पुस्तक समीक्षा/आत्मकथ्य – पूर्ण विनाशक (स्वयं की तलाश) – श्री आशीष कुमार

पूर्ण विनाशक (स्वयं की तलाश) – श्री आशीष कुमार 

Book: Purn Vinashak
Author: Ashish Kumar
Published by: Evincepub Publications
Publication Year: 2019
Formats: Amazon Kindle, Paperback
Genre: Philosophical, Spiritual, Mystery, Religious
Reviewed by: Ashish
Rating: 4/5 stars

Amazon Link – Purn Vinashak

आत्मकथ्य: 

एक दिन, जब मैं विलासिता का आनंद ले रहा था (आम तौर पर जिसे मैं पसंद नहीं करता हूँ), तो मुझे एहसास हुआ कि कहीं कुछ कमी है। उस समय मैं सोच रहा था कि अगर कोई रिश्तेदार या मित्र उस आनंद का भाग ना हो तो कोई भी विलासिता का आनंद कैसे ले सकता है। उस समय एक सेकंड का एक अंश मुझे एक युग की तरह लग रहा था। इसलिए मैंने दृढ़ विश्वास किया कि अकेले जीवन जीना खुद के लिए अपराध है। और यदि वह जीवन सबसे लम्बा हो, तो?

उस दिन मैंने इस पुस्तक को लिखने का निर्णय किया। मेरा सिर्फ एक ही विचार पूरी किताब में परिवर्तित हो गया है। मैंने ब्रह्मांड के सबसे कठिन विषयों पर अपने बारह साल के शोध, अनुभव, अन्वेषण, खोज, इच्छाओं और भावनाओं को इस पुस्तक में जोड़ दिया है। लेकिन सबसे अधिक, यह पुस्तक उस अनंत शक्ति के गुप्त मार्गदर्शन द्वारा लिखी गई है, जिसने मुझे सुझाव दिया, ध्यान और सपनों के चरणों में और यहाँ तक कि गहरी नींद में भी, इस पुस्तक में जोड़ने के लिए लेखों, और अवधारणाओं की स्पष्टता का।

कुछ वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्यचकित करने वाले हैं, अन्य वैज्ञानिकों के लिए सहायक हो सकते हैं। मुझे ध्यान, सपनों और गहरी नींद की स्थिति में भगवान से सन्देश और निर्देश प्राप्त हुए हैं। केवल मुझे पता है कि मैंने इस पुस्तक में अपना पूरा जीवन डालने के लिए कितना दर्द सहन किया है। मेरे पास कोई संख्या उपलब्ध नहीं हैं जो मुझे बता सके कि मैंने सोये बिना कितनी रातें बिताई है यहाँ तक कि नींद ने मुझे कई बार चेतावनी दी कि या तो मेरा आनंद लो या दर्द से चूर चूर होने के लिए तैयार हो जाओ।

मुझे लगातार सिरदर्द का सामना करना पड़ा, जिसे मैं पिछले बारह वर्षों से सामना कर रहा था, अंत में इस पुस्तक के रूप में मेरे प्रयासों को न्याय संगत बनाने में सक्षम है। पिछले दस सालों से, मैं ‘कई’ स्थितियों से गुजर रहा था मैं मानसिक रूप से, शारीरिक रूप से, आर्थिक रूप से, सामाजिक रूप से, भावनात्मक रूप से, तार्किक रूप से, टूटा हुआ था। यह पुस्तक आपको रहस्यों की यात्रा पर ले जाएगी। आपको कुछ तथ्यों की व्याख्या मिलेगी जो आप अपने बचपन से सुन रहे हैं, और अचानक वे बदल जाएंगे।

मैंने हिंदू धर्म पर सभी संभावित उपलब्ध ग्रंथों को पढ़ा है जिनमें 4 वेद, 18 पुराण, 108 से अधिक उपनिषद, भगवद-गीता, रामायण, महाभारत, उप वेद, वास्तु-शास्त्र, ज्योतिष, हस्त रेखा, संगीत, आयुर्वेद, पौराणिक कथाओं, दर्शन, आगाम और कई अन्य। मैंने भौतिक प्रारूप और ई-किताबों में धर्म, दर्शन, विज्ञान इत्यादि के पिछले बारह वर्षों में 3000 से अधिक किताबों को पढ़ा हैं।

मैंने ज्ञान के लिए अपनी खोज को पूरा करने के लिए इंटरनेट पर अत्यधिक शोध किया है जिस पर यह पुस्तक आधारित है। तो इस पुस्तक को लिखने के लिए, मेरे प्राथमिक संसाधन हिंदू शास्त्र और इंटरनेट था। मैंने इस पुस्तक को एक रूप देने के लिए अपने दृष्टिकोण और चेतना के साथ एकत्र की गई जानकारी को एक कहानी में संकुचित कर दिया है। लेकिन कुछ हद तक केवल दिव्य स्रोत से प्राप्त निर्देश ही इस पुस्तक में हैं वो मुझे तब प्राप्त हुए जब मैं ध्यान या नींद की अवस्था में था।

इस पुस्तक में आपको पता चलेगा कि नाम क्या कर सकते हैं। तो अगली बार “नाम में क्या है?” पूछने से पहले दो बार सोचें। कई जगहों पर मैंने एक शब्द के अर्थ की व्याख्या करने के लिए वाक्यों या शब्दों के समूह का उपयोग किया है। कुछ स्थानों पर कुछ शब्दों का एक अर्थ होता है, और दूसरी जगह पर पुस्तक के प्रवाह के अनुसार कुछ मामूली अंतर के साथ उसी शब्द का कुछ अलग अर्थ हो जाता है। कुछ शब्द बहुत ही साधारण हैं, जिनका अर्थ हर कोई जानता है, लेकिन मैंने फिर से उन लोगों के लिए उनका अर्थ दिया है जो हिन्दुत्व के विषय में ज्यादा जानकारी नहीं रखते हैं। मैंने शब्दों और अर्थों को आसान से आसान बनाने का प्रयास किया है। हिंदू पौराणिक कथाओं में, समान नाम रखने वाले कई व्यक्तित्व हैं। इसलिए मैंने उनके अर्थों को उसी स्थान पर समझाया है, जिस स्थान पर इस पुस्तक में उनका उपयोग किया गया है, जैसे कि बाली वानर सुग्रीव के भाई हैं और लगभग समान नाम बलि पाताल लोक के राजा भी हैं। इसके अतरिक्त जंबुमली, सुसैन, आदि एक से अधिक व्यक्तित्व का नाम है। प्राण और चेतना जैसी उच्च अवधारणाओं के भी एक से अधिक अर्थ हैं। कभी-कभी मैंने विशिष्ट वाक्य के अनुसार किसी नाम का अर्थ इस्तेमाल किया, और अन्य अर्थों का उपयोग वहाँ किया है जहाँ यह एक अलग वाक्य में उपयोग किया गया हैं जिसमें उसका अर्थ पूरी तरह से अलग या उसके अर्थ का थोड़ा सा अलग संदर्भ है।

  • आशीष कुमार

Book Review:

Purn Vinashak, as the title suggests very clearly, is a novel that mixes many things together to create a completely different experience for the readers – thriller, mystery, adventure, spirituality, philosophy, and also religious elements. The novel fixates around a character named Surya Singha who is a travel guide and also a mysterious person as perceived by the characters around him – Ashish, Avinash and Puja. The novel is a mystery in itself as we, as the readers, are taken through different passages and paths only to understand that the character who is the fulcrum of the novel is none other but the brother of great King Ravana – Vibhishan himself.

Ashish, Avinash and Puja are people of the modern era and interested in researching about epics, religious texts and ancient scriptures. They are baffled when Surya Singha shocks them by revealing his true identity as a person who has lived many thousand years, has seen the great battle between Ram and Ravana, the great war of Mahabharata and also the two world wars. This revelation shocks Puja and others, especially Ashish who, thereafter, remains in awe throughout the novel.

‘Vibhishan Sir’ as other characters call him, reveals many secrets to these characters. Secrets and knowledge from Yoga, Spirituality, Karma, Ramayana and Mahabharata and many other ancient treasures that Ashish (and other characters) enjoy immensely.

Towards the conclusion, however, the novel takes a very different turn and a twist occurs that leaves Ashish shocked! This is something that the readers will find out themselves.

Purna Vinashak is written in Hindi and the author Ashish Kumar hasn’t left any spaces empty – content, language, plot, and theme – everything is properly maintained. However, at times, the novel’s narrative takes the shape of non-fiction as Vibhishan begins explaining things in details. That is something that only religious and spiritual readers will find exciting. Otherwise, the novel is exciting for the readers in general minus the Vibhishan’s extreme knowledge of things.

You can get a copy of the novel from Amazon and enjoy reading it right away!

Review by Sumit for Indian Book Critics

साभार: श्री आशीष कुमार 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गौरैया ☆ – श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

(श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। मैं कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी का हृदय से आभारी हूँ जिन्होने हीरा तलाश कर भेजा है। संभवतः ग्रामीण परिवेश में रहकर ही ऐसी अद्भुत रचना की रचना करना संभव हो। कल्पना एवं शब्द संयोजन अद्भुत! मैं  निःशब्द एवं विस्मित हूँ, आप भी निश्चित रूप से मुझसे सहमत होंगे। प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय जी कीअतिसुन्दर रचना “गौरैया”।)

संक्षिप्त परिचय 

व्यवसाय – कृषि, इंजन मैकेनिक

नौकरी – डाक विभाग – ग्रामीण पोस्टमैन

सम्मान – “कलम के सिपाही” टर्निंग टाइम द्वारा प्रदत्त 5 अगस्त 2017

अभिरुचि – समाज सेवा, साहित्य लेखन

सामाजिक कार्य – रक्तदान, मृत्यु-पश्चात शोध कार्य हेतु देहदान, बहन की मृत्यु पश्चात नेत्रदान में सहयोग, निर्धन कन्याओं के विवाह में सक्रिय योगदान।

 

 ☆ गौरैया ☆

 

मेरे घर के मुंडेर पर

गौरैया एक रहती थी

अपनी भाषा मे रोज़ सवेरे

मुझसे वो कुछ कहती थी

 

चीं चीं चूं चूं करती वो

रोज़ माँगती दाना-पानी

गौरैया को देख मुझे

आती बचपन की याद सुहानी

 

नील गगन से झुंडों में

वो आती थी पंख पसारे

कभी फुदकती आँगन आँगन,

कभी फुदकती द्वारे द्वारे

 

उनका रोज़ देख फुदकना,

मुझको देता  सुकूँ रूहानी

गौरैया को देख मुझे

आती बचपन की याद सुहानी…

 

चावल के दाने अपनी चोंचों में

बीन बीन ले जाती थी

बैठ घोसलें के भीतर वो

बच्चों की भूख मिटाती थी

 

सुनते ही चिड़िया की आहट

बच्चे खुशियों से चिल्लाते थे

माँ की ममता, दाने पाकर

नौनिहाल निहाल हो जाते थे

 

गौरैया का निश्छल प्रेम देख

आँखे मेरी भर आती थी

जाने अनजाने माँ की मूरत

आँखों मे मेरी, समाती थी

 

माँ की यादों ने  उस दिन

खूब मुझे रुलाया था।

उस अबोध नन्ही चिड़िया ने

मुझे प्रेम-पाठ पढ़ाया था

 

नहीं प्रेम की कोई कीमत

और नहीं कुछ पाना है

सब कुछ अपना लुटा लुटाकर

इस दुनिया से जाना है

 

प्रेम में जीना, प्रेम में मरना

प्रेम में ही मिट जाना है,

ढाई आखर प्रेम का मतलब

मैंने गौरैया से ही जाना है!

 

-सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ पुष्प आठवे # 8 ☆ स्री भ्रूण हत्या  एक समाजविकृती ! . . . समाज पारावरून . . . ! ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं  ।  अब आप प्रत्येक शुक्रवार को उनके मानवीय संवेदना के सकारात्मक साहित्य को पढ़ सकेंगे।  आज इस लेखमाला की शृंखला में पढ़िये  स्त्री भ्रूण हत्या जैसी एक सामाजिक विकृति पर विचारणीय आलेख “स्री भ्रूण हत्या  एक समाजविकृती ! . . .  समाज पारावरून . . . !”

 

☆ समाज पारावरून – साप्ताहिक स्तंभ  – पुष्प  आठवे # 8 ☆

 

☆ स्री भ्रूण हत्या  एक समाजविकृती ! ☆

आजकाल तरूण पिढी विवाह बद्ध झाल्यावर हम दो हमारा एक  असा विचार सर्रासपणे करताना आढळून येते.  मग  अशा वेळी  *आपला वंश पुढे नेण्यासाठी  आपले नाव लावणारा मुलगाच  आपल्याला हवा* अशी मानसिकता प्रत्येकाने  राजरोस पणे करून घेतली आहे.  उच्च शिक्षित समाजात याचे प्रमाण जास्त आहे. या साठी पैशाच्या बळावर गर्भ लिंग तपासणी करून योग्य ती खबरदारी घेण्याची चढाओढ आपापसात लागली आहे. अपत्य जन्माला घालणारी माता देखील कधी कधी स्वेच्छेने या प्रकरणी होकार देऊन दोषी ठरत आहे.  स्वार्थ साधू वृत्ती  असल्याने  मला  अमुक एक हवे आहे त्यासाठी मी वाट्टेल ते करायला तयार आहे हा दुराग्रह स्त्री भ्रूण हत्या समस्येचे मूळ बनला आहे.

मुलीला पणती मानण्यात धन्यता मानणारे स्वतःवर वेळ आली की  मुलाला जन्म देण्यात जास्त धन्यता मानतात.  आज समाजात *मुलगा झाला* या बातमीत सामावलेला  आनंद  आणि *मुलगी झाली * या बातमीतील खेद विसरून चालणार नाही. ही समाज मानसिकता बदलायला हवी.

गर्भातील  अपत्य जर स्त्री भ्रूण  आहे असे समजले तर तीला  गर्भातच नष्ट करण्यासाठी हजारो प्रयत्न केले जातात. यात समाज विकृती हे महत्वाचे कारण आहे  असे मला वाटते. जोपर्यंत  कुटुंब या प्रकरणात  दोषी ठरत नाही तोपर्यंत मुलगा हवा हा दुराग्रह समाजात पहायला मिळणार.  विवाह करताना जात, पात ,  धर्म  इत्यादी बंधने झुगारून जेव्हा आपण विवाह बंधन स्विकारतो तेव्हा च खर तर  एकमेकांनी शपथ घ्यायला हवी की  गर्भजल परीक्षण न करता  आम्ही  अपत्यास जन्म देऊ.  मुलगा  असो वा मुलगी  आम्ही तितक्याच  आत्मियतेने अपत्याचे पालन पोषण करू.

आज वैद्यकीय सेवेत असलेल्या ब-याच जणांनी या सेवेस व्यवसायाचे स्वरूप दिले आहे.  पैसा फैको नीट तमाशा देखो हा वाक्प्रचार दुर्दैवाने प्रत्येक  क्षेत्रात लागू पडतो  आहे. माणसाला माणूस पैशाच्या बळावर विकत घेतो आहे हे वास्तव स्वीकारण्याची वेळ आता आली आहे. गर्भपात  करणे,  गर्भलिंग तपासणी हे गुन्हे  आहेत हे मान्य असूनही कित्येक सुशिक्षित तो गुन्हा करून मोकळे होतात.  आज मी समाजाचा आहे  या ही पेक्षा माझ्या मुळे समाज आहे ही भावना  माणसाचं माणूस पण हिरावून नेते आहे.

“लेक द्यावी श्रीमंताघरी अन सून आणावी गरीबा घरची ” हा  विचार केव्हाच मागे पडला आहे.  एकटय़ाच्या  पगारात भागत नाही हे कारण पुढे करून भरमसाठ पैसे कमवायचे  आणि याच पैशाच्या जोरावर हवी तशी मनमानी करायची या वृत्ती मुळे आज मुलींची संख्या कमी होत चालली आहे. जातीत मुलगी मिळत नाही म्हणून परजातीय विवाहास मान्यता दिली जाते. पण तिथे ही मुलगा हवा  असा आग्रह दिसल्याने विचारांचे मागासले पण  या समस्येला  अधिक खतपाणी घालते.

समाजातील विविध ठिकाणी  मुलगी वाचवा म्हणून विविध  उपक्रम राबविले जात आहेत. पण कौटुंबिक पातळीवर मात्र *वंशाचा दिवा* कसा  आपल्या घरात तेवत राहिल या कडे लक्ष दिले जात आहे.  नास्तिक मनुष्य देखील मुलगा झाल्यावर देवदर्शन करायला जातो आहे. ही समाज विकृती बदलायची असेल तर प्रत्येकाने  स्वतःच्या कुटुंबापासून या चळवळीची सुरवात केली पाहिजे.

 

✒  © विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

 

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ☆ वृक्षवल्लरी लावुचला ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

 

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है।  आज प्रस्तुत है उनकी पर्यावरण सुरक्षा एवं वृक्षारोपण का अतिसुन्दर संदेश देती हुई मधुर कविता “वृक्षवल्लरी लावुचला।) 

 

☆ वृक्षवल्लरी लावुचला 

 

चला चला रे चला चला

वृक्ष वल्लरी लावु चला !!धृ.!!

 

हरितगृहाच्या मखमालीची

खुलली दालने धनदौलतीची

प्रदूषणाला पळवून आपण

वाचवू ओझोन वायूला !!१!! चला चला रे ….

 

वटवृक्षाची आगळीच शान

हिरव्या हिरव्या पानांत बुंदके लाल छान

वटपौर्णिमेला ह्यालाच मान

आधारवड हा पांतस्थांचा पक्षीगणांचा

रक्ष त्यांचे करु चला !!२!!चला चला रे…

 

कल्पवृक्ष हा मूळ कोकणी

गोड खोबरे मधुरचि पाणी

अघटित ही देवाची करणी

तेल तूप अन् सुंदर शिल्पे

तयापासुनि बनवू चला !!३!! चला चला रे…

 

आम्रवृक्ष हा भव्य देखणा

आम्रमंजिरी मोहवी मना

घमघमाट हा दरवळे वना.

आम्ररसाच्या मधुर सेवना

आपण सारे आता पळू चला !!४!! चला चला रे…

 

मृदंग जैसा फणस देखणा

वरि काटे परि आत गोडवा

निसर्गातला अगम्य ठेवा

कोकणातला अमोल मेवा

फणसगरे आता खाऊ चला !!५!! चला चला रे..

 

साग शिशीर उंबर पिंपळ

चंदन चंपक. करंज जांभूळ

हिरडा बेहडा बकुळ बहावा

घाटामधुनि तया पहावा

दर्शन त्यांचे करु चला !!६!!चला चला रे…

 

पळस पांगारा काटेसावरी

शोभून दिसते उंच डोंगरी

पहा फुले ती लाल केशरी

 

या दिव्य सृष्टीदेवतेपुढे

नतमस्तक होऊ चला ७!!चला चला रे…

 

निसर्ग आपुला मित्र म्हणूनी

दोस्ती तयासी घट्ट करोनी

वर्धन रक्षण मित्रांचे या

आनंदाने आपण करु चला !!८!!चला चला रे…

 

©®उर्मिला इंगळे, सातारा 

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ What determines HAPPINESS? ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer,  Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ What determines HAPPINESS? ☆

Video Link : HAPPINESS ACTIVITY

 

HAPPINESS ACTIVITY
HAVE A BEAUTIFUL DAY!

Positive Emotion is one of the five elements of happiness and well-being. If we can somehow increase the level of positive emotion, we can be happier.

Dr Martin Seligman, known as the father of positive psychology, describes a simple happiness activity ‘Have a Beautiful Day’ in his book ‘Authentic Happiness’ for increasing positive emotion in the present:
“Set aside a free day this month to indulge in your favourite pleasures.
“Pamper yourself.
“Design, in writing, what you will do from hour to hour.”
Be mindful and savour every moment of the beautiful day.
Do not let the bustle of life interfere and carry out the plan.

 

Founders: LifeSkills

Jagat Singh Bisht

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University. Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht:

Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer Areas of specialization: Yoga, Five Tibetans, Yoga Nidra, Laughter Yoga.

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – चतुर्थ अध्याय (22) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्थ अध्याय

( योगी महात्मा पुरुषों के आचरण और उनकी महिमा )

 

गतसङ्‍गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः ।

यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते ।।23।।

 

जो आसक्ति रहित ज्ञानी पर उपकारी जीवन जीता है

वही शांत चित्त ,सदाचार युत,आंनद अमृत पीता है।।23।।

 

भावार्थ :  जिसकी आसक्ति सर्वथा नष्ट हो गई है, जो देहाभिमान और ममता से रहित हो गया है, जिसका चित्त निरन्तर परमात्मा के ज्ञान में स्थित रहता है- ऐसा केवल यज्ञसम्पादन के लिए कर्म करने वाले मनुष्य के सम्पूर्ण कर्म भलीभाँति विलीन हो जाते हैं।।23।।

 

To one who is devoid of attachment, who is liberated, whose mind is established in knowledge, who works for the sake of sacrifice (for the sake of God), the whole action is dissolved. ।।23।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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मराठी साहित्य – कविता ☆ लोकशाहीर अण्णा भाऊ साठे यांचे स्मृती दिन निमित्त ☆ अण्णा माझा. . . ! ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(आज प्रस्तुत है कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की स्व. अण्णा भाऊ साठे जी  के स्मृति दिवस पर एक रचना।स्व  अण्णा भाऊ साठे जी को सादर नमन )

लोकशाहीर अण्णा भाऊ साठे यांचा आज स्मृती दिन. त्या निमित्ताने ही रचना लोकार्पण. . . . !   – विजय यशवंत सातपुते, पुणे

 

☆ अण्णा माझा. . . ! ☆

भाऊराव वालुबाई
पोटी जन्मे तुकाराम.
जाईबाई नी शंकर
भावंडांचे निजधाम.

वाटेगावी जन्मलेला
साहित्यिक तुका थोर
कथा, काव्य, पोवाड्यांचा
अभिजात  आहे जोर. . . !

लोककला,  वगनाट्ये
गवळण ,  बतावणी
गण,  वग ,  प्रबोधन
केली समाज बांधणी. . . . !

वर्ग विग्रहाचे ज्ञान
समाजात रूजविले
लाल बावटा संस्थेने
क्रांतीसूर्य घडविले. . . !

पोटासाठी तुकाराम
जागोजागी करी काम
आयुष्याचे केले रान
नाही घेतला आराम. . . !

अण्णा नावे प्रिय झाला
रूढ झाला कथाकार.
दीन दलितांची दुःखे
त्यांचा झाला भाष्यकार. . . !

एकवीस कथाग्रंथ
कादंबरी एकतीस
कम्युनिस्ट विचाराने
प्रबोधन साधलेस.. . . . !

वगनाट्ये तेरा चौदा
अजूनही काळजात
विघातकी रूढींवर
केली लेखणीने  मात. . . !

महाराष्ट्र चळवळ
गोवा मुक्तीचा संग्राम
वार्ताहर, कथाकार
विचारात राही ठाम. . . . . !

रशियन , फ्रेंच आणि
इंग्रजीत भाषांतर
शोषितांचे अंतरंग
भावनांचे वेषांतर. . . . !

रंगभूमी कलावंत
‘इप्टा’ चाही कार्यभार
स्वीकारला कर्तृत्वाने
जग भरात संचार.. . . . !

भुका आहे देश माझा
त्याची भाकरी होईन
शब्दा शब्दातून त्याला
नवे जीवन देईन. . . . !

हीच जाणिव ठेवून
अण्णा माझा  साकारला
स्मृतीदिन आज त्याचा
आठवात आकारला. . . . . !

 

✒  © विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकारनगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक के व्यंग्य – # 6 ♥ ब्राण्डेड-वर-वधू ♥ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक के व्यंग्य”  में हम श्री विवेक जी के चुनिन्दा व्यंग्य आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्री विवेक जी के चुनिन्दा व्यंग्यों को “विवेक के व्यंग्य “ शीर्षक के अंतर्गत पढ़ सकेंगे।  आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का व्यंग्य “ब्राण्डेड-वर-वधू”

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक के व्यंग्य – # 6 ☆ 

 

ब्राण्डेड-वर-वधू

 

हर लड़की अपने उपलब्ध विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ घर-वर देखकर शादी करती है, पर जल्दी ही, वह कहने लगती हैं- तुमसे शादी करके तो मेरी किस्मत ही फूट गई है। या फिर तुमने आज तक मुझे दिया ही क्या है? इसी तरह प्रत्येक पति को अपनी पत्नी `सुमुखी` से जल्दी ही सूरजमुखी लगने लगती है। लड़के के घर वालों को तो बारात के वापस लौटते-लौटते ही अपने ठगे जाने का अहसास होने लगता है। जबकि आज के इण्टरनेटी युग में पत्र-पत्रिकाओं, रिश्तेदारों, इण्टरनेट तक में अपने कमाऊ बेटे का पर्याप्त विज्ञापन करने के बाद जो श्रेष्ठतम लड़की, अधिकतम दहेज के साथ मिल रही होती हैं, वहीं रिश्ता किया गया होता हैं यह असंतोष तरह तरह प्रगट होता है । कहीं बहू जला दी जाती हैं, कहीं आत्महत्या करने को विवश कर दी जाती हैं पराकाष्ठा की ये स्थितियां तो उनसे कहीं बेहतर ही हैं, जिनमें लड़की पर तरह तरह के लांछन लगाकर, उसे तिल तिल होम होने पर मजबूर किया जाता हैं।

 

नवयुगल फिल्मों के हीरो-हीरोइन से उत्श्रंखल हो पायें इससे बहुत पहले ननद, सासकी एंट्री हो जाती है। स्टोरी ट्रेजिक बन जाती है और विवाह जो बड़े उत्साह से दो अनजान लोगों के प्रेम का बंधन और दो परिवारों के मिलन का संस्कार हैं,एक ट्रेजडी बन कर रह जाता है। घुटन के साथ, एक समझौते के रूप में समाज के दबाव में मृत्युपर्यन्त यह ढोया जाता है। ऊपरी तौर पर सुसंपन्न, खुशहाल दिखने वाले ढेरो दम्पत्ति अलग अलग अपने दिल पर हाथ रख कर स्वमूल्यांकन करें, तो पायेंगे कि विवाह को लेकर अगर-मगर, एक टीस कहीं न कहीं हर किसी के दिल में हैं। यहाँ आकर मेरा व्यंग्य लेख भी व्यंग्य से ज्यादा एक सीरियस निबंध बनता जा रहा है। मेरे व्यंग्यकार मन में विवाह की इस समस्याका समाधान ढूँढने का यत्न किया । मैंने पाया कि यदि दामाद को दसवां ग्रह मानने वाले इस समाज में, यदि वर-वधू की मार्केटिंग सुधारी जावें, तो स्थिति सुधर सकती है। विवाह से पहले दोनों पक्ष ये सुनिश्चित कर लेवें कि उन्हें इससे बेहतर और कोई रिश्ता उपलब्ध नहीं है। वधू की कुण्डली लड़के के साथसाथ भावी सासू माँ से भी मिलवा ली जावे। वर यह तय कर ले कि जिन्दगी भर ससुर को चूसने वाले पिस्सू बनने की अपेक्षा पुत्रवत्, परिवार का सदस्य बनने में ही दामाद का बड़प्पन हैं, तो वैवाहिक संबंध मधुर स्वरूप ले सकते है।

अब जब वर वधू की एक्सलेरेटेड मार्केटिंग की बात आती है तो मेरा प्रस्ताव है ब्राण्डेड वर, वधू सुलभ कराने की। यूँ तो शादी डॉट कॉम जैसी कई अंर्तराष्ट्रीय वेबसाइट सामने आई हैं। माधुरी दीक्षित जी ने तो एक चैनल पर बाकायदा एक सीरियल ही शादी करवाने को लेकर चला रखा था। अनेक सामाजिक एवं जातिगत संस्थाये सामूहिक विवाह जैसे आयोजन कर ही रही हैं। लगभग प्रत्येक अखबार, पत्रिकायें वैवाहिक विज्ञापन दे रहें है, पर मेरा सुझाव कुछ हटकर है। यूँ तो गहने, हीरे, मोती सदियों से हमारे आकर्षण का केन्द्र रहे हैं, पर हमारे समय में जब से ब्राण्डेड `हीरा है सदा के लिये´ आया हैं, एक गारण्टी हैं, शुद्धता की। रिटर्न वैल्यू है। रिलायबिलिटी है। आई एस ओ प्रमाण पत्र का जमाना है साहब। खाने की वस्तु खरीदनी हो तो हम चीज नहीं एगमार्क देखने के आदी हैं पैकेजिंग की डेट, और एक्सपायरी अवधि, कीमत सब कुछ प्रिंटेड पढ़कर हम, कुछ भी सुंदर पैकेट में खरीदकर खुश होने की क्षमता रखते है। अब आई एस आई के भारतीय मार्के से हमारा मन नहीं भरता हम ग्लौबलाईजेशन के इस युग में आई एस ओ प्रमाण पत्र की उपलब्धि देखते है। और तो और स्कूलों को आई एस ओ प्रमाण पत्र मिलता है, यानि सरकारी स्कूल में दो दूनी चार हो, इसकी कोई गारण्टी नहीं है, पर यदि आई एस ओ प्रमाणित स्कूल में यदि दो दूनी छ: पढ़ा दिया गया, तो कम से कम हम कोर्ट केस करके मुआवजा तो पा ही सकते हैं।

हाल ही एक समाचार पढ़ा कि अमुक ट्रेन को आई एस ओ प्रमाण पत्र मिला है। मुझे उस ट्रेन में दिल्ली तक सफर करने का अवसर मिला, पर मेरी कल्पना के विपरीत ट्रेन का शौचालय यथावत था जहाँ विशेष तरह की चित्रकारी के द्वारा यौन शिक्षा के सारे पाठ पढ़ाये गये थे, मैं सब कुछ समझ गया। खैर विषयातिरेक न हो, इसलिये पुन: ब्राण्डेड वर वधू पर आते हैं! आशय यह है कि ब्राण्डेड खरीदी से हममें एक कान्फीडेंस रहता है। शादी एक अहम मसला है। लोग विवाह में करोड़ो खर्च कर देते है। कोई हवा में विवाह रचाता है, तो कोई समुद्र में। हाल ही भोपाल में एक जोड़े ने ट्रेकिंग करते हुए पहाड़ पर विवाह के फेरे लिये, एक चैनल ने बकायदा इसे लाइव दिखाया। विवाह आयोजन में लोग जीवन भर की कमाई खर्च कर देते हैं, उधार लेकर भी बड़ी शान शौकत से बहू लाते हैं, विवाह के प्रति यह क्रेज देखते हुये मेरा अनुमान है कि ब्राण्डेड वर वधू अवश्य ही सफलतापूर्वक मार्केट किये जा सकेगें। ब्राण्डेड बनाने वाली मल्टीनेशनल कंपनी सफल विवाह की कोचिंग देगी। मेडिकल परीक्षण करेगी। खून की जांच होगी। वधुओं को सासों से निपटने के गुर सिखायेगी। लड़कियो को विवाह से पहले खाना बनाने से लेकर सिलाई कढ़ाई बुनाई आदि ललित कलाओ का प्रशिक्षण दिया जावेगा। भावी पति को बच्चे खिलाने से लेकर खाना बनाने तक के तरीके बतायेगी, जिससे पत्नी इन गुणों के आधार पर पति को ब्लेकमेल न कर सके। विवाह का बीमा होगा।

इसी तरह के छोटे-बड़े कई प्रयोग हमारे एम बी ए पढ़े लड़के ब्राण्डेड दूल्हे-दुल्हन पर लेबल लगाने से पहले कर सकते है। कहीं ऐसा न हो कि दुल्हन के साथ साली फ्री का लुभावना आफर ही कोई व्यवसायिक प्रतियोगी कम्पनी प्रस्तुत कर दें। अस्तु! मैं इंतजार में हूँ कि सुदंर गिफ्ट पैक में लेबल लगे, आई एस ओ प्रमाणित दूल्हे-दुल्हन मिलने लगेंगे, और हम प्रसन्नता पूर्वक उनकी खरीदी करेगें, विवाह एक सुखमय, चिर स्थाई प्यार का बंधन बना रहेगा। सात जन्म का साथ निभाने की कामना के साथ, पत्नी हीं नहीं, पति भी हरतालिका व्रत रखेगें।

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव 

ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो. ७०००३७५७९८

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #8 ☆ खाके ☆ – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी लघुकथा  “खाके”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #8 ☆

 

☆ खाके ☆

 

गोपाल ‘खाके’ फिल्म के विरोध के लिए रूपरेखा बना रहे थे. किस तरह फिल्म के पोस्टर फाड़ना है ? कहाँ  कहाँ विरोध करना है ? किस किस को ज्ञापन देना है ? किस साइट पर क्या क्या लिखना है ? ऐसी अधार्मिक फिल्म का विरोध होना ही चाहिए जो लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाए.

तभी ‘खाके’ फिल्म के निर्माता ने प्रवेश किया.

“अरे! आप.” गोपाल चकित होते हुए बोले, “आइए बैठिए, मोहनजी”, कहते हुए उन्होंने नौकर से इशारा किया. वह चाय-पानी रख कर चला गया.

मोहनजी कुछ बोलना चाहते थे. उन्होंने मेरी ओर देखा.

“ये अपने ही आदमी है,” गोपाल ने आश्वस्त किया, “आप इन के सामने निश्चिन्त हो कर अपनी बात कह सकते हैं.”

“अच्छा जी,” कहते हुए मोहनजी ने एक सूटकेस सामने रख दिया. “आप ने बहुत अच्छा प्रचार किया है. आप ‘खाके’ फिल्म का जितना विरोध करेंगे उतनी ही यह फिल्म फेमस होगी.

“आप का आयडिया अच्छा है. इसलिए आप इस के विभिन्न दृश्यों की जम कर आलोचना कीजिए. बताइए कि इस में क्या-क्या खराब है?”

यह सुन कर मैं चकित रह गया. मेरे मन में मंथन चलने लगा. मेरा ध्यान भटक गया.

एक ओर सूटकेस में पड़े नोट मुझे मुँह चिढ़ा रहे थे, वहीं दूसरी ओर गोपाल का यह रूप मुझे चकित कर रहा था.

“वाह! क्या तरीका निकाला है आप ने, “मोहनजी कहे जा रहे थे, “आप का भी प्रचार हो गया और मेरी फिल्म भी हिट हो गई.”

यह सुन कर मैं ‘खाके’ फिल्म की सार्थकता पर विचार करने लगा. फिल्म सार्थक है या ये लोग ?

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुजित साहित्य # 8 – कॅनव्हास…! ☆ – श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं। यह सच है कि अक्सर हमारे  जीवन  के रंग हृदय के कॅनव्हास से नहीं उतर पाते और प्रकृति के रंग उस पर चढ़ नहीं पाते।   आज प्रस्तुत है उनकी  एक संस्मरणात्मक भावुक कविता  “कॅनव्हास…!”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #8 ☆ 

 

☆ कॅनव्हास…! ☆ 

 

गेल्या कित्येक वर्षात

माझ्या कॅनव्हास वर

पावसाचं चित्रंच उमटलं नाही…

का कोणास ठाऊक

आता पहील्या सारखा पाऊस

रंगामध्ये दाटूनच येत नाही

कितीतरी वेळ मी

कॅनव्हास समोर ठेवून

त्याच्याकडे एक टक पहात रहातो

आता तर

कॅनव्हास वर श्वास घेणारे रंग ही

पाऊस म्हटलं तरी

ब्रश वर गोठायला लागलेत कारण…

माझ्या बापाला

माझी माय गेल्यावर रडताना पाहीलं

आणि तेव्हाच काय तो हवा तेवढा

पाऊस नजरेत साठवला

त्या वेळी त्या पावसाचं चित्र

काळजाच्या इतक्या खोलवर जाऊन

उमटलं की तेव्हापासून

हा बाहेर कोसळणारा पाऊस

कॅनव्हास वर कधी उतरवावासाच वाटला नाही

आणि काळजातल्या त्या पावसा समोर

रंगाचा हा पाऊस कॅनव्हॅसवर

कधी बोलकाच झालाच नाही….!

 

© सुजित कदम

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