आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – पंचम अध्याय (21) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पंचम अध्याय

(सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय)

 (ज्ञानयोग का विषय)

 

बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम्‌।

स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते ।।21।।

 

अनासक्त सब भोग से आत्मा में सुख आप्त

परब्रम्ह में अमर सुख उसे सदा सब प्राप्त।।21।।

 

भावार्थ :  बाहर के विषयों में आसक्तिरहित अन्तःकरण वाला साधक आत्मा में स्थित जो ध्यानजनित सात्विक आनंद है, उसको प्राप्त होता है, तदनन्तर वह सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा के ध्यानरूप योग में अभिन्न भाव से स्थित पुरुष अक्षय आनन्द का अनुभव करता है॥21॥

 

With the self unattached to the external contacts he discovers happiness in the Self; with the self engaged in the meditation of Brahman he attains to the endless happiness. ।।21।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




मराठी साहित्य – श्री गणेश चतुर्थी विशेष – ☆ प्रार्थना ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

श्री गणेश चतुर्थी विशेष
सुश्री प्रभा सोनवणे

 

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी  द्वारा  श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित  एक प्रार्थना . भाद्रपद एक पवित्र माह  है और इस माह प्रत्येक घरों में श्री गणेश जी का आगमन होता है . श्री गणेश जी बुद्धि के देवता  तो हैं ही साथ ही वे  अपने भक्तों की चिंता भी करते हैं और संकटमोचन तो हैं ही. 

उनके ही शब्दों में  – 

भाद्रपद हा खुप पुनित पावन महिना आहे, घरो घरी श्रीगणेशा चे आगमन होते!

गणपती ही बुद्धीची देवता तर आहेच पण संकट निवारण करणारा हा देव भक्तांचा विशेष आवडता देव आहे!

१९८५ साली लिहिलेली ही  गणेशाची प्रार्थना—

☆ प्रार्थना ☆

 

विनायका, हे श्रीगणेशा दया कर देवा

आलो आम्ही तव चरणाशी आशीर्वाद द्यावा

 

मंगलमय हे रूप मनोहर,

माता गिरीजा, पिता शंकर

तुझ्या दर्शने विघ्ने टळतील

नामस्मरणे संकटे पळतील!

 

हे हेरंबा मयूरेश्वर ओंकार,

आमची आराधना स्वीकार!

 

जास्वंदी ही लाल तांबडी, हिरवी दुर्वांकुरे,

आणले भावभक्तीचे हारतुरे!

श्रद्धेच्या स्नेहाने तेवती नयनांची निरांजने,

तुझ्या दर्शना आतुरली आमची मने!

 

दर्शन देऊन पावन करावे,

सर्वार्थाने आम्हा रक्षावे,

हीच एक प्रार्थना,

तुझ्या चरणी गजानना!

 

© प्रभा सोनवणे,  

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]




मराठी साहित्य – श्री गणेश चतुर्थी विशेष – ☆ गणराजाला करूनी वंदन ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(आज प्रस्तुत है श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  विशेष कविता/वंदना  गणराजाला करूनी वंदन  .)

 

☆ गणराजाला करूनी वंदन  ☆

 

णराजाला करूनी वंदन

गा था गाऊ शिवपुत्राची

गि रीजा सूत तू विघ्नेश्वर

गी ता तुझीया नामाची.

गु णेश मुर्ती सदा अंतरी

गू ढ गुंजनी तुझी स्मृती

गे ही माझ्या वास असावा

गै रवाजवी नको कृती.

गो पुर होई अक्षर माझे

गौ रव सारा भक्तीचा.

गं मत जंमत तुझ्या उत्सवी

गः वर्ण हा सौख्याचा.

✒  © विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.




हिन्दी साहित्य – श्री गणेश चतुर्थी विशेष – कविता – ☆ सिध्दिदायक गजवदन ☆ – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्री गणेश चतुर्थी विशेष

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

 

((आज )प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित कविता सिध्दिदायक गजवदन । ) 

 

☆ सिध्दिदायक गजवदन ☆

 

जय गणेश गणाधिपति प्रभु, सिध्दिदायक, गजवदन

विघ्ननाशक कष्टहारी हे परम आनन्दधन ।।

 

दुखो से संतप्त अतिशय त्रस्त यह संसार है

धरा पर नित बढ़ रहा दुखदायियो का भार है ।

हर हृदय में वेदना, आतंक का अंधियार है

उठ गया दुनिया से जैसे मन का ममता प्यार है ।।

दीजिये सदबुद्धि का वरदान हे करूणा अयन ।।१।।

 

प्रकृति ने करके कृपा जो दिये सबको दान थे

आदमी ने नष्ट कर ड़ाले हैं वे अज्ञान से।

प्रगति तो की बहुत अब तक विश्व में विज्ञान से

प्रदूषित जल थल गगन पर हो गए अभियान से ।।

फंस गया है उलझनो के बीच मन हे सुख सदन ।।२।।

 

प्रेरणा देते हृदय को प्रभु तुमही सद्भाव की

दूर करके भ्रांतियां सब व्यर्थ के टकराव की।

बढ़ रही जो सब तरफ हैं वृत्तियां अपराध की

रौंद डाली है उन्होंने फसल सात्विक साध की ।।

चेतना दो प्रभु की उन्माद से उधरे नयन ।।३।।

 

जय गणेश गणाधिपति प्रभु, सिध्दिदायक, गजवदन

विघ्ननाशक कष्टहारी हे परम आनन्दधन ।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८




मराठी साहित्य – श्री गणेश चतुर्थी विशेष – ☆ वंदन हे स्वीकार ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

श्री गणेश चतुर्थी विशेष

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(आज प्रस्तुत है श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  विशेष कविता वंदन हे स्वीकार.)

 

वंदन हे स्वीकार

 

एकदंत तू ,वरद विनायक, वंदन हे स्वीकार

कार्यारंभी करतो पूजन तुझाच जय जय कार.

 

तिलकुंदाचे केले लाडू, गुंफीयेला जास्वंदीचा हार

दुर्वादल ते लक्ष अर्पिले , देवा  आळवीत ओंकार.

 

सहस्त्र रूपे ,तुझी दयाळा ,  सृजनशील दरबार

माघ चतुर्थी ,जन्मोत्सव हा, शोभे निर्गुण निराकार.

 

गाणपत्य तू ,बुद्धी दाता, करीशी चराचरी संचार

कृपा असावी आम्हावरती ,  कर जीवन हे साकार.

 

अक्षर अक्षर दैवी देणे, मूर्त शारदा शब्दाकार

गणाधीश तू, ईश गुणांचा, देवा कलागुण स्वीकार.

 

तुला पूजिले, देहमंदिरी, देना  जीवनाला आधार

जन्मा आला, जगत नियंता, देवा शब्दपुष्प स्वीकार.

 

✒  © विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.




हिन्दी साहित्य- श्री गणेश चतुर्थी विशेष – व्यंग्य – ☆ गणपति और गणतंत्र ☆ श्री विनोद साव

श्री गणेश चतुर्थी विशेष

श्री विनोद साव 

(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध व्यंग्यकर श्री विनोद साव जी का  श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर विशेष व्यंग्य – गणपति और गणतंत्र. )

 

☆ व्यंग्य – गणपति और गणतंत्र ☆

गणपति की स्थापना कर उसे उत्सव के रूप में मनाने का श्रीगणेश किया लोकमान्य तिलक ने. गणतंत्र की स्थापना – भीमराव अम्बेडकर द्वारा प्रस्तावित संविधान की संसद द्वारा स्वीकृति के बाद हुई. गणपति और गणतंत्र दोनों को राष्ट्रीय स्वरुप देने का श्रेय महाराष्ट्र को मिला. गणेशोत्सव की शुरुआत तिलक ने जनता में देशप्रेम व राष्ट्रीयता की भावना जगाने और राष्ट्रीयता का सूत्रपात करने के लिए की थी. अम्बेडकर ने देश की निरीह और वंचित जनता के लिए उन्नति के द्वार खोले संविधान को गणतांत्रिक रूप देकर. लेकिन हर साल गणपति हमारे पास आते रहे और गणतंत्र हमसे दूर होता गया. आज़ादी के बाद गणपति रह गए जनता के हिस्से और गणतंत्र के ठेकेदार बन गए गणनायक अर्थात हमारे जन-प्रतिनिधि जो संविधान द्वारा दी गयी सुविधाओं को खुद भोगते रहे और जनता को उनके मौलिक अधिकारों से भी वंचित करते रहे. जनता बेचारी गणतंत्र की आस में हर साल अपना रोना गणपति जी के पास रो लेती है.
वैसे तथाकथित गणनायकों से तो गणपति अच्छे जो हर साल आ जाते हैं. जनता पुकारती है ‘हे गणपति महराज तोर जय बोलावन जी’ और सुनकर भोले-भाले, ऊपर जनेऊ और नीचे लंगोटी धारण किए हुए मस्ती में सूंड हिलाते हुए वे अपने श्रद्धालुओं के बीच पहुँचते ही लम्बोदराय-सकलाय हो जाते हैं. उनके विराजमान होते ही सारा शहर बाग़-जाग हो उठता है. फिर ग्यारह दिनों तक गजबदन विनायक का धूम-धड़ाका. नारियल, लड्डू और ककडी का भोग है. प्रसाद भी सबके लिए ‘आरक्षित’ है– नारियल – भक्तजनों के लिए, लड्डू – गणेशजी की उदारपूर्ति में और ककडी – उनके मूसकराज को नसीब. सारे शहर की रौनक बढ़ गयी है. नौजवान और नौजवानियों का हुजूम है रिमझिम बारिश में भीगते हुए. गणेश प्ररिक्रमा के बहाने ‘वाहन-चालन और सौन्दर्य-दर्शन दोनों ही पूरे उफान पर हैं.
कई विभाग और संभाग अपने-अपने हिसाब से गणपति जी को ‘प्लीज’ करने में लगे रहते हैं. ग्यारह दिनों का चार्ज गणपति महराज के जिम्मे है. सबके ‘हेड ऑफ दी  डिपार्टमेंट’ वही बन जाते हैं. भक्तजन भी अपनी-अपनी फरमाइश की लिस्ट लेकर एक साथ चीत्कार कर उठे हैं ‘हे गणनायक बुद्धिविनायक.. इस बार तो हमें कुछ देते जाओ – महंगाई बढ़ रही है महंगाई भत्ता बढाओ, ऋण मुक्त कराओ लगान माफ़ी करवाओ, बेजा कब्जे पर पट्टा दिलवाओ, धान के मूल्य से लेव्ही हटवाओ, पब्लिक सेक्टर को प्राइवेट बनवाओ, थर्ड क्लास की नौकरी लगवाओ. इस तरह हर बढे-चढ़े बजट पेश होने के बाद गणपति महाशय इंस्पेक्शन’ के लिए आते हैं और ग्यारह दिनों तक जमकर खिदमत करवाकर बजट बिगाड़कर चले जाते हैं.
हर रोज नयी समस्या का श्रीगणेश करने वाले इस देश की भार-क्षमता चमत्कृत कर देती है. हर साल आ तो जाते हैं गणपति पर कब आयेगा सचमुच पूर्ण गणतंत्र इस देश में?

 

✒  © विनोद साव , छत्तीसगढ़ 




मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #-13 – कविता – सांजवात ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।  आज  प्रस्तुत है संध्या -वंदना पर आधारित कविता  “सांजवात । )

 

? साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य #- 13? 

 

? सांजवात  ?

 

देवाजींच्या मंदिरात

तेवणारी सांजवात।

घोर अंधारल्या मना

देई उजाळा क्षणात।

 

प्रकाशली सांजवात

घरदार प्रकाशित ।

सायं प्रार्थना शमवी

विचारांचे झंजावात।

 

सांजवात लावूनिया

आळवावे योगेश्वरा।

विनाशावी शत्रू बुद्धी

सुख शांती येवो घरा।

 

मंद प्रकाश निर्मळ

धूप देई परिमळ।

सांजवात प्रकाशता

दूर पळे अमंगळ।

 

©  रंजना मधुकर लसणे✍

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105




हिन्दी साहित्य – आलेख – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – डर ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ डर ☆

 

पिता की खाँसी की आवाज़ सुनकर उसने रेडियो की आवाज़ बेहद धीमी कर दी। उन दिनों संयुक्त परिवार थे, पुरुष खाँस कर ही भीतर आते ताकि महिलाओं को सूचना मिल जाए।…”संतोष की माँ, ये तुम्हारे लल्ला को बताय देना कि वो आज के बाद उस रघुवंस के आवारा छोकरे के साथ दीख गया तो टाँग तोड़कर घर बिठाय देंगे, कौनो पढ़ाई-वढ़ाई नाय, सब बंद कर देंगे”…. वह मन मसोस कर रह गया। रात को बिस्तर पर पड़े-पड़े सोचता रहा कि 17 बरस का तो हो लिया, अब और कितना बड़ा होना पड़ेगा कि पिता से डरना न पड़े।.. ‘शायद बेटे का जन्म बाप से डरने के लिए ही होता है’, वह मन ही मन बड़बड़ाया और औंधा होकर सो गया।

आज उसका अपना बेटा 15 बरस का हो चुका। बेहद जिद्‌दी! कल-से उसने घर में कोहराम मचा रखा था। उसे अपने जन्मदिन पर मोटरसाइकिल चाहिए थी और अभी तो उसकी आयु लाइसेंस लेने की भी नहीं है। ऊपर से शहर का ये विकराल ट्रैफिक! उसने सोच लिया था कि अबकी बार बेटे की ये ज़िद्‌द पूरी नहीं करेगा।..”मॉम, साफ-साफ बता देना डैड को, नेक्स्ट वीक मेरे बर्थडे से एक दिन पहले तक बाइक नहीं आई न, तो मैं घर छोड़कर चला जाऊँगा.. और फिर कभी वापस नहीं आऊँगा।”…उसने बेटे की माँ के हाथ में बाइक के लिए चेक दे दिया। रात को बिस्तर पर पड़े-पड़े सोचता रहा,..’शायद बाप का जन्म बेटे से डरने के लिए ही होता है’..और सीधा होकर पीठ के बल सो गया।

(प्रकाशनाधीन संग्रह से)

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी

मोबाइल– 9890122603

[email protected]




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 11 – बेचारा प्यारा बिझूका ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की   ग्यारहवीं कड़ी में उनकी कविता  “बेचारा प्यारा बिझूका” । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 11 ☆

 

☆ बेचारा प्यारा बिझूका ☆ 

 

बेचारा प्यारा बिझूका

मुफ्त में ड्यूटी करता

करता कारनामे गजब

फटे शर्ट में मुस्कराता

चिलचिली धूप में नाचता

पूस की रातों में कुकरता

कुत्ते जैसा कूं कूं करता

खेत मे फुल मस्त दिखता

मुफ्त का चौकीदार बनता

हरदम अविश्वास करता

न खुद खाता न खाने देता

क्यों मोती की माला गिनता

 

……………….

 

बेचारा हमारा बिझूका

हितैषी कहता किसान का

देशहित में हरदम बात करता।

वोट मांगता और झटके देता

पशु पक्षियों को झूठ में डराता

और हर दम हाथ भी मटकाता

 

…………………..

 

बेचारा उनका बिझूका

सिनेमा में बंदूक चलाता

व्यंग्य में चौकीदारी करता

कविता में बेवजह घुस जाता

और

भूत की अपवाह फैलाता

योगी और किसान को डराता

रात को मोती माला जपता

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765



हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #14 – देश बनाने की जिम्मेदारी युवाओं पर ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

 

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है “देश बनाने की जिम्मेदारी युवाओं पर”  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 14 ☆

 

☆ देश बनाने की जिम्मेदारी युवाओं पर ☆

 

देश, जितना व्यापक शब्द है, उससे भी अधिक व्यापक है यह सवाल कि देश कौन बनाता है ? नेता, सरकारी कर्मचारी, शिक्षक, मजदूर, वरिष्ठ नागरिक, साधारण नागरिक, महिलाएं, युवा… आखिर कौन ? शायद हम सब मिलकर देश बनाते हैं. लेकिन फ़िर भी प्रश्न है कि इनमें से सर्वाधिक भागीदारी किसकी ? तब तत्काल दिमाग में विचार आता है कि यथा राजा तथा प्रजा. नेतृत्व अनुकरणीय उदाहरण रखे, व आम नागरिक उसका पालन करें तभी देश बनता है. देश बनाने की जिम्मेदारी सर्वाधिक युवाओं पर है. भारत के लिये खुशी की बात यह है कि हमारी जनसंख्या का पचास प्रतिशत से अधिक हिस्सा पच्चीस से चालीस वर्ष आयु वर्ग का है.. जिसे हम “युवा” कहते हैं, जो वर्ग सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, मानसिक सभी रूपों में सर्वाधिक सक्रिय रहता है, यह तो उम्र का तकाजा है । वहीं दूसरी तरफ़ लगातार हिंसक, अशिष्ट, उच्छृंखल होते जा रहे… चौराहों पर खडे़ होकर फ़ब्तियाँ कसते..यौन अपराधो में लिप्त तथाकथित युवाओं को देखकर मन वितृष्णा से भर उठता है । इस महत्वपूर्ण समूह की आज भारत में जो हालत है वह कतई उत्साहजनक नहीं कही जा सकती.पर सभी बुराईयों को युवाओं पर थोप देना उचित नहीं है ।

प्रश्न है, आजकल के युवा ऐसे क्यों हैं ? क्यों यह युवा पीढी़ इतनी बेफ़िक्र और मनमानी करने वाली है । जब हम वर्तमान और भविष्य की बातें करते हैं तो हमें इतिहास की ओर भी देखना होगा । भूतकाल जैसा होगा, वर्तमान उसकी छाया होगा ही  और भविष्य की बुनियाद बनेगा ।  आज के युवा को पिछले समय ने ‘विरासत’ में क्या दिया है, कैसा समाज और संस्कार दिये हैं ? आजादी के बाद से हमने क्या देखा है… तरीके से संगठित होता भ्रष्टाचार, अंधाधुंध साम्प्रदायिकता, चलने-फ़िरने में अक्षम लेकिन देश चलाने का दावा करने वाले नेता, घोर जातिवादी नेता और वातावरण, राजनीति का अपराधीकरण या कहें कि अपराधियों का राजनीतिकरण, नसबन्दी के नाम पर समझाने-बुझाने का नाटक और लड़के की चाहत में चार-पाँच-छः बच्चों की फ़ौज… अर्थात जो भी बुरा हो सकता था, वह सब विगत में देश में किया जा चुका है  । इसका अर्थ यह भी नहीं कि उस समय में सब बुरा ही बुरा हुआ, लेकिन जब हम पीछे मुडकर देखते हैं तो पाते हैं कि कमियाँ, अच्छाईयों पर सरासर हावी हैं । अब ऐसा समाज विरासत में युवाओं को मिला है, तो उसके आदर्श भी वैसे ही होंगे ।  राजीव गाँधी कुछ समय के लिये, इस देश के प्रधानमन्त्री नहीं बने होते, तो शायद हम आज के तकनीकी प्रतिस्पर्धा के युग में नहीं जी रहे होते । देश के उस एकमात्र युवा प्रधानमन्त्री ने देश की सोच में जिस प्रकार का जोश और उत्साह पैदा किया, उसी का नतीजा है कि आज हम कम्प्यूटर और सूचना तन्त्र के युग में जी रहे हैं “दिल्ली से चलने वाला एक रुपया नीचे आते-आते पन्द्रह पैसे रह जाता है” यह वाक्य उसी पिछ्ली पीढी को उलाहना था, जिसकी जिम्मेदारी आजादी के बाद देश को बनाने की थी, और दुर्भाग्य से कहना पड़ता है कि, उसमें वह असफ़ल रही । परिवार नियोजन और जनसंख्या को अनियंत्रित करने वाली पीढी़ बेरोजगारों को देखकर चिन्तित हो रही है, पर अब देर हो चुकी है। भ्रष्टाचार को एक “सिस्टम” बना देने वाली पीढी युवाओं को ईमानदार रहने की नसीहत देती है । देश ऐसे नहीं बनता… अब तो क्रांतिकारी कदम उठाने का समय आ गया है… रोग इतना बढ चुका है कि कोई बडी “सर्जरी” किये बिना ठीक होने वाला नहीं है । विदेश जाते सॉफ़्टवेयर या आईआईटी इंजीनियरों तथा आईआईएम के मैनेजरों को देखकर आत्ममुग्ध मत होईये… उनमें से अधिकतर तभी वापस आयेंगे जब  यहाँ वातावरण बेहतर होगा.  कस्बे में, गाँव में रहने वाले युवा जो असली देश बनाते है,  हम उन्हें बेरोजगारी भत्ता दे रहे हैं, आश्वासन दे रहे हैं, राजनैतिक रैलियाँ दे रहे हैं,  पान-गुटखे दे रहे हैं, मर्डर-हवस सैक्स, सांस्कृतिक अधोपतन को बढ़ावा देने वाली फिल्में दे रहे हैं, “कैसे भी पैसा बनाओ” की सीख दे रहे हैं, कानून से ऊपर कैसे उठा जाता है, बता रहे हैं….आज के ताजे-ताजे बने युवा को भी “म” से मोटरसायकल,और  “म” से मोबाईल  चाहिये, सिर्फ़ “म” से मेहनत के नाम पर वह जी चुराता है.स्थितियां बदलनी होंगी.  युवा पीढ़ी को देश बनाने की चुनौती स्वीकारनी ही होगी.उन्हें अपना सपना स्वयं देखना होगा,और एक सुखद भविष्य के निर्माण करने हेतु जिम्मेदारी का निर्वहन करना होगा. संवैधानिक व्यवस्था में रहकर बिना आंदोलन हड़ताल या प्रदर्शन किये, पाश्चात्य अंधानुकरण के बिना युवा चेतना का उपयोग राष्ट्र कल्याण में उपयोग आज देश में जरूरी है.  इन दिनों वातावरण तो राष्ट्र प्रेम का बना है, सरकार ने डिजिटल लिटरेसी बढाने हेतु कदम उठाये है, विश्व में भारत की साख बढ़ती दिख रही है, अब युवा इस मौके को मूर्त रूप दे सकते हैं।

 

© अनुभा श्रीवास्तव