हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ नारी मुक्ति के मायने क्या पोशिदा होते हैं? ☆ – डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव

डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव 

 

☆ नारी मुक्ति के मायने क्या पोशिदा होते हैं? ☆

 

क्यों अक्सर कूड़ों के बदबूदार ढ़ेर में,

उजली सुबह काले कर्म छिपें होते हैं।

कुत्तों से नुच नुच कर बहशीयाने ढ़ेर में,

नवजात शिशुओं के शव पड़े होते हैं।।

 

महाभारत के कर्ण आज भी पैदा होते हैं,

जो अवैध नहीं, मां बाप अवैध होते हैं।

निष्पाप होकर भी वे कूड़े में पड़े होते हैं,

क्योंकि अवैध ऐयासी की उपज होते हैं।।

 

कर्ण तो कुंवारी कुंती की एक गलती थी,

आज के कर्ण तो वासना का फ़ल होते हैं।

कुंती के दिल की कभी  नहीं चलती थी,

तभी तो लख्ते जिगर कूड़े में पड़े होते हैं।।

 

बिन विवाह संग रह कर सभी वैध होते हैं,

अवैध भी महाभारत से वैध हुआ करतें हैं।

बेटियों से भी तो सहारे हमें मिला करते हैं,

फिर क्यों शव उनके ही नुचे पड़े मिलते हैं।।

 

सास ससुर पति हेतु क्यों ममता शर्म सार है ,

पुत्र पैदा करने हेतु नारी शिशु बलि होते हैं।

सृष्टा हैं बृह्मा हैं नियंता हैं और जीवन सार हैं,

फिर भी नारी शिशु शलभ सम दहन होते हैं।।

 

आज़ कुंती अबला नहीं निज पैरों पे खड़ी है,

फिर भी दिल के टुकड़े उससे जुदा होते हैं।

क्यों उसकी इज़्ज़त लहूलुहान कूड़े में पड़ी है,

नारी मुक्ति के मायने क्या पोशिदा होते हैं।।

 

© डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव

 

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ☆ शिंपल्यातला मोती ☆ –श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(प्रस्तुत है वरिष्ठ साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी की एक अतिसुन्दर  भावप्रवण कविता ।  )

 

? शिंपल्यातला मोती ?

 

फेसाळत ना वरती आलो

शिंपल्यातला मोती झालो

अंधाराची सोबत होती

तरी उजळलो गोरा झालो

 

वस्त्रामधली उब मी व्हावे

जीवन सारे तुझे पहावे

लपटावे तू मला म्हणुनी

तागा झालो दोरा झालो

 

शब्दांमधले अर्थ कळाया

हवीत नाती घट्ट जुळाया

शब्द चुकीचा नको जायला

म्हणून कागद कोरा झालो

 

तिचे वागणे तापट आहे

केला माझा पोपट आहे

तापमान हे जरा कळावे

म्हणून मीही पारा झालो

 

कोमल भिंती हृदयाच्या ह्या

तुझ्या स्मृतीने फुटती लाह्या

जन्मठेप ही तुला मिळाली

तुझ्याचसाठी कारा झाले

 

पाठीवरचे केस मोकळे

शांत पहुडले जणू सापळे

जीव फुंकणे माझ्या हाती

त्यांच्या करिता वारा झालो

 

अक्षर आहे अक्षर राहो

फोडित नाही उगाच ठाहो

देशावरच्या प्रेमापोटी

भारतमाता नारा झालो

 

© अशोक भांबुरेधनकवडी

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Inner Spirit of Laughter ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Inner Spirit of Laughter 

Are you stressed, sad or depressed? Do you want to add more joy and laughter to your life? Try Laughter Yoga. It is simple to learn and a lot of fun.

Laughter Yoga is the latest health craze sweeping the globe where anyone can laugh without any reason. It has been a life changing experience for millions including me and my wife.

The Laughter Clubs Movement started with just five persons in a Mumbai park in the year 1995. At the outset, it was envisaged to combine laughter exercises based on yogic breathing and stretching techniques to provide the benefits of laughter to people in a structured way. But soon after, a whole new significance of laughter was discovered.

According to Dr Madan Kataria, the Founder of Laughter Clubs Movement, “We realized that laughter is not about amusement and entertainment, giggling or chuckling; instead it has a great deal to do with our inner self – it has to come from deep within, straight from the soul, and one can experience this laughter from the soul only when the heart is pure, full of love, compassion and kindness.

“Laughter becomes more meaningful when it is intended not only to make ourselves happy but also to make others happy. This in Laughter Clubs is known as the Inner Spirit of Laughter.”

Laughter Clubs are instrumental in bringing about attitudinal changes in people and provide an ideal platform to help people connect through love and laughter. During the course of my journey of Laughter Yoga, I have seen a lady who was always full of anger become a warm, jovial person; I have been a witness to an introvert converting to a full fledged extrovert and a quarrelsome person change to a caring and sharing one.

Laughter Yoga goes beyond just the physical and physiological dimension of laughing. It not only fosters a feeling of physical well being by generating endorphins in the body, it also enhances the spirit and touches the emotional core. It cultivates positive thinking and promotes understanding.

Many of the laughter exercises focus on forgiveness, appreciation, anger management, gratitude and helpfulness. Laughter Yoga provides an opportunity to the practitioners to actively enhance the life of others.

Those who practice Laughter Yoga on a regular basis understand that it has the power to change the selfish state of mind to an altruistic state of mind. It has been proven that people who laugh are likely to be more generous and have more empathy than those who don’t laugh.

This inner spirit of laughter becomes apparent to the seekers as they develop a state of internal peace – the worries and intense goals that have driven their lives become less important. These people become aware that true happiness comes from giving unconditional love, caring for others and sharing with each other.

Laughter Yoga inspires members to make the world a better place not only for themselves but for everyone. Dr Kataria goes beyond this in his book ‘Laugh for no reason’ to say that the ultimate objective of Laughter Yoga is to spread good health, joy and achieve world peace through laughter.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (9) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

(ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण)

( यज्ञादि कर्मों की आवश्यकता का निरूपण )

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबंधनः ।

तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर ।।9।।

यज्ञ कर्म के बिना सब कर्म बंध आधार

इससे तू सब कर्मकर यज्ञ धर्म अनुसार।।9।।

      

भावार्थ : यज्ञ के निमित्त किए जाने वाले कर्मों से अतिरिक्त दूसरे कर्मों में लगा हुआ ही यह मुनष्य समुदाय कर्मों से बँधता है। इसलिए हे अर्जुन! तू आसक्ति से रहित होकर उस यज्ञ के निमित्त ही भलीभाँति कर्तव्य कर्म कर।।9।।

 

The world is bound by actions other than those performed for the sake of sacrifice; do thou,  therefore,  O  son  of  Kunti,  perform  action  for  that  sake  (for  sacrifice)  alone,  free  from attachment! ।।9।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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संस्मरण- ☆आदरणीय स्व. शरद जोशी जी के जन्मदिन पर ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(आज स्व. शरद जोशी जी को उनके जन्म दिवस पर e-abhivyakti की ओर से सादर नमन। श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी का आभार जिन्होने स्व.  शरद जोशी जी के साथ अपने संस्मरण हमारे पाठकों के साथ साझा किया। प्रस्तुत है उनका संक्षिप्त जीवन परिचय एवं श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के अविस्मरणीय क्षण जो उन्होने श्री जोशी जी के साथ व्यतीत किए थे।)

स्व. शरद जोशी जी का जीवन परिचय 

जन्म – 21 मई 1931 को मध्य प्रदेश के उज्जैन मध्य प्रदेश में हुआ।

मृत्यु –  60 वर्ष की आयु में 5 सितंबर 1991 को मुंबई में हुआ।

जीवन परिचय – आपने कुछ समय तक सरकारी नौकरी की फिर लेखन को आजीविका के रूप में अपना लिया।

साहित्य सृजन – आरम्भ में कुछ कहानियाँ लिखीं, फिर पूरी तरह व्यंग्य-लेखन ही करने लगे। इसके अतिरिक्त आपने व्यंग्य लेख, व्यंग्य उपन्यास, व्यंग्य के स्थायी स्तम्भ के अतिरिक्त हास्य-व्यंग्यपूर्ण धारावाहिकों की पटकथाएँ और संवाद भी लिखे।आपकी रचनाओं में समाज में पाई जाने वाली सभी विसंगतियों का बेबाक चित्रण मिलता है।

साहित्य – गद्य रचनाएँ परिक्रमा, किसी बहाने, जीप पर सवार इल्लियाँ, रहा किनारे बैठ, दूसरी सतह, प्रतिदिन(3 खण्ड), यथासंभव, यथासमय, यत्र-तत्र-सर्वत्र, नावक के तीर, मुद्रिका रहस्य, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, झरता नीम शाश्वत थीम, जादू की सरकार, पिछले दिनों, राग भोपाली, नदी में खड़ा कवि, घाव करे गंभीर, मेरी श्रेष्ठ व्यंग रचनाएँ।

व्यंग्य नाटक –  अंधों का हाथी, एक था गधा उर्फ अलादाद खाँ

उपन्यास –  मैं, मैं और केवल मैं उर्फ़ कमलमुख बी0ए0

टीवी धारावाहिक –  यह जो है जिंदगी, मालगुड़ी डेज, विक्रम और बेताल, सिंहासन बत्तीसी, वाह जनाब, दाने अनार के, यह दुनिया गज़ब की, लापतागंज आदि।

फिल्मी सम्वाद लेखन – क्षितिज, गोधूलि, उत्सव, उड़ान, चोरनी, साँच को आँच नहीं, दिल है कि मानता नहीं।

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☆ आदरणीय शरद जोशी के जन्मदिन पर ☆

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बहुत पहले आदरणीय शरद जोशी जी “रचना”  संस्था के आयोजन में परसाई की नगरी जबलपुर में मुख्य अतिथि बनकर आए थे,हम उन दिनों “रचना ” के संयोजक के रूप में सहयोग करते थे।

“रचना “साहित्यिक सांस्कृतिक सामाजिक संस्था का मान था उन दिनों। हर रंगपंचमी पर राष्ट्रीय स्तर के हास्य व्यंग्य के ख्यातिलब्ध हस्ताक्षर आमंत्रित किए जाते थे। हम लोगों ने आदरणीय शरद जोशी जी को रसल चौक स्थित उत्सव होटल में रूकवाया था, “व्यंग्य की दशा और दिशा” विषय पर केंद्रित इस कार्यक्रम के वे मुख्य अतिथि थे।

व्यंग्य विधा के इस आयोजन के प्रथम सत्र में ख्यातिलब्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई जी की रचनाओं पर आधारित रेखाचित्रों की प्रदर्शनी का उदघाटन करते हुए जोशी जी ने कहा था- “मैं भाग्यवान हूं कि परसाई के शहर में परसाई की रचनाओं पर आधारित  रेखाचित्र प्रदर्शनी के उदघाटन का सुअवसर मिला.”

फिर उन्होंने परसाई की सभी रचनाओं को घूम घूम कर पढ़ा हंसते रहे और हंसाते रहे। ख्यातिलब्ध चित्रकार श्री अवधेश बाजपेयी की पीठ ठोंकी, खूब तारीफ की। व्यंग्य विधा की बारीकियों पर उभरते लेखकों से लंबी बातचीत की।

शाम को जब होटल के कमरे में वापस लौटे फिर दिल्ली के अखबार के लिए ‘प्रतिदिन’ कालम लिखा, हमें डाक से भेजने के लिए दिया। साहित्यकारों के साथ थोड़ी देर चर्चा की, फिर टीवी देखते देखते सो गए ।

आज उनका जन्मदिन है, वे याद आ गए…..

सादर नमन।

©  जय प्रकाश पाण्डेय, जबलपुर 

 

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मराठी साहित्य – आलेख ☆ चिमणीचा दात ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं। इसके  अतिरिक्त आप एक आदर्श  एवं सम्माननीय शिक्षिका भी हैं । आपके शैक्षणिक अनुभव अनायास ही हमें अपने बचपन के दिन याद दिला देते हैं। इस संक्षिप्त आलेख में हम अपने समय एवं वर्तमान समय के पलकों और बच्चों की बदलती मानसिकता के सामाजिक प्रभाव /दुष्प्रभाव का अवलोकन करते हैं। 
यह आलेख पालकों के माध्यम से उनके बच्चों के लिए है। आज के ही अंक में हम श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी की बच्चों के लिए “लू की आत्मकथा” प्रकाशित कर रहे हैं।  आशा है आप सबको पसंद आएगी। हाँ अपने बच्चों/पोते/पोतियों /नाती/नातियों को यह कथा सुनाना मत भूलिएगा।  श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी एक प्रसिद्ध बाल साहित्यकार हैं।)

 

? चिमणीचा दात ?

 

आजकाल डब्यात पोळी भाजी देण्यापेक्षा बरेचसे पालक मुलांना पाच दहा रूपये  देण्यात धन्यता मानतात मग ही मुल चीप्स कुरकूरे इत्यादी फास्टफूड आणून खाण्यात नुसती धन्यताचा नव्हे तर श्रीमंचे लक्षण समजतात कुणाला एक कण न देता खातात तेंव्हा आपले लहानपणीचे दिवस आठवाल्या शिवाय राहात नाहीत. एखादा चिंचेचा आकडा, एखादा आवळा कधीकधी एकच चिंचोका सुद्धा चिमणीच्या दाताने दोनचार जणांना नक्कीच पुरत असे. तो देताना देणाऱ्याला कधीही श्रीमंतीचा गर्व नसायचा किंवा खाणार्यालाही कधीच गरीबी जाणवत नसे. प्रत्येक मित्रा जवळची प्रत्येक वस्तू सर्वांनाच आपली वाटायची. अगदी पूर्ण बिस्कीट पुडा एकट्याने खाल्ला आणलेले पूर्ण फळ एकट्याने फस्त केले अससस अगदी अभावानेच होई.

जी वस्तू चिरून मोडून फोडून देता येत नसे ती नक्कीच चिमणीच्या दाताने दिली जाई कारण आई सांगायची एकट्याने खाल्ले  की वटवाघूळच्या जन्माला जाव लागत आणि मग असं एकट दिवसभर लटत राहावं लागतं.  तेंव्हा ते अगदी मनोमन पटायचं कारण वटवाघुळाला कधी कुणी  मजा करताना मित्रात बागडताना पाहिलेले नव्हते. म्हणूनच वाटून खाण्याची संस्कृती निर्माण झाली.परंतु वरचेवर ही संस्कृती लोप पावताना दिसते.

 

©  रंजना मधुकर लसणे✍

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 34 – ☆बाल-साहित्य विशेषांक☆ हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 34 ☆बाल साहित्य विशेषांक ☆          

कई बार अनायास ही कुछ संयोग बन जाते हैं। हम प्रयास अवश्य करते हैं किन्तु, ईश्वर हमें संयोग प्रदान करते हैं और हम मात्र माध्यम हो जाते हैं।  अब इस अंक को ही लीजिये।  कुछ रचनाएँ ऐसी आईं जिन्होने इस अंक को लगभग बाल साहित्य विशेषांक का स्वरूप दे दिया। कहते हैं कि –  बाल साहित्य का सृजन अत्यंत दुष्कर कार्य है। इसके लिए हमें अपने बचपन में जाना होता है। शायद इसीलिए विश्व में बाल साहित्य का अपना एक अलग स्थान है। फिर एक पालक और दादा/दादी/नाना/नानी के तौर पर हम कई बाल सुलभ प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाते जिनके उत्तर बाल साहित्य में छुपे  रहते हैं।

आज के अंक में  दैनिक स्तम्भ श्रीमद भगवत गीता के पद्यानुवाद केअतिरिक्त पढ़िये निम्न विशिष्ट रचनाएँ –

  • लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में अंकित प्रथम माता-पुत्री द्वय सुश्री नीलम सक्सेना चन्द्र एवं सुश्री सिमरन चंद्रा जी द्वारा रचित अङ्ग्रेज़ी काव्य संग्रहWinter shall fade” की कविता Dreams ☆
  • बाल-साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी की बाल कथा ? लू की आत्मकथा ?
  • प्रसिद्ध मराठी साहित्यकार श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी का मराठी आलेख ? चिमणीचा दात ?
  • प्रसिद्ध हास्य योग प्रशिक्षक, ब्लॉगर, एवं प्रेरक वक्ता श्री जगत सिंह बिष्ट जी की रचना-प्रयोग  ☆ Laughter Yoga Among School Girls in India ☆

आप इसे संयोग कह सकते हैं किन्तु, कई बार हमारे कुछ प्रयोग संयोग बन जाते हैं। विगत में हमने ऐसे ही कुछ विशिष्ट विषयों पर विशेषांक प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। हम साहित्य में ऐसे और प्रयोग करने हेतु कटिबद्ध हैं।

यह संभवतः पहली वेबसाइट है जो आपको हिन्दी, मराठी एवं अङ्ग्रेज़ी में प्रतिदिन लगभग 4 से 6 सकारात्मक रचनाएँ प्रस्तुत करती है। आपके  अपने मंच e-abhivyakti को औसतन 250 से 300+ लेखक/पाठक प्रतिदिन पढ़ते हैं और अब तक 19000 से अधिक विजिटर्स पढ़ चुके हैं। आपके सुझाव और रचनाएँ e-abhivyakti को सतत नए आयाम प्रदान करते हैं जिसके लिए हम आपके आभारी हैं।

हम प्रयासरत हैं कि आपको तकनीकी रूप से आगामी अंकों को नए संवर्धित स्वरूप में प्रस्तुत किया जा सके।

इस यात्रा में मुझे अक्सर मजरूह सुल्तानपुरी जी की निम्न पंक्तियाँ याद आती हैं:

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर

लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया

आज बस इतना ही।

 

हेमन्त बवानकर 

21 मई 2019

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English Literature – Poetry – ☆ Dreams ☆– Ms Neelam Saxena Chandra & Ms Simran Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

 

(We reproduce this poem taken from the famous poetry collection ‘Winter Shall Fade’ that finds a place in Limca Book of Records for being the first book co-authored by a mother-daughter duo (Ms. Neelam Saxena Chandra ji and Ms Simran Chandra ji ) published by Omji Publishers.) 

Amazon Link: Winter Shall Fade’

 

☆ Dreams ☆

 

I embrace my dreams

Just like the moon

Embraces the moonlight

Or the veil of night

Embraces the stars.

 

I fall in love with them

Little by little

And they come to me

Bit by bit

Kissing me

Hugging me

Skimming me,

As if drizzling upon me

And covering me with affection,

Percolating like fragrance

All over my being

And singing

Some happy numbers.

 

Keep dreaming

For

The relationship

Between dreams and self

Is the most fulfilling…

 

© Ms Neelam Saxena Chandra and Ms. Simran Chandra, Pune 

 

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी – बाल कथा ? लू की आत्मकथा ? श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का e-abhivyakti में स्वागत है।  हम श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी के रूप में एक बाल साहित्यकार को पाकर गौरवान्वित हैं। आपकी विशेष उपलब्धियां हैं  वर्ष – 2008 में 24, 2009 में 25 व 2010 में 16 बाल-कहानियों का 8 भाषा में प्रकाशन है। इसके अतिरिक्त आप अपने बाल साहित्य के लिए कई सम्मनों/अलंकरणों से अलंकृत हैं।हमें  भविष्य में आपकी चुनिन्दा रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी।)

 

? लू  की आत्मकथा ?

 

मैं लू हूँ.  लू यानी गरम हवा. गरमी में जब गरम हवा चलती है तब इसे ही लू चलना कहते हैं. क्या आप मुझे जानते हो ? नहीं ना ? तो चलो, मैं आज अपने बारे में बता कर आप को अपनी आत्मकथा सुनाती हूँ.

अक्सर गरमी के दिनों में गरम हवा चलती है. इसे ही लू चलना कहते हैं. इस वक्त वातावरण का तापमान 40 डिग्री से अधिक हो जाता है. यह तापमान आप के शरीर के तापमान 37 डिग्री से ​अधिक होता है.

इस ताप पर शरीर की स्वनियंत्रित तापमान प्रणाली शरीर का काम ठीकठाक ढंग से  करती है. इस का काम शरीर का तापमान 37 डिग्री बनाए रखना होता है. यदि वातावरण का तापमान इस ताप से ज्यादा हो जाता है और आप लोग गरमी में बाहर निकल कर खेलते हैं तो तब तुम्हारे शरीर की यह प्रणाली सक्रिय हो जाती है. इस वक्त यह शरीर से पसीना बाहर निकालती रहती है ताकि तुम्हारे शरीर का तापमान 37 डिग्री बनाए रखा जा सकें.

पसीना आने से शरीर का तापमान सामान्य हो जाता है. पसीना हवा से सूख जाता है. इस से शरीर में पानी की कमी होने लगती है. इस वक्त आप को प्यास लगने लगती है.यदि आप समयसमय पर पानी पीते हो तो शरीर में पानी की पूर्ति हो जाती है.

कभी कभी इस का उल्टा हो जाता है. आप समय समय पर पानी नहीं पीते हो तो शरीर में पानी की कमी हो जाती है. इस दौरान धूप में खेलने या गरम हवा के संपर्क में आने से और शरीर में पानी की कमी होने से वह अपने सामान्य तापमान को बनाए रखने के लिए अधिक पसीना निकाल नहीं पाता है. इस के कारण शरीर का तापमान बढ़ जाता है. शरीर के इस तरह तापमान बढ़ने को लू लगना कहते हैं.

लू लगने का आशय आप के शरीर का तापमान अधिक बढ़ जाना होता है. इस दौरान शरीर अपने तापमान को बनाए रखने में असमर्थ हो जाता है. इस से शरीर को बहुत नुकसान होता हैं. शरीर में पानी की कमी हो जाती है. इस से आप का खून गाढ़ा हो जाता है. जिस से रक्त संचरण में रूकावट आती है. इस रूकावट की वजह से चक्कर आना, उल्टी होना, बेहोशी होना, आंखे जलना जैसी शिकायत होने लगती है. यह सब लू लगने के लक्षण होते हैं.

यदि लू लगने के बाद भी धूप में रहा जाए तो कभी कभी इनसान की मृत्यु हो जाती है. इस कारण गरमी में लू की वजह से कई जनहानि होती रहती है. मगर, आप सोच रहे होंगे कि मैं यानी लू बहुत खतरनाक होती हूं. नहीं भाई, आप का यह सोचना गलत है. मेरे चलने से ही समुद्र के पानी का वाष्पन होता है. इसी की वजह से बरसात आने की संभावना पैदा होती हैं. यदि मैं न होऊं तो आपके बहुत सारे काम रूक जाए.

वैसे आप कुछ सावधानियां रख कर मुझे से बच सकते हो. आप चाहते हो कि मैं आप को नुकसान नहीं पहुंचाऊं तो आप को कुछ बातों का ध्यान रखना होगा. गरमी के दिनों में खूब पानी पी कर बाहर खेलना चाहिए. जब भी बाहर जाओ तब सिर पर सफेद कपड़ा या टोपी लगा कर बाहर जाओं. दिन के समय सीधी धूप में न रहो. खूब पानी या तरल पदार्थ पी कर तुम मुझ से और मेरे प्रभाव से बच सकते हो.

बस ! यही मेरी छोटीसी आत्मकथा हैं. यह तुम्हें अच्छी लगी होगी. मैं समझती हूं कि अब आप मुझे अच्छी तरह से समझ गए होंगे. मैं ठीक कह रही हूं ना ?

हाँ. अब ज्यादा गरदन मत हिलाओं. मैं समझ गई हूं कि तुम समझ गए हो. इसलिए अब मैं चलती हूं. मुझे अपने जिम्मे के कई काम करना हैं. कहते हुए लू तेजी से चली गई.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  [email protected]

मोबाइल 9424079675

 

 

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga Among School Girls in India ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Laughter Yoga Among School Girls in India

One week, we had the most satisfying and fulfilling experience in our journey of Laughter Yoga. We gave a presentation on Laughter Yoga before 100 girl students in the age group of 9 to 15 years and their teachers at Sri Sarada Rama Krishna Misson School,Indore.. The connect was instant and the atmosphere turned ethereal within a few moments.

Earlier, the Principal of the school had shared with us that the students were finding it difficult to concentrate on their studies and appeared sad, tired and depleted of energy. She felt sad that the children were not cheerful at all and faced a lot of stress. When we told her about the benefits of Laughter Yoga, she readily agreed to give it a try in the school.

The Principal and the Teachers were amazed by the simplicity, instant impact and tremendous trans-formative power of Laughter Yoga. They observed that the children listened to the directions given to them with rapt attention and showed a great sense of discipline during the exercise routine. The children enjoyed the session to the hilt especially Milk Shake Laughter, Mobile Laughter, Silent Laughter and Follow The Leader game.

The Principal said she really did not have enough words to thank us for making the children so joyous and exuberant. She would like her teachers to be trained as Laughter Leaders by us soon so that the children could have their daily dose of laughter medicine. We are feeling really content on being a medium for bringing joy in the lives of little school girls.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

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