हिन्दी साहित्य – श्री गणेश चतुर्थी विशेष – कविता – ☆ जय जय जय हे गणपति देवा ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री गणेश चतुर्थी विशेष

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आज प्रस्तुत है श्री गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  द्वारा रचित  श्री गणेश वंदना  “जय जय जय हे गणपति देवा”.)

 

☆ जय जय जय हे गणपति देवा☆ 

 

रहकर शरण करें नित सेवा

जय जय जय हे गणपति देवा

 

मात-पितृ  गौरी-महादेवा

प्रभु मोदक का करें कलेवा

ऋद्धि-सिद्धि,नौ निधि के देवा

जय जय जय हे गणपति देवा

 

प्रथम पूज्य प्रभु आप कहाते

बिगड़े सबके काम बनाते

अर्पण तुमको मोदक, मेवा

जय जय जय हे गणपति देवा

 

अंतर्मन से जो भी ध्यावे

बाधा कोई निकट न आवे

मन से प्रभु की करते सेवा

जय जय जय हे गणपति देवा

 

कोढ़ी हो या कोई अंधा

बाँझ, बधिर अथवा बिन-धंधा

शुभ करते हैं गजमुख देवा

जय जय जय हे गणपति देवा

 

शरण आपकी जो भी आता

सुख, “संतोष”  सुमंगल पाता

कष्ट सभी के हरते देवा

जय जय जय हे गणपति देवा

 

रहकर शरण करें नित सेवा

जय जय जय हे गणपति देवा

 

© संतोष नेमा “संतोष” ✍

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 14 – मानकुँवर ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी ह्रदय स्पर्शी कविता मानकुँवर. सुश्री प्रभा जी जानती हैं  कि समय गहरे  से गहरे घाव भी भर देता है. किन्तु, एक नारी ह्रदय ही नारी की व्यथा को समझ सकती है. ऐसा नहीं कि सभी पुरुष संवेदनहीन होते हैं. महत्वपूर्ण यह है कि  ऐसी कविता की रचना का होना उनके संवेदनशील  ह्रदय  में  एक संवेदनशील  साहित्यकार का  जीवित होना है.  ऐसी रचना के लिए उस पात्र को जीना होता है और इतिहास के पात्रों को वर्तमान के पात्र के मध्य सामंजस्य बनाना होता है. 

सुश्री प्रभा जी का साहित्य जैसे -जैसे पढ़ने का अवसर मिल रहा है वैसे-वैसे मैं निःशब्द होता जा रहा हूँ। हृदय के उद्गार इतना सहज लिखने के लिए निश्चित ही सुश्री प्रभा जी के साहित्य की गूढ़ता को समझना आवश्यक है। यह  गूढ़ता एक सहज पहेली सी प्रतीत होती है। आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 14 ☆

 

☆ मानकुँवर ☆

 

आज अचानक  आठवलीस तू

 

मानकुँवर —-

 

पब्लिक  मेमरी शॉर्ट असते म्हणतात, ते अगदी  खरं आहे  !

 

किती  अस्वस्थ  झाले  होते  मी,

वर्तमानपत्रातल्या तुझ्या  हत्येच्या

बातमी नं !

 

नखशिखांत हादरलेच होते,

ज्यांनी  केला तुझा  खून ते तुझे बाप, भाऊच सख्ये !

 

आणि  तुझा गुन्हा तरी काय ??

 

तू केलंस प्रेम–

जातिधर्मात किंचित  फरक असलेल्या—

तुला आवडलेल्या  तरूणावर !

 

मानकुँवर

तू होतीस उच्चशिक्षित–

डॉक्टर !!

 

तुझं नाव मानकुँवर ठेवणारांनी

तुला मानानं जगूच दिलं नाही,

आणि  मरण ही किती  अपमानास्पद  !

 

मानकुँवर आज आठवलीस तू,

“भूले बिसरे गीत” मधल्या दर्दभ-या गाण्या सारखी!

 

मानकुँवर —

तू खानदान की ईज्जत,

तू शालीनता, तू मर्यादा,

तू नंदिनी  तू बंदिनी ——-

 

युगानुयुगे भळभळणारी एक जखम —-

स्री जाती च्या प्रारब्धावरची !

तू चिरंजीवी ——

तुला मरण नाही !

 

पण तू मागत नाहीस तेल—-

द्रौपदी च्या  पाच पुत्रांना मारणा-या पापी आश्वत्थाम्यासारखी,

 

कारण तू स्री आहेस,

तू ब-या करतेस स्वतःच्या जखमा,युगानुयुगे—-

 

आणि  ते करतच आहेत  वार  आजतागायत  !

 

डॉ. मानकुँवर सहगल  !!

 

© प्रभा सोनवणे,  

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – पंचम अध्याय (22) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पंचम अध्याय

(सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय)

 (ज्ञानयोग का विषय)

 

ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते ।

आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः ।।22।।

 

जो भी है स्पर्श के सुखोपभोग,प्रिय तात

दुखदायी,इनसे विलग नित ज्ञानी निष्णात।।22।।

 

भावार्थ :  जो ये इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले सब भोग हैं, यद्यपि विषयी पुरुषों को सुखरूप भासते हैं, तो भी दुःख के ही हेतु हैं और आदि-अन्तवाले अर्थात अनित्य हैं। इसलिए हे अर्जुन! बुद्धिमान विवेकी पुरुष उनमें नहीं रमता।।22।।

 

The enjoyments that are born of contacts are generators of pain only, for they have a  beginning and an end, O Arjuna! The wise do not rejoice in them. ।।22।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – कविता/गीत – ☆ शांति दे माँ नर्मदे ! ☆ – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

 

(प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  रचित गीत  ‘शांति दे माँ नर्मदे !‘

(इस गीत को स्वर/जीवन्त बना दिया है सुश्री दिव्या सेठ भाई सोहन सलिल परोहा जी ने. कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कर इस गीत को तन्मयता से देखें-सुनें.)

 

यूट्यूब लिंक:  शांति दे माँ नर्मदे को!

 

☆  शांति दे माँ नर्मदे ! ☆

सदा नीरा मधुर तोया पुण्य सलिले सुखप्रदे

सतत वाहिनी तीव्र धाविनि मनो हारिणि हर्षदे

सुरम्या वनवासिनी सन्यासिनी मेकलसुते

कलकलनिनादिनि दुखनिवारिणि शांति दे माँ नर्मदे ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

हुआ रेवाखण्ड पावन माँ तुम्हारी धार से

जहाँ की महिमा अमित अनुपम सकल संसार से

सीचतीं इसको तुम्ही माँ स्नेहमय रसधार से

जी रहे हैं लोग लाखों बस तुम्हारे प्यार से ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

पर्वतो की घाटियो से सघन वन स्थान से

काले कड़े पाषाण की अधिकांशतः चट्टान से

तुम बनाती मार्ग अपना सुगम विविध प्रकार से

संकीर्ण या विस्तीर्ण या कि प्रपात या बहुधार से ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

तट तुम्हारे वन सघन सागौन के या साल के

जो कि हैं भण्डार वन सम्पत्ति विविध विशाल के

वन्य कोल किरात पशु पक्षी तपस्वी संयमी

सभी रहते साथ हिलमिल ऋषि मुनि व परिश्रमी  ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

हरे खेत कछार वन माँ तुम्हारे वरदान से

यह तपस्या भूमि चर्चित फलद गुणप्रद ज्ञान से

पूज्य शिव सा तट तुम्हारे पड़ा हर पाषाण है

माँ तुम्हारी तरंगो में तरंगित कल्याण है  ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

सतपुड़ा की शक्ति तुम माँ विन्ध्य की तुम स्वामिनी

प्राण इस भूभाग की अन्नपूर्णा सन्मानिनी

पापहर दर्शन तुम्हारे पुण्य तव जलपान से

पावनी गंगा भी पावन माँ तेरे स्नान से  ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

हर व्रती जो करे मन से माँ तुम्हारी आरती

संरक्षिका उसकी तुम्ही तुम उसे पार उतारती

तुम हो एक वरदान रेवाखण्ड को हे शर्मदे

शुभदायिनी पथदर्शिके युग वंदिते माँ नर्मदे  ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

तुम हो सनातन माँ पुरातन तुम्हारी पावन कथा

जिसने दिया युगबोध जीवन को नया एक सर्वथा

सतत पूज्या हरितसलिले मकरवाहिनी नर्मदे

कल्याणदायिनि वत्सले ! माँ नर्मदे ! माँ नर्मदे !  ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – श्री गणेश चतुर्थी विशेष – आलेख – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – संकल्प ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ संकल्प ☆

 

प्रथम पूज्य, गजानन, श्रीगणेश को नमन।…

 

एक अनुरोध, वाचन संस्कृति का निरंतर क्षय हो रहा है। श्रीगणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक किसी एक पुस्तक / ग्रंथ का अध्ययन करने का संकल्प करें।

 

प्रतिदिन कुछ पृष्ठ पढ़ें और मनन करें।

 

महर्षि वेदव्यास के शब्दों को ‘महाभारत’ के रूप में लिपिबद्ध करने वाले, कुशाग्रता के देवता के प्रति यह समुचित आदरभाव होगा।

 

श्रीगणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 6 ☆ दो लफ़्ज़ों की कहानी ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा ☆

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “दो लफ़्ज़ों की कहानी”। )

 

साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 6  

☆ दो लफ़्ज़ों की कहानी 

 

दो लफ़्ज़ों की ही ये कहानी होती

कितनी आसान ये जिंदगानी होती

 

न ही कोई ग़म, न ज़ख्म होता

कितनी खूबसूरत ये रवानी होती

 

यूँ ही ख़ुशी गले से लिपट जाती

मासूम सी ज़िंदगी की कहानी होती

 

ये सितारे हरदम झिलमिलाते रहते

रात कितनी हसीं और सुहानी होती

 

हाँ, मुहब्बत भी अमर हो जाती

शाम की कहकशां आशिकानी होती

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 2 ☆ बाल साहित्य – रोचक विज्ञान बाल कहानियां ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”  शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।  अब आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी  की पुस्तक चर्चा  “रोचक विज्ञान बाल कहानियां।)

यह एक संयोग ही है क़ि पुस्तक के लेखक श्री ओम प्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी को 2 सितम्बर 2019 को ही शब्द निष्ठा सम्मान से सम्मानित किया गया.

(शब्द निष्ठा सम्मान समारोह 2019 अजमेर में 2 सितम्बर 2019 को  बालसाहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जी को सम्मानित करते हुए बाएँ से डॉ अजय अनुरागीजी, विमला भंडारीजी, आशा शर्माजी, (स्वयं) ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’,अनुविभगीय अधिकारी साहित्यकार सूरजसिंह नेगी जी संयोजक डॉ अखिलेश पालरिया जी। ई-अभिव्यक्ति की ओर से   श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जी  को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं.)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 2 ☆ 

 

 ☆ बाल साहित्य – रोचक विज्ञान बाल कहानियां ☆

पुस्तक चर्चा

बाल साहित्य .. रोचक विज्ञान बाल कहानियां

लेखक.. ओम प्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पृष्ठ ६०, मूल्य  १०० रु,

संस्करण पेपर बैक

प्रकाशक.. रवीना प्रकाशन गंगा नगर दिल्ली ९४

 

☆ बाल साहित्य  – रोचक विज्ञान बाल कहानियां – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

 

मस्तिष्क की ग्रह्यता का सरल सिद्धांत है कि  कहकर बताई गई   या पढ़ाकर समझाई गई बात की अपेक्षा यदि उसे करके दिखाया जावे या चित्र से समझाया जावे तो वह अधिक सरलता से बेहतर रूप में समझ भी आती है और स्मरण में भी अधिक रहती है. इसी तरह खेल खेल में समझे गये सिद्धांत या कहानियो के द्वारा बताई गई बातें बच्चो पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं, क्योकि कहानियो मे कथ्य के साथ साथ बच्चे मन में एक छबि निर्मित करते जाते हैं

जो उन्हें किसी तथ्य को याद करने व समझने में सहायक होती है.

विज्ञान कथा कहानी की वह विधा है जिसमें वैज्ञानिक सिद्धांतो या परिकल्पनाओ को कहानी के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है. विज्ञान कथा के द्वारा लेखक अपनी वैज्ञानिक कल्पना को उड़ान दे पाता है. मैने अपनी १९८८ में लिखी विज्ञान कथा में कल्पना की थी कि सड़को में स्ट्रीट लाइट की जगह एक कम ऊंचाई पर छोटा सा भू स्थिर उपग्रह हर शहर के लिये छोड़ा जावे, मेरी यह कहानी विज्ञान प्रगति में छपी है. हाल ही चीन ने इस तरह की परियोजना को लगभग मूर्त रूप दे दिया है, जिसमें वे आर्टीफीशियल मून लांच कर रहे हैं. इसी तरह मेरी एक विज्ञान कथा में मैने सेटेलाईट में लगे कैमरे से अपराध नियंत्रण की कल्पना की थी जो अब लगभग साकार है. देखें बिना तार के रेडियेशन से एक जगह से दूसरी जगह बिजली  पहुंचाने की मेरी विज्ञान कथा में छपी हुई परिकल्पना कब साकार होती है.

ओम  प्रकाश क्षत्रिय प्रकाश एक शिक्षक हैं. वे बच्चो को विज्ञान पढ़ाने के लिये रोचक कथा में पिरोकर उन्हें विज्ञान के गूढ़ सिद्धांत समझाते हैं. कहानी बुनने के लिये वे कभी बच्चे की नींद में देखे स्वप्न का सहारा लेते हैं तो कभी पशु पक्षियो, जानवरो को मानवीय स्वरूप देकर उनसे बातें करते हैं. संग्रह में कुल १७ छोटी छोटी कहानियां हैं, हर कहानी में एक कथ्य है. पहली कहानी ही  गुरुत्वाकर्षण का नियम समझाती है. इंद्रढ़नुष के सात रंग श्वेत रंग के ही अवयव हैं यह वैज्ञानिक तथ्य  बताने के साथ ही परस्पर मिलकर रहने की शिक्षा भी देते हुये इंद्रढ़नुष बिखर गया कहानी बुनी गई है. इसी तरह प्रत्येढ़क कहानी बच्चो पर अलग शैक्षिक प्रभाव छोड़ती है.

किताब बहुत बढ़िया है व शालाओ में बड़ी उपयोगी है.

टिप्पणी… विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १, शिला कुंज नयागांव जबलपुर

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं – # 14 – सुघड़ बहू ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक बेहतरीन लघुकथा “सुघड़ बहू ”।  श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ़ जी की कलम को इस बेहतरीन लघुकथा के माध्यम से  समाज  को अभूतपूर्व संदेश देने के लिए  बधाई ।)

 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 14 ☆

 

☆ सुघड़ बहू ☆

 

माधवी  बहुत सुशील संस्कार वान लड़की शादी से दुल्हन बन कर ससुराल आई। कुछ दिनों के बाद सभी मेहमानों के जाने के बाद घर के सदस्य बच गये। वहां एक बहुत ही खराब आदत थी, खाना खाने के बाद उसी थाली में कुल्ली कर हाथ धोने की। जो माधवी को  कहीं से भी अच्छा नहीं लग रहा था। उसने अपने पतिदेव से कही, उन्होंने भी कह दिया हमारे यहां सभी ऐसा ही करते है। तुम नया कुछ नहीं कर सकती।

माधवी ने भी सब को अच्छी आदत डालने का बीडा उठाया।

खाना परोसने के बाद वह वहीं खड़ी रहती। एक हाथ में पानी और दूसरे हाथ पर हाथ धोने वाला बर्तन। सबको हाथ धुलाती थी। और फिर बर्तन बाहर रख कर आ जाती थी। सबको बहुत बुरा लगता था। कई बातें भी बनती थी। परन्तु जो गलत था उसे वह सुधार रहीं थीं। धीरे-धीरे सभी को समझ आने लगा। वास्तव मे जो जूठे बर्तन उठाये जिसमें सुबह शाम हाथ धोकर कुल्ला किया जाये, तो उसको कितना खराब लगता होगा।

अब तो सब बाहर एक निश्चित जगह पर जाकर हाथ धोने लगे। पतिदेव भी खुश थे कि जो अच्छा काम है। उसे अपना लेना चाहिए। अब तो देखा-देखी सभी इस का ख्याल करने लगे।

माधवी सब के लिये अब “सुघड़ बहु ‘बन गई। उसे भी एक नयी पहल पर अच्छा लगा। अपनी जीत पर मुस्कुराने लगी।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ क्यों लिखता हूँ मैं….? ☆– श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”

श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”

 

☆ क्यों लिखता हूँ मैं….? ☆ 

 

क्यों लिखता हूँ मैं….?

किसके लिए लिखता हूँ मैं….?

क्या समाज के बारे में लिखता हूँ मैं….?

क्या समाज अच्छा या खराब है इसलिए लिखता हूँ मैं….?

क्या समाज सुधार के लिए लिखता हूँ मैं….?

क्या सिर्फ समाज की कमियाँ ही लिखता हूँ मैं….?

क्या देश के लिए लिखता हूँ मैं….?

क्या मेरा देश महान है, इसलिए लिखता हूँ मैं….?

क्या देश कि वास्तविकता दिखाने के लिए लिखता हूँ मैं….?

क्या किसी की महानता के लिए लिखता हूँ मैं….?

क्या मुझे किसी से प्रेम है….इसलिए लिखता हूँ मैं….?

क्या सिर्फ प्रेम का श्रृंगार के लिए लिखता हूँ मैं….?

क्या प्रेम वियोग में लिखता हूँ मैं….?

क्या  प्रेम ईश्वर की देन है…इसलिए लिखता हूँ मैं….?

क्या ईश्वर की आराधना के लिए लिखता हूँ मैं….?

क्या किसी पुरस्कार की चाह में लिखता हूँ मैं….?

क्या लोग मुझे याद रखें, इसलिए लिखता हूँ मैं….?

क्या सामान्य से अलग हूँ इसलिए लिखता हूँ मैं….?

क्या वजह है….क्यों लिखता हूँ मैं….?

शायद कवि हूँ मैं….?

इसलिए सिर्फ मन की बात लिखता हूँ मैं….

 

© माधव राव माण्डोले “दिनेश”, भोपाल 

(श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”, दि न्यू इंडिया एश्योरंस कंपनी, भोपाल में सहायक प्रबन्धक हैं।)

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #14 – शुद्र मागण्या* ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

 

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक सामयिक एवं सार्थक कविता  “शुद्र मागण्या*”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 14 ☆

 

? शुद्र मागण्या* ?

 

हवा कशाला रंग नि कागद

हृदयावरती चित्र काढण्या

नजर एकदा टिपून घेते

साऱ्या बाबी अशा देखण्या

 

तुझे देखणे रूप मनोहर

नकोच अंबर नको चांदण्या

ओठांवरती मधाळ पोळे

पराग जाऊ कशा शोधण्या

 

पानामागे खरडुन पाने

हृदयी टोचू नको टाचण्या

हृदयाचे हृदयी प्रक्षेपण

नको पाठवू पत्र वाचण्या

 

अंधाराशी वाद न काही

त्याच्या काही शुद्र मागण्या

काळोखाशी भिडेल मी या

मिटून घे तू तुझ्या पापण्या

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

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