हिन्दी साहित्य – आलेख – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि  – हरापन ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के कटु अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम  आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। )

 

संजय दृष्टि  – हरापन

जी डी पी का बढ़ना
और वृक्ष का कटना
समानुपाती होता है;
“जी डी पी एंड ट्री कटिंग आर
डायरेक्टली प्रपोर्शिएनेट
टू ईच अदर-”
वर्तमान अर्थशास्त्र पढ़ा रहा था..,
‘संजय दृष्टि’ देख रही थी-
सेंसेक्स के साँड़
का डुंकारना,
काँक्रीट के गुबार से दबी
निर्वसन धरा का सिसकना,
हवा, पानी, छाँव के लिए
प्राणियों का तरसना-भटकना
और भूख से बिलबिलाता
जी डी पी का
आरोही आलेख लिए बैठा
अर्थशास्त्रियों का समूह..!

हताशा के इन क्षणों में
कवि के भीतर का हरापन
सुझाता है एक हल-
जी डी पी और वृक्ष की हत्या
विरोधानुपाती होते हैं;
“जी डी पी एंड ट्री कटिंग आर
इनवरसली प्रपोर्शिएनेट
टू ईच अदर-”
भविष्य का मनुष्य
गढ़ रहा है..!

 

आपका दिन हरा रहे । 

©  संजय भारद्वाज , पुणे

[email protected]

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Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 1- Madhavi forgives Yayati ☆

Ms Neelam Saxena Chandra

 

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday Ms. Neelam Saxena Chandra ji is Executive Director (Systems) Mahametro, Pune. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem “Madhavi forgives Yayati”. This poem is from her book “Tales of Eon)

 

☆ Weekly column Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 1

 

☆ Madhavi forgives Yayati☆

 

The illustrious king once, Yayati

As I see you discarded and thrown

My heart goes out to thee

After all, you are my father own

 

For me, so difficult forgetting is

After all, you made me a prostitute

Blessed I was to be a mother of four kings

Traded I was for the heroes mute

 

Your own daughter, you presented to Sage Galva

Who offered me to three kings on earth

Sage Galva got his six hundred white horses

And I, to three kinds, gave birth

 

Further presented to Sage Vishwamitra

Another child I bore, another hurt I received

Returned back then to your Palace

After having borne sons four

 

You wished me to marry someone then

But after this misadventure how could i?

Into an ascetic I turned

Chanting hymns and chants in the forests nearby

 

Comprehending the futility of rage

To you, Yayati, forgiveness I impart

My sons shall give you a portion of their merits

And shall play, in my forgiveness, a special part

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक के व्यंग्य – # 7 ♥ जा तुझे माफ किया! ♥ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक के व्यंग्य”  में हम श्री विवेक जी के चुनिन्दा व्यंग्य आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्री विवेक जी के चुनिन्दा व्यंग्यों को “विवेक के व्यंग्य “ शीर्षक के अंतर्गत पढ़ सकेंगे।  आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का व्यंग्य “जा तुझे माफ किया!”)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक के व्यंग्य – # 7 ☆ 

 

♥ जा तुझे माफ किया! ♥

 

जब उन्होने बिना साक्ष्य के आरोप लगाये तब भी वे सुर्खियो में थे, अब जब माफी मांग रहे हैं तब भी सुर्खियो में हैं. सुर्खियो में रहना उनकी मजबूरी है, क्योकि वे अच्छी तरह समझते हैं कि जो दिखता है वही बिकता है. माफी मांगने से भी उदारमना होने वाली विनम्र छबि बनती ही है. जो माफ करता है उसकी भी और जो माफी मांगता है उसकी भी. क्षमा बड़न को चाहिये छोटन को उत्पात. उत्पात मचाना छोटे का जन्म सिद्ध अधिकार होता है. बचपन से हमने यही संस्कार पाये हैं. छोटी बहन कितनी भी शैतानी करे, माँ मुझे ही घुड़कती थीं और उनके आँख दिखाते ही मुझे मनमसोस कर बहन को माफ कर देना पड़ता था.

वैसे राजनीति में ये फार्मूला थोड़ा नया है. जब वोट चाहिये हों तो अनाप शनाप कुछ भी वादे कर डालो मंच से, तालियां पिटेंगी, वोट मिलेंगें. और तो और घोषणा पत्र में तक कभी पूरी न की जा सकने वाली लिखित घोषणायें करने से भी राजनैतिक दल बाज नही आते. यह अपनी लाइन बड़ी करने वाली तरकीब है. वोटर के मन में अपने निशान के प्रति आकर्षण पैदा करने की दूसरी तरकीब होती है, सामने वाले की छबि खराब करना. इसके लिये बेबुनियाद आरोप भी लगाना पड़े तो “एवरी थिंग इज फेयर इन लव वार एण्ड राजनीति”.

जनता कनफ्यूज हो जाती है, कयास लगाती है कि बिना आग के धुंआ थोड़े ही उठता है,सोचती है कुछ न कुछ चक्कर तो होगा. आधे से ज्यादा लोग तो नादान समझकर सह लेते हैं या स्वयं भी उससे बढ़कर कोई आरोप लगाकर या मानहानि का मुकदमा दायर करने की धमकी देकर ही बदला ले लेते हैं. जो इतने संपन्न होते हैं कि अदालत में केस दाखिल कर सकते हैं वे जब तक मानहानि का मुकदमा दायर करते हैं तब तक वोट मिल चुके होते हैं. मतलब निकल जाता है. फिर यदि मानहानि का मुकदमा गले की हड्डी बन ही गया तो माफी मांगकर गोल्डन शेक हैण्ड करके फिर से सुर्खियां बटोरी जा सकती हैं.

गलत झूठे आरोप लगाने के लिये किसी वेबसाइट से मोटे मोटे दस्तावेज डाउनलोड किये जा सकते हैं जिनमें क्या लिखा है आरोप लगाने वाले  को भी नही मालूम होता. पर प्रेस कांफ्रेन्स करके टी वी कैमरे के सामने हवा में लहराकर आरोप लगाया जाता है. पत्रकार और जनता सब आरोप ढ़ूंढ़ते रह जाते है, चुनाव निकल जाते हैं. यदि किसी की व्यक्तिगत चारित्रिक कोई कमजोरी हाथ लग जाये तो फिर क्या है, कई साफ्टवेयर हैं जो हू बहू आरोपी की आवाज में जो चाहें वह बोलने वाली सीडी बना सकते हैं. जब फारेंसिक जांच में सीडी की सत्यता प्रमाणित न हो सके तो माफी मांगने वाला फार्मूला इस्तेमाल किया ही जा सकता है. आई एम सारी सर कहकर मुस्कराते हुये पूरी बेशर्मी से कहा जा सकता है,  क्षमा बड़न को चाहिये छोटन को उत्पात.

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव 

ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो. ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #9 ☆ चाँटा ☆ – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  बाल लघुकथा  “चाँटा”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #9 ☆

 

☆ चाँटा ☆

 

रोज की तरह प्रार्थना हुई. छात्र पंक्तिबद्ध जाने लगे,‘‘ ठहरो !’’ तभी बाहर से आते हुए प्रधानाध्यापक की आवाज गूँजी.

“आज सभी छात्रों के नाखून, कपड़े व बालों की साफ सफाई देखी जाएगी.”

वे दो दिन पहले इस की चेतावनी दे चुके थे. सभी कक्षाध्यापक अपनी अपनी कक्षा के छात्रों के नाखून, कपड़े व बाल देखने लगे.

“क्यों रे! तेरे बाल कैसे हो रहे हैं. ” मोहन सर चिल्ला कर बोले, “देख तेरे बुश्शर्ट की कॉलर”.  उन्होंने उस छात्र की गंदी कालर पकड़ कर कहा, “ये कितनी गंदी हो रही है.”

छात्र उद्दंड था. तपाक से बोला, “सर ! पहले अपने बुश्शर्ट की कॉलर देख लीजिए. वह कितनी गंदी हो रही है.” उस का जवाब सुन कर सभी छात्र हँसने लगे. तभी प्रधानाध्यापक ने चिल्ला कर कहा, “चुप. ये क्या तमाशा लगा रखा है.’’ फिर वे उद्दंड छात्र की ओर देख कर बोले,  “तू यहाँ रूक.” फिर अन्य छात्रों को तेज आवाज में कहा, “बाकी सब अपनी अपनी कक्षा में चल दो.”

सभी छात्र चुपचाप चले गए. इधर उद्दंड छात्र घबरा रहा था. अब उसे चाँटे लगना तय है.

मगर, मोहन सर, बहुत शर्मिंदा थे. छात्र ने सभी के सामने उन्हें जोरदार शब्दों का चाँटा जो मार दिया था.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुजित साहित्य # 9 – सांगावा…. ☆ – श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं।  साहित्य में नित नए प्रयोग हमें सदैव प्रेरित करते हैं। गद्य में प्रयोग आसानी से किए जा सकते हैं किन्तु, कविता में बंध-छंद के साथ बंधित होकर प्रयोग दुष्कर होते हैं, ऐसे में  यदि युवा कवि कुछ नवीन प्रयोग करते हैं उनका सदैव स्वागत है। प्रस्तुत है उनकी एक अतिसुन्दर रचना   “ सांगावा….”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #9 ☆ 

 

☆ सांगावा…. ☆ 

 

किती खोलवर             जीवनाचा  वार

संकटांचा भार              काळजात .. . . !

 

शब्दांनीच सुरू              शब्दांनी शेवट

चालू वटवट                  दिनरात.. . . . !

 

चार शब्द कधी              देतात आधार

वास्तवाचा वार              होऊनीया.. . . !

 

प्रेमामधे होई                 संवाद हा सुरू

अनुभव गुरू                 जीवनाचा.

 

नात्यांमधे शब्द              पावसाळी मेघ

नशिबाने रेघ                  मारलेली. . . . . !

 

एखादी कविता               मावेना शब्दात

सांगावा काव्यात             सांगवेना . . . !

 

 

© सुजित कदम

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – चतुर्थ अध्याय (29-30) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्थ अध्याय

( फलसहित पृथक-पृथक यज्ञों का कथन )

 

अपाने जुह्वति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे ।

प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः ।। 29।।

 

अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुह्वति ।

सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः ।। 30।।

 

कोई अपान में प्राणों  का कोई औ” अपान का प्राणों में

कोई गति अपान,प्राणों की धरकर के प्राणायामों मे।।29।।

 

कुछ नियमित आहार से,प्राणों का प्राणों में करते यज्ञ

सभा जानने बाले यज्ञ के,पाप दूर करते है विज्ञ।।30।।

 

भावार्थ :  दूसरे कितने ही योगीजन अपान वायु में प्राणवायु को हवन करते हैं, वैसे ही अन्य योगीजन प्राणवायु में अपान वायु को हवन करते हैं तथा अन्य कितने ही नियमित आहार (गीता अध्याय 6 श्लोक 17 में देखना चाहिए।) करने वाले प्राणायाम परायण पुरुष प्राण और अपान की गति को रोककर प्राणों को प्राणों में ही हवन किया करते हैं। ये सभी साधक यज्ञों द्वारा पापों का नाश कर देने वाले और यज्ञों को जानने वाले हैं।।29-30।।

 

Others offer as sacrifice the outgoing breath in the incoming, and the incoming in the outgoing, restraining the courses of the outgoing and the incoming breaths, solely absorbed in the restraint of the breath.Others who regulate their diet offer life-breaths in life-breaths; all these are knowers ofsacrifice, whose sins are all destroyed by sacrifice. ।।29-30।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ तन्मय साहित्य – # 8 – एक गीत ☆ – डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  “गुएक गीत। )

 

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 7 ☆

 

☆ एक गीत   ☆  

 

देह का भटकाव मन के गाँव में

दिग्भ्रमित परछाईयों में खो गए

प्रीत के पगचिह्न धुँधले हो गए।

 

शाख पर बैठे, उसी को

काटने पर हैं तुले

क्लांत है, मन भ्रांत फिर भी

उम्मीदें झूला झुले

विषभरी बेलें हरित सी

झूमती झकझोरती

बीज, वासुकी वासना के बो गए

प्रीत के पगचिह्न धुँधले हो गए।।

 

ढाई आखर के भरम में

बस उलझते ही रहे

नहर को नदिया समझ

संकुचित भावों में बहे

राह में पग-पग हुए टुकड़े

अपाहिज से हुए

देहरी पर मीत पंछी रो गए

प्रीत के पगचिह्न धुँधले हो गए।।

 

समझकर एहसान यूँ

मेहमान बन सहते गए

छोर अंतिम जिंदगी का

स्वप्न फिर भी हैं नए

खेल स्वांस-प्रश्वांस का

निर्णय घड़ी है आ गई

समय प्रहरी उम्मीदों को धो गए

प्रीत के पगचिह्न धुँधले हो गए।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 9 – सरोजिनी ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

 

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में   उनका आलेख सरोजिनी।  यह आलेख पढ़ कर मुझे भी लगा कि बात तो सही है। हमारी उम्र गुजर जाती है  किन्तु, हम तय नहीं कर पाते कि ऐसे कौन से  व्यक्ति  हमें जीवन में मिले जिन्हें हम गुरु कह सकें या मान सकें। सुश्री प्रभा जी ने इस विषय पर  अत्यंत सहजता से बता दिया कि हमें शिक्षा तो किसी से भी मिल सकती है।  कई बार हम अपने अनुभवों से भी सीखते हैं। किन्तु, जिन्हें हम गुरु मानते हैं वे  हमारे हृदय पर अमिट होते हैं, अविस्मरणीय होते हैं। 

अब आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 9 ☆

 

☆ सरोजिनी ☆

 

मी सहज  विचार करायला लागले की गुरू म्हणावं असं आपल्याला आयुष्यात कोण भेटलं?

गेली अनेक वर्षे मी लिहितेय अगदी शाळेत असल्यापासून,लेखन, संपादन यात मला कुणीही गुरू भेटला नाही, ते घडत गेलं…..

पण आयुष्याच्या शाळेत कसं जगावं, हे मी माझ्या मैत्रीणीच्या आईकडून शिकले….विशेषतः कामवाली बद्दलचा त्यांचा दृष्टिकोन, त्या म्हणायच्या कामवाली च्या फार मागे लागू नये, तिला करायचं तेवढंच ती करते, त्यांच्याकडे हीरा नावाची बाई कामाला होती,ती फारच कामचुकार होती, मैत्रीणीची मोठी बहिण  लग्न झालेली, ती माहेरी आली तेव्हा हिराला बोलली, “आई.

बोलत नाही म्हणून तू काहीच करत नाही,आम्ही काय चिंचोके मोजतो का?”

मैत्रीणीच्या आईचं नाव सरोजिनी गायकवाड, त्या स्वतः खुप नीट नेटक्या आणि कष्टाळू होत्या! तरूणपणी त्या शिस्तप्रिय पण प्रेमळ आई होत्या!

त्यांच्यातला एक गुण मला खुप आवडायचा, आपल्यामुळे इतरांना त्रास होऊ नये, मीही ती दक्षता नेहमी घेत असते, शेवटपर्यंत त्या निरपेक्ष जगल्या! दुस-याला त्रास न देता आणि स्वतःला त्रास न करून घेता!

आम्ही शिरूर मध्ये असताना माझी आई आणि इतर दोन सरोजिनी शिरूर मध्ये होत्या, मी त्यांच्यावर “तीन सरोजिनी” असा लेख ही लिहिला होता,या तीन सरोजिनी आज नाहीत, त्यांची आयुष्य मला बरंच काही शिकवून गेली!

सरोजिनी म्हणजे कमळ ! या तिन्ही सरोजिनींचे जन्म स्वातंत्र्यपूर्व काळातले, त्या काळात “सरोजिनी नायडू” या स्वातंत्र्यलढ्यातील थोर कार्यकर्तीचा प्रभाव असल्यामुळे सरोजिनी हे नाव ठेवलं जात असावं!

 

तीन सरोजिनी पाहिल्या मी

माझ्या अवती भवती,

एक माझी मम्मी दुसरी

मैत्रीणीची आई आणि

तिस-या होत्या काकी,

तिन्ही करारी, खंबीर ,प्रभावी ललना

आठवणीतील त्या प्रतिमांना हीच मानवंदना !

(सरोजिनी जगताप, सरोजिनी गायकवाड, सरोजिनी पवार )

© प्रभा सोनवणे,  

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पुणे – ४११०११

मोबाईल-9270729503

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मराठी साहित्य – मराठी आलेख – ☆ निसर्गाचं अमोल दान ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

 

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है।  इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है। आज प्रस्तुत है  एक रेखाचित्र उनके गाँव का जो निश्चित ही  निसर्गाचं अमोल दान (निसर्ग का अमोल दान )है। 

 

☆ निसर्गाचं अमोल दान☆

 

सातारा आमचं गाव.आमचं घर अजिंक्यताऱ्याच्या पायाशी परळी-सजजनगड-कास रस्त्यावर.पहाटे फिरायला गेलं अन् बोगद्याबाहेर पडलं की,डावीकडं खिंडीतला गणपती-कुरणेश्वर,तर उजवीकडे परळीचा डोंगर अर्थात “सज्जनगड “अन् समोर पसरलेला हिरवागार देखण्या डोंगरांनी सजलेला नयनरम्य परिसर! सारंच सुंदर !!

अजिंक्यताऱ्याच्या दक्षिण बाजूस सोनगावच्या दिशेनं चालायला लागलं की उतारावरुन रात्रभराच्या मुक्कामाला आलेले निळे निळे मोर शेतातले दाणे खाण्यासाठी म्याव,म्याव आवाज करत उतरत असतात,माणसांच्या चाहुलीने ते पुन्हा ओरडत वरच्या दिशेनं पळत सुटतात.

उगवतीला पसरलेली तांबूस छटा पाहून पक्षांचा किलबिलाट सुरू झालेला असतो.मधूनच भारद्वाज पक्षांचा हूं  हूं असा आवाज ऐकू येतो, आणि त्याच दर्शन झालं तर खूप छान!अन् त्याचं समोरुन फ्लाईंग दर्शन तर एकदमच भारी !!लहानपणी तर आमच्यासाठी ते खूप अप्रूप वाटायचं !!

पण आज आम्ही फिरायला आलो ते दुपारी,कारण पुण्याचा मुलगा नातू सगळेजण गणपतीसाठी आलेले.म्हणाले चला आपण कासला जाऊया.आणि हा सीझन फुलांचा त्यामुळे पर्वणीच !

कासच्या फुलांचा बहर सुरू झालेला सगळीकडे विविध रंगछटांची सुंदर फुलं बहरलेली दिसत होती.

कास पठार सुरू होण्यापूर्वी रस्त्याकडेच्या दोन्ही बाजूंची शेतं व पठारी भागावर जिकडं नजर जाईल तिकडं पिवळी हडूळ “सोनकीची “फुलं फुललेली दिसत होती.जणूं धरतीनं हळदुल्या रंगाची दुल ई पांघरल्यासारखी वाटत होती.

आम्ही जिथे गाडी थांबवून उभे होतो तिथून डावीकडं उरमोडी जलाशयाच्या लक्ष दर्पणातून सज्जनगडाचं पावन प्रतिबिंब खुणावत होतं,तर उजवीकडं कण्हेर धरणाचं आरस्पानी सौंदर्य डोळे दिपवीत होतं.दोन्ही बाजूंचे डोंगर उनसावलीच्या खेळामुळं हिरव्या-पोपटी रंगाचे रेशमी शेले पांघरुन बसलेत असं वाटतं होतं.किती पहावं आणि काय-काय पहावं असं होतं इथं आलं की !

डोंगर उतारावरुन खाली नजर टाकली की,गावकुसातल्या श्रमदान्यांनी खोदलेल्या चरांची सुंदर नक्षीदार  रांगोळी अन् त्यातून खाली वाहून गेलेल्या पावसाच्या पाण्याने तुडुंब भरलेले पाझर तलाव, छोटीमोठी तळी , हिरवीगार भातशेती,असं निसर्गाचं मनोहारी दृश्य दिसत होतं.

खरोखरी निसर्गदेवता मानवाला किती भरभरून देत असते.पण त्यानं ते जपलं नाही, वृक्षतोड,वणवे लावणं असं केलं तर आपणच आपल्या हातानं आपला ” केरळ  उत्तरांचल “करु हे प्रत्येकानं लक्षात घ्यावं व निसर्गाच्या या अनमोल ठेव्याला अबाधित राखावं हे आपलं सर्वांचं आद्य कर्तव्य आहे.!

दिवस मावळायला आला होता म्हटलं आता निघायला हवं तेवढ्यात भटकंतीला गेलेले माझे नातू मुलगे सुना सगळे आले अन् मला मोबाईलमध्ये काढलेले सुंदर कासची फुलं, सूर्यास्ताचे फोटो दाखवूलागले मी पाहिले तुम्हीही पहा..!!!

 

©®उर्मिला इंगळे, सातारा 

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Graduation Ceremony ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer,  Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Laughter Graduation Ceremony ☆

Video Link : Laughter Graduation Ceremony

 

Laughter Yoga professionals receive their certifications from the Laughter Yoga University in a glittering function on completion of the course.

Radhika Bisht and Jagat Singh Bisht, Founders: LifeSkills, completed their CERTIFIED LAUGHTER YOGA TEACHER training in October 2010 at the School of Ancient Wisdom in Bengaluru. They served as laughter professors at the Laughter Yoga University during the year 2015 and were honoured as LAUGHTER YOGA MASTER TRAINERS by Madhuri Kataria and Dr Madan Kataria, founders of Laughter Yoga, in July 2015.

Laughter Yoga is a unique concept where anyone can laugh for no reason without relying on humour, jokes or comedy. The concept is based on a scientific fact that the body cannot differentiate between real and fake laughter if done with willingness. One gets the same physiological and psychological benefits.

Dr Madan Kataria, a medical doctor, founded the first Laughter Club with just five members in Mumbai in the year 1995. Today there are thousands of laughter clubs all over the world where laughter is initiated as an exercise in a group but with eye contact and childlike playfulness, it soon turns into real and contagious laughter.

It is called Laughter Yoga because it combines laughter exercises with yoga breathing. This brings more oxygen to the body and the brain which makes one feel more energetic and healthy.

When we laugh, our body generates feel good hormones called endorphins which improve our mood and general outlook. During laughter exercises, all the stale air inside the lungs is expelled and our system gets more oxygen which enhances the immune system. In the long run, the inner spirit of laughter helps you build more caring and sharing social relationships, and laugh even when the going in not good.

Laughter Yoga University conducts trainings to certify laughter yoga professionals. The participants flock from all over the world for the training. After completing the training, the participants are awarded certificates in a ceremony at the end of the programme. The participants carry home everlasting sweet memories of the golden moments of glory and joy.

LAUGHTER YOGA GRADUATION CEREMONY IS DAZZLING!

 

Founders: LifeSkills

Jagat Singh Bisht

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University. Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht:

Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer Areas of specialization: Yoga, Five Tibetans, Yoga Nidra, Laughter Yoga.

 

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