हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ तन्मय साहित्य – # 9 – कौन दूध इतना बरसाता है? ☆ – डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। 

कुछ दिनों से कई शहरों में बड़े पैमाने पर सिंथेटिक दूध, नकली पनीर, घी तथा इन्ही नकली दूध से बनी खाद्य सामग्री, छापेमारी में पकड़ी जाने की खबरें रोज अखबार में पढ़ने में आ रही है। यह कविता कुछ माह पूर्व “भोपाल से प्रकाशित कर्मनिष्ठा पत्रिका में छपी है। इसी संदर्भ में आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  कविता   “कौन दूध इतना बरसाता है?। )

 

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 9 ☆

 

☆ कौन दूध इतना बरसाता है? ☆  

 

सौ घर की बस्ती में

कुल चालीस गाय-भैंस

फिर इतना दूध कहाँ से

नित आ जाता है।

 

चार, पांच सौ के ही

लगभग आबादी है

प्रायः सब लोग

चाय पीने के आदि है

है सजी मिठाईयों से

दस-ग्यारह होटलें

वर्ष भर ही, पर्वोत्सव

घर,-घर में, शादी है।

नहीं, कहीं दूध की कमी

कभी भी पड़ती है,

सोचता हूँ, कौन

दूध इतना, बरसाता है

सौ घर की………….।

 

शहरों में सजी हुई

अनगिन दुकाने हैं

दूधिया मिष्ठान्नों की

कौन सी खदाने हैं

रंगबिरंगे रोशन

चमकदार आकर्षण

विष का सेवन करते

जाने-अनजाने हैं।

जाँचने-परखने को

कौन, कहाँ पैमाने

मिश्रित रसायनों से

जुड़ा हुआ, नाता है

सौ घर की……….।

 

नए-नए रोगों पर

नई-नई खोज है

शैशव पर भी,अभिनव

औषधि प्रयोग है

अपमिश्रण के युग में

शुद्धता रही कहाँ

विविध तनावों में

अवसादग्रस्त लोग हैं।

मॉलों बाजारों में

सुख-शांति ढूंढते

दर्शनीय हाट,

ठाट-बाट यूँ दिखाता है

सौ घर की बस्ती में….।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – आलेख – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि  –  कल्पनालोक – धरती का स्वर्ग ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के कटु अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ संजय दृष्टि  –  कल्पनालोक – धरती का स्वर्ग

……हिंदी की बात छोड़ दीजिए। कल्पनालोक से बाहर आइए। हिंदी कभी पढ़ाई-लिखाई, एडमिनिस्ट्रेशन, डिप्लोमेसी की भाषा नहीं हो सकती। हिंदी एंड इंग्लिश का अभी जो स्टेटस है, वही परमानेंट है…।

 

उसकी बात सुनकर मेरी आँखों में चमक आ गई। यह वही शख्स है जिसने कहा था,…जम्मू एंड कश्मीर की बात छोड़ दीजिए। जे एंड के का अभी जो स्टेटस है, वही परमानेंट है…।

 

देश उम्मीद से है।

आपका दिन उम्मीद से भरा हो। शुभ प्रभात।

?????

 

©  संजय भारद्वाज , हिन्दी आंदोलन, पुणे

9890122603

[email protected]

( 5 अगस्त 2019 को सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक प्रस्तुत किये जाने से एक दिन पहले, 4 अगस्त को प्रातः 5:20 पर जन्मी रचना।)

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – ☆ दृष्टिकोण ☆ – श्री गोपाल सिंह सिसोदिया ‘निसार’

श्री गोपाल सिंह सिसोदिया ‘निसार’

 

(श्री गोपाल सिंह सिसोदिया  ‘निसार ‘ जी एक प्रसिद्ध कवि, कहानीकार तथा अनेक पुस्तकों के रचियता हैं। इसके अतिरिक्त आपकी विशेष उपलब्धि ‘प्रणेता संस्थान’ है जिसके आप संस्थापक हैं। आज प्रस्तुत है  बेटे और बेटी में अंतर जैसी एक सामाजिक विचारधारा पर आधारित कहानी बेटियाँ ।)

☆ बेटियाँ ☆

 

अर्पणा दूसरी बार माँ बनने वाली थी। उसकी सासू माँ, “स्नेहा” पिछले नौ माह से एक ही रट लगाए हुए थी, “बहू, इस बार पोती नहीं,मुझे पोता चाहिये, मैंने तुझसे पहले ही कह दिया है!”

“माँ जी, यह तो ऊपर वाला ही जानें कि आपको पोता मिलेगा या पोती, इस पर मेरा क्या वश है।” अर्पणा का उत्तर होता।

आखिर वह घड़ी भी आ गयी, जब अर्पणा को प्रसव पीड़ा प्रारम्भ हो गयी और उसे अस्पताल ले जाया गया। साथ में उसका पति ‘माधव’ और स्नेहा भी थी। वह पीड़ा से दोहरी हुई जा रही थी, अतः नर्स ने उसे तुरंत वील-चेयर पर बिठाया और सीधे लेबर-रूम की ओर तेज़ी से ले जाने लगी। पीछे-पीछे स्नेहा भी चली जा रही थी। उसने लेबर-रूम के दरवाज़े के बाहर ही रुककर एक बार पुनः अर्पणा को स्मरण कराया कि उसे इस बार पोता ही चाहिये। परन्तु अर्पणा को इतनी सुध कहाँ थी कि वह स्नेहा की बात का उत्तर देती, अतः वह चुप रही।

स्नेहा और उसका पुत्र माधव बड़ी उत्सुकता से शुभ समाचार की प्रतीक्षा कर रहे थे। आखिर वह घड़ी आ गयी, जब अंदर से नर्स शुभ समाचार के रूप में रुई-सी मुलायम और अतिसुन्दर बालिका को गोद में लेकर उपस्थित हुई और चहकती हुई बोली, “बधाई हो, बेटी हुई है, लाइये इनाम दीजिये!”

स्नेहा ने सुनते ही अपना माथा ठोक लिया और बड़बड़ाती हुई गैलरी में एक ओर चली गयी।  माधव ने शर्माशर्मी पाँच सौ का नोट निकाल कर नर्स को दे दिया।

“बस पाँच सौ?” नर्स ने कहा।

“अरे, और क्या तेरे नाम अपनी पूरी सम्पत्ती लिख दें, कौन-सा लाल जना है उसने? और हाँ, उसका बच्चे बंद करने वाला ऑपरेशन मत कर देना!” स्नेहा ने गुस्से से लाल-पीली होते हुए नर्स से कहा। नर्स बेचारी चुपचाप अंदर चली गयी।

लगभग एक-डेढ़ घंटे के पश्चात् मूर्छित अवस्था में अर्पणा को वार्ड में लाया गया। जैसे ही अर्पणा की मूर्छा टूटी, स्नेहा ने उसपर प्रश्न तथा शिकायतों की झड़ी लगा दी। उसे सबसे अधिक गुस्सा इस बात पर था कि अर्पणा ने ऑपरेशन क्यों करवाया। अर्पणा ने मुस्कुराते हुए कहा,

माँ जी, आज बेटियाँ बेटों से अधिक ज़िम्मेदार हैं। वे किसी भी प्रकार बेटों से कम नहीं हैं।  इसके अलावा इसकी क्या गारंटी थी कि अगली बार बेटा हो ही जाता? मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि मुझे ईश्वर ने दो-दो परियाँ दी हैं। इसे देखिये तो सही, आपको कितने प्यार से देख रही है! क्या आपको इसपर प्यार नहीं आ रहा?”

“बहू, तू ने मेरी आँखें खोल दीं, मैं पोते पाने की चाह में इस नन्ही परी के साथ वास्तव में अन्याय कर रही थी।” कहते हुए स्नेहा ने नवजात बालिका को प्यार से गोद में उठा लिया।

 

© श्री गोपाल सिंह सिसोदिया  ‘निसार’ 

दिल्ली

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – बाल कथा – ☆ किस्सा सियार और जुलाहे का ☆ – डॉ. कुंवर प्रेमिल

डॉ कुंवर प्रेमिल

 

(आज प्रस्तुत है डॉ कुंवर प्रेमिल जी  की एक  बाल कथा “किस्सा सियार और जुलाहे का “। ) 

 

☆ बाल कथा – किस्सा सियार और जुलाहे का

 

एक जुलाहा था।

हाँ…..

वह काम की तलाश में एक जंगल से होकर गुजर रहा था। उसने अपने कंधे पर रूई धुनकने वाला पींजन और हाथ में उसका मुठिया पकड़ रखा था।

हाँ….

बीच रास्ते में उसे एक सियार मिल गया।  अचानक दोनों का आमना-सामना हुआ तो सियार डर गया।  कहीं  जुलाहा अपने हाथ में पकड़े मुठिये से मारने लगा तो!

हूँ….

उसका दिमाग चला, उसने जुलाहे की शान में एक कविता पढ़ी –

हाँ …. कौन सी कविता पढ़ी?

 

कांधे धनुष हाथ लिए बाना (बाण)

कहाँ चले दिल्ली सुल्ताना।

 

जुलाहे  ने अपनी तुलना सुल्तान से करते देख सियार को बड़ी प्यारी-प्यारी नज़रों से देखा, वाह!  सियार तो बड़ा गुणी दिखाई देता है।

हूँ….

जुलाहे ने भी सियार की शान में कविता पढ़ी –

 

वन के राव (राजा) बेर  का खाना।

 

 

© डॉ कुँवर प्रेमिल 
एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मोबाइल 9301822782

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ झूला लागो कदम की डारी ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आज प्रस्तुत है आदरणीय श्री संतोष नेमा जी की  श्रावण मास पर  विशेष कविता  “झूला लागो कदम की डारी ।”)

 

☆ झूला लागो कदम की डारी ☆ 

झूला लागो कदम की डारी ।

झूलें मोहन मुरलिया धारी ।।

झूला लागो कदम की डारी ।

 

कान्हा हँस हँस सबहिं चिढ़ावें ।

राधा बैठी बड़ी सकुचावें ।।

श्याम तक रये अपनी पारी ।

झूला लागो कदम की डारी ।।

 

ग्वाल बाल संग खेलन आवें ।

गोपियों को वो खूब सतावें ।।

करें हास्य नटवर गिरधारी ।

झूला लागो कदम की डारी ।।

 

जब मनिहारिन बने मनमोहन ।

नारी भेष सुंदर अति सोहन ।।

चूड़ियां पहन लईं अतकारी ।

झूला लागो कदम की डारी ।।

 

गए परदेश मोरे सांवरिया ।

नैनन बरसे कारी बदरिया ।।

चिढ़ा रही जा बदरिया कारी ।

झूला लागो कदम की डारी।।

 

सावन फुहारें मनहिं भिगातीं ।

गोपियाँ सब मिल कजरी गातीं ।।

“संतोष”शरण पड़ो सब हारी ।

झूला लागो कदम की डारी ।।

 

झूला लागो कदम की डारी ।

झूलें राधा रसिक बिहारी

झूला लागो कदम की डारी

 

@ संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 11 – मुक्त ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

 

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी  बेबाक  कविता मुक्त संवेदनशील होकर मात्र कुछ शब्दों को  छंदों बंधों में जोड़कर, उनकी तुकबंदी कर अथवा अतुकान्त गद्य में स्वांतः सुखाय कविता की रचना कर क्या वास्तव में सार्थक कविता की रचना हो सकती है? यह वाद का विषय हो सकता है।  मैं निःशब्द हूँ। सुश्री प्रभा जी द्वारा तथाकथित साहसी अभिनेत्री एवं  कवियित्री के संदर्भ से कविता के सांकेतिक जन्म का साहसी प्रयास पूर्णतः सार्थक रहा है। यह एक शाश्वत सत्य है कि – जिन कलाकारों और साहित्यकारों ने सामाजिक बंधनों को तोड़कर मुक्त अभिव्यक्ति का साहस किया है, उन्होने इतिहास ही रचा है। इस संदर्भ में मुझे प्रसिद्ध चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन जी का वक्तव्य याद आ रहा है जिसमें उन्होने कहा था  कि  – “कोई भी कलाकार या साहित्यकार अपनी कला अथवा साहित्यिक अभिव्यक्ति का दस प्रतिशत ही अभिव्यक्त कर पाता हैं, शेष नब्बे प्रतिशत उनके साथ ही  दफन हो जाती है। इस बेबाक कालजयी रचना के लिए सुश्री प्रभा जी की कलम को पुनः नमन।  

आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 11 ☆

 

☆ मुक्त ☆

 

तो म्हणाला,

“मला नाही  आवडत कविता बिविता,शेरो शायरी…..”

 

ती नाही हिरमुसली,

तिनं बंद केला,मनाचा तो कप्पा!

ठरवलं मनाशी,

नाही लिहायची कविता  इथून पुढे…..

 

फक्त संसार  एके संसार……

भांडी कुंडी चा खेळ ही….

खेळलोय ना लहानपणी…..

बाहुला बाहुली चं लग्न ही लावलंय….

 

लग्न हेच  इतिकर्तव्य हेच बिंबवलं

गेलं लहानपणापासून…

 

मग ती “नाच गं घुमा” चा खेळ

खेळत राहिली…

पण नाही रमली.

कधीतरी वाचलं, विकत घेऊन,

मल्लिका अमर शेख चं,

“मला  उध्वस्त व्हायचंय”

 

दीपा साही चा,

*माया मेमसाब*

ही पाहून आली…

 

उमजला बाईपणाचा अर्थ…

आणि तिची सनातन दुःखंही…

 

तिच्या गर्भात गुदमरून गेलेली कविता  अचानक बाहेर  आली..

फोडला तिने टाहो….

स्वतःच्या  अस्तित्वाचा…

 

तेव्हा पासून,

ती होतेय व्यक्त…

 

अवती भवती च्या पसा-यातून…

केव्हा च झालीय मुक्त…..

 

© प्रभा सोनवणे,  

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पुणे – ४११०११

मोबाईल-9270729503

 

Please share your Post !

Shares

आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – पंचम अध्याय (1) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पंचम अध्याय

(सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय)

 

अर्जुन उवाच

सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।

यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्‌ ।।1।।

 

अर्जुन ने कहा

कभी कर्म संयास की कभी योग की बात

इनमें हित कर जो मुझे,कहें सुनिश्चित नाथ।।1।।

 

भावार्थ :  अर्जुन बोले- हे कृष्ण! आप कर्मों के संन्यास की और फिर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं। इसलिए इन दोनों में से जो एक मेरे लिए भलीभाँति निश्चित कल्याणकारक साधन हो, उसको कहिए।।1।।

 

Renunciation of actions, O Krishna, Thou praisest, and again Yoga! Tell me conclusively which is the better of the two. ।।1।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

Please share your Post !

Shares

English Literature – Book-Review/Abstract – ☆ Winning Strategies for Parents ☆ – Ms. Gayatri Kalra Sehgal

Ms. Gayatri Kalra Sehgal

An accomplished artist and a passionate educationist; Ms. Gayatri Kalra Sehgal conducts academic seminars, intensive workshops on child development, curriculum design, effective communication, train the trainer, etc., to help parents, educators, curriculum designers, entrepreneurs understand specific and more profound requirements of children.

She has set up a day care centre and two schools, first as the principal and later as a dean, and carefully designed the academic curricula. She innovated and revolutionized a novel way of writing the report cards – ‘Child’s Intelligence Profile.’

Her five books are an extensive collection of her unique experiences and her vision to inspire the global leaders for tomorrow.

 

??‍? Winning Strategies for Parents – Ms. Gayatri Kalra Sehgal ??‍?

Helping Your Child Excel at Home and School : 

Parenting is never perfect; imperfections are beautiful, but inadequacies are not! ‘Winning Strategies for Parents’ is a ready reckoner that helps emotionally intelligent parents to channelize the substantial capacity programmed into their child by birth well into the correct direction at the right time.

The author helps parents and educators of the present age to transform with renewed understanding and expanded paradigms of parenting a genius; the child!

The author offers solutions that work and empowers parents to enable the child and remove the label given to the child by combining personal growth methods with innovative parenting techniques of the present era.

 

Books by Ms. Gayatri Kalra Sehgal:

  1. WINNING STRATEGIES FOR PARENTS – Helping Your Child Excel at Home and School
  2. SUPER CHILD! – Unlocking the Secrets of Working Memory
  3. BEING A MATHEMATICIAN – Mastering Secrets of Mental Math
  4. BEING A BRILLIANT THINKER – Mastering Intelligent Thinking Skills
  5. BEING A CREATIVE GENIUS – Mastering Activities that Inspire Creativity

Literary Journey

My literary journey began when I started teaching rather learning with pre-schoolers. I felt the urgent requirement to adequately understand each child at his or her level of understanding.

Concurrently, the academic curricula needed to be re-focused to be ‘child-led’ rather than ‘teacher-led’ to carefully nurture their unconditional love for learning. This required parents and teachers to be ‘sensitized’ with deeper knowledge and profound understanding about the child. To bridge the increasing gap between the key facilitator and the active learners; required thoughtful attention to raise children in a nurturing and secure environment to promote an atmosphere rich in love, respect, gratitude, self-discipline, self-reliance, responsibility and leadership.

This insight marked the turning point which made me resign as a Dean and put pen to paper. I experienced the urgent need to present this insight to the world so that we de-emphasize the focus from score-based results and shift the primary focus to a deeper and more profound understanding of learning.

 

Excerpt (Chapter # 9 – Expectations):

 

Begin by equating your ‘expectations’ with the facts of your child’s development (Chapter-2, Child’s Development Milestones). Check the current stage of your child’s development and the learning styles of your child (Chapter-3, Learning Preferences-Know ‘Yourself’ and ‘Your Child’). Now, compare your expectations with the facts about your child and question yourself if your expectations are well within the parameters of reason. Weed out the expectations that hold no meaning for your child at his or her stage of development.

Learning is innate for the child, and the child continues building on experiences over his or her lifetime. If the child’s learning experiences are good, it adds to his or her life; but think about the reverse situation!

Will the ‘unrealistic’ expectations help the child become a better person?

Or, is there a ‘miss?’

Think and think again, if your expectations are ‘that’ important; that you are prepared to risk the lifetime-relationship that exists between you and your child.

 

Links to the Book 

Amazon Links :

Books of Ms. Gayatri Kalra Sehgal

Winning Strategies for Parents- Helping Your Child Excel at Home and School

 

Flipkart Link : 

Winning Strategies for Parents- Helping Your Child Excel at Home and School

itunes Link :
Winning Strategies for Parents- Helping Your Child Excel at Home and School

Google Play Link :
Winning Strategies for Parents- Helping Your Child Excel at Home and School

Kobo Link :
Winning Strategies for Parents- Helping Your Child Excel at Home and School

Kobo eBook Link : 

Winning Strategies for Parents- Helping Your Child Excel at Home and School

Notion Press Link :

Winning Strategies for Parents- Helping Your Child Excel at Home and School

Google Play Link : 

Winning Strategies for Parents- Helping Your Child Excel at Home and School

Goodreads Link : 

Author Ms. Gayatri Kalra Sehgal 

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 3 ☆ भूल जाते हैं ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा ☆

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “भूल जाते हैं”। )

 

साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 3  

 

☆ भूल जाते हैं ☆

 

जो हुआ, सो हुआ, उसे वहीँ ख़त्म कर आते हैं

आओ हम-तुम मिलकर, रंजिश सब भूल जाते हैं

 

सफ़र तो अनमोल था; कुछ फूल, कुछ कांटे थे

चलो, हम खुशबुओं में फिर सारोबार हो जाते हैं

 

आओ पास बैठो, सीने से लिपट जाना चाहती हूँ

तुम्हारे साथ से मौसम के तेवर भी बदल जाते हैं

 

तुम ठुड्डी पकड़कर मेरा चेहरा ज़रा सा उठा लेना

इस ख़याल मात्र से दरख़्त भी गुनगुना जाते हैं

 

ज़िंदगी चंद लम्हों की, न जाने कब गुज़र जाए

अनमोल हैं वो पल जो साथ हैं, उन्हें जी जाते हैं

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ काश्मीर दर्शन ☆ – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

 

(प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित  पृथ्वी के स्वर्ग – काश्मीर पर एक अभूतपूर्व कविता “काश्मीर दर्शन”।) 

 

 ☆ काश्मीर दर्शन ☆

 

नभ चुम्बी हिमाच्छादित पर्वत शिखरों से अति भासमान

भारत माता के दिव्य भाल काश्मीर तुम हो अनुपम विधान

 

तुम इस धरती पर स्वर्ग सुखद अति शांति दाई सौंदर्य धाम

हर कंण हर वन हर वृक्ष नदी हर जलधारा मोहक ललाम

 

तुम प्रकृति सुंदरी के निवास पावन आकर्षक  प्रभावन

तुम परम अलौकिक सुंदरतम रूप तुम्हारा कांतिमान

 

दिखता नहीं भू भाग कोई जो हो तुम सा सुंदर महान

हर छोर बिछी सुखद हरीतिमा नीचे नीला आसमान

 

गरिमा गौरव से भरे हुए दिखते सैनिक से देवदार

नभतल में मनमोहक घाटी जिनमें बहते निर्झर हजार

 

गिरि शिखर शोभते हैं शिव से जो तन पर धारे भस्म राग

जो निर्निमेष नित शांत नयन जिन में दिखता गहरा विराग

 

दर्शक के मन में श्रद्धा का भर जाता लखकर सहज भाव

हर यात्री पर परिवेश सदा भर देता है पावन प्रभाव

 

पावनता में है सच्चा सुख आनन्द भरा जिसमें अनन्त

सदियों से इससे प्रकृति की गोद में बसते आए साधु संत

 

 

मनमोहक छवि के विविध रूप हर लेते मन के दुख तमाम

ज्यों सोनमर्ग गुलमर्ग झील डल और आकर्षक पहलगांव

 

सरिता वन पर्वत पवन गगन सब देते हैं संदेश मौन

मन के पवित्र स्नेह भाव बिन सुख दे सकता है कहां कौन

 

नित हरी-भरी सुखदाई परम पावन पवित्र है प्रकृति गोद

जिसका दर्शन स्पर्श सदा हर मन  में भर देता प्रमोद

 

सारा पावन परिवेश प्रकृति सब नदी वृक्ष धरती आकाश

देते हैं शुभ संदेश यही सब हिलमिल जग में रहो साथ

 

केसर चैरी अखरोट सेव के बहुत धर्मी हम वृक्ष बाग

धरती मां से पा जीवन रस रहते सुख से सब भेद त्याग

 

हम  भिन्न जाति  और भिन्न रंग पर हममें न कोई भेद

तुम बुद्धिमान मानव आपस में लड़ क्यों करते नए छेद

 

मानव तू भी तज द्वेष द्वंद छल छद्म और कलुषित विचार

अपने अंतरतम की सुन पुकार स्नेह भाव रख बन उदार

 

क्यों फंसकर  विविध प्रलोभन में करता रहता नित नवल घात

है प्रेम भाव में शांति और सुख जो अनुपम  शिव का प्रसाद

 

ऊंचे हिम शिखरों पर ही जहां बसते हैं हिम शिव अमरनाथ

जिनके दर्शन के पुण्य लाभ हित  यात्रा करता देश  साथ

 

हर दिव्य  दृश्य अनमोल शांति शीतलता का मंजुल निखार

सब साथ सदा मिल दर्शक को आध्यात्मिकता में देते उतार

 

लगता यों जगत नियंता खुद है यहाँ प्रकृति में प्राणवान

मिलता नयनो को अनुपम सुख देखो धरती या आसमान

 

जग सब उलझन भूल जहाँ मन को मिलता पावन विराम

हे धरती पर अविरत स्वर्ग काश्मीर तुम्हें शत शत प्रणाम

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

Please share your Post !

Shares
image_print