हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – सहज सरल जिंदादिल व्यक्तित्व के धनी  ☆ डॉ. प्रदीप शशांक ☆

डॉ. प्रदीप शशांक

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – सहज सरल जिंदादिल व्यक्तित्व के धनी  ☆ डॉ. प्रदीप शशांक

जय प्रकाश पांडे जी, क्या कहूँ इस शख्सियत के विषय में ? सहज, सरल, सौम्य, सदा हंसते हंसाते रहने वाले जिंदा दिल व्यक्तित्व के धनी, प्रेमी निच्छल हृदय, एक बार जो भी इनसे मिला इन्हीं का हो गया। अच्छे व्यक्तियों के लिये जितनी उपमा होती हैं वह इस हरदिल अजीज के लिए भी कम पड़ जावेंगी।

जय प्रकाश जी के साहित्यिक कृतित्व पर अनेक मित्र प्रकाश डालेंगे। हम केवल उनके दिलदार व्यक्तित्व के विषय में बात करेंगे।

पांडे जी से हमारा परिचय लगभग 8 वर्ष पुराना है। किसी पत्रिका में प्रकाशित मेरा व्यंग्य पढ़कर उन्होंने हमें फोन किया और व्यंग्य की तारीफ करते हुए हमें बधाई दी। प्रथम फोन के बाद ही उनकी आत्मीयता ने हमें इतना प्रभावित किया कि हम अच्छे मित्र बन गये। उसके बाद शहर में आयोजित अनेकों गोष्ठियों में मुलाकात होती रही और आपसी बातों में हंसी मजाक और ठहाकों के बीच हमारी मित्रता परवान चढ़ती गई। प्रायः सप्ताह, 15 दिन में उनसे फोन पर एक दूसरे की साहित्यिक गतिविधियों पर चर्चा होती रहती थी। ठहाकों के बीच उनका मिठास से भरा “जय हो” कहना, अंतर्मन तक खुशियों से भर देता था।

कोरोना काल के पहले एक दिन शाम 4 बजे उनका फोन आया, शशांक तुम आराम तो नहीं कर रहे हो? हमने कहा -आराम का तो समय है, लेकिन आप के लिये तो समय ही समय है। उन्होंने कहा- मैं तुम्हारे ही क्षेत्र में हूँ, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज में, बस पांच मिनिट में तुम्हारे घर आ रहा हूँ। हमने कहा-स्वागत है आपका।

पांच मिनिट बाद वह हमारे घर पर थे। बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि उनके लड़के ने श्री राम इंजीनियरिंग कालेज में कैंटीन ली है अतः मैं आज यहां आया था सो सोचा तुमसे मिलता चलूं। श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज से लगी हुई हमारी कालोनी है।

घर पर वह प्रथम बार आये थे, बातों और ठहाकों के दौर के बीच में हमारी श्रीमती जी ने चाय, नमकीन लाकर रख दिया। पांडे जी की बातों का प्रभाव ऐसा था कि श्रीमती जी भी आकर हम लोगों के पास बैठ गईं और उनकी बातों का आनंद लेने लगीं। बातों में मशगूल हम लोगों को पता ही नहीं चला कि कब 6 बज गये।

श्रीमती जी को ऐसा बिल्कुल भी महसूस नहीं हुआ कि पांडे जी से पहले बार मिलीं हैं, ऐसा लगा कि वर्षों की जान पहचान है।

फिर तो जब भी वह कालेज आते तो हमारे घर जरूर आते, आते ही कहते – भाभी जी चाय बहुत अच्छी बनाती हैं तो हम भाभी जी के हाथ की बनी चाय पीने आये हैं।

हाजिर जवाबी, और मजाकिया स्वभाव के धनी पांडे जी को हमने 2024 की रैंकिंग में 43 वें नंबर पर आने हेतु बधाई दी तो उन्होंने ठहाका लगाते हुए कहा – धन्यवाद।

किंतु हमें असंतोष है नंबर एक के आदमी को इतने पीछे कर दिया। आज आत्ममुग्धता और महात्वाकांक्षा का युग है हर आदमी नंबर 1 वाला और ये लोग राजनीति खेल कर कटुता पैदा कर रहे हैं। मजाक में ही उन्होंने उस सूची पर कटाक्ष कर दिया।

दो वर्ष पूर्व 23 दिसंबर 22 को पांडे जी के मित्रों का माडेलियन ग्रुप( जबलपुर मॉडल हाई स्कूल में पढ़े उनके साथी मित्र) का ओरछा (राम राजा का किला) पिकनिक मनाने हेतु जाने का प्रोग्राम बना। सभी 65 +उम्र के उनके मित्र सपत्नीक जाने वाले थे। हमारे साले साहब शेखर सिंह राजपूत भी उस ग्रुप में थे। इत्तेफाक से बस में 3 सीट खाली थीं तो हमारे साले का फोन आया और ओरछा चलने को कहा, किंतु उस समय मेरे घुटने में ज्यादा तकलीफ होने का कारण हमने जाने से मना कर दिया, किंतु श्रीमती जी को भेज दिया। हमारी श्रीमती जी अपनी भाभी के साथ जब बस में आगे की सीट पर बैठी थीं तभी पांडेय जी भी अपनी श्रीमती के साथ बस में चढ़े और हमारी श्रीमती जी को देखकर हैरान रह गये और सोच में पड़ गये कि यह यहाँ कैसे? खैर, नमस्कार करने के बाद वह भी पीछे जाकर अपने अन्य दोस्तों के साथ बैठ गये।

कुछ देर बाद हमारी श्रीमती जी का फोन हमारे पास आया और उन्होंने बताया कि हम लोग आराम से बस में बैठ गये हैं। उन्होंने बताया कि पांडे जी भी आये हैं अपनी श्रीमती जी के साथ।

हमने पांडे जी को फोन लगाया, फोन उठाते ही उन्होंने कहा, भाभी जी बस में हैं लेकिन … हमने उनकी शंका का समाधान करते हुए कहा- आप के माडेलियन ग्रुप में हमारी मॉडल भी साथ जा रही हैं, वह आपके मित्र शेखर की बहन हैं। अरे..तुमने पहले कभी नहीं बताया, शेखर हमारे साथ बाजू में ही बैठे हैं, लो बात कर लो। हमने अपने साले साहब को बताया कि पांडे जी हमारे भी पुराने साहित्यिक मित्र हैं।

उसके बाद पांडे जी, हमारी श्रीमती जी को शेखर के बहन होने के नाते और ज्यादा सम्मान देने लगे। जब भी फोन करते हम दोनों से ही बात करते।

लगभग 8माह पूर्व शायद अप्रेल में ही उन्होंने बताया था कि पेट में कुछ परेशानी है। अतः यहां पर डॉक्टर को दिखाया है लेकिन आराम नहीं लग रहा है। उसके बाद वे बांबे गये वहां जांच के दौरान उनको आंत में कैंसर की शिकायत बताई। कुछ दिनों बाद वह नागपुर भी गये। बाद में जबलपुर में कीमो करवाने सप्ताह में एक बार अस्पताल जाते थे। एक बार हमने फोन लगाया तो घंटी पूरी गई लेकिन फोन नहीं उठा। हमें लगा कि कहीं व्यस्त होंगे। कुछ देर बाद उनका फोन आया और उन्होंने बताया कि उनका कीमो हो रहा था। हमने उनसे कहा कि आप आराम करो, बाद में बात करेंगे लेकिन उन्होंने हंसते हुए कहा अरे नहीं, नर्स अपना काम कर रहीं है, हम अपना काम करें और उन्होंने हंसते हुए हमसे बात करना शुरू कर दी। इतने दर्द के बाद भी उन्होंने हमें यह महसूस नहीं होने दिया।

अभी 27 नवंबर को जब उनसे बात हुई तो उन्होंने बताया कि कीमो पूरे हो गये हैं, अब नागपुर जाकर टेस्ट करवाना है कि कितने परसेंट रिकवरी हुई है। हमने कहा कि आप जल्द ठीक हो कर आओ, बहुत दिनों से घर नहीं आये हो। फोन स्पीकर में ही था, हमारी श्रीमती जी ने भी उनसे कहा कि आप जल्दी अच्छे होकर आओ, चाय पीने। उन्होंने कहा- हमने चाय पीना छोड़ दिया है किन्तु आपके हाथ की चाय पीने एक बार जरूर आऊंगा।

हम लोग उनके आने का इंतजार ही करते रह गये।

इस बीच उनके निधन के समाचार की अफवाहें भी उड़ने लगीं। हम सब स्तब्ध थे, किंतु उनकी जीवटता बार बार उन्हें मौत के मुंह से बाहर लाती रही।

25 दिसंबर को साले साहब का फोन आया और उन्होंने बताया कि पांडे जी को जबलपुर लेकर आ गये हैं और वह यहां पर गेलेक्सी अस्पताल में आई सी यू वार्ड में भर्ती हैं। 25 दिसंबर की शाम को 5.30 पर हम श्रीमती जी के साथ गेलेक्सी अस्पताल पांडे जी को देखने पहुंचे। उनकी हालत देखकर दिल धक्क से हो गया। इतना दिलदार, हंसमुख इंसान की ऐसी स्थिति, आंखें देख रही थी उनको लेकिन दिल को विश्वास ही नही रहा था कि यह पांडे जी ही हैं। उनके बेड के पास उस समय केवल उनकी पुत्री ही थी। श्रीमती जी ने उसे सांत्वना दिया और कहा कि पांडे जी जल्दी ठीक हो जावेंगे, पुत्री की आंखों में अश्रु झिलमिलाने लगे।

नियति को शायद यही मंजूर था। 26 दिसंबर की सुबह उनके निधन की खबर उनके पुत्र की ओर से मिली।

भगवान को भी अच्छे लोगों की शायद ज्यादा जरूरत होती है तभी उन्हें अपने पास बुला लिया।

वे सह्रदय, हंसमुख एवं दिलदार व्यक्तित्व के स्वामी थे। सदा हंसते ठहाके लगाते रहते थे। उनका यूं अचानक चले जाना हम सभी मित्रों की व्यक्तिगत क्षति है। उन्हें अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि।

*****

डॉ. प्रदीप शशांक

श्रीकृष्णम ईको सिटी, श्रीराम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर, म.प्र. 482002 मोबाइल -9131485948

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – साहित्य के सूर्य – जय प्रकाश पांडे जी ☆ श्री रमाकांत ताम्रकार ☆

श्री रमाकांत ताम्रकार

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – साहित्य के सूर्य – जय प्रकाश पांडे जी ☆ श्री रमाकांत ताम्रकार 

श्री जय प्रकाश पांडे जी जैसा व्यक्ति अब मिलना असम्भव है क्योंकि जिनका कोई नहीं होता उनके श्री पांडे जी होते थे. हरएक व्यक्ति के साथ श्री पांडे जी खड़े थे जिससे उनके साथ जो भी व्यक्ति होता वह अपने को सबल मानता था. अब इस समय बहुत-बहुत ही बड़ी रिक्तता आ गई है. जिसकी पूर्ति असंभव है. श्री पांडे जी अद्भुत जिजीविषा एवं दृढ़ संकल्प के धनी थे. उनका दृष्टिकोण बिल्कुल स्पष्ट था. इतनी बड़ी पोस्ट पर होने के बाद भी सहज और सरल हृदय थे.

हमने कई साहित्यिक यात्राएँ की जिसमें मुझे उनका साथ कृष्ण और सुदामा सरीखा मिलता था. साहित्यिक कार्यक्रमों में आप मुझे हमेशा आगे रखते थे. 9वे दशक से हमारा साथ था. उन्होने साहित्य जगत को अमृतमय योगदान दिया. श्री परसाई जी के जन्मदिन के अवसर पर उनके विरोध के बावजूद बहुत ही उत्कृष्ट कार्यक्रम किया था जिसकी पूरे देश में प्रशंसा हुई. इसी प्रकार श्री परसाई जी का उत्कृष्ट प्रथम साक्षात्कार भी आपने लेकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया था. एसे ही उन्होंने अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया. जिनकी चर्चा आज भी होती है. अनेकों शीर्षस्थ सम्मान उत्कृष्ट लेखन हेतु उन्हें मिले. जब कोई उन्हें सम्मानित करने की बात कहता तो वे किसी दूसरे अच्छे लेखक का नाम सुझाते. पुरूस्कार समितियों में वे बिल्कुल पारदर्शिता और निष्पक्षता से अडिग होकर अपना पक्ष रखते.

आप ई-अभिव्यक्ति पत्रिका के सम्पादक, व्यंग्य की महत्वपूर्ण पत्रिका अट्टहास के अतिथि सम्पादक के साथ-साथ अनेकों पत्रिकाओं का संपादन करते रहते थे. वर्तमान में आप व्यंग्य के लिए कटिबद्ध थे. इसलिए व्यंग्य के उन्नयन के लिए आपने जबलपुर नगर के व्यंग्यकार का एक समूह व्यंग्यम बनाया. जिसमें पिछले साढ़े आठ साल से (लगभग) लगातार व्यंग्य गोष्ठियों का आयोजन अपने घर के लॉन में आयोजित कर रहे थे. य़ह कार्यक्रम इतनी सादगी और गंभीर विमर्श का होता है जिसकी चर्चा संपूर्ण देश में हो रही है. व्यंग्य के प्रति उनका स्पष्ट और सटीक नजरिया था.

आप को जब पता चला कि कैंसर हो गया है तब उनकी य़ह दृढ़ता थी कि मैं कैंसर को हरा दूँगा. वे कभी भी कैंसर से डरे नहीं. उन्होंने समान्य रूप से 11 कीमोथेरेपी कराई. हँस मुख और सहयोगी भावना से अंतिम समय तक लगे रहे. उनका जुझारूपन हमारी प्रेरणा है. वे अक्सर मुझसे और अपने साथियों से कहते कि जब तक मैं जिंदा हूँ तब तक व्यंग्यम की गोष्ठी मेरे ही घर में होगी और य़ह वचन उन्होंने निभाया भी. वे अक्सर मुझसे कहते थे कि अब व्यंग्यम तुम लोगों को चलाना है, इस व्यंग्य की मशाल को कभी बुझने नहीं देना कुछ स्वार्थी लोग इस पर आधिपत्य जमाने की कोशिश करेंगे पर डटे रहना. मैं उनसे कहता आप कहाँ जा रहे है अपन सब मिलकर ही व्यंग्य विधा का काम करेंगे. वो तो करेगें ही पर किसी का कोई भरोसा नहीं है अब देखो न सुमित्र जी चले गए. एसा वे कहते थे. शायद उन्हें आभास हो गया था किन्तु उन्होंने इस बात को किसी पर भी जाहिर नहीं किया.

मेरी उनसे दिन में 3 से 4 बार चर्चा होती थी और हर चर्चा में व्यंग्य एवं साहित्य के उन्नयन की चर्चा होती जिसमें नई नई योजना नए कार्यक्रमों की गहन बात होती. हम एक-दूसरे के व्यंग्य की मंजाई करते फिर उसे प्रस्तुत करते.

12 दिसम्बर को नागपुर जाने से पहले करीब लगभग डेढ़ घंटे हमारी चर्चा हुई थी. फिर नागपुर में ऑपरेशन के पहले उन्होंने कहा मैं ऑपरेशन कराकर अधिकतम सोम या मंगल तक लौट आऊंगा फिर अपन व्यंग्यम की गोष्ठी करेगें. मैंने कहा पहले तबीयत फिर गोष्ठी की बात करेंगे. तब उन्होंने जोरदार शब्दों में कहा अरे सब ठीक है थोड़ा ऑपरेशन हो जाएगा तो और ठीक हो जाएगा. पर क्या पता था कि मेरी उनसे यह अंतिम बात है. नागपुर से लाकर जब उन्हें जबलपुर के अस्पताल में भर्ती किया तब हम सभी व्यंग्यम के साथी मिलने गए थे. मैंने उनके कंधे पर हाथ रखकर आवाज लगाई तो उन्होंने आंख खोली, आंखों में बहुत तेज था कुछ और करने की ललक जो हमारी चर्चा में होती थी. पर ईश्वर को कुछ और मंजूर था और 26 दिसम्बर 24 को श्री पांडे जी को अपने पास बुला ही लिया. हम सब प्रति क्षण प्रार्थना करते ही रह गए.

 श्री जय प्रकाश पांडे जी के जाने से मेरे जीवन में रिक्तता आ गई है. पर मुझे विश्वास हैं कि श्री पांडे जी सूक्ष्म रूप में हम सबके साथ है उन्हीं की प्रेरणा से उनके विचारों को आगे ले जाना है.

 मैं अपने सबल सच्चे मित्र के श्रीचरणों में विनम्र श्रध्दांजलि इस आशय से दे रहा हूँ कि वे सदैव हमारे साथ रहेंगे.

 श्री रमाकांत ताम्रकार

जबलपुर

मोबाइल 9926660150

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – मार्गदर्शक स्वर्गीय जयप्रकाश पांडेय जी ☆ श्री श्याम खापर्डे  ☆

श्री श्याम खापर्डे

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – मार्गदर्शक स्वर्गीय जयप्रकाश पांडे जी ☆ श्री श्याम खापर्डे 

स्वर्गीय जय प्रकाश पांडे जी से मेरी पहचान फेसबुक पर हुई थी। मैं उनके व्यंग्य का प्रशंसक था. हम दोनों भारतीय स्टेट बैंक में अधिकारी थे।  परंतु हम दोनों का परिचय नहीं था, मैंने उनका नाम जरुर सुना था और वह बहुत ही शानदार व्यंग लिखते थे। मैं भी उनके व्यंग्य को पसंद करता था और अपनी टिप्पणी उन्हें भेजता था वह भी मेरी कविताओं के प्रशंसक थे और मेरी कई बार प्रशंसा करते थे।  उन्होंने मुझे एक बार कहा कि आपकी दो-तीन कविताएं मुझे भेजिए मैं अभिव्यक्ति में प्रयास करता हूं मैंने अपनी तीन कविताएं भेजी उनका फोन आया कि कविताएं अच्छी है, मैं श्री हेमंत बावनकर जी को भेजता हूं वह संपादक है वह आपसे संपर्क करेंगे। आप उन्हें संक्षिप्त में अपना परिचय दे देना। कुछ देर के बाद श्री हेमंत बावनकर जी का फोन आया और उनसे पहली बार बातचीत हुई उन्होंने मेरी कविताएं स्वीकृत की और मेरा स्तंभ ” क्या बात है श्याम जी ” की शुरुआत ई-अभिव्यक्ति पर हुई। 

स्वर्गीय जयप्रकाश पांडे जी से मेरी पहली मुलाकात भोपाल में भारतीय स्टेट बैंक के कविता के लिए साहित्य के सम्मान के लिए आयोजित कार्यक्रम में हुई जहां मुझे भी आमंत्रित किया गया था। 

सम्मान के बाद मैंने अपनी कविता का पाठ किया जिसे सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने मेरी प्रशंसा की और कविता के लिए बधाई दी।  उसके बाद हम दोनों अच्छे मित्र बन गए। 

दूसरी बार जब वह अट्टहास के ” परसाई “अंक के अतिथि संपादक थे तब मैंने उनसे उस अंक की एक प्रति मंगवाई, उन्होंने भेजी और मुझसे कहा इसको पढ़ कर आप इस अंक की समीक्षा लिखिए . मैंने उनसे कहा कि मुझे समीक्षा लिखना नहीं आता वह बोले की प्रयास करो और लिखो।  मैंने उस अंक कों पढ़कर अपनी तरफ से प्रयास किया और समीक्षा लिखकर उनको भेजा। 

मेरी समीक्षा को पढ़कर उन्होंने मुझे फोन किया और कहां कि आपने बहुत मेहनत की है और यह समीक्षा लिखी है जो बहुत ही सुंदर है और मेरी उम्मीद और अपेक्षाओं से भी बढ़कर है मैंने यह समीक्षा कई ग्रुप में भेजी हैं और पेपर में भी भेजी है, वह अभिव्यक्ति में भी प्रकाशित हुई थी। 

उनका हमेशा मार्गदर्शन मुझे मिलता रहा. वह मेरे लिए मित्र से भी बढ़कर थे, मैं अपनी बेटी के यहां कटनी आया हुआ हूं और उनसे मिलने अगले सप्ताह जबलपुर जाने वाला था, अचानक उनके स्वर्गवास का समाचार फेसबुक में पढ़कर बहुत ही दुख हुआ .मेरा मन उसे दिन से व्याकुल है और अंतकरण दुख से भर गया है। 

मैंने एक अच्छा मित्र, मार्गदर्शक, जान से भी प्यारा साथी खो दिया है इसका दुख मुझे जीवन पर्यंत रहेगा। 

ईश्वर मृत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें एवं उनके परिवार को यह दुख सहने की क्षमता दे यही प्रार्थना है। 

ओम शांति। विनम्र श्रद्धांजलि। 

उनको समर्पित एक कविता आपसे साझा करना चाहूँगा —

जयप्रकाश पांडे ☆

 

तुम मंझधार में हमको

छोड़ कर चले गए

स्नेह के धागों को

तोड़ कर चले गए

 

तुम आज के युग के

निर्भीक कलमकार थे

शब्दों में जिसके चुभन हो

वो व्यंग्यकार थे

 विसंगतियों को चित्रित करते

चित्रकार थे

” परसाई “के व्यंग्यों के

सच्चे पैरोकार थे

क्या खता हुई

 जो मुंह मोड़ कर चले गए ?

स्नेह के धागों को

 तोड़ कर चले गए

 

तुमने मुझे लिखने की

कला सिखाईं थी

प्रोत्साहित किया

मेरी हिम्मत बंधाई थी

शब्दों के अर्थ समझाए

सही राह दिखाई थी

मेरी कविता सुप्त थी

तुमने जीवंत बनाई थी

क्या सजा दी है

मेरे सर गम का घड़ा

फोड़कर चले गए

स्नेह के धागों को

तोड़ कर चले गए ?

 

तुम्हारे शोक में

हर इंसान रो रहा है

जमीं रो रही है

आसमान रो रहा है

कलम रो रही है

व्यंग्य का

हर दृष्टिकोण रो रहा है

व्यंगम के वह तीर और

उच्चारण रो रहा हैं

क्या मिला

चाहने वालों को

अश्रुओं से जोड़कर चले गए ?

स्नेह के धागों को

तोड़ कर चले गए

 

तुमको भूलना भी हमको

कितना मुश्किल है

कैसे द्रवित ना हो

हमारे सीने में भी दिल है

सब उदास है

सूनी सूनी महफिल है

तुम्हें छीन ले गया

विधाता कितना संगदिल है

क्या हुआ जो

तुम झंझोड़ कर चले गए ?

स्नेह के धागों को

तोड़ कर चले गए

 

शोकाकुल परिवार और मित्र है

नियति का भी खेल विचित्र है

तुम सहज सरल स्पष्टवादी हो

हर कार्य साफ सुथरा और चरित्र है

क्यों आइना दिखा कर

कचोट कर चले गए ?

तुम मंझधार में हमको

छोड़कर चले गए

स्नेह के धागों को

तोड़ कर चले गए /

श्री  श्याम खापर्डे 

भिलाई जिला दुर्ग छत्तीसगढ़

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – जयप्रकाश पांडेय जी की स्मृति में… ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – जयप्रकाश पांडेय जी की स्मृति में… ☆ श्री राकेश कुमार 

हमारा बैंक : हमारी कहानी समूह में 10 अप्रैल 2021 को हम सब के प्रिय श्री जय प्रकाश पांडे जी ने सभी सदस्यों से आग्रह किया था कि आज सभी सदस्य आईना देखकर कुछ भी लिख कर ग्रुप में साझा करें।

वो दिन हमारी जिंदगी का एक टर्निंग पॉइंट था। उनकी प्रेरणा से हमने भी कुछ लिखने का प्रयास किया और संलग्न लेख लिखा था।

आज उनकी स्मृति में उसी लेख को आप सबके के साथ पुनः शेयर कर रहा हूं। 🙏

☆ जीवन की बैलेंस शीट ☆

हमारे प्रिय मित्र ने आदेश दिया कि 🪞आइने के सामने जाकर आज अपनी जिंदगी का लेखा जोखा पेश करो। आजकल समय कुछ नेगेटिव बातो का है तो हमे भी लगने लगा कहीं चित्रगुप्त के सामने पेश होने की ट्रेनिंग तो नहीं हो रही। अभी तो जिंदगी शुरू की है रिटायरमेंट के बाद से।

खैर, हमने इंटरव्यू की तैयारी शुरू कर दी और अपनी सबसे अच्छी वाली कमीज़ (जिससे हमने स्केल 3 से लेकर 5 के interview दिए थे वो मेरा lucky charm थी) पहन, जूते पोलिश कर आइना खोजने लगे अरे ये क्या आइना कहां है मिल नहीं रहा था, मिलता भी कैसे आज एक वर्ष से अधिक हो गया जरूरत ही नहीं पड़ी।

श्रीमती जी से पूछा तो बोली क्या बात है अब Covid की दूसरी घातक लहर चल पड़ी है तो आपको सजने संवरने की पड़ी है, आप उस मोबाइल में ही लगे रहो। एक साल से सब्जी की दुकान तक तो गए नहीं अब जब सारी दुनिया दुबक के पड़ी है और आपको झुल्फे संवारने की याद आ रही है।

हमने उलझना ठीक नहीं समझा और बैठ गए मोबाइल लेकर, दोपहरी को जैसे ही श्रीमतीजी नींद लेने लगी हम भी अपने मिशन में लग गए और आइना खोज लिया। एक निगाह अपनी नख से शिखा तक डाली और थोड़ी से चीनी खाकर चल पड़े। अम्माजी की याद आ गई जब भी घर से किसी अच्छे काम के लिए जाते थे तो वो मुंह मीठा करवा कर ही बाहर जाने देती थी और आशीर्वाद देकर कहती थी जाओ सफलता तुम्हारा इंतजार कर रही है। हमने भी मन ही मन अपनी सफलता की कामना कर ली।

जैसे ही आईने के सामने पहुंचे मुंह से निकल ही रहा था may i come in, sir लेकिन फिर दिल से आवाज़ आई अब तुम स्वतंत्र हो, डरो मत, आगे बढ़ो। आईने में जब अपने को देखा तो लगा ये कौन है लंबी सफेद दाढ़ी वाला पूरे चेहरे पर दूध सी सफेदी देख कर निरमा washing powder के विज्ञापन की याद आ गई।

अपने आप को संभाल कर हमने अपने कुल देवता का नमन किया।

पर ये क्या? मन बहुत ही चंचल होता है विद्युत की तीव्र गति से भी तेज चलता है हम भी पहुंच गए कॉलेज के दिनों में स्वर्गीय प्रोफ सुशील दिवाकर की वो बात जहन में थी जब हमारी बढ़ी हुई दाढ़ी पर उन्होंने कहा था ” not shaving” तो हमने एकदम कहा था ” no sir Saving” वो खिल खिला कर हंसने लगे। बहुत ही खुश मिजाज़ व्यक्ति थे।

अब कॉलेज के प्रांगण में थे तो प्रो दुबे एस एन की याद ना आए ऐसा हो ही नहीं सकता, economics को सरल और सहज भाव में समझा देते थे आज भी उनकी बाते ज़ुबान पर ही रहती है।

एक दिन कक्षा में demand और supply पर चर्चा हो रही थी। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की परिस्थितियों का वर्णन करते हुए बतलाया की सरकार जब अपने स्तर पर मज़दूर को रोज़गार देती है तो उससे demand निकलती है, मजदूर पेट भरने के बाद कुछ अपने पर खर्च करने की सोचता है, अपनी shave करने के लिए बाज़ार से एक blade खरीदता है, और शुरू हो जाती है Demand, दुकानदार, होलसेलर को ऑर्डर भेजता है और होलसेलर फैक्ट्री को ऑर्डर भेजता है, फैक्ट्री जो बंद हो गई थी मजदूर लगा कर फैक्ट्री चालू कर देता है और रोज़गार देने लगता है। कैसे एक blade से रोज़गार शुरू होता है।

अपनी लंबी दाढ़ी देख कर हम भी आपको कहां से कहां ले गए, इसलिए आइना नही देख रहे थे हम आजकल।

टीप – हमने किसी दाढ़ी बढ़ाए हुए को भी आइना दिखाने की कोशिश नहीं की। 😁

श्री राकेश कुमार 

11th April 2021

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – अविस्मरणीय संस्मरण ☆ साभार – स्मृतिशेष जयप्रकाश जी के स्वजन-मित्रगण ☆

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – अविस्मरणीय संस्मरण ☆ साभार – स्मृतिशेष जयप्रकाश जी के स्वजन-मित्रगण ☆

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☆  एक अच्छे व्यंग्यकार ही नहीं थे वरन बेहतर मनुष्य  भी थे ☆ श्री गिरीश पंकज ☆

जयप्रकाश पांडेय जी के रूप में एक बेहतर मनुष्य हमारे बीच से चले गए. ये सिर्फ एक एक अच्छे व्यंग्यकार ही नहीं थे वरन बेहतर मनुष्य  भी थे.  पिछले साल जब मैं  पाँच हजार रुपये राशि वाले एक सम्मान के लिए जबलपुर गया था, तो कार्यक्रम के समय से लगातार मेरे साथ रहे. रात को एक जगह ले जाकर मुझे डिनर भी कराया.  एक घटना बताने में  मुझे कोई संकोच नहीं कि जिस सम्मान के लिए मैं गया, उसके पहले एक  ने मुझसे दो-तीन पुस्तकें बुलवाई कि पढ़ना चाहता हूँ. मैंने भेज दी. फिर किसी का फोन आया कि आपको हम एक सम्मान देंगे. लेकिन आपको ₹200 शुल्क देना होगा. मैंने साफ -साफ इनकार कर दिया कि मैं कोई शुल्क नहीं दूंगा. तो पांडेय जी का फोन आया. उन्होंने कहा कि आपको कोई शुल्क नहीं देना है. आयोजकों ने ऐसा नियम ही बना रखा है कि क्या करें. लेकिन आपको आना है. आपका शुल्क मैंने पटा दिया है. आप आ जाएं  इसी बहाने आपके साथ कुछ घंटे बिताने का अवसर मिलेगा. उनके स्नेहभरे आग्रह के कारण मैं जबलपुर गया और लंबे समय तक पांडेय जी के साथ समय बिताया.  जब वे अट्टहास पत्रिका का  अतिथि संपादन कर रहे थे, तब भी उनसे दो बार बात हुई. और उनके सम्पादन में अट्टहास का सबसे खूबसूरत विशेषांक निकला.  उसका कलेवर अभूतपूर्व था. उनका जाना व्यंग्य साहित्य की बड़ी क्षति है. उनको शत-शत नमन!

श्री गिरीश पंकज

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☆  जयप्रकाश पांडेय जी हमेशा जेहन में बने रहेंगे ☆ श्री सुदर्शन कुमार सोनी 

जयप्रकाश जी का अचानक चले जाना अंत्यंद दुखद है। उनके साथ का एक प्रसंग याद आ रहा है। वो व मैं मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में पदस्थ थे। बात होगी 2011-12 की मुझे तब पता नही था कि वो व्यंग्य भी लिखते हैं। मैं वहां मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत के तौर पर पदस्थ था और वे बैंक में। सेन्टल बैंक आफ इंडिया उमरिया का लीड बैंक था अतः वे आरसेटी रूरल सेल्फ एम्पलायमेंट टेनिंग इस्टटीटयूट का भी कुछ कार्य देखा करते थे। जंहा मैंने कई बैचेस में युवक युवतियों की रोजगारमूलक प्रशिक्षण कार्यक्रम करवाए थे। वहां पर मेरे बंगले में एक नाई गंगू मालिश के लिए आया करता था। वह बहुत बातूनी था लेकिन बडी़ अच्छी अच्छी बातें किया करता था। मैंने उस पर गंगू के नाम से एक कहानी भी लिखी थी। उसका किरदार मुझे बडा़ रोचक लगा तो मैंने अपने व्यंग्य का उसे किरदार बना लिया पुराने कई दर्जन व्यंग्यों में उसका नाम आता है। गंगू जयप्रकाश जी के भी सम्पर्क में था यह मुझे ज्ञात नही था। वहां से आने के बाद संभवतया मुझे पता चला कि उन्होने भी गंगू को अपनी रचनाओं में एक किरदार के रूप में प्रयोग करना शुरू कर दिया है। मैं यह जान बडे़ पशोपेश में पड़ गया। मैं उनसे कैसे कह सकता था कि आप यह प्रयोग करना बंद कर दो या वो मुझसे कहते कि आप यह प्रयोग बंद कर दो। काफी बाद में मेरे एक मित्र ने मेरे कुछ व्यंग्य पढ़ते हुए कहा कि आप यह किरदार बदल कर अच्छा सा नाम रखों। मुझे उसकी बात जांच गई और अब गंगू मेरी रचनाओं में गंगाधर है। एक बार मैं उनकी वैगन आर में जबलपुर से उमरिया व्हाया सड़क मार्ग आया भी था। जयप्रकाश जी को बहुत बहुत श्रद्वासुमन वे हमेशा जेहन में बने रहेंगे। जंहा तक मुझे याद है वे हमारी संस्था भोजपाल साहित्य संस्थान के आजीवन सदस्य भी हैं।

श्री सुदर्शन कुमार सोनी

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☆  मन बहुत व्यथित हुआ ☆ श्री सुनील जैन राही

यात्रा के 

अधबीच में जब यह समाचार मिला कि आज जय प्रकाश जी का देवलोक गमन हो गया, मैं मौन रह गया। आत्मीयता से सराबोर व्यक्ति/घनघनाती आवाज/फोन उठाते ही ऐसा प्रतीत होता दिन सफल हो गया। कई बार उनकी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृया देने हेतु मैंने कई बार उन्हें फोन किया। कभी निराशा मुझे हाथ नहीं लगी। जब उनकी रचना “अस्थि विसर्जन का लफड़ा” पढ़ी तो मुझे याद है लगभग सवा घंटे बात हुई। ठहाकों से शुरू और ठाकों पर समाप्त ऐसी बातचीत किसी साहित्यिक मित्र से शायद ही कभी किसी से हुई हो। आलोचना और प्रशंसा के मामले में कबीर थे। 40, 000/- का चेक/डांस इंडिया डांस ने आँखें सजल की थीं और अस्थि विसर्जन पर खाकी पर परिश्रमिक शब्द गूंज उठे।

मन बहुत व्यथित हुआ।

व्यंग्य का उद्दंड विद्यार्थी

श्री सुनील जैन राही

नई दिल्ली / 28/12/2024

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☆  व्यंग्य लेखन में परसाई की परंपरा को आगे बढ़ाया  ☆ श्री राजशेखर चौबे ☆

पूरे देश में शायद एक भी ऐसा व्यंग्यकार नहीं होगा जिससे जयप्रकाश पांडे जी की बात नहीं हुई हो। वे लगभग सभी से बात करते थे। आपके अच्छे व्यंग्य पर वे जरूर दाद देते थे, मैसेज करते थे जब उन्हें लगता तो फोन भी जरूर करते थे। मुझे भी उनका सानिध्य मिला। मेरी उनसे पहली मुलाकात 2016 में जबलपुर में अट्टहास के कार्यक्रम में हुई थी। इसके बाद उनसे तीन-चार बार मुलाकात हुई और सभी मुलाकातें यादगार बन गई। व्यंग्य के एक कार्यक्रम में वे रायपुर भी आए थे। जून 2024 में जबलपुर जाना हुआ पर उनसे मुलाकात नहीं हो सकी थी। फोन पर जरूर बात हुई थी। तभी उन्होंने अपनी तबियत के बारे में बताया था। उस समय भी वे काफी पॉजिटिव थे और ऐसा नहीं लग रहा था कि वे इतनी जल्दी हम सब को छोड़कर चले जाएंगे। वे जबलइपुर के थे और उनकी आवाज में जबलपुरिया टोन था। उनकी आवाज में एक अलग तरह की मिठास थी। लगभग डेढ़ महीने पहले फोन आया कि उनके मित्र मेरे छत्तीसगढ़ी व्यंग्य को अपनी पुस्तक में लेना चाह रहे हैं। उस समय भी लंबी बात हुई थी। उन्होंने व्यंग्य लेखन में परसाई की परंपरा को आगे बढ़ाया। उनके कई व्यंग्य और व्यंग्य संग्रह डांस इंडिया डांस को हमेशा याद किया जाएगा। उनके व्यंग्य “अस्थि विसर्जन का लफड़ा ” काफी चर्चित हुआ था जिसे व्यंग्य यात्रा पत्रिका ने पुरस्कृत किया था। जयप्रकाश जी हम सब को छोड़कर चले गए हैं परंतु वे हमेशा याद किए जाएंगे। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और परिवार वालों, मित्रों व शुभचिंतकों को यह दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करे।

राजशेखर चौबे

रायपुर

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☆  प्रिय जय प्रकाश तुम बहुत याद आओगे ☆ श्री जयंत भारद्वाज ☆

साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति तो है ही साथ ही हमारा एक जिंदादिल,हंसमुख,मिलनसार दोस्त चिरनिंद्रा में चला गया।

भाई जयप्रकाश के साथ जबलपुर में तुलाराम चौक शाखा में पदस्थी के दौरान अविस्मरणीय यादें हैं।

प्रसिद्ध व्यंग्यकार स्वर्गीय हरिशंकर परसाई जी के व्यंग्य साहित्य पर आधारित  मेरे द्वारा बनाए गए व्यंग्य चित्रों की  तीन दिवसीय प्रथम प्रदर्शनी दुर्गावती संग्रहालय  में उनके ही संयोजन में  लगाई गई ।

प्रिय जय प्रकाश तुम बहुत याद आओगे हम तुम्हे कभी भूल नहीं पाएंगे।

विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🏽

श्री जयंत भारद्वाज

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☆  व्यंग्य लेखन में परसाई की परंपरा को आगे बढ़ाया  ☆ डॉ ए के तिवारी ☆

चाहे  कहीं रहे जय प्रकाश पांडे मगर मुझसे फोन /मोबाइल  पर बात कर लेते थे. अब कौन मुझे मोबाइल फ़ोन पर कॉल करेगा–?? व्यक्तिगत विषय हों या पारिवारिक साहित्य हों या बैंक का, श्री सुरेश तिवारी जी हों या डॉ अशोक कुमार  शुक्ल सब पर खूब चर्चा करता था J P .अब याद कर रहे बस. मेरे से कई बार कहा कि अपना व्यंग्य संकलन प्रकाशित कराओ . लघुकथा संग्रह भी कब छपेगा.अपनी स्वास्थ्य पर भी अनेक बार बताया तो मैंने कहा था पुणे और मुम्बई जाओ फॅमिली मेंबर्स के साथ. लेकिन विधाता क्या करेगा मालूम ना था l ओम शान्ति शान्ति I 🙏

डॉ ए के तिवारी

पोद्दार कॉलोनी सागर

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☆ जयप्रकाश जो कभी हारा ही नहीं ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

जिस व्यक्ति से कभी आमने सामने मिला नहीं,लेकिन मिलने की आस अंतिम समय तक कायम रही, आत्मीय इतने कि आज से सात वर्ष पूर्व, जब मैं उपचार हेतु अस्पताल में भर्ती था, तो फेसबुक के साधारण परिचय के बावजूद, इनके एकमात्र फोन ने मुझे चौंका दिया । बस तब से परिचय की यह कड़ी एक मजबूत गांठ बन चुकी थी, लेकिन किसे पता था, प्रदीप और जयप्रकाश के नसीब में एक होना लिखा ही नहीं था । जयप्रकाश जो कभी हारा ही नहीं, आज भी उसकी याद का दीपक हमारे दिलों में प्रदीप्त है,और सदा रहेगा । सामाजिक और साहित्यिक गतिविधियों में सदा व्यस्त रहने के कारण कुछ समय से स्वास्थ्य के बारे में चिंतित थे, एक दो बार बात हुई, लेकिन हंसकर टाल गए और फिर हंसते हंसते ही अचानक हम सबको छोड़कर चले भी गए । जबलपुर से मेरा परिचय अब सिर्फ परसाई और जयप्रकाश तक का ही रह गया है, अफ़सोस दोनों मुझसे दूर चले गए ।। ॐ शान्ति..!!

श्री प्रदीप शर्मा 

इंदौर 

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☆  अंत समय तक रचनाधर्मिता में लगे रहे ☆ श्री मुकेश गर्ग असीमित ☆

अत्यंत दुखद समाचार। भगवान उनकी आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें ।  🙏अंत समय तक रचनाधर्मिता में लगे रहे हैं ।अट्टहास पत्रिका के दिसंबर अंक के लिए उनके द्वारा आतिथ्य संपादन करना था। मुझ से भी एक रचना माँगी गई तो जो मैंने उन्हें सहर्ष आभार के साथ प्रदान की थी ,कभी मिला तो नहीं उनसे लेकिन चंद महीनों में ही एक मौन सा संवाद और उनके प्रति कृतज्ञता का भाव रहता था। 

श्री मुकेश गर्ग असीमित

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☆  समर्पित व्यंग्यकार पाण्डेय जी ☆ श्री  सुरेश मिश्रा “विचित्र” व्यंग्यकार 

जयप्रकाश पांडे जी भले ही हमारे बीच में नहीं है, लेकिन उन्होंने शहर के व्यंग्यकारो को एकत्र करते हुए व्यंगम संस्था का अच्छा खासा संचालन किया। और प्रत्येक माह होने वाली व्यंग्य गोष्ठी को अपने ही निवास पर आयोजित करते रहे, यह एक बड़ी उपलब्धि रही है।जिसने व्यंग्य लेखन में शहर को आगे रखा है। आपका व्यंग्य लेखन और व्यंग्य की बारीकियों को, विसंगतियों को,उजागर कर अपने लेखन मे पैनापन बनायें रखा। व्यंग्य लेखन के लिए उनके द्वारा किया गया यह समर्पित भाव एवं कार्य हमेशा याद रखा जाएगा।

सादर श्रृद्धासुमन अर्पित है 🙏🌹🙏

श्री  सुरेश मिश्रा “विचित्र” व्यंग्यकार

जबलपुर ( मध्य प्रदेश)

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☆  विनम्र श्रद्धांजलि ☆ श्री ओ.पी.सैनी ☆

मेरी पहली मुलाकात श्री पांडेय जी से 6 वर्ष पूर्व व्यंगम की गोष्ठी के अवसर पर हुई थी । पहली ही मुलाकात मैं वे सबसे अलग अनुभूत हुए । नया सदस्य होने के बाद भी उन्होंने मुझे  आत्मीय सम्मान दिया । जब-तक उनसे मुलाकात होती रही वे बहुत ही मिलनसार और सहयोग देने मैं तद्पर रहे । किसी कारण वश 2 माह से मेरी पेंशन रुकी हुई थी जब उनको इस बारे मैं पता चला तो उन्होंने भोपाल स्थित पेंशन विभाग मैं बात की जिससे 1-2 दिन मैं ही मेरी पेंशन मुझे मिल गयी । इतने सहयोगी थे पांडेय जी । उनकी आत्मा के श्री चरणों में मेरी विनम्र श्रद्धांजलि ।

श्री ओ.पी.सैनी

जबलपुर (म.प्र )

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☆ संस्मरण (35-40 वर्ष) पूर्व का…  ☆ श्री के. पी. पाण्डेय ‘वृहद‘ ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी से मेरी पहली मुलाक़ात मेरे निवास  एम -193 शिव नगर के सामने हाउसिंग बोर्ड का एम आई जी 20 ख़रीदा ओर उसे किराए  से देना चाहा था दो किरायेदार रखने थे पाण्डेयजी ने किसी बैंक कर्मचारी को बेच दिया था।  उन दिनों में लिखता तो था किन्तु अधिकतर कविताएं लिखता था पर मुझे तब नहीं मालूम था कि  ये व्यंग विधा के अच्छे लेखक है। व्यक्तिगत मुलाक़ात के अतिरिक्त मैं पाण्डेयजी को इस से पूर्व इसलिए भी जानता था कि  मेरे मित्र प्रकाश चंद दुबे जो मेरे सहकर्मी ओर परसाई जी के भांजे है और अक्सर उनके निवास पर मेरा व जय प्रकाशजी का आना होता था। 

कालांतर में पाण्डेयजी बैंक की नौकरी में इधर उधर रहे वा मैं भी ट्रांसफर होता रहा। सेवा निवृत्ती के काफ़ी दिनों बाद जय प्रकाश जी से मुलाक़ात एक साहित्यिक  समारोह में हुई तब मैं उनके व्यंग्य विधा को गहराई से जान सका था इधर करीब 5-6 वर्षों  से व्यंग पढता तो उन्हें बधाई अवश्य देता। 

आत्मीयता का दायरा उस समय से ओर अधिक बढ़ा जब से मुझे उनके निवास पर व्यंगम की  मासिक गोष्ठी में शरीक होने का मौका मिला श्री पाण्डेयजी के माध्यम से ई -अभिव्यक्ति पत्रिका एवम अट्टहास मे मेरी व्यंग रचना (यदि  परसाईजी ना होते तो क्या होता?) प्रकाशित हुई।  पाण्डेयजी के इस आत्मीय सहयोग एवम परमार्थ का में ऋणी हूँ उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि साथ ही ईश्वर से प्रार्थना  है कि परिवारजनों को असमय आए इस असीम कष्ट को सहने की शक्ति प्रदान करें पुनः विनम्र श्रद्धांजलि

श्री के. पी. पाण्डेय ‘वृहद‘

मो. 9424746534

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 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ व्यंग्य लोक द्वारा – “व्यंग्य लोक स्व. जयप्रकाश पाण्डेय स्मृति व्यंग्य सम्मान” की घोषणा  ☆ साभार – श्री रामस्वरूप दीक्षित ☆

☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ व्यंग्य लोक द्वारा – “व्यंग्य लोक स्व. जयप्रकाश पाण्डेय स्मृति व्यंग्य सम्मान” की घोषणा  ☆ साभार – श्री रामस्वरूप दीक्षित

मित्रो

हमारे व्यंग्यकार साथी स्व. जयप्रकाश पांडेय जी की स्मृति को अक्षुण्य बनाए रखने के लिए हमने एक निर्णय लिया है।

व्यंग्य लोक पत्रिका की तरफ से हर वर्ष उनकी स्मृति में 5000 ₹ (पांच हजार रुपये ) का एक पुरस्कार, किसी व्यंग्यकार को दिया जाएगा।

💐 स्व. जयप्रकाश पाण्डेय 💐

पुरस्कार का नाम होगा – व्यंग्य लोक स्व. जयप्रकाश पांडेय स्मृति व्यंग्य सम्मान

पहला पुरस्कार पांडेय जी के शहर जबलपुर में एक गरिमामय समारोह आयोजित कर दिया जाएगा।

यह उनके प्रति व्यंग्य लोक की विनम्र श्रद्धांजलि समझी जाए।

साभार – श्री रामस्वरूप दीक्षित

≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ पाथेय साहित्‍य कला अकादमी का आयोजन – डॉ. तनूजा चौधरी को मिला डॉ. गायत्री कथा सम्‍मान ☆ साभार – डॉ भावना शुक्ल ☆

☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ पाथेय साहित्‍य कला अकादमी का आयोजन – डॉ. तनूजा चौधरी को मिला डॉ. गायत्री कथा सम्‍मान ☆ साभार – डॉ भावना शुक्ल

पाथेय साहित्‍य कला अकादमी का आयोजन – समाजोपयोगी होता है मूल्‍य परक सृजन… 

जबलपुर। डॉ. तनूजा चौधरी का समग्र लेखन सामाजिक संचेतना का प्रतीक है। उनकी कहानियॉ नई पीढ़ी के भटकाव समाज और जीवन की बिडम्‍वना, स्‍त्री अस्मिता के प्रति चिंता प्रकट करती हैं। कथा लेखिका स्‍व. डॉ. गायत्री तिवारी की रचनाओं में भी ऐसा ही प्रेरक प्रभावी चिंतन है। डॉ. तिवारी ने समाज के अंतिम वर्ग की रक्षा के लिए सृजन किया।ऐसा सृजन जिससे सामाजिक जागृति और मूल्‍यों की रक्षा हो,वह समाज और राष्‍ट्र के लिए उपयोगी होता है।

तदाशय के उद्गार पाथेय साहित्‍य कला अकादमी द्वारा आयोजित गायत्री कथा सम्‍मान समारोह में अतिथियों ने कला वीथिका व्‍यक्‍‍त किए। वर्ष 2024 के गायत्री कथा सम्‍मान से डॉ. तनूजा चौधरी को नगद राशि अलंकरण, मानपत्र, शाल से अतिथियों सहित डॉ. भावना शुक्‍ल, प्रेमनारायण शुक्‍ल, नोएडा, डॉ. कामना कौस्तुभ, जगदीश कन्‍थारिया, किशनगढ़, डॉ. हर्ष तिवारी, मोहिनी तिवारी, आराध्या तिवारी ‘प्रियम’ ने सम्‍मानित किया।

इस अवसर पर विविध क्षेत्रों में क्रियाशील श्री राजेन्‍द्र मिश्रा, श्री नीलेश रावल, डॉ. नीना उपाध्याय, इंजी दुर्गेश व्‍यौहार दर्शन, श्री समर सिंह, डॉ. मंजू गोरे, दीपचंद विनोदिया, मेहेर प्रकाश उपाध्‍याय, रामकिशोर सोनी को उनकी बहुआयामी सेवाओं एवं उपलब्धियों के लिए गायत्री विविधा सम्मान से अलंकृत किया गया। साथ ही ब्राह्मण स्‍वयंवर संस्‍कार महासभा एवं सुप्रभातम संस्‍था के पदाधिकारियों को सामाजिक जागृति के लिए सम्‍मानित किया।

डॉ राजेश पाठक प्रवीण ने सम्‍मानितजनों के व्‍यक्तित्‍व-कृतित्‍व पर प्रकाश डाला।

समारोह की मुख्‍य अतिथि डॉ. स्‍वाति सदानंद गोडवोले पूर्व महापौर रहीं। अध्‍यक्षता महाकवि आचार्य भगवत दुबे ने की। सारस्‍वत अतिथि डॉ हरिशंकर दुबे, डॉ. स्‍मृति शुक्‍ला प्राचार्य मानकुंवर महाविद्यालय थीं।

अध्‍यक्षता कर रहे महाकवि आचार्य भगवत दुबे ने कहा कि सम्‍मान देना संस्‍कारधानी की गौरवशाली परम्‍परा है। इससे सकारात्‍मक कार्यों की प्रेरणा मिलती है।

प्रारंभ में अतिथियों का स्‍वागत मथुरा जैन, यशोवर्धन पाठक, सुभाष शलभ, संतोष नेमा, विजय अनुज, विनोद नयन, गणेश प्‍यासा, अर्चना मलैया, डॉ सलमा जमाल, छाया त्रिवेदी, सलपनाथ यादव, साधना उपाध्याय, निर्मिला तिवारी, डॉ.मृदुला सिंह, डॉ छाया सिंह, डॉ. संजय तिवारी, गणेश प्यास, डॉ. सलपनाथ यादव, ने किया। संचालन राजेश पाठक प्रवीण एवं आभार डॉ. भावना शुक्‍ल ने व्‍यक्‍त किया।

साभार – डॉ. भावना शुक्‍ल

≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ देव हासले… ☆ प्रा तुकाराम दादा पाटील ☆

श्री तुकाराम दादा पाटील

? कवितेचा उत्सव ?

☆ देव हासले ☆ प्रा तुकाराम दादा पाटील ☆

मला तुला जपायला कुणी तरी सुनावले

दिवानगी नको करू जपून टाक पावले

*

म्हणू नको उगाच तू तुलाच खूप चांगला

तुझ्या पुढे कधी तरी बरेच लोक गाजले

*

धरून ध्येय चांगले लपून का बसायचे

जगात या जगायचे करून काम चांगले

*

नमून वागणे बरे नको मिजास दाखवू

गरीब तारले इथे मुजोर दूर फेकले

*

चुका करून वागतो पुन्हा हसून सांगतो

सुधारला कधी न तो उपाय खूप योजले

*

तमाम जिंदगी तुला जगायची खरीखुरी

जुन्यातले जुने खरे बघून सर्व दाखले

*

जगात सत्य तेवढे टिकून आज राहते

पळून दैन्य चालले म्हणून देव हासले

© प्रा. तुकाराम दादा पाटील

मुळचा पत्ता  –  मु.पो. भोसे  ता.मिरज  जि.सांगली

सध्या राॅयल रोहाना, जुना जकातनाका वाल्हेकरवाडी रोड चिंचवड पुणे ३३

दुरध्वनी – ९०७५६३४८२४, ९८२२०१८५२६

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ १६ डिसेंबर… विजय दिवस ! ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

सौ कल्याणी केळकर बापट

? विविधा ?

१६ डिसेंबर… विजय दिवस ! ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट

काही सण, समारंभ, उत्सव, सोहळे असे असतात की जे आपण कधीही विसरू शकत नाही. त्या दिवसांच आपल्या जीवनात अनन्यसाधारण महत्त्व असतं. त्या दिवसांमध्ये आपल्या स्वतःच्या वैयक्तिक घटनांचा समावेश असतो आणि ज्या आपल्या मातृभूमीवर आपण मनापासून प्रेम करतो तिच्यासंदर्भातील महत्वाच्या घटनांच्या दिवसाचा पण त्यात समावेश असतो.

आपल्या भारताच्या इतिहासात काही दिवस असे आहेत की जे प्रत्येक भारतीयाने समजून घेतले पाहिजे किंवा त्या बद्दल माहिती ठेवली पाहिजे. कारण त्या दिवसांचा आत्ताच्या पिढीवर तसेच आजच्या वर्तमानावर प्रभाव जाणवून येतो. त्यातलाच एक हा “विजय दिवस’. 16 डिसेंबर ! भारत आणि पाकीस्तान देशांमध्ये ज्या ज्या लढाया झाल्या त्या मध्ये एक महत्वपूर्ण लढाई म्हणजे १९७१ ची. त्या युद्धा नंतरच भारताने पाकीस्तानला हरवून बांगलादेश या नव्या देशाला जन्माला घातलं. सर्वात कमी झालेली मनुष्य हानी हे १९७१ च्या युद्धाचं एक वैशिष्ट्यं. अर्थात त्या मागे असलेले सैन्याचे अप्रतिम नियोजन व तो निर्णय घेण्याची तत्कालीन पंतप्रधान इंदिरा गांधी यांची हिम्मत.

इंदिरा गांधी किवा पंडित नेहरू, महात्मा गांधी यांच्याकडे बहुतांश लोक खूप एका बाजूने बघतात असे मला वाटते.

कोणताही मनुष्य असो तो त्याच्या आयुष्यात काही निर्णय बरोबर घेतो तर काही चूक. पण खास गोष्ट अशी चूक निर्णय घेतांना ते चूक निर्णय आहे हे तेव्हा कोणाच्याच लक्षात येत नाही. तसचं या महान लोकांच्या बाबतीत झालं.

पण राजकीय विचार जरा बाजूला ठेवले आणि १९७१ च्या युद्धाचा नीट अभ्यास केला तर या मागे इंदिरा गांधी याची निर्णय क्षमता आणि नियोजन करण्याची पद्धत या बद्दल कौतुक नक्की वाटेल. या युद्धाच्या यशामागे तत्कालीन सैन्यप्रमुख जनरल सँम मानेकशॉ यांचा प्रंचड मोठा हात व इंदिरा गांधीची साथ होती. तेव्हाच्या पश्चिम पाकीस्तानने पूर्व पाकीस्तानवर केलेले प्रचंड अत्याचार व त्यातून हजारो बंगाली लोकांचे भारतात स्थलांतर यामुळे भारत पण या युद्धात ओढल्या गेला.

पण घाई घाई मध्ये चुकीचे निर्णय न घेता, थोडा काळ थांबून व शांत नियोजन करून अवघ्या १६ दिवसात पाकीस्तानला आपण आत्मसमर्पण करायला भाग पाडलं. दुसऱ्या जागतिक महायुद्धानंतर हे सर्वात मोठे आत्मसमर्पण ठरले. आज सुद्धा तो फोटो एक मोठ्या इतिहासाची साक्ष व ख-या अर्थाने आयकाँनिक समजल्या जातो. ज्या मध्ये भारताकडून ले. ज. जगजीत सिंग अरोडा व पाकीस्तान कडून ज. नियाझी यांनी आत्मसमर्पणाच्या करारावर स्वाक्ष-या केल्या व तो दिवस होतां १६ डिसेंबर.

म्हणून हा दिवस आपण” विजय दिवस” म्हणून साजरा करतो. आजच्या पिढीला त्या दिवसाचे महत्व जेवढं कळायला हवं तेवढं कदाचित कळतं नसेलही. पण अभ्यासाने कळलं की त्या दिवसानंतर खूप गोष्टी बदलल्या हे पण खरं. जसं एक नवा कोरा देश जन्माला आला, पाकीस्तान ची ताकद कमी झाली. भारत सुध्दा आंतरराष्ट्रीय राजकारणात सक्रीय भाग घेऊन निर्णय तडीस नेऊ शकतो हे संपूर्ण जगाने पाहिले. तेव्हा भारत एवढा श्रीमंत नसतांनाही स्थलांतरीत लोकांना काही काळ ठेऊन घेऊन, स्विकारुन दयाळू मानवतेचं दर्शन संपूर्ण जगासमोर चित्रीत झालं. युद्धाच्या आधी रशिया सोबत मैत्री करार करून आपला आंतरराष्ट्रीय दबदबा भारताने वाढवला. १९७१ च्या युद्धात जे युद्ध कैदी होते त्यांना काही काळानंतर सुखरूप पाकीस्तानात सोडून देण्यात आले. त्यात सुध्दा भारताचा मानवतावादी दृष्टीकोन संपूर्ण जगाला दिसला. त्या युध्याच्या विजयानंतर मा. इंदिरा गांधीच्या प्रसिद्धीला मात्र सीमाच नव्हती. एक स्त्री पंतप्रधान असा अचंबित करणारा निर्णय घेऊ शकते हेच मुळात भारतीय पुरुषप्रधान संस्कृतीला पचणारी गोष्ट नव्हती. पण इंदिरा गांधीनी हे करून दाखवलं.

आंतरराष्ट्रीय राजकारणात भारताला नेहमी पिछाडीचा किंवा एक गरीब देश असंच हिणवल्या जायचं. ह्या घटनेनंतर मात्र हे चित्र हळू हळू बदललं व त्या नंतर झालेल्या अणुस्फोट चाचणीने तर संपूर्ण जगाचे डोळे उघडल्या गेले.

मी जसे आधी बोलले की एक व्यक्ती आपल्या आयुष्यात काही चुकीचे निर्णय घेते तर काही बरोबर, पण आपण एक समंजस नागरिक म्हणून नेहमी चुकीच्या निर्णयाबद्दल बोलण्या पेक्षा कधी आपलं मन मोठ करून चांगल्या गोष्टी केल्याबद्दल त्यांचे आभार मानले पाहिजेत. म्हणून इंदिरा गांधी व तत्कालीन सैन्याला “विजय दिवस” हा अभूतपूर्ण दिवस आमच्या सारख्या सामान्य जनतेला दाखवल्यामुळे मनापासून सलाम आणि धन्यवाद.

©  सौ.कल्याणी केळकर बापट

9604947256

बडनेरा, अमरावती

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ चाकं – भाग २ (भावानुवाद) – डॉ हंसा दीप ☆ सौ. उज्ज्वला केळकर ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

? जीवनरंग ?

☆ चाकं – भाग 2 (भावानुवाद) – डॉ हंसा दीप ☆ सौ. उज्ज्वला केळकर

डॉ. हंसा दीप

(त्याने व्हील चेअरच्या चारी बाजुंनी टीनचे दरवाजे बनवून घेतले, त्यामुळे ती कितीही हलली, डुलली तरी संतुलन बिघडून ती खाली पडणार नाही. कोणत्याही तर्‍हेची दुर्घटना घडू नये, म्हणून सुरक्षिततेसाठी तिथे कुलूपही लावले ) — इथून पुढे — 

‘तू माझ्यासाठी एक पिंजराच बनवलास हेनरी’ कैमी म्हणाली. हे ऐकल्यानंतर तो हसला. तेव्हापासून उन्हाळातल्या प्रत्येक संध्याकाळी तो पिंजराच तिचा साथीदार असतो.

आज कुलूप लावल्यानंतर कैमीच्या खांद्यावर हात ठेवत, हेनरी म्हणाला, ‘केवळ आजचाच दियास फक्त… उद्या या वेळेला तुझी सर्जरी होईल. मग रिकव्हरीचे काही दिवस. मग तू स्वतंत्र होशील. नंतर, ना पिंजरा राहील, न चाकाची खुर्ची. ’ 

कैमिलाच्या डोळ्यातही चमक आली. कोविदमुळे, इतर आजार आणि गैरजरूरी सर्जरी इस्पितळातले लोक पुढे पुढेच ढकलत होते. करोनाची पहिली लाट, दुसरी लाट, तिसरी लाट, तारखा पुढे पुढेच जात चालल्या. शेवटी आता कुठे सर्जरीचा दिवस उगवला. इस्पितळात जाण्यासाठी बॅग तयार केली. हेनरी अतिशत खुश होता. कैमिलाला बाहेर सोडून कुलूपाची चावी खिशात ठेवून फिरत होता. कधी आत यायचा. कधी बाहेर जायचा.

कैमिलाला बाहेर बसून खूप वेळ झाला. नवी पाझलवाली गेम खेळता खेळता ती थकून गेली. तिने हाक मारली, ‘हेनरी, मला तहान लागलीय. ‘ 

सामान्यत: हेनरी एकदा हाक मारली की लगेच ऐकायचा. आज जरा वेळ लागला. कैमिला वाटलं, कदाचित बाथरूममध्ये गेला असेल. सध्या त्याला जरा जास्तच वेळ लागतो. आजा-काल त्याला ऐकायलाही कमी येऊ लागलय. हियरिंग एड्सही बदलायला हवीय. कसं बोलवायचं त्याला? कितिदा म्हंटलं त्याला, एक मोबाईल तरी घेऊयात. पण त्याचं म्हणणंही खरं होतं. तो म्हायचा, ‘उगाच खर्च कशाला वाढवायचा?’ 

आपल्या जवळ असलेली काठी ठोकून ठोकून कैमिने आवाज केला. जवळ असलेलं वर्तमानपत्र खुर्चीवर वाजवण्याचा प्रयत्न केला. हॅलो, हाय सारखे तर्‍हे-तर्‍हेचे आवाज तोडाने काढले, पण हेनरी आला नाही.

समोरच्या रस्त्यावरून एक दंपत्य फिरत फिरत चाललं होतं. कैमिने त्यांना जवळ यायची खूण केली. प्रथम ते घाबरले, पण नंतर समस्या समजताच ते आनंदाने दरवाजाजवळ उभे राहिले. बेल वाजवली. कडी खटखटवली. कैमि उत्सुक नजरेने हेनरीची प्रतीक्षा करत राहिली. पण, काहीच प्रतिसाद मिळाला नाही. मग तिने मदत करणार्‍या दांपत्याला सांगितले, ‘प्लीज, आपण मागच्या दरवाज्याने आत जा. आत कम्प्यूटरजवळ चावी ठेवलेली असेल. ती घेऊन या. ’

ते आत जाऊ शकले नाहीत. दरवाजा आतून बंद होता. ते दार खटखटू लागले, पण दार उघडलं नाही. येता-जाता आणखी काही लोक जमा झाले. अर्ध्या आसाच्या अथक प्रयत्नांनंतर कैमिलाला विचारून त्यांनी पोलिसांना कळवलं॰ 

कैमि हैराण झाली. तिला कळतच नव्हतं की अखेर हेनरीला झालय तरी काय? तिला वाटलं, रात्री नीट झोप लागली नसेल. त्यामुळे कदाचित डुलकी लागली असेल. अनेकदा त्याला रात्री नीट झोप लागत नसे. पण आता तर खूप वेळ झाला. इतका गाढ झोपला असेल, तर पोलीस तरी त्याला कसे उठवणार? 

पोलीस आले. थोड्याशा प्रयत्नांनंतर त्यांनी कुलुप तोडले. समोर खुर्चीवर हेनरी बसला होता.

‘मिस्टर हेनरी.. ’ काहीच उत्तर मिळालं नाही.

ऑफिसरने हेनरीच्या जवळ जाऊन त्याच्या खांद्यावर हात ठेवला, तशी तो खाली पडला. जसा काही कुठल्या तरी स्पर्शाची वाट बघतोय. काही क्षण त्याच्या श्वासोच्छवासाची चाहूल घेतल्यावर ऑफिसरने मान हलवली आणि अ‍ॅम्ब्युलंस बोलावली. या गोष्टी इतक्या झटकन झाल्या, की समोरचं दांपत्य आवाक झालं. सगळ्यांची हलणारी डोकी काही सांगत होती. बाहेर जाऊन कैमिलाला कसं सांगायचं? 

पोलिसांनी आपलं कर्तव्य पार पाडलं. ‘मिसेस कैमिला आपल्याला काही सांगायचं आहे.

कैमिलाकडून काहीच प्रतिसाद मिळाला नाही. ती समोर रस्त्याकडे बघत होती.

‘सॉरी, आपले पती हेनरी… ’ 

तरीही ती काही बोलली नाही. लोकांना वाटलं, ती आक्रोश करेल. पण, तिथे केवळ शांतता होती. कदाचित एका विशिष्ट वयानंतर मन आशा गोष्टींसाठी तयार होत असेल. या धावपळीनंतरही आणि अ‍ॅम्ब्युलन्सची पींपीं ऐकूनही ती गप्पच होती, याचे सगळ्यांनाच आश्चर्य वाटले. तिला तिच्या पिंजर्‍यातून बाहेर काढण्यासाठी पोलीसांनी तिच्या खांद्यावर हात ठेवला, तेव्हा तीही त्याच्यासारखीच लुढकली. दैवयोगाने तिचा श्वास मात्र चालू होता. तिला ताबडतोब हॉस्पिटलमधे नेण्यात आलं. घरातून दोन अ‍ॅम्ब्युलन्स निघाल्या. एकात हेनरीचे शव होते. दुसरी कैमिलाला इमरजन्सी विभागात पोचवत होती.

थोड्या वेळातच कैमिला धोक्याच्या बाहेर आली. अजूनही ती बेशुद्धच होती. सात दिवस ती शुद्धीवर आलीच नाही. तेव्हा सगळ्या कायद्याचं, नियमांचं पालन करत हेनरीचे अंत्यसंस्कार केले गेले. त्यांच्या शेजार्‍यांना सांगितलं गेलं. फोनच्या डायरीतून नंबर घेऊन, मिळालेल्या एक-दोन नातेवाईकांनाही कळवलं गेलं. काही आले. काहींनी शोकसंदेश पाठवून श्रद्धांजली वाहीली.

पूर्णपणे शुद्धीवर येऊन सर्जरीयोग्य बनण्यासाठी कैमिलाला एक महिना लागला. त्यानंतर जिथे तिचं ऑपरेशन होणार होतं, त्या हॉस्पिटल मधे तिला पोचवलं गेलं. ऑपरेशन कुठे आहे, हेनरी का नाही आला, याबद्दल तिने काहीच विचारलं नाही. कदाचित तिला कळलं असावं.

डॉक्टरांच्या दृष्टीने यावेळी सर्जरी करणं महत्वाचं होतं. त्याप्रमाणे सर्जरी झाली. पाच दिवसांनंतर जेव्हा तिला घरी पाठवायचं ठरलं, जेव्हा तिला हेनरीबद्दल सांगण्यात आलं. तेव्हा, ती तटस्थपणे म्हणाली, ‘मला माहीत आहे. ’ आणि पुहा गप्प झाली.

हॉस्पिटलमधून एक नर्स तिच्याबरोबर आली होती. कैमि काही सेकंदांसाठी उभी राहयाची आणि पुन्हा खाली बसायची. काही दिवसांच्या, नर्सच्या आणि फिजिओथेरपीस्टच्या अनवरत प्रयत्नांनंतर, तिच्या पायांनी तिच्या शरिराचा भार सहन करणं मान्य केलं.

हळू हळू आपल्या पायांनी घराच्या प्रत्येक खोलीत, ती चांगल्या तर्‍हेने फिरू लागली. एके दिवशी एका कोपर्‍यात उभ्या केलेल्या व्हील चेअरकडे तिचं लक्ष गेलं, तिकडे लक्ष जाताच, तिला व्हील चेअरच्या मागे हेनरी उभा असलेला दिसला. ती त्यावर बसली. तिला वाटलं, त्यामुळे ती हेनरीच्या हातांचा स्पर्श अनुभवू शकेल.

अनेकदा, जेव्हा उशीर व्हायचा, तेव्हा ती रागावायची. तो सॉरी म्हणत घाई करू लागे, तर त्यात आणखीनच उशीर व्हायचा. तो सॉरी सॉरी म्हणत, मान हलवायचा आणि हसायचा. ती तीच व्हील चेअर होती. हेनरी तिला ढकलायचा आणि तिला मागे असलल्या त्याच्या उपस्थितीची जाणीव व्हायची. व्हील चेअरवर बसलेली ती कधी आपल्या पायांकडे बघायची, तर कधी हेनरीच्या हाताच्या स्पर्शाचा अनुभव घ्यायची.

एकदा तिचे लक्ष टेबलावर ठेवलेल्या ब्राऊन लिफाफ्याकडे गेलं. ते हेनरीचं पत्र होतं. पत्र कसलं, मृत्यूपत्रच होतं जसं काही. एक वाक्य मोठ्या मोठ्या अक्षरात पुन्हा पुन्हा लिहिलं होतं, ‘जर देणं शक्य असेल, तर माझे पाय माझ्या पत्नीला द्या. ’ एक एक अक्षर तिच्या डोळ्यांवर समुद्राच्या लाटांप्रमाणे थपडा मारत होतं.

‘हेनरी, तू जर मला विचारलं असतंस, विकल्प दिला असतास, तर मी व्हील चेअरचीच निवड केली असती. ’

ती कधी स्वत:च्या पायाकडे बघायची, कधी व्हील चेअरकडे, ज्या पिंजर्‍यात ती आत्तापर्यंत कैद होऊन राहिली होती. आज घराचा काना-कोपरा बघत होती. तिथे चालण्यासाठी इतके दिवस तिचे पाय बेचैन झाले होते. आता ती गतिमान झाली होती आणि हेनरी स्थिर. हेनरीचे पाय माझे होते, आता मी त्याचे पाय बनेन. तिने लगेचच हेनरीचा फोटो उचलून व्हील चेअरवर ठेवला आणि त्याच्या स्थिरतेला गती देऊ लागली. अनेक वर्षांचं कर्ज होतं. मरेपर्यंत चुकवलं, तरी उऋण नाही होऊ शकणार. आत्ता आत्तापर्यंत हेनरी तिची सेवा करत होता. आता कैमिलाला संधी मिळाली, तर तो गप्प झाला.

व्हील चेअरवर ठेवलेल्या फोटोतील हेनरीचा चेहरा बघणंही तिला असह्य झालं. जर खरोखरच हेनरी व्हील चेअरवर असता, तर कसं वाटलं असतं? कदाचित ते सत्य कैमिला किती वेदनादायी झालं असतं. हा विचार मनात येताच तिला वाटलं, इतकी वर्षे तिचा भार चाकं उचलत होती. पण हेनरीचं मन, रोज किती भार उचलत होतं, त्याला गणतीच नाही. कैमिलाजवळ चाकं होती. हेनरीजवळ तर ना पाय होते, ना चाकं. आपले पाय तर त्याने पहिल्या दिवसापासून कैमिला देऊन टाकले होते.

“ओ हेनरी!” 

हाहाकारी मौनामधे तिचे ओठ अस्पष्टसे पुटपुटले. तिने त्वरेने हेनरीचा फोटो व्हील चेअरवरून उचलला.

कैमिच्या पायांना जशी चाकं लागली होती. इतके दिवस स्थिर असलेल्या पायांनी आता पुन्हा गती घेतली होती.

– समाप्त – 

मूळ हिन्दी कथा – “पहिए“

हिन्दी लेखिका : डॉ. हंसा दीप, कॅनडा 

संपर्क – Dr. Hansa Deep, 22 Farrell Avenue, North York, Toronto, ON – M2R1C8 – Canada

दूरभाष – 001 + 647 213 1817  ईमेल  – [email protected]

मराठी भावानुवाद : सौ. उज्ज्वला केळकर 

संपर्क – निलगिरी, सी-५ , बिल्डिंग नं २९, ०-३  सेक्टर – ५, सी. बी. डी. –  नवी मुंबई , पिन – ४००६१४ महाराष्ट्र

मो. 836 925 2454, email-id – [email protected] 

≈संपादक –  श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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