योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Bless This House With Laughter! ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Bless This House With Laughter! 

We were delighted to have with us Gulyora Shermatova, Certified Laughter Yoga Teacher (CLYT) from Tashkent, Uzbekistan. She is the sweetest person we have ever met. Her laughter is amazing. She can laugh anytime, anywhere for no reason. What surprised us was the effortlessness of her laughter. She could continue laughing for hours together. We have absolutely no doubt whatsoever that she is one of the finest laughers in the world!

Ever since we did our CLYT training together at Bangalore, we kept in regular touch and planned to visit each other’s home. She teaches Hindi at the Institute of Oriental Studies, Tashkent and was invited by the Indian Council of Cultural Relations to New Delhi recently. She took an early morning flight from Delhi to Indore.

The members of Suniket Laughter Club were eagerly waiting for her arrival. She greeted them in chaste Hindi and won hearts instantly. After exchanging pleasantries, we started an unforgettable laughter session. Our club is specially known for doing the four steps of laughter yoga – clapping, deep breathing, childlike playfulness and laughter exercises – in a structured and meticulous way. But her very special and infectious laughter intermittently left the members bewildered and spellbound. Her laughter is so unique and spontaneous indeed! People could not believe what they were witnessing.

After affirming ‘very good very good yay’ a few times, we chanted ‘bahut achche bahut achche yay’ in Hindi, followed by ‘horosho horosho yay’ in Uzbeki. Suddenly the air acquired the fragrance of joy. She conducted greeting laughter and milkshake laughter in her inimitable style. She watched with deep interest as our members performed tak-jhoom laughter, cricket laughter and NTR laughter. She was amused by ‘follow the leader’ game played by the club members. This was followed by singing-dancing-playing and laughter. The lyrics chosen were old melodies from Bollywood – mera joota hai Japani, sajan re jhoot mat bolo and bambai se aaya mera dost. It was undoubtedly one of the most memorable sessions we have ever had! All those who were present in the Suniket Park that Sunday morning will cherish the memories for a long time.

In the evening, we went to the regional park and had a fantastic time. We would sit on a bench and laugh incessantly oblivious of bewilderment on the faces of onlookers who found it difficult to decipher what was so hilarious around that made us go nuts.
The next morning we remained at home to spend some quality time together. We sat in our balcony with the morning cuppa of tea. Lo and behold, Gulyora started laughing. How could we refrain? We also joined her. Many rounds of laughter followed during the day. We laughed and laughed and laughed.

Her husband’s name is Kakramon (which means Hero). She has named him ‘Mahaveer’ in Hindi. He is an introvert and previously worked for the army. But now he is also bitten by the laughter bug. He takes a CD containing 40 laughter exercises to his office and plays it for the staff. And then, he gives a command in true military style, “Kulila!” (That is, “Laugh!”) And, surprisingly, it works!

In the evening, she conducted an exclusive session of laughter yoga for ladies at Suniket Community Hall. Upon their asking, she explained to them how one can laugh from the diaphragm effortlessly and continuously. The ladies enjoyed her laughter and felt inspired.

Next morning, we went to Rotary Paul Harris School for the Mentally Challenged Children. She was touched by their simplicity and warmth. Tears started flowing from her eyes and rolled over her cheeks. She addressed them after gaining composure and then we had a fun-filled laughter session with the special kids. They gifted a decorative art piece of ‘natkhat’ (naughty) Krishna which they had made especially for her. She was touched by their gesture.

We visited Chokhi Dhani in the evening. It is a resort on the outskirts of city in Rajasthani style with folk dancers, singers and magicians. She simply loved it and enjoyed dancing with them.

Gulyora is such a noble soul. She is unbelievably good hearted and positive. We feel privileged to have spent precious moments in her enchanting company. The laughter still lingers on.

We shared with some of our friends that Gulyora visited us and we had great fun. Our good friend Duncan Cook, Laughter Ontario had this to say, “In Guelph, where I live, the laughter club members are visiting each others homes now. Bless this house with laughter…haha!”

Our home has been blessed with laughter! Thank you so much, Gulyora.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (10) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

(ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण)

 

सहयज्ञाः प्रजाः सृष्टा पुरोवाचप्रजापतिः ।

अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक्‌।।10।।

 

यज्ञ सहित सर्जित किया ब्रम्हा ने संसार

कहा यज्ञ से वृद्धि हो,कामनाये हो पार ।।10।।

 

भावार्थ :   प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि में यज्ञ सहित प्रजाओं को रचकर उनसे कहा कि तुम लोग इस यज्ञ द्वारा वृद्धि को प्राप्त होओ और यह यज्ञ तुम लोगों को इच्छित भोग प्रदान करने वाला हो।।10।।

 

The Creator,  having  in  the  beginning  of  creation  created  mankind  together  with sacrifice, said: “By this shall ye propagate; let this be the milch cow of your desires (the cow which yields the desired objects)”. ।।10।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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पुस्तक समीक्षा / आत्मकथ्य – ☆ स्त्री-पुरुष की कहानी ☆ शीघ्र प्रकाश्य _ – श्री सुरेश पटवा

श्री सुरेश पटवा

 

(श्री सुरेश पटवा, ज़िंदगी की कठिन पाठशाला में दीक्षित हैं। मेहनत मज़दूरी करते हुए पढ़ाई करके सागर विश्वविद्यालय से बी.काम. 1973 परीक्षा में स्वर्ण पदक विजेता रहे हैं और कुश्ती में विश्व विद्यालय स्तरीय चैम्पीयन रहे हैं। भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत सहायक महाप्रबंधक हैं, पठन-पाठन और पर्यटन के शौक़ीन हैं। वर्तमान में वे भोपाल में निवास करते हैं।

आपकी नई पुस्तक ‘स्त्री-पुरुष की कहानी ’ जून में प्रकाशित होने जा रही हैं जिसमें स्त्री पुरुष के मधुर लेकिन सबसे दुरुह सम्बंधों की मनोवैज्ञानिक व्याख्या भारतीय और पाश्चात्य दर्शन में तुलनात्मक रूप से की गई है। प्रस्तुत हैं उसके कुछ अंश।)

 

☆ स्त्री-पुरुष की कहानी ☆

मेरी एक पुस्तक “स्त्री-पुरुष की कहानी” जून में प्रकाशित होने जा रही हैं जिसमें स्त्री पुरुष के मधुर लेकिन सबसे दुरुह सम्बंधों की मनोवैज्ञानिक व्याख्या भारतीय और पाश्चात्य दर्शन में तुलनात्मक रूप से की गई है। प्रस्तुत हैं उसके कुछ अंश।

भारतीय दर्शन शास्त्र में संसारी के लिए वर्णित चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, अर्थ में से काम और अर्थ प्रबल प्रेरणा हैं, परंतु गम्भीरता पूर्वक ध्यान से आकलन करो तो असल प्रेरणा काम है। काम को यहाँ केवल यौन (सेक्स) के रूप में न लेकर उसे मनुष्य के इन्द्रिय और मानसिक सुख के सभी सोपान में ग्रहण किया जाना चाहिए। ज्ञान-इंद्रियों यथा आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा  से मिलने वाले आभासी सुख, कर्मेंद्रियों यथा हाथ, पैर, मुँह, मस्तिष्क और जनन इन्द्रिय के कायिक सुख, मनोरंजन, आराम और विलासिता के सभी अंग काम के वृहद अर्थ में समाहित हैं। इन अवयवों के कारण ही मनुष्य का समाज से जुड़ाव होता है, रिश्ते बनते हैं। अन्तरवैयक्तिक सम्बंधों के आयाम खुलते हैं, वह एक सामाजिक प्राणी बनकर जीवन व्यतीत करता है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि दाम्पत्य के रिश्ते का आधार काम होता है परंतु सिर्फ़ काम ही नहीं होता और भी बहुत कुछ होता है, यहाँ तक कि जीवन में सब कुछ दाम्पत्य सम्बन्धों की गुणवत्ता जैसे रिश्ते की मधुरता या मलिनता के आसपास घूमता है।

अर्थ कामना को पूरा करने का एक साधन है लेकिन अब साधन के संचय में मनुष्य इतना व्यस्त हो रहा है कि उसे साधन ही साध्य लगने लगा है। काम प्रबल दैहिक धर्म होते हुए भी पीछे खिसक कर अर्थ की तुला में तौलने वाली वस्तु सा बनता जा रहा है या कहें तो अपनी स्वाभाविकता खो कर मशीनी होता जा रहा है। वह हमारी साँस से जुड़ा होकर भी निरंतर दमन के कारण कई बार अजीब सी विकृति के साथ उद्घाटित हो रहा है या उच्छंखलित हो विरूपता को प्राप्त हो रहा  है। काम शारीरिक विज्ञान का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग होता है लेकिन उसके वास्तविक स्वरूप पर एक धुँध सी छाई रहती है, उसे छुपा कर या दबा कर रखने के कारण प्रकट नहीं होने दिया जा रहा है।

विज्ञान ने कभी नहीं कहा कि वह भगवान के विरुद्ध है, यह एक बड़ी अजीबोग़रीब बात है कि कतिपय निहित स्वार्थ ने विज्ञान के सामने भगवान को खड़ा कर दिया है जबकि विज्ञान भगवान की बनाई दुनिया के रहस्य खोलने की तपस्या के समान है। विज्ञान ने मनुष्य जाति की श्रेष्ठता के कई भ्रमों को तोड़ा है। पहला भ्रम उस समय टूटा था जब कोपरनिकस ने कहा था कि पृथ्वी विश्व का केंद्र नहीं है, बल्कि कल्पनातीत अन्तरिक्ष में एक छोटा बिंदु मात्र है। गेलीलिओ ने कहा कि सूर्य आकाश गंगा का केंद्र है पृथ्वी नहीं। दूसरा भ्रम तब टूटा जब डारविन ने जैविकीय गवेषणा से मनुष्य की विशेषता छीन ली कि उसका निर्माण ईश्वर ने किसी विशेष तरह से किया है, उसे पशु-जगत से विकसित हुआ बताया और कहा कि उसमें मौजूद पशु प्रकृति को पूरी तरह उन्मूलित नहीं किया जा सकता है याने मनुष्य किसी न किसी स्तर पर एकांश में पशु होता है। मनुष्य का तीसरा भ्रम उस समय टूटना शुरू हुआ जब फ्रायड ने मनोविश्लेषण से यह सिद्ध करना शुरू किया कि तुम अपने स्वयं के स्वामी नहीं हो, बल्कि तुम्हें अपने चेतन की थोड़ी सी जानकारी से संतुष्ट होना पड़ता है जबकि जो कुछ तुम्हारे अंदर  में अचेतन रूप से चल रहा है उसके बारे में तुम्हें बहुत ही कम जानकारी है। तुम्हें तुम्हारी मानसिक शक्तियाँ चला रहीं हैं न कि तुम अपनी मानसिक शक्तियों के परिचालक हो।

पिछले पचास सालों में भारत की महिला आर्थिक आज़ादी की तरफ़ तेज़ी से बढ़ी है। बैंक, बीमा, रेल्वे, चिकित्सा, इंजीनियर, संचार, सरकारी, ग़ैर-सरकारी और निजी रोज़गार के सभी क्षेत्रों में उनकी भागीदारी के प्रतिशत का ग्राफ़ तेज़ी से ऊपर बढ़ा है जबकि पहले सिर्फ़ शिक्षाकर्मी का क्षेत्र उनके लिए सुरक्षित समझा जाता था। इसका एक बड़ा प्रभाव यह देखने में आ रहा है कि जब लड़कियाँ केरियर के प्रति सजग होंगी तो घरेलू काम-काज और साज-संभाल कुशलता में उनका पिछड़ना लाज़िमी है। दूसरी तरफ़ लड़कों में शुरू से ही घरेलू काम के प्रति उपेक्षित उदासी हमारे समाज की पहचान रही है। बहुत ही कम घर होंगे जहाँ लड़कों को कभी झाड़ू-पौंछा का अनुभव होगा या उन्होंने कभी तरकारी काटी होगी या आँटा गूँथा होगा। कुल मिलाकर पूरा समीकरण तेज़ी से बदल रहा है। परस्पर अधिकारों और कर्तव्यों के बदलते समीकरण व ढीली पड़ती मर्यादा के परिणाम स्वरूप लोगों के आचरण में आए बदलाव से एक धुँधली सी अराजकता ने पुरानी दाम्पत्य व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है। फलस्वरूप दाम्पत्य सम्बन्धों में स्वाभाविक तनाव में वृद्धि हुई है इसलिए नवीन दांपत्यों में टकराव और सम्बंध विछेद के मामले बढ़े हैं।

भारतीय समाज कमोबेश पूरी तरह पश्चिमी जीवन जीने के तरीक़े अपना चुका है। भारत का सामाजिक विकास पश्चिमी देशों की तुलना में कम से कम पचास से सौ साल पीछे चलता रहा था यह अंतर  संचार क्रांति के फलस्वरूप घट रहा है। पश्चिम में औद्योगिक क्रांति के बाद सामाजिक बदलाव की आधुनिक विचारधारा विकसित हुई थी, उसके बाद कम्प्यूटर क्रांति और मोबाईल क्रांति ने आधुनिक जीवन शैली को एक नए साँचे मे ढाल दिया है।  जिसने खान-पान, रहन-सहन और वैवाहिक सम्बंधों को क्रांतिकारी रूप से बदलकर रख दिया। भारतीय समाज ने भी वे तरीक़े तेज़ी से अपनाए हैं। पश्चिम के फ़ूड-पिरामिड, रहन-सहन, स्वास्थ्य मानक, अर्थ-तंत्र, सम्पत्ति निर्माण हमने अपना लिया है तो समाजिक टूटन के मानक भी हमारे अंदर सहज ही आ गए हैं। युवाओं में मधुमेह के रोग और हृदयाघात  से मौत के मामलों और तलाक़ व परस्पर वैमनस्य के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। पश्चिम में जीवन शैली के बदलाव के साथ मनोवैज्ञानिक खोजों और अंतरवैयक्तिक सम्बन्धित खोजों ने रिश्तों को एक नई दिशा दी है जिसे हमारे महानगरीय समाज ने सीखा और अपनाया है परंतु अधिकांश भारतीय समाज उनसे अछूता है। इसलिए इस विषय को मौलिक रूप से हिंदी मे भारतीय जनमानस को उपलब्ध कराना इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य है।

यह सार्वभौमिक सत्य है कि सुखी समाज का आधार पारिवारिक सामंजस्य और परिवार में सुख का आधार रिश्ते की मधुरता होती है। कोई भी रिश्ता जब टूटकर के बिखरता है तो मनुष्य के अंदर की पूरी कायनात टूट के रोती है। टूटन की सिसकियों में जीवन का संगीत एक भयानक रौरव में बदल जाता है। अवसाद-निराशा-कुंठा के अंधेरे कुएँ में छुपे ज़हरीले नाग फ़न फैलाये लपलपाती जीभों से मन-कामना और स्वाभाविक लालसा को डँसकर हृदय को बियाबांन कँटीला रेगिस्तान बना कर छोड़ते हैं, जहाँ नफ़रत और घृणा की कँटीली झाड़ियों में प्रेम, स्नेह, ममता का दामन उलझते-फटते रहता है, विद्वेष के अलावा कुछ नहीं पनपता। इनसे बचने या निजात पाने का रास्ता है कि ऐसी परिस्थिति के सतही पहलू की बजाय उनके गम्भीर मनोवैज्ञानिक पहलू पर ध्यान दिया जाए। मनुष्य प्रकटत: चेतन बुद्धि से विचार करता है लेकिन उसके द्वारा की जाने वाली क्रिया-प्रतिक्रिया का निर्णय उसका अचेतन-मन करता है। गुत्थियों के रहस्य उसकी अचेतन गुफा में छुपे होते हैं। वहीं से मानवीय व्यवहार चेतन धरातल पर आकर तूफ़ान की शक्ल लेता है जैसे समुद्री तूफ़ान जल की गहराई में पनपता है और किनारों को तहस-नहस कर देता है। समुद्र की सतह पर मचलती लहरें उसका चेतन स्वरुप है उनमें रवानगी है, उसकी अतल गहराई में अचेतन मन है जहाँ समुद्री तूफ़ान पलते हैं। योगी पुरुष या महिला चेतन-अचेतन का भेद समाप्त करके शांतचित्त हो जाते हैं। महिला-पुरुष के दो विपरीत मन जब एक भूमिका निबाह के दायरे में आते हैं तो दैहिक सुख से अलहदा मानसिक द्वन्द की भूमि तैयार होती है। जो दोनों को कभी न ख़त्म होने वाले संघर्ष के गहरे कुएँ में धकेल देती है। यह किताब इन्हीं गुत्थियों को समझने की कोशिश है। इसमें मनोविज्ञान के गूढ़ सिद्धांतों के बजाय उनके व्यवहारिक पहलूओ की व्याख्या की गई है।

© सुरेश पटवा, भोपाल 

 

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हिन्दी साहित्य- व्यंग्य – ☆ एक्जिट पोल में खोल ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(प्रस्तुत है  श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  का एक सामयिक व्यंग्य।  एक्ज़िट पोल और इस व्यंग्य की समय सीमा आज तक ही है ।  इसलिए सामयिक हुआ न।  तो फिर पढ़िये और शेयर करिए। )

 

☆ एक्जिट पोल में खोल ☆

 

बेचारा गंगू बकरियां और भेड़ चराकर जंगल से लौट रहा था और ये चुनावी सर्वे का बहाना करके गनपत नाहक में गंगू को परेशान कर रहा है, जब गंगू ने वोट नहीं डाला तो इतने सारे सवाल करके उसे क्यों डराया जा रहा है? गंगू की ऊंगली पकड़ कर बार बार देखी जा रही है कि स्याही क्यों नहीं लगी? परेशान होकर गंगू कह देता है लिख लो जिसको तुम चाहो। गंगू को नहीं मालुम कि कौन खड़ा हुआ और कौन बैठ गया। गंगू से मिलकर सर्वे वाला भी खुश हुआ कि पहली बोहनी बढ़िया हुई है।

सर्वे वाला भैया आगे बढ़ा।  एक पार्टी के सज्जन मिले, गनपत भैया ने उनसे भी पूछ लिया। काए भाई किसको जिता रहे हो? सबने एक स्वर में कहा – वोई आ रहा है क्योंकि कोई आने लायक नहीं है। इस बार ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी, एक साथ हजारों की संख्या में एक ही जगह सर्वे का मसाला मिल गया।

तब तक फुल्की वाला वहीं से निकला, बोला -कौन जीत रहा है हम क्यों बताएं, हमने जिताने का ठेका लिया है क्या?  पिछली बार तुम जीएसटी का मतलब पूछे थे तब भी हमने यही कहा था कि आपको क्या मतलब   …..! गोलगप्पे खाना हो तो बताओ… नहीं तो हम ये चले।

अब गनपत को प्यास लगी तो एक घर में पानी मांगने पहुँचे तो मालकिन बोली –  फ्रिज वाला पानी, कि ओपन मटके वाला …….

खैर, उनसे पूछा तो ऊंगली दिखा के बोलीं – वोट डालने गए हते तो एक हट्टे-कट्टे आदमी ने ऊंगली पकड़ लई, हमें शर्म लगी तो ऊंगली छुड़ान लगे तो पूरी ऊंगली में स्याही रगड़ दई। ऐसी स्याही कि छूटबे को नाम नहीं ले रही है। सर्वे वाले गनपत ने झट पूछो – ये तो बताओ कि कौन जीत रहो है। हमने कही जो स्याही मिटा दे, वोईई जीत जैहै।

पानी पीकर आगे बढ़े तो पुलिस वाला खड़ा मिल गया, पूछा – “कयूं भाई, कौन जीत रहा है ……?”

वो भाई बोला – “किसको जिता दें आप ही बोल दो।” गनपत समझदार है कुछ नोट सिपाही की जेब में डाल कर जैसा चाहिए था बुलवा लिया। पुलिस वाले से बात करके गनपत दिक्कत में पड़ गया। पुलिस वाले ने डंडा पटक दिया बोला – “हेलमेट भी नहीं लगाए हो, गाड़ी के कागजात दिखाओ और चालान कटवाओ।”

कुछ लोग और मिल गए हाथ में ताजे फूल लिए थे, गनपत ने उनसे पूछा “ये ताजे फूल कहां से मिल गए ……उनमें से एक रंगदारी से बोला – “चुरा के लाए है बोलो क्या कर लोगे …….. सुनिए तो थोड़ा चुनाव के बारे में बता दीजिये ……?”

बोले – “तू कौन होता बे…. पूछने वाला। सबको मालूम है हमारा कमाल, बसूलने का हमारा हक है, सब की ऐसी तैसी कर के रहेगें।”

नेता जी नाराज नहीं होईये हम लोग आम आदमी से चुनाव की बात कर एक्जिट पोल बना रहे हैं।“

“सुन बे आम आदमी का नाम नहीं लेना।”

आगे बढ़े तो कालेज वाले लड़के  मिल गए, जब पूछा कि – “चुनाव …..मतलब ?”

कई लड़के हंसते हुए बोले – “फेंकू के चान्स ज्यादा हैं बाकि इस बार लफड़ा है।“

थक गए तो घर पहुंचे, पत्नी पानी लेकर आयी, तो पूछा – “काए  किसको जिता रही हो …..?” पत्नी बड़बड़ाती हुई बोली – “तुम तो पगलाई गए हो  …! पैसा वैसा कुछ कमाते नहीं और राजनीति की बात करते रहते हो। कोई जीते कोई हारे  तुम्हें का मतलब …………..”

फोन आ गया, “हां हलो ,हलो ……कौन बोल रहे हैं ? अरे भाई बताओ न कौन बोल रहे हैं “

आवाज आयी – “साले तुमको चुनाव का सर्वे करने भेजा था  और तुम घर में पत्नी के साथ ऐश कर रहे हो ………..”

“नहीं साब, प्यास लगी थी पानी पीने आया था, बहुत लोगों से बात हो गई है,”

“निकलो जल्दी … बहस लड़ा रहे हो, बहाना कर रहे हो ……….”

काम वाली बाई आ गई, उससे पूछा तो उसने पत्नी से शिकायत कर दी कि “साहब छेड़छाड़ कर रहे हैं …….”

घर से निकले तो पान की दुकान वाले गज्जू से चुनाव के रिजल्ट पर चर्चा छेड़ दी,  गज्जू गाली देने में तेज था.  मां-बहन से लेकर भोपाली गालियों की बौछार करने लगा, आजू बाजू वाले बोले   “बढ़ लेओ भाई, काहे दिमाग खराब कर रहे हो ………..”

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ नारी मुक्ति के मायने क्या पोशिदा होते हैं? ☆ – डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव

डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव 

 

☆ नारी मुक्ति के मायने क्या पोशिदा होते हैं? ☆

 

क्यों अक्सर कूड़ों के बदबूदार ढ़ेर में,

उजली सुबह काले कर्म छिपें होते हैं।

कुत्तों से नुच नुच कर बहशीयाने ढ़ेर में,

नवजात शिशुओं के शव पड़े होते हैं।।

 

महाभारत के कर्ण आज भी पैदा होते हैं,

जो अवैध नहीं, मां बाप अवैध होते हैं।

निष्पाप होकर भी वे कूड़े में पड़े होते हैं,

क्योंकि अवैध ऐयासी की उपज होते हैं।।

 

कर्ण तो कुंवारी कुंती की एक गलती थी,

आज के कर्ण तो वासना का फ़ल होते हैं।

कुंती के दिल की कभी  नहीं चलती थी,

तभी तो लख्ते जिगर कूड़े में पड़े होते हैं।।

 

बिन विवाह संग रह कर सभी वैध होते हैं,

अवैध भी महाभारत से वैध हुआ करतें हैं।

बेटियों से भी तो सहारे हमें मिला करते हैं,

फिर क्यों शव उनके ही नुचे पड़े मिलते हैं।।

 

सास ससुर पति हेतु क्यों ममता शर्म सार है ,

पुत्र पैदा करने हेतु नारी शिशु बलि होते हैं।

सृष्टा हैं बृह्मा हैं नियंता हैं और जीवन सार हैं,

फिर भी नारी शिशु शलभ सम दहन होते हैं।।

 

आज़ कुंती अबला नहीं निज पैरों पे खड़ी है,

फिर भी दिल के टुकड़े उससे जुदा होते हैं।

क्यों उसकी इज़्ज़त लहूलुहान कूड़े में पड़ी है,

नारी मुक्ति के मायने क्या पोशिदा होते हैं।।

 

© डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव

 

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ☆ शिंपल्यातला मोती ☆ –श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(प्रस्तुत है वरिष्ठ साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी की एक अतिसुन्दर  भावप्रवण कविता ।  )

 

? शिंपल्यातला मोती ?

 

फेसाळत ना वरती आलो

शिंपल्यातला मोती झालो

अंधाराची सोबत होती

तरी उजळलो गोरा झालो

 

वस्त्रामधली उब मी व्हावे

जीवन सारे तुझे पहावे

लपटावे तू मला म्हणुनी

तागा झालो दोरा झालो

 

शब्दांमधले अर्थ कळाया

हवीत नाती घट्ट जुळाया

शब्द चुकीचा नको जायला

म्हणून कागद कोरा झालो

 

तिचे वागणे तापट आहे

केला माझा पोपट आहे

तापमान हे जरा कळावे

म्हणून मीही पारा झालो

 

कोमल भिंती हृदयाच्या ह्या

तुझ्या स्मृतीने फुटती लाह्या

जन्मठेप ही तुला मिळाली

तुझ्याचसाठी कारा झाले

 

पाठीवरचे केस मोकळे

शांत पहुडले जणू सापळे

जीव फुंकणे माझ्या हाती

त्यांच्या करिता वारा झालो

 

अक्षर आहे अक्षर राहो

फोडित नाही उगाच ठाहो

देशावरच्या प्रेमापोटी

भारतमाता नारा झालो

 

© अशोक भांबुरेधनकवडी

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Inner Spirit of Laughter ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Inner Spirit of Laughter 

Are you stressed, sad or depressed? Do you want to add more joy and laughter to your life? Try Laughter Yoga. It is simple to learn and a lot of fun.

Laughter Yoga is the latest health craze sweeping the globe where anyone can laugh without any reason. It has been a life changing experience for millions including me and my wife.

The Laughter Clubs Movement started with just five persons in a Mumbai park in the year 1995. At the outset, it was envisaged to combine laughter exercises based on yogic breathing and stretching techniques to provide the benefits of laughter to people in a structured way. But soon after, a whole new significance of laughter was discovered.

According to Dr Madan Kataria, the Founder of Laughter Clubs Movement, “We realized that laughter is not about amusement and entertainment, giggling or chuckling; instead it has a great deal to do with our inner self – it has to come from deep within, straight from the soul, and one can experience this laughter from the soul only when the heart is pure, full of love, compassion and kindness.

“Laughter becomes more meaningful when it is intended not only to make ourselves happy but also to make others happy. This in Laughter Clubs is known as the Inner Spirit of Laughter.”

Laughter Clubs are instrumental in bringing about attitudinal changes in people and provide an ideal platform to help people connect through love and laughter. During the course of my journey of Laughter Yoga, I have seen a lady who was always full of anger become a warm, jovial person; I have been a witness to an introvert converting to a full fledged extrovert and a quarrelsome person change to a caring and sharing one.

Laughter Yoga goes beyond just the physical and physiological dimension of laughing. It not only fosters a feeling of physical well being by generating endorphins in the body, it also enhances the spirit and touches the emotional core. It cultivates positive thinking and promotes understanding.

Many of the laughter exercises focus on forgiveness, appreciation, anger management, gratitude and helpfulness. Laughter Yoga provides an opportunity to the practitioners to actively enhance the life of others.

Those who practice Laughter Yoga on a regular basis understand that it has the power to change the selfish state of mind to an altruistic state of mind. It has been proven that people who laugh are likely to be more generous and have more empathy than those who don’t laugh.

This inner spirit of laughter becomes apparent to the seekers as they develop a state of internal peace – the worries and intense goals that have driven their lives become less important. These people become aware that true happiness comes from giving unconditional love, caring for others and sharing with each other.

Laughter Yoga inspires members to make the world a better place not only for themselves but for everyone. Dr Kataria goes beyond this in his book ‘Laugh for no reason’ to say that the ultimate objective of Laughter Yoga is to spread good health, joy and achieve world peace through laughter.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (9) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

(ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण)

( यज्ञादि कर्मों की आवश्यकता का निरूपण )

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबंधनः ।

तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर ।।9।।

यज्ञ कर्म के बिना सब कर्म बंध आधार

इससे तू सब कर्मकर यज्ञ धर्म अनुसार।।9।।

      

भावार्थ : यज्ञ के निमित्त किए जाने वाले कर्मों से अतिरिक्त दूसरे कर्मों में लगा हुआ ही यह मुनष्य समुदाय कर्मों से बँधता है। इसलिए हे अर्जुन! तू आसक्ति से रहित होकर उस यज्ञ के निमित्त ही भलीभाँति कर्तव्य कर्म कर।।9।।

 

The world is bound by actions other than those performed for the sake of sacrifice; do thou,  therefore,  O  son  of  Kunti,  perform  action  for  that  sake  (for  sacrifice)  alone,  free  from attachment! ।।9।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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संस्मरण- ☆आदरणीय स्व. शरद जोशी जी के जन्मदिन पर ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(आज स्व. शरद जोशी जी को उनके जन्म दिवस पर e-abhivyakti की ओर से सादर नमन। श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी का आभार जिन्होने स्व.  शरद जोशी जी के साथ अपने संस्मरण हमारे पाठकों के साथ साझा किया। प्रस्तुत है उनका संक्षिप्त जीवन परिचय एवं श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के अविस्मरणीय क्षण जो उन्होने श्री जोशी जी के साथ व्यतीत किए थे।)

स्व. शरद जोशी जी का जीवन परिचय 

जन्म – 21 मई 1931 को मध्य प्रदेश के उज्जैन मध्य प्रदेश में हुआ।

मृत्यु –  60 वर्ष की आयु में 5 सितंबर 1991 को मुंबई में हुआ।

जीवन परिचय – आपने कुछ समय तक सरकारी नौकरी की फिर लेखन को आजीविका के रूप में अपना लिया।

साहित्य सृजन – आरम्भ में कुछ कहानियाँ लिखीं, फिर पूरी तरह व्यंग्य-लेखन ही करने लगे। इसके अतिरिक्त आपने व्यंग्य लेख, व्यंग्य उपन्यास, व्यंग्य के स्थायी स्तम्भ के अतिरिक्त हास्य-व्यंग्यपूर्ण धारावाहिकों की पटकथाएँ और संवाद भी लिखे।आपकी रचनाओं में समाज में पाई जाने वाली सभी विसंगतियों का बेबाक चित्रण मिलता है।

साहित्य – गद्य रचनाएँ परिक्रमा, किसी बहाने, जीप पर सवार इल्लियाँ, रहा किनारे बैठ, दूसरी सतह, प्रतिदिन(3 खण्ड), यथासंभव, यथासमय, यत्र-तत्र-सर्वत्र, नावक के तीर, मुद्रिका रहस्य, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, झरता नीम शाश्वत थीम, जादू की सरकार, पिछले दिनों, राग भोपाली, नदी में खड़ा कवि, घाव करे गंभीर, मेरी श्रेष्ठ व्यंग रचनाएँ।

व्यंग्य नाटक –  अंधों का हाथी, एक था गधा उर्फ अलादाद खाँ

उपन्यास –  मैं, मैं और केवल मैं उर्फ़ कमलमुख बी0ए0

टीवी धारावाहिक –  यह जो है जिंदगी, मालगुड़ी डेज, विक्रम और बेताल, सिंहासन बत्तीसी, वाह जनाब, दाने अनार के, यह दुनिया गज़ब की, लापतागंज आदि।

फिल्मी सम्वाद लेखन – क्षितिज, गोधूलि, उत्सव, उड़ान, चोरनी, साँच को आँच नहीं, दिल है कि मानता नहीं।

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☆ आदरणीय शरद जोशी के जन्मदिन पर ☆

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बहुत पहले आदरणीय शरद जोशी जी “रचना”  संस्था के आयोजन में परसाई की नगरी जबलपुर में मुख्य अतिथि बनकर आए थे,हम उन दिनों “रचना ” के संयोजक के रूप में सहयोग करते थे।

“रचना “साहित्यिक सांस्कृतिक सामाजिक संस्था का मान था उन दिनों। हर रंगपंचमी पर राष्ट्रीय स्तर के हास्य व्यंग्य के ख्यातिलब्ध हस्ताक्षर आमंत्रित किए जाते थे। हम लोगों ने आदरणीय शरद जोशी जी को रसल चौक स्थित उत्सव होटल में रूकवाया था, “व्यंग्य की दशा और दिशा” विषय पर केंद्रित इस कार्यक्रम के वे मुख्य अतिथि थे।

व्यंग्य विधा के इस आयोजन के प्रथम सत्र में ख्यातिलब्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई जी की रचनाओं पर आधारित रेखाचित्रों की प्रदर्शनी का उदघाटन करते हुए जोशी जी ने कहा था- “मैं भाग्यवान हूं कि परसाई के शहर में परसाई की रचनाओं पर आधारित  रेखाचित्र प्रदर्शनी के उदघाटन का सुअवसर मिला.”

फिर उन्होंने परसाई की सभी रचनाओं को घूम घूम कर पढ़ा हंसते रहे और हंसाते रहे। ख्यातिलब्ध चित्रकार श्री अवधेश बाजपेयी की पीठ ठोंकी, खूब तारीफ की। व्यंग्य विधा की बारीकियों पर उभरते लेखकों से लंबी बातचीत की।

शाम को जब होटल के कमरे में वापस लौटे फिर दिल्ली के अखबार के लिए ‘प्रतिदिन’ कालम लिखा, हमें डाक से भेजने के लिए दिया। साहित्यकारों के साथ थोड़ी देर चर्चा की, फिर टीवी देखते देखते सो गए ।

आज उनका जन्मदिन है, वे याद आ गए…..

सादर नमन।

©  जय प्रकाश पाण्डेय, जबलपुर 

 

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मराठी साहित्य – आलेख ☆ चिमणीचा दात ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं। इसके  अतिरिक्त आप एक आदर्श  एवं सम्माननीय शिक्षिका भी हैं । आपके शैक्षणिक अनुभव अनायास ही हमें अपने बचपन के दिन याद दिला देते हैं। इस संक्षिप्त आलेख में हम अपने समय एवं वर्तमान समय के पलकों और बच्चों की बदलती मानसिकता के सामाजिक प्रभाव /दुष्प्रभाव का अवलोकन करते हैं। 
यह आलेख पालकों के माध्यम से उनके बच्चों के लिए है। आज के ही अंक में हम श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी की बच्चों के लिए “लू की आत्मकथा” प्रकाशित कर रहे हैं।  आशा है आप सबको पसंद आएगी। हाँ अपने बच्चों/पोते/पोतियों /नाती/नातियों को यह कथा सुनाना मत भूलिएगा।  श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी एक प्रसिद्ध बाल साहित्यकार हैं।)

 

? चिमणीचा दात ?

 

आजकाल डब्यात पोळी भाजी देण्यापेक्षा बरेचसे पालक मुलांना पाच दहा रूपये  देण्यात धन्यता मानतात मग ही मुल चीप्स कुरकूरे इत्यादी फास्टफूड आणून खाण्यात नुसती धन्यताचा नव्हे तर श्रीमंचे लक्षण समजतात कुणाला एक कण न देता खातात तेंव्हा आपले लहानपणीचे दिवस आठवाल्या शिवाय राहात नाहीत. एखादा चिंचेचा आकडा, एखादा आवळा कधीकधी एकच चिंचोका सुद्धा चिमणीच्या दाताने दोनचार जणांना नक्कीच पुरत असे. तो देताना देणाऱ्याला कधीही श्रीमंतीचा गर्व नसायचा किंवा खाणार्यालाही कधीच गरीबी जाणवत नसे. प्रत्येक मित्रा जवळची प्रत्येक वस्तू सर्वांनाच आपली वाटायची. अगदी पूर्ण बिस्कीट पुडा एकट्याने खाल्ला आणलेले पूर्ण फळ एकट्याने फस्त केले अससस अगदी अभावानेच होई.

जी वस्तू चिरून मोडून फोडून देता येत नसे ती नक्कीच चिमणीच्या दाताने दिली जाई कारण आई सांगायची एकट्याने खाल्ले  की वटवाघूळच्या जन्माला जाव लागत आणि मग असं एकट दिवसभर लटत राहावं लागतं.  तेंव्हा ते अगदी मनोमन पटायचं कारण वटवाघुळाला कधी कुणी  मजा करताना मित्रात बागडताना पाहिलेले नव्हते. म्हणूनच वाटून खाण्याची संस्कृती निर्माण झाली.परंतु वरचेवर ही संस्कृती लोप पावताना दिसते.

 

©  रंजना मधुकर लसणे✍

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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