कोई कठिन व्रत से या द्रव्य से , तप से यज्ञ करते संपन्न
कोई योगकर स्वाध्याय से ,ज्ञान से यति रखते संबंध।।28।।
भावार्थ : कई पुरुष द्रव्य संबंधी यज्ञ करने वाले हैं, कितने ही तपस्या रूप यज्ञ करने वाले हैं तथा दूसरे कितने ही योगरूप यज्ञ करने वाले हैं, कितने ही अहिंसादि तीक्ष्णव्रतों से युक्त यत्नशील पुरुष स्वाध्यायरूप ज्ञानयज्ञ करने वाले हैं।।28।।
Some again offer wealth, austerity and Yoga as sacrifice, while the ascetics of self-restraint and rigid vows offer study of scriptures and knowledge as sacrifice. ।।28।।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “अकेला”। )
साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार #1
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के सामयिक व्यंग्य को समय प्रकाशित न करना निश्चित रूप से इस व्यंग्य रचना के साथ अन्याय होगा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी ने बखूबी स्व हरीशंकर पारसाईं जी के पात्र मातादीन का उपयोग सामयिक और सार्थक तौर पर किया है और इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। तो लीजिये प्रस्तुत है श्री विवेक जी का व्यंग्य – “इंस्पेक्टर मातादीन की सफलता का बैकग्राउंड”।
♥ इंस्पेक्टर मातादीन की सफलता का बैकग्राउंड ♥
आज की बड़ी खबर है कि भारत के वैज्ञानिक चांद पर रोवर “प्रज्ञान” भेज रहे हैं,देश के लिये बड़े ही गर्व की बात है .स्वाभाविक है मुझे भी गर्व है. पर कहते हैं न कि जहां न पंहुचें रवि वहां पहुंचे कवि, व्यंग्यकार होने के नाते मुझे ज्यादा गर्व है कि इसरो जब किसी भारतीय को चांद पर पहुंचायेगा तब पहुंचायेगा, परसाई जी ने तो उनके जमाने में ही इंस्पेक्टर मातादीन को चांद पर पहुंचा दिया था.
परसाई जी के इंस्पेक्टर मातादीन ने क्यो और कैसे चांद के हर थाने के सम्मुख हनुमान जी की मूर्ति स्थापित करवा दी थी या कैसे इंस्पेक्टर मातादीन ने चांद पर चश्मदीद गवाह ढ़ूंढ़ निकाले थे यह समझना हो तो यह जानना बहुतै जरूरी है कि मातादीन का बैकग्राउंड क्या था ? वे इंस्पेक्टर बने कैसे थे ?
मातादीन का जन्म ग्राम व पोस्ट डुमरी तलैया थाना ककेहरा जिला होनहारपुर में हुआ था. उनका घर थाने के लगभग सामने, आम के पेड़ के पास ही था. जब मातादीन नंग धड़ंग बैखौफ आम की केरियां तोड़ने के लिये आम के पेड़ पर सरे आम पत्थर बाजी किया करते थे तभी कभी वर्दी के रौब को समझते हुये उनके बाल मन में खाकी वर्दी धारण करने की प्रेरणा का भ्रूण स्थापित हो गया था. आम के पेड़ के नीचे चबूतरा बना हुआ था, जिस पर थाने आने वाले लोगो के परिजन बैठकर धड़कते दिल से इंतजार करते थे. चबूतरे पर आम के वृक्ष के तने के सहारे हनुमान जी की एक मूर्ति टिकी हुई थी, जिस पर चढ़ाये गये प्रसाद और सिक्को पर मातादीन और उनके बाल सखा निधड़क अपना अधिकार मानते थे .मातादीन कभी भी हनुमान जी की चढ़ौती में मिली मुद्रायें और प्रसाद अकेले न खाते थे, हमेशा उसे अपने दोस्तो में बराबर बांटते. इस तरह बचपन से ही मातादीन हनुमान जी पर अगाध श्रद्धा रखने लगे थे. हम समझ सकते हैं कि यही कारण रहा कि चांद पर उन्होने हर थाने के सम्मुख हनुमान जी की मूर्ति स्थापना का महान कार्य किया. घर के सामने ही थाना होने के कारण मातादीन के घर पोलिस वालों का कुछ कुछ आना जाना बना रहता था. जैसे जैसे मातादीन युवा हुये उन्हें कुछ कुछ भान होने लगा कि अनेक प्रकरणो में बिना घटना के समय उपस्थित रहे भी कैसे उनके पिता चश्मदीद गवाह दर्ज हो जाते थे. बस यहीं से उन्हें वह महान गुर पुस्तैनी रूप से अपने खून में समाहित मिला कि वे सफलता पूर्वक चांद पर अनेक चस्मदीद गवाह ढ़ूंढ़ सके. कक्षा ११ वीं की परीक्षा ग्रेस मार्कल्स के साथ पास होते ही युवा मातादीन ने पोलिस मुहकमें में भर्ती होने की ठान ली. जहां चाह वहां राह. रोजगार समाचार के एक विज्ञापन ने मातादीन की किस्मत ही बदल दी. आरक्षक बनने की लिखित परीक्षा श्रेय मातादीन निसंकोच अपने सामने बैठे उस अपरिचित लड़के को देते हैं जो मैदानी दौड़ में पास न हो सका था, पर बचपन की सारी आवारागर्दी, आम के पेड़ पर चढ़ना, वगैरह मातादीन के बहुत काम आया और वे मैदानी परीक्षा में भी सफल हो गये .उनकी इन सफलताओ को देख पिताजी ने माँ के कुछ गहने बेचकर उनके आरक्षक बनने की शेष अति वांछित आवश्यकतायें यथा विधि पूरी कर दी थीं. और इस तरह मातादीन आरक्षक मातादीन बन गये थे.
आरक्षक से इंस्पेक्टर बनने का उनका सफर उनकी स्वयं की टेक्टफुलनेस, व्यवहार कुशलता, किंचित चमाचागिरी,बड़े साहब की किचन तक पहुंचने की उनकी व्यक्तिगत योग्यता तथा बचपन से ही कभी भी हनुमान जी का प्रसाद और चढ़ौत्री अकेले न खाने की उनकी आदत का परिणाम रहा. आरक्षक मातादीन कभी भी यातायात थाने में अटैच न रहे, बीच में कुछ दिनो के लिये अवश्य उन्हें पासपोर्ट और नौकरी के लिये पोलिस वेरीफिकेशन का लूप लाइन वाला काम दिया गया था पर उसका सदुपयोग भी मातादीन ने कुछ बड़े लोगों से संबंध बनाने में कर लिया जिसका लाभ उन्हें मिला और इंस्पेक्टर के रूप में जब उनका साक्षात्कार होना था तो उन्होने इंटरव्यू बोर्ड में किसी को फोन करवाने में सफलता अर्जित की. परिणाम यह रहा कि ग्राम व पोस्ट डुमरी तलैया थाना ककेहरा का मातादीन यथा समय इंस्पेक्टर मातादीन बन सका और उसकी भेंट जबलपुर कोतवाली के बाहर पान ठेले पर तत्कालीन सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई से अनायास हो सकी. जिन्होनें उन्हें अपने शब्द यान में बैठाकर तब ही चांद पर पहुंचा दिया जब नील आर्मस्ट्रांग भारी भरकम अंतरिक्ष पोशाक में फंसे हुये डरते डरते चांद पर उतरे थे. खैर मातादीन के इंस्पेक्टर बनने की कहानी समझकर आप को मातादीन की असाधारण योग्यता, उनकी कार्यक्षमता पर संदेह कम हुआ होगा. अब जब इसरो चांद के उस हिस्से पर प्रज्ञान उतारने वाला है, जहां आजतक किसी अन्य देश का कोई चंद्रयान नहीं पहुंचा मुझे पूरा भरोसा है कि वहां हमारे प्रेरणा पुरुष परसाई जी के इंस्पेक्टर मातादीन के थानो के कोई न कोई अवशेष अवश्य मिल ही जायेंगें.
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक भावप्रवण लघुकथा “कृतज्ञता ”। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 9 ☆
☆ कृतज्ञता ☆
लगभग अट्ठारह-उन्नीस साल का लड़का। पीछे बैग टांगे अपने सफर पर था। शायद कहीं परीक्षा देने जा रहा था। एक लंबी यात्रा पर हम भी निकले थे। बड़े स्टेशन पर ट्रेन के रूकते ही सभी अपने अपने जरूरत का सामान पानी, नाश्ता, भोजन, चाय और किताबें लेने के लिए चल पड़े। किताब की दुकान पर किताब देख ही रहे थे कि वो लड़का भी आकर ‘प्रतियोगिता दर्पण’ देखने लगा। दुकान वाले ने जोर की डांट लगाई “फिर आ गये चलो भगो!!!!”
ट्रेन छूटने की जल्दी और उसकी मासूमियत देख हमने कहा “चलो लेकर जाओ।“ उसकी ट्रेन चलने का संदेश दे रही थी। किताब हाथ में लेकर दूसरे हाथ की मुट्ठी में बन्द मुड़ा तुड़ा नोट फेंका और दौड कर ट्रेन पर चढ गया।
जाते समय उसके चेहरे पर जो संतुष्टि और क्रृतज्ञता के भाव थे। शायद वह हजारों रू दान करने से भी नहीं मिल पाते।
बाद में पता चला कि रू 35 कम पड़ रहे थे उस किताब को लेने के लिए ।
एक छोटा सा सहयोग; हो सकता है उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण और उपयोगी बन गया हो।
(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना एक काव्य संसार है । साप्ताहिक स्तम्भ अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं सार्थक कविता “सेल्फी संन्याशी ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 9 ☆
(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है। इसके अतिरिक्त ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है। आज प्रस्तुत है 23 जुलाई वनसंवर्धन दिवस पर विशेष आलेख “ पर्यावरण – केल्याने होत आहे रे ”। इस विशेष आलेख के लिए श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का विशेष आभार )
☆ पर्यावरण – केल्याने होत आहे रे ☆
सध्या सगळीकडे छान पाऊस पडल्याने वातावरण कसं धुंद झालंय.आणि वृक्षारोपणाचं महत्त्व पटलेल्या आपणा सर्वांनाच कधी एकदा झाडं लावतोय असं झालं असेल नां ? अगदी मलासुद्धा !
झाडं लावणं ती जगवणं हे तर पर्यावरणच्या दृष्टीनं अत्यंत महत्वाचे व काळाची गरज आहे, त्यामुळे निसर्ग प्रेमी , शाळा महाविद्यालयातली मुलं , विविध सामाजिक संस्था , कंपन्या वृक्षारोपणासाठी अगदी हिरिरीने पुढं येतील.
झाडं ही पर्यावरणाच्या दृष्टीने फायदेशीर आहेत.कारण आज आपल्याला श्र्वास घेणं ही अवघड होऊ लागलंय.! कारण हवेतल्या आॅक्सीजनच प्रमाण घटत चाललंय अन् ते फक्त झाडं आणि झाडांचं भरुन काढू शकतात.आपण कितीही पैसे दिले तरी आॅक्सीजन विकत घेऊ शकत नाही.
पण! हा पण शब्द फार महत्त्वाचा आहे.नुकताच एक व्हीडिओ व्हायरल झालाय,त्यात सांगितलंय की निसर्गातल्या मनुष्य प्राण्यांसाठी योग्य अशीच झाडं लावणं आवश्यक आहे.
त्यासाठी पुण्याच्या Holistic Environment Activities & Learning Foundation, Pune (www.healngo.com now non-functional. For more information you may contact their facebook page – https://www.facebook.com/healngopune/?rc=p)
यांनी व्हीडीओ पाठवलाय.त्यात त्यांनी म्हटलंय, कोल्हापूर जवळच एक गाव उंदीर व सापांनी व्यापून गेलं. घरात साप , बाहेर साप, विषारी,बिन विषारी.या गावात एवढे साप कां यावेत, याबाबत संशोधन केले तेव्हा समजलं की तिथं चुकीचं वृक्षारोपण करण्यात आले होते.
“गिरीपुष्प “अर्थात उंदीर मारी ही झाडं गावाच्या आसपास खूप मोठ्या प्रमाणात लावण्यात आली व ती पटापट वाढली.
ह्या झाडांची फुलें प्राण्यांसाठी विषारी असतात,
त्यामुळे झाडाच्या आसपासचे उंदीर गावात घुसले व त्यामागे साप.
ही झाडं लावताना कुणालाही एवढा घातक परिणाम होईल याची कल्पना ही नव्हती.
वृक्षारोपण करताना ते कोणत्या प्रदेशात म्हणजे माळरान कि, पठार किंवा टेकडी , तसेच त्या प्रदेशात पाऊस किती पडतो, कुठल्या प्रकारची वनस्पती तेथे जगू शकेल हे पहायचं महत्त्वाचे आहे नुसती झाडं लावणं नाही असे या व्हीडीओत म्हटले आहे.त्यात असेही म्हटले आहे की, काळजीपूर्वक झाडं नि्वडली तरच प्राणी,पक्षी,कीटक व आपल्यालाही मदतीची ठरतात.
तरी शासनाच्या संबंधित विभागाने याबाबतच्या वस्तुस्थितीची सत्यासत्यता पडताळून पाहावी व त्यात तथ्य असल्यास वृक्षारोपणात सहभागी होणाऱ्यांना आवश्यक त्या सूचना तातडीने. द्याव्यात,असे मला वाटते.
Here are some of the best quotes on “HAPPINESS” for you.
‘LifeSkills’ is a treasure trove of the best quotes on happiness, yoga, meditation, laughter yoga and spirituality.
These are carefully researched quotes from books and research papers, not just taken from any quotes website.
Here are the quotes in random order:
“Happiness is the meaning and purpose of life, the whole aim and end of human existence.”
Aristotle
“Different men seek after happiness in different ways and by different means, and so make for themselves different modes of life.”
Aristotle
“Seeking happiness outside ourselves is like waiting for sunshine in a cave facing north.”
Tibetan saying
“If you want others to be happy, practice compassion. If you want to be happy, practice compassion.”
Dalai Lama
“Action may not always bring happiness; but there is
no happiness without action.”
Benjamin Disraeli
“Happiness consists in activity. It is a running stream, not a stagnant pool.”
John Mason Good
“Happiness consists more in small conveniences or pleasures that occur every day, than in great pieces of good fortune that happen but seldom.”
Benjamin Franklin
“Real happiness comes from performing actions that contribute to the welfare of others by fulfilling responsibilities to family and society, and performing actions that cleanse the mind.”
Buddha
“Happiness requires changing yourself and changing your world. It requires pursuing your goals and fitting in with others.”
Jonathan Haidt
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Founders: LifeSkills
Jagat Singh Bisht
Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University. Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.
Radhika Bisht:
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer Areas of specialization: Yoga, Five Tibetans, Yoga Nidra, Laughter Yoga.
कोई ज्ञान से जला आत्म संयम की अग्नि में इंद्रिय का
औ” प्राणों को कर्मों का करते है हवन सकल भय का ।।27।।
भावार्थ : दूसरे योगीजन इन्द्रियों की सम्पूर्ण क्रियाओं और प्राणों की समस्त क्रियाओं को ज्ञान से प्रकाशित आत्म संयम योगरूप अग्नि में हवन किया करते हैं (सच्चिदानंदघन परमात्मा के सिवाय अन्य किसी का भी न चिन्तन करना ही उन सबका हवन करना है।)।।27।।
Others again sacrifice all the functions of the senses and those of the breath (vital energy or Prana) in the fire of the Yoga of self-restraint kindled by knowledge. ।।27।।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की छठवीं कड़ी में उनकी एक सार्थक कविता “बेनाम होने का सुख ”। अब आप प्रत्येक सोमवार उनकी साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)