिल इंसान, सहयोग को तत्पर, झूठ, फरेब उन्हें पसंद नहीं. वे पारदर्शिता को बहुत महत्त्व देते थे. और इसी व्यवहार की अपेक्षा वे दूसरों से करते थे. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है उनकी कैंसर की बीमारी. मैंने कई घरों में देखा है परिवार के किसी सदस्य के कैंसरग्रस्त हों जाने से पूरा परिवार ताकत लगाता है कि इस बीमारी की भनक बाहर किसी को न लगे किन्तु जय प्रकाश का कलेजा देखो कि उन्होंने डंके कि चोट अनेक ग्रुप में इस बीमारी से पीड़ित होने का खुलासा कर दिया. इस बीमारी कि जानकारी के बाद भी अपने घर पर व्यंग्यम कि मासिक गोष्ठी आयोजित की. ज़ब मिले हँसते, मुस्कराते रहे. पीड़ा को पीते रहे. वे अपनी पीड़ा से दूसरे को पीड़ित नहीं करना चाहते थे. दूसरों के मान सम्मान का बहुत ध्यान रखते थे. बार बार उनके निधन के समाचार अनेक ग्रुप में चल जाते, बाद में ज्ञात होता कि, सही नहीं है. तब अचानक से ऐसा लगता कि शायद कोई ईश्वरी चमत्कार होना है जो जय प्रकाश जो को स्वस्थ कर देगा, ऐसा हुआ नहीं.

वो रूठा इस अदा से कि मौसम बदल गया.

इक शख्श सारे शहर को वीरान कर गया.

श्री अभिमन्यु जैन 

 M. 9425885294

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – धारदार व्यंग्य शिल्पी – जयप्रकाश जी पांडेय ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

श्री यशोवर्धन पाठक

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – धारदार व्यंग्य शिल्पी – जयप्रकाश जी पांडेय श्री यशोवर्धन पाठक 

संस्कारधानी में व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर श्री जयप्रकाश पांडे के अकस्मात् निधन ने साहित्य जगत को शोक विह्वल कर दिया है। यूं तो विगत कुछ माहों से उन्हें असाध्य बीमारी ने जकड़ रखा था परन्तु किसी ने यह नहीं सोचा था कि वे अपने असंख्य चाहने वालों को इतनी जल्दी अलविदा कह कर अनंत यात्रा पर चले जाएंगे। उनकी अभी जाने की आयु नहीं थी। हिंदी साहित्य जगत ने उनसे बहुत उम्मीदें लगा रखी थीं लेकिन विधाता को शायद यही मंजूर था और हम विधि के विधान को स्वीकार करने के लिए विवश हैं।

श्री जयप्रकाश पांडे ने अपने नाम को पूरी तरह सार्थक किया था। साहित्य जगत में उन्होंने प्रकाश पुंज के रूप पहचान बनाई और अपने उल्लेखनीय योगदान से जय के अधिकारी बने। श्री पांडेय को व्यंग्य लेखन में महारत हासिल थी। सुप्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में उनके व्यंग्य लेख प्रमुखता से प्रकाशित किए जाते थे। मुझे अच्छी याद है कि साहित्य में उनकी गहरी अभिरुचि के दर्शन किशोरावस्था में ही होने लगे थे और शालेय जीवन में होनहार बिरवान के होत चीकने पात की कहावत को चरितार्थ कर दिया था।

हास्य विनोद और व्यंग्य में पांडेय जी की रुचि बचपन से ही थी जब हम साथ में जबलपुर में पी. एस . एम . कालेज के पीछे वरिष्ठ बुनियादी स्कूल में पढ़ते थे। पांडेय जी मुझसे एक वर्ष सीनियर थे। बुनियादी स्कूल उस समय मिडिल स्कूल के रुप में जबलपुर में प्रसिद्ध था। स्कूल में प्रधानाध्यापक श्री शीतल प्रसाद नेमा जी के मार्गदर्शन में छात्रों के मानसिक, शैक्षणिक और बौद्धिक विकास के लिए उस समय विभिन्न प्रकार की गतिविधियां संयोजित की जाती थी। मेरी और पांडेय जी की साहित्यिक क्षेत्र में विशेष रुचि होने के कारण हम दोनों भाषण, वाद विवाद और निबंध प्रतियोगिताओं में काफी भाग लेते थे। उस समय छात्रों के लेखन क्षमता के विकास के लिए प्रार्थना स्थल पर एक ब्लैक बोर्ड पर प्रतिदिन छात्रों के द्वारा सृजित रचनाएं लिखी जाती थीं। मैं और जयप्रकाश जी भी ब्लैक बोर्ड पर हास्य विनोद की प्रायः रचनाएं लिखकर छात्रों के पढ़ने के लिए प्रस्तुत करते। पांडेय जी कभी कभी विनोद पूर्ण व्यंग्य भी लिखकर प्रस्तुत करते और मैं उनकी व्यंग्य रचना की श्रेष्ठता और पठनीयता को देखते हुए उन्हें उस समय कभी कभी हरिशंकर परसाई कहकर भी संबोधित करता। उस समय परसाई जी की जबलपुर के साहित्यिक क्षेत्र में काफी चर्चा थी और हमारे स्कूल में एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उन्होंने काफी रोचक और प्रभावी भाषण दिया था। बुनियादी स्कूल के बाद हमने माडल हाई स्कूल में एडमीशन लिया और पांडेय जी ने वहां भी साहित्यिक लेखन और आयोजनों में भाग लिया और ख्याति प्राप्त की।

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में सर्विस ज्वाइन करने के बाद भी पांडेय जी का व्यंग्य लेखन निरंतर चलता रहा और साथ ही व्यंग्य रचना पाठ की गोष्ठियं भी। सेवानिवृत्ति के बाद तो उन्होंने पूरे समर्पित भाव से सक्रियता के साथ व्यंग्य लेखन को समय दिया और अपने निवास पर व्यंग्यम की नियमित रुप से गोष्ठियों का आयोजन किया। पांडेय जी ने व्यंग्य लेखन के लिए अनेक उच्च स्तरीय सम्मान और पुरस्कार प्राप्त किए। उनकी अनेक व्यंग्य कृतियों प्रकाशित और पुरस्कृत भी हुई।

श्री जयप्रकाश पांडेय के व्यक्तित्व की अनूठी विशेषताओं को थोडे से शब्दों में व्यक्त करने के लिए मेरी ये पंक्तियां गागर में सागर का उदाहरण बन सकती हैं –

व्यंग्य विधा के पैरोकार थे,

 व्यंग्य तुम्हारे धारदार थे,

 पैनापन तीखे प्रहार थे

 कलमकार तुम शानदार थे।

 🌹

श्री यशोवर्धन पाठक

 मो – ९४०७०५९७५२

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – व्यंग्य लेखक जयप्रकाश पांडे का आकस्मिक निधन हिंदी व्यंग्य को एक अपूरणीय क्षति ☆ श्री रामकिशोर उपाध्याय ☆

श्री रामकिशोर उपाध्याय 

☆ व्यंग्य लेखक जयप्रकाश पांडे का आकस्मिक निधन हिंदी व्यंग्य को एक अपूरणीय क्षति ☆ श्री रामकिशोर उपाध्याय 

प्रख्यात व्यंग्यकार जयप्रकाश पांडे जी के निधन की खबर सुनकर सहसा विश्वास नहीं हुआ | लेकिन जब दुखद सूचना की पुष्टि की तो मैं स्तब्ध रह गया | मेरी उनके साथ बहुत सी स्मृतियाँ जुड़ी हैं जिन्हें आज मैं याद कर रहा हूँ। माध्यम साहित्यिक संस्थान के मध्य प्रदेश राज्य के प्रभारी और अट्टहास पत्रिका से जुड़े होने के नाते वे मेरे साथ निरंतर संपर्क में रहते थे | कुछ माह पूर्व उन्होंने ख्यात व्यंग्य पत्रिका ‘अट्टहास’ का मध्यप्रदेश के व्यंग्यकारों पर केन्द्रित अंक का सम्पादन बड़ी कुशलतापूर्वक किया था | अभी गत नवम्बर माह श्री भगवत दुबे (अध्यक्ष /कादम्बरी ) पर केन्द्रित अट्टहास के अंक के सम्पादन और संकलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी |बैंकिंग जैसे व्यवसाय से जुड़े होने के बावजूद आप शानदार व्यंग्य लिख रहे थे – बिलकुल हरिशंकर परसाई के परंपरा के अनुरूप | गत अगस्त में उन्होंने व्यंग्य पुरोधा हरिशंकर परसाई की जन्मशती के अवसर पर शानदार कार्यक्रम का जबलपुर में आयोजन कर एक कुशल प्रबंधक होने का परिचय दिया | ‘व्यंग्यम’ के माध्यम से अन्य प्रबुद्ध साहित्यकारों के सहयोग से गत आठ वर्षों से वे नियमित रूप से मासिक गोष्ठियाँ आयोजित कराकर व्यंग्य का जबलपुर में परचम लहरा रहे थे | इसे एक प्रकार से हरिशंकर परसाई की व्यंग्य ज्योति को निरंतर प्रज्वलित करते रहने के एक सार्थक प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए |

कादम्बरी संस्था के सम्मान हेतु मैंने उनके व्यक्तिगत आग्रह पर आवेदन किया था | लेकिन मुझे पता नहीं था कि मुझे व्यंग्य लेखन के लिए मिलने वाला उन्होंने अपने बड़े भाई की स्मृति में वित्त पोषित किया होगा | यह उनके औदार्य और पारस्परिक सम्मान की भावना का परिचायक है जिसे मैं कभी विस्मृत नहीं कर सकता | अट्टहास के तैतीसवें सम्मान समारोह में उन्हें १३ जुलाई को उपस्थित होना था लेकिन वे स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से कारण दिल्ली नहीं आ पाए थे | अतः जब 9 नवंबर 2024 को मैं जबलपुर में ‘डॉ रामकृष्ण पाण्डेय स्मृति सम्मान-२ ०२४ ’ लेने आया तो उनका वह सम्मान पत्र भी साथ लेकर आया था | मिलने पर उनके चेहरे पर दिख रही चमक और उत्साह को देखकर कहीं से ऐसा नहीं लगता था वे सचमुच में बीमार थे | इस कार्यक्रम के अवसर पर वे तीन दिन तक लगातार हमारे साथ साये की तरह रहे – पहले दिन सुबह -सुबह हमें ट्रेन से लेकर होटल तक छोड़ने आये | उसी दिन आयोजित ‘ कादंबरी’ संस्था के सम्मान समारोह में हमें होटल से लेकर समारोह स्थल में पूरे समय रात्रि के नौ बजे तक साथ रहे | रात्रि में हमें होटल में छोड़ने आये | अगले दिन फिर नाश्ते के समय साथ रहे | फिर दस नवम्बर की शाम को व्यंग्यम की गोष्ठी में सभी अतिथियों के सम्मान में जुटे रहे और अगले दिन हमें ट्रेन में विदा तक करने आये | मेरे साथ अट्टहास के प्रमुख संपादक श्री अनूप श्रीवास्तव कहते थे कि हम उनके अतिथि हैं। भोजन पर पांडे जी और ताम्रकार जी अक्सर हमारे साथ रहा करते थे और साथ देने के लिए केवल सूप पीते थे कि कहीं हम अन्यथा न लें। इतना स्नेहिल और आत्मीय आतिथ्य तो कोई अपना नजदीकी रिश्तेदार भी नहीं करता | किसको पता था कि वह तीन दिनों का साथ हमारी अंतिम मुलाकात में बदल जायेगा | मैंने उनके भीतर एक जिंदादिल इंसान को देखा जो विपरीत परिस्थिति में भी हर कार्य खुद करके जीना चाहता था। उनकी प्यारी सी मोहक मुस्कान अब सदैव आँखों के सामने नाचती रहेगी | अभी तो उन्होंने साहित्य के लिए बहुत कुछ करना था। नियति को कौन रोक सकता है ? उनके असामयिक निधन से हिंदी व्यंग्य को जो क्षति हुई है वह अपूरणीय है | ऐसा लगता है कि व्यंग्य का एक सशक्त स्तम्भ गिर गया हो | उनके जाने से जहाँ जबलपुर और उनसे जुड़े लोग और परिवारजन अवश्य उनकी व्यक्तिगत कमी को अनुभव कर रहें होंगे तो वहीँ उनके सैकड़ों प्रशंसक और माध्यम साहित्यिक संस्था और अट्टहास के सुधी पाठक भी मेरी तरह उनकी रिक्ति को तीव्रता से अनुभव करेंगे। वैसे साहित्यकार कभी मरा नहीं करते, वे हमेशा अपने रचनाकर्म के माध्यम से सदा जीवित रहते हैं और विशाल ह्रदय के स्वामी और मेरे ऊपर अपनी अमिट छोड़ने वाले जय प्रकाश पांडे भी उसी प्रकार हमारी स्मृति में हमेशा साथ रहेंगे। मैं उनकी स्मृतियों को सहेजते हुए उन्हें अपनी और अट्टहास पत्रिका की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ | ॐ शांति।

श्री रामकिशोर उपाध्याय

कार्यकारी सम्पादक अट्टहास, नई दिल्ली

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – सरल हृदय के तीखे कलमकार थे जयप्रकाश पांडे ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

श्री प्रतुल श्रीवास्तव

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – सरल हृदय के तीखे कलमकार थे जयप्रकाश पांडे ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

(सादर श्रद्धांजलि)

ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति जैसा सोचता-विचारता है, जैसा कार्य करता है वैसा ही दिखने लगता है, वैसी ही उसकी वाणी और स्वभाव भी हो जाता है। चिंतक, कवि, कहानीकार, व्यंग्यकार, शिक्षक, नेता सभी चेहरे और वाणी से पहचान लिए जाते हैं, किन्तु इसके विपरीत भाई जयप्रकाश पांडे की सौम्य-सुदर्शन छवि, मुस्कुराहट और मधुर वाणी याने की उनका टोटल “सॉफ्ट लुक” देखकर आभास नहीं होता था कि वे व्यंग्यकार के रूप में इतनी कड़वी – कठोर बात लिखने-कहने वाले व्यक्ति थे।

शासकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय, जबलपुर से स्नातकोत्तर एवं गुरुघासीदास वि वि बिलासपुर से सी.डी. ए. करके आप 1980 में भारतीय स्टेट बैंक में सेवारत हुए और 2016 में मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुए। अब जिसकी स्वयं की आदत कामचोरों, भ्रष्टाचारियों, सामाजिक विसंगतियों और शासन-प्रशासन की कमजोरियों-गल्तियों को ताड़ने और उस पर करारा लिखने की थी उसे स्वयं तो अच्छा काम करके आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करना ही पड़ता। सो भाई जयप्रकाश जी ने बैंक के कार्यकाल में उत्कृष्ट कार्यों पर 48 सम्मान प्राप्त कर अपना और पूरे परिवार व मित्रों का गौरव बढ़ाया। उनके द्वारा रचित व्यंग्य और कहानियों का प्रकाशन देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों-पत्रिकाओं में हुआ। आकाशवाणी जबलपुर, भोपाल, रायपुर, बिलासपुर से प्रसारण हुआ। विचारपूर्ण श्रेष्ठ लेखन से उनके प्रशंसकों के साथ-साथ उनकी कीर्ति भी बढ़ती गई। उन्होंने परसाई स्मारिका, नर्मदा परिक्रमा, ई-अभिव्यक्ति पत्रिका आदि का संपादन किया। उनके प्रकाशित व्यंग्य संग्रह “डांस इंडिया डांस” की हर ओर चर्चा हुई। उनका एक और व्यंग्य संग्रह “रूप बदलते सांप” अभी अभी उस समय प्रकाशित होकर आया जब वे गंभीर रूप से अस्वस्थ होने के कारण नागपुर के एक चिकित्सालय में उपचार रत थे, अपने इस व्यंग्य संग्रह को लेकर वे बहुत उत्साहित थे। पुस्तक के सटीक शीर्षक के लिए उनकी मुझसे कई बार चर्चा हुई। अफसोस कि वे अपनी इस नव प्रकाशित पुस्तक को नहीं देख पाए। जयप्रकाश जी के सृजन पर उन्हें कबीर सम्मान, अभिव्यक्ति सम्मान, व्यंग्य यात्रा पत्रिका सम्मान, साहित्य सरोज पत्रिका सम्मान, कादम्बरी सम्मान सहित अनेक सम्मान मिले। नवंबर 24 में जबलपुर में आयोजित एक समारोह में सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री अनूप श्रीवास्तव ने उन्हें अट्टहास और माध्यम का “व्यंग्य गौरव अलंकरण” प्रदान किया। वे कादम्बनी के अ. भा. व्यंग्य लेखन प्रतियोगिता के विजेता भी रहे हैं। जयप्रकाश जी आजीवन देश की विभिन्न साहित्यिक, सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर समाज में रचनात्मक वातावरण बनाने में सक्रिय रहे। भ्रमण में रुचि, ज्ञान पिपासा, मिलन सरिता और विश्वसनीयता जैसे गुणों के कारण वे जिससे मिलते उसे अपना बना लेते थे। जयप्रकाश जी के असमय निधन से उनके गृह नगर जबलपुर सहित देश के सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले उनके मित्र अत्यंत दुखी हैं। साहित्य जगत ने न सिर्फ एक अच्छा लेखक वरन एक अच्छा व्यक्ति भी खो दिया।

 ख्यातिलब्ध साहित्यकार डॉ. कुंदन सिंह परिहार के अनुसार “जयप्रकाश पांडे के हृदय में देश के करोड़ों वंचितों और लाचार लोगों के लिए पर्याप्त हमदर्दी थी। वे बार-बार हमारे समाज की “क्रोनिक” व्याधियों तक पहुंचने का प्रयास करते रहे। ” डायमंड पॉकेट बुक्स के संपादक एम. एम. चंद्रा ने उनके बारे में लिखा था कि “जयप्रकाश जी शब्दों के तुलनात्मक प्रयोग से व्यंग्य को सहज सरल बना देते हैं। ” जयप्रकाश जी का स्वयं का कहना था कि “जब कोई अनुभव, घटना, विचार या स्मृति कई दिनों तक मन-मस्तिष्क में उमड़ती-घुमड़ती रहती है तो कलम से कागज पर उतर जाती है। भाई जयप्रकाश के न रहने से साहित्य जगत में तो रिक्तता आई ही है मैंने भी हर छोटी – बड़ी बात पर विचार विमर्श करने वाला एक ऐसा जिंदा दिल मित्र खो दिया जिससे किसी न किसी संदर्भ में लगभग रोज मेरी बात होती थी।

इस वर्ष 2 जनवरी को अपने जन्मोत्सव पर जयप्रकाश जी हमारे बीच नहीं होंगे। उन्हें सादर श्रद्धांजलि।

श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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