हिन्दी साहित्य ☆ धारावाहिक उपन्यासिका ☆ पगली माई – दमयंती – भाग 15 ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

(प्रत्येक रविवार हम प्रस्तुत कर रहे हैं  श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रचित ग्राम्य परिवेश पर आधारित  एक धारावाहिक उपन्यासिका  “पगली  माई – दमयंती ”।   

इस सन्दर्भ में  प्रस्तुत है लेखकीय निवेदन श्री सूबेदार पाण्डेय जी  के ही शब्दों में  -“पगली माई कहानी है, भारत वर्ष के ग्रामीण अंचल में पैदा हुई एक ऐसी कन्या की, जिसने अपने जीवन में पग-पग पर परिस्थितिजन्य दुख और पीड़ा झेली है।  किन्तु, उसने कभी भी हार नहीं मानी।  हर बार परिस्थितियों से संघर्ष करती रही और अपने अंत समय में उसने क्या किया यह तो आप पढ़ कर ही जान पाएंगे। पगली माई नामक रचना के  माध्यम से लेखक ने समाज के उन बहू बेटियों की पीड़ा का चित्रांकन करने का प्रयास किया है, जिन्होंने अपने जीवन में नशाखोरी का अभिशाप भोगा है। आतंकी हिंसा की पीड़ा सही है, जो आज भी  हमारे इसी समाज का हिस्सा है, जिनकी संख्या असंख्य है। वे दुख और पीड़ा झेलते हुए जीवनयापन तो करती हैं, किन्तु, समाज के  सामने अपनी व्यथा नहीं प्रकट कर पाती। यह कहानी निश्चित ही आपके संवेदनशील हृदय में करूणा जगायेगी और एक बार फिर मुंशी प्रेमचंद के कथा काल का दर्शन करायेगी।”)

इस उपन्यासिका के पश्चात हम आपके लिए ला रहे हैं श्री सूबेदार पाण्डेय जी भावपूर्ण कथा -श्रृंखला – “पथराई  आँखों के सपने”

☆ धारावाहिक उपन्यासिका – पगली माई – दमयंती –  भाग 15 – कर्मपथ ☆

(अब  तक आपने पढ़ा  —- पगली किन परिस्थितियों से दो चार थी, किस प्रकार पहले नियति के क्रूर हाथों द्वारा नशे के चलते पति मरा।  फिर आतंकी घटना में उसका आखिरी सहारा पुत्र गौतम मारा गया जिसके दुख ने उसके चट्टान जैसे हौसले को तोड़ कर रख दिया। वह गम व पीड़ा की साक्षात मूर्ति   बन कर रह गई।  अब उस पर पागल  पन के दौरे पड़ने  लगे थे।  इसी बीच एक सामान्य सी घटना ने उसके दिल पर ऐसी चोट पहुचाई कि वह दर्द की पीड़ा से पुत्र की याद मे छटपटा उठी।  फिर एकाएक उसके जीवन में गोविन्द का आना उसके लिए किसी सुखद संयोग से कम न था।  इस मिलन ने जहाँ पगली के टूटे हृदय को सहारा दिया, वहीं गोविन्द के जीवन में माँ की कमी को पूरी कर दिया। अब आगे पढ़े——-—-)

गोविन्द जब पगली का हाथ थामे ग्राम प्रधान के अहाते में पहुंचा तो उसके साथ  दीन हीन अवस्था में एकअपरिचित स्त्री को देख सारे कैडेट्स तथा अधिकारियों की आंखें आश्चर्य से फटी रह गई।

लेकिन जब ग्राम प्रधान ने पगली की दर्दनाक दास्ताँन लोगों को सुनाया, तो लोगों के हृदय में उसके प्रति दया तथा करूणा जाग पड़ी। उसी समय उन लोगों नें पगली को शहर ले जाने तथा इलाज करा उसे नव जीवन देने का संकल्प ले लिया था,तथा लोग गोविन्द के इस मानवीय व्यवहार की सराहना करते थकते नहीं थे।  सारे लोग भूरिभूरि प्रशंसा कर रहे थे।

जब गोविन्द कैम्पस से घर लौटा तो वह अकेला नही, पगली केरूप में एक माँ की ममता भी उसके साथ थी। जहाँ एक तरफ पगली के जीवन में गौतम की कमी पूरी हो गई, वहीं एक माँ की निष्कपट ममता ने गोविन्द को निहाल कर दिया था

गोविन्द के साथ एक असहाय सा प्राणी देख तथा उसकी व्यथा कथा पर बादशाह खान तथा राबिया रो पड़े थे। लेकिन वे करते भी क्या?  लेकिन गोविन्द का इंसानियत के प्रति लगाव निष्ठा तथा खिदमतगारी ने राबिया तथा बादशाह खान के हृदय को आत्म गौरव से भर दिया था। उन्हें नाज हो आया था अपनी परवरिश पर।  गर्व से उनका सीना चौड़ा हो गया था । उन दोनों ने मिल कर पगली की देख रेख में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। पगली की सेवा के बाद उन्हें वही आत्मशांति मिलती, जो लोगों को पूजा के बाद अथवा खुदाई खिदमत के बाद मिलती है।

अब पगली को सरकारी अस्पताल के मानसिक रोग विशेषज्ञ को दिखाया गया।  अब इसे दवा इलाज का प्रभाव कहें या बादशाह खान, राबिया, गोविन्द  तथा मित्रों के देख रेख सेवा सुश्रुषा का परिणाम।  पगली के स्वास्थ्य में उत्तरोत्तर दिनों दिन बहुत तेजी से सुधार हो रहा था।

वे लोग पगली को एक नया जीवन देने में कामयाब हो गये थे।

मानसिक रूप से बिखरा व्यक्तित्व निखर उठाथा। अब पगली मानसिक पीड़ा के आघातों से उबर चुकी थी और एक बार फिर निकल पड़ी थी जिन्दगी की अंजान राहों पर अपनी नई मंजिल तलाशने अब उसने शेष जीवन मानवता की सेवा में दबे कुचले बेसहारा लोगों के बीच में बिताने का निर्णय ले लिया था, तथा मानवता की सेवा में ही जीने मरने का कठिन कठोर निर्णय ले लिया था। अपना शेष जीवन मानवता की सेवा में अर्पण कर दिया था।  अब उसका  ठिकाना बदल गया था।

वह उसी अस्पताल प्रांगण में बरगद के पेड़ के नीचे नया आशियाना बना कर रहती थी जहाँ से उसने नव जीवन पाया था।  अब वह “अहर्निश सेवा  महे” का भाव लिए रात दिन निष्काम भाव से बेसहारा रोगियों की सेवा में जुटी रहती।  उसने दीन दुखियों की सेवा को ही मालिक की बंदगी तथा भगवान की पूजा मान लिया था। अपनी सेवा के बदले जब वह रोगियों के चेहरे पर शांति संतुष्टि के भाव देखती तो उसे वही संतोष मिलता जो हमें मंदिर की पूजा के बाद मिलता है।

उसे उस अस्पताल परिसर में डाक्टरों नर्सों तथा रोगियों द्वारा जो कुछ भी खाने को मिलता उसी से वह नारायण का भोग लगा लेती तथा उसी जगह बैठ कर खा लेती। यही उसका दैनिक नियम बन गया था।  उसके द्वारा की गई निष्काम सेवा ने धीरे धीरे उसकी एक अलग पहचान गढ़ दी थी। वह निरंतर अपने कर्मपथ पर बढ़ती हुई त्याग तपस्या तथा करूणा की जीवंत मिशाल बन कर उभरी थी। मानों उसका जीवन अब समाज के दीन हीन लोगों के लिए ही था। अस्पताल के डाक्टर नर्स जहां मानवीय मूल्यों की तिलांजलि दे पैसों के लिए कार्य करते,  वहीं पगली अपने कार्य को अपनी पूजा समझ कर करती।  अस्पताल में जब भी कोई असहाय या निराश्रित व्यक्ति आवाज लगाता पगली के पांव अनायास उस दिशा में सेवा के लिए बढ़ जाते। वह सेवा में हर पल तत्पर दिखती।  अपनी सेवा के बदले उसने कभी किसी से कुछ नही मांगा।  वह जाति धर्म ऊंच नीच के भेद भाव से परे उठ चुकी थी। उसके हृदय में इंसानियत के लिए अपार श्रद्धा और प्रेम का भाव भर गया था। अगर सेवा से खुश हो कोई उसे कुछ देता तो उसे वह वहीं गरीबों में बांट देती तथा लोगों से कहती जैसी सेवा तुम्हें मिली है वैसी ही सेवा तुम औरों की करना।  इस प्रकार वह एक संत की भूमिका निर्वहन करते दिखती, अपनी अलग छवि के चलते उसके तमाम चाहने वाले बन गये थे, ना जाने वह कब पगली से पगली माई बन गयी कोई कुछ नही जान पाया। इस प्रकार उसे जीवन जीने की  नई राह मिल गई थी। जिसका दुख पीड़ा की परिस्थितियों से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था।


क्रमशः 
–—  अगले अंक में7पढ़ें  – पगली माई – दमयंती  – भाग – 16 – उन्माद

© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208

मोबा—6387407266

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #19 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #19 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

 

धारे तो धर्म है, वरना कोरी बात ।

सूरज उगे प्रभात है, वरना काली रात ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (9) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन )

 

संजय उवाच

एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरिः ।

दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम्‌ ।। 9।।

 

संजय बोला –

ऐसा कह श्री कृष्ण ने किये रूप विस्तार

दिखलाये फिर पार्थ को निज ऐश्वर्य निखार ।। 9।।

भावार्थ :  संजय बोले- हे राजन्‌! महायोगेश्वर और सब पापों के नाश करने वाले भगवान ने इस प्रकार कहकर उसके पश्चात अर्जुन को परम ऐश्वर्ययुक्त दिव्यस्वरूप दिखलाया।। 9।।

 

Having thus spoken, O king, the great Lord of Yoga, Hari (Krishna), showed to Arjuna His supreme form as the Lord!।। 9।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – त्यौहार ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

आज के ही अंक में प्रस्तुत है इस कविता का कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी का अंग्रेजी भावानुवाद “Festival”कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी हिंदी, संस्कृत, उर्दू  एवं अंग्रेजी भाषा के ज्ञाता हैं। कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को इस अतिसुन्दर भावानुवाद के लिए साधुवाद।  

☆ संजय दृष्टि  – त्यौहार  ☆

सड़क घेरकर खड़ी

दंगा नियंत्रक दल की गाड़ी,
चहलकदमी करते
रैपिड एक्शन फोर्स के जवान,
गाड़ियों के कागज़ात
जाँचती पुलिस,
वातावरण में अभ्यस्त
पर अबूझ-सी गंध…,
फिर कोई त्योहार
आने वाला है क्या?

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ म प्र के परिप्रेक्ष्य में संवैधानिक व्यवस्था – पुनरावलोकन जरूरी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  एवं “ पुस्तक  – चर्चा ”   में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है, लोकतंत्र  के सजग एवं निष्पक्ष विचारधारा के नागरिक एवं जागरूक लेखक के रूप में  श्री विवेक रंजन  जी का एक समसामयिक एवं विचारणीय आलेख  “म प्र के परिप्रेक्ष्य में संवैधानिक व्यवस्था – पुनरावलोकन जरूरी ”।  श्री विवेक रंजन जी  को इस समसामयिक एवं विचारणीय आलेख के लिए बधाई। इस आलेख  के सन्दर्भ में मैं  डॉ राजकुमार तिवारी  ‘सुमित्र ‘ जी की निम्न पंक्तिया  उद्धृत करना चाहूंगा, जिसका गंभीरता से पालन किया गया है । 

सजग नागरिक की तरह, जाहिर हो अभिव्यक्ति । 

सर्वोपरि है देशहित, उससे बड़ा न व्यक्ति ।। 

☆ आलेख – म प्र के परिप्रेक्ष्य में संवैधानिक व्यवस्था – पुनरावलोकन जरूरी  ☆

[श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी को विभिन्न सामाजिक विषयों पर लेखन के लिए राष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं। इस आलेख में व्यक्त विचार श्री विवेक रंजन जी के व्यक्तिगत विचार हैं।] 

हर छोटा बड़ा नेता जब तब संविधान की दुहाई देता है पर क्या हम सचमुच संवैधानिक व्यवस्था का पालन कर रहे हैं ? शायद बिलकुल नही। चुनाव को लेकर ही देखें, संवैधानिक व्यवस्था तो यह है कि पहले स्थानीय स्तर पर योग्य प्रतिनिधि चुने जावें, फिर वे प्रतिनिधि अपने अपने दलो में अपना मुखिया चुने। जो सबसे बड़ा दल हो उसका मुखिया सरकार बनाने का दावा प्रस्तुत करे। इस संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन करते हुये हमने शार्टकट यह प्रचलन में ला दिया है कि चुने गये प्रतिनिधियो का नेता चुना ही नही जाता। वह हाईकमान की मर्जी से थोपा जाता है या स्वयं अपने कद के चलते स्थापित हो जाता है। स्थानीय स्तर पर चुनाव उम्मीदवार की योग्यता पर नही इसी पूर्व घोषित मुखिया के व्यक्तित्व के नाम पर जीते जाते हैं।उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान जनता को सीधे प्रधानमंत्री चुनने का अधिकार ही नही देता। यह सीधे राष्ट्रपति चुनने वाली व्यवस्था अमेरिकन संविधान में है। इस शार्टकट के चलते स्थानीय जन प्रतिनिधि पार्टी के टिकिट पर संभावित बड़े नेता के नाम पर  चुन लिया जाता है। ऐसे वेव से चुने गये अयोग्य जन प्रतिनिधि बाद में या तो संसद में सोते हैं या कुछ काला पीला करने में लिप्त रहते हैं वे स्थानीय मुद्दो पर जन आकांक्षाओ को पूरा करने में असफल रहते हैं।रातो रात पार्टी बदलकर आये लोग या सेलिब्रिटीज क्षेत्र में जनता के बीच अपनी जन सेवा से नही पूर्व नियोजित बड़े व्यक्तित्व के नाम पर ही चुनाव लड़ते देखे जाते हैं।

पिछले अनेक खण्डित चुनाव परिणामो से वर्तमान संवैधानिक प्रावधानो में संशोधन की जरूरत लगती है।  सरकार बनाने के लिये बड़ी पार्टी के मुखिया को नही वरन चुने गये सारे प्रतिनिधियो के द्वारा उनमें आपस में चुने गये मुखिया को बुलाया जाना चाहिये। आखिर हर पार्टी के चुने गये प्रतिनिधि  भले ही उनके क्षेत्र  के वोटरों के बहुमत से चुने जाते हैं किन्तु हारे हुये प्रतिनिधि को भी तो जनता के ही वोट मिलते हैं, और इस तरह वोट प्रतिशत की दृष्टि से हर पार्टी की सरकार में भागीदारी लोक के सच्चे प्रतिनिधित्व हेतु उचित लगती है।एक देश एक सरकार की दृष्टि से भी इस तरह का प्रतिनिधित्व तर्कसंगत लगता है। वर्तमान स्थितियो में राज्यपाल के विवेक पर छोड़े गये निर्णय ही हर बार विवादास्पद बनते हैं, व रातो रात सुप्रीम कोर्ट खोलने पर मजबूर करते हैं। किसी भी स्वस्थ्य समाज में कोर्ट का हस्तक्षेप न्यूनतम होना चाहिये पर पिछले कुछ समय में जिस तरह से न्यायालयीन प्रकरण बढ़ रहे हैं वह इस तथ्य का द्योतक है कि कही न कही हमें बेहतर व्यवस्था की जरूरत है।

कोई भी सभ्य समाज नियमों से ही चल सकता है। जनहितकारी नियमों को बनाने और उनके परिपालन को सुनिश्चित करने के लिए शासन की आवश्यकता होती है। राजतंत्र, तानाशाही, धार्मिक सत्ता या लोकतंत्र, नामांकित जनप्रतिनिधियों जैसी विभिन्न शासन प्रणालियों में लोकतंत्र ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि लोकतंत्र में आम आदमी की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित होती है एवं उसे भी जन नेतृत्व करने का अधिकार होता है। भारत में हमने लिखित संविधान अपनाया है। शासन तंत्र को विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के उपखंडो में विभाजित कर एक सुदृढ लोकतंत्र की परिकल्पना की है। विधायिका लोकहितकारी नियमों को कानून का रूप देती है। कार्यपालिका उसका अनुपालन कराती है एवं कानून उल्लंघन करने  पर न्यायपालिका द्वारा दंड का प्रावधान है।

विधायिका के जनप्रतिनिधियों का चुनाव आम नागरिको के सीधे मतदान के द्वारा किया जाता है किंतु हमारे देश में आजादी के बाद के अनुभव के आधार पर, मेरे मत में इस चुनाव के लिए पार्टीवाद तथा चुनावी जीत के बाद संसद एवं विधानसभाओं में पक्ष विपक्ष की राजनीति ही लोकतंत्र की सबसे बडी कमजोरी के रूप में सामने आई है।

सत्तापक्ष कितना भी अच्छा बजट बनाये या कोई अच्छे से अच्छा जनहितकारी कानून बनाये विपक्ष उसका पुरजोर विरोध करता ही है। उसे जनविरोधी निरूपित करने के लिए तर्क कुतर्क करने में जरा भी पीछे नहीं रहता। ऐसा केवल इसलिए हो रहा है क्योंकि वह विपक्ष में है। हमने देखा है कि वही विपक्षी दल जो विरोधी पार्टी के रूप में जिन बातो का सार्वजनिक विरोध करते नहीं थकता था, जब सत्ता में आया तो उन्होनें भी वही सब किया और इस बार पूर्व के सत्ताधारी दलो ने उन्हीं तथ्यों का पुरजोर विरोध किया जिनके  वे खुले समर्थन में थे। इसके लिये लच्छेदार शब्दो का मायाजाल फैलाया जाता है। ऐसा लोकतंत्र के नाम पर  बार-बार लगातार हो रहा है। अर्थात हमारे लोकतंत्र में यह धारणा बन चुकी है कि विपक्षी दल को सत्ता पक्ष का विरोध करना ही चाहिये। शायद इसके लिये स्कूलो से ही, वादविवाद प्रतियोगिता की जो अवधारणा बच्चो के मन में अधिरोपित की जाती है वही जिम्मेदार हो। वास्तविकता यह होती है कि कोई भी सत्तारूढ दल सब कुछ सही या सब कुछ गलत नहीं करता । सच्चा  लोकतंत्र तो यह होता कि मुद्दे के आधार पर पार्टी निरपेक्ष वोटिंग होती, विषय की गुणवत्ता के आधार पर बहुमत से निर्णय लिया जाता, पर ऐसा हो नही रहा है।

हमने देखा है कि अनेक राष्ट्रीय समस्या के मौको पर  किसी पार्टी या किसी लोकतांत्रिक संस्था के निर्वाचित जनप्रतिनिधी न होते हुये भी अन्ना या बाबा रामदेव जैसे तटस्थ जनो को जनहित एवं राष्ट्रहित के मुद्दो पर अनशन तथा भूख हडताल जैसे आंदोलन में व्यापक जन समर्थन मिला। समूचा शासनतंत्र तथा गुप्तचर संस्थायें इनके आंदोलनों को असफल बनाने में सक्रिय रही। यह लोकतंत्र की बडी विफलता है। अन्ना हजारे या बाबा रामदेव को  उनके आंदोलनो में देश व्यापी जनसमर्थन मिला मतलब जनता भी यही चाहती थी  । मेरा मानना  यह है कि आदर्श लोकतंत्र तो यह होता कि मेरे जैसा कोई साधारण एक व्यक्ति भी यदि देशहित का एक सुविचार रखता तो उसे सत्ता एवं विपक्ष का खुला समर्थन मिल सकता।आखिर ग्राम सभा स्तर पर जो खुली प्रणाली हम विकास के लिये अपना रहे हैं उसे राष्ट्रीय स्तर पर क्यो नही अपनाया जा सकता। आम नागरिको में वोटिंग के प्रति हतोत्साही भावना का एक बड़ा कारण यह ही है कि वर्तमान व्यवस्था में उसकी सच्ची भागीदारी सरकार में है ही नही। इसीलिये लोग वोट की कीमत भी लगाने लगे हैं। नेताओ पर फब्तियां कसी जाती हैं कि वे जीतने के बाद  पांच सालो बाद ही दिखेंगे। न तो जनता को जन प्रतिनिधियो को वापस बुलाने का अधिकार है।

चुनावी घोषणाओ पर कोई किसी का कई नियंत्रण ही नही है। बजट में तो छोटी बड़ी हर घोषणा पर जन प्रतिनिधि बहस करके निर्णय करते हैं पर जनता के टैक्स के अनमोल खजाने को घोषणा पत्रो में ऐरा गैरा कोई भी नेता यूं ही लुटा देने की बड़ी बड़ी उल जलूल घोषणा करके वोट बटोरने को स्वतंत्र है। टैक्स पेयर का अपने दिये हुये रुपये पर कोई नियंत्रण नही है।टैक्स पेयर की भरपूर उपेक्षा सारी व्यवस्था में है। कहने को तो संविधान धर्म निरपेक्षता का वादा करता है पर सरे आम चुनाव धर्म और जाति के आधार पर लड़े जा रहे हैं, वोट की अपीलें जातिगत हो रही हैं, फतवे जारी हो रहे हैं और संविधान बेबस है।

आरक्षण जैसे संवेदन शील तथा आम नागरिको के आधारभूत विकास से जुड़े मुद्दो पर तक संविधान को ठेंगा दिखाकर  वोट के लिये सरकारो को निर्णय लेते, पार्टियो को आंदोलन करते हम देख रहे हैं।

इन अनुभवो से यह स्पष्ट होता है कि हमारी संवैधानिक व्यवस्था में सुधार की व्यापक संभावना है।  दलगत राजनैतिक धु्व्रीकरण एवं पक्ष विपक्ष से ऊपर उठकर मुद्दों पर आम सहमति या बहुमत पर आधारित निर्णय ही विधायिका के निर्णय हो, ऐसी सत्ताप्रणाली के विकास की जरूरत है। इसके लिए जनशिक्षा को बढावा देना तथा आम आदमी की राजनैतिक उदासीनता को तोडने की आवश्यकता दिखती है। जब ऐसी व्यवस्था लागू होगी तब किसी मुद्दे पर कोई 51 प्रतिशत या अधिक जनप्रतिनिधि एक साथ होगें तथा किसी अन्य मुद्दे पर कोई अन्य दूसरे 51 प्रतिशत से ज्यादा जनप्रतिनिधि, जिनमें से कुछ पिछले मुद्दे पर भले ही विरोधी रहे हो साथ होगें तथा दोनों ही मुद्दे बहुमत के कारण प्रभावी रूप से कानून बनेगें.

क्या हम निहित स्वार्थो से उपर उठकर ऐसी आदर्श व्यवस्था की दिशा में बढ सकते है एवं संविधान में इस तरह के संशोधन कर सकते है. यह खुली बहस का एवं व्यापक जनचर्चा का विषय है जिस पर अखबारो, स्कूल, कालेज, बार एसोसियेशन, व्यापारिक संघ, महिला मोर्चे, मजदूर संगठन आदि विभिन्न विभिन्न मंचो पर खुलकर बाते होने की जरूरत हैं, जिससे इस तरह के जनमत के परिणामो पर पुनर्चुनाव की अपेक्षा मुद्दो पर आधारित रचनात्मक सरकारें बन सकें जिनमें दलो की तोड़ फोड़, दल बदल या निर्दलीय जन प्रतिनिधियो की कथित खरीद फरोख्त घोड़ो की तरह न हो बल्कि वे मुद्दो पर अपनी सहमति के आधार पर सरकार का सकारात्मक हिस्सा बन सकें।गठबंधन का गणित  दलगत नही मुद्दो परआधारित हो।

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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English Literature – Poetry ☆ Festival ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry  “त्यौहार” published today as ☆ संजय  दृष्टि – त्यौहार   We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

☆  English Version  of  Poem of  Shri Sanjay Bhardwaj ☆ 

☆ Fesival – by Captain Pravin  Raghuwanshi

Roads surrounded with

Riot control team vehicles,

Rapid Action Force jawans,

Flag marching alertly,

Police examining the

vehicle papers,

Habitually adept with

impending scenario

Familiar yet  ominous smell

prevailing all-over…

Looks like,

some festival

is going to come

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आशीष साहित्य # 35 – मानव शरीर ☆ श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है  एक महत्वपूर्ण आलेख  “मानव शरीर। )

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य # 35 ☆

☆ मानव शरीर

चक्र मूल रूप से एक से अधिक नाड़ियों के संयोजन या मिलन स्थल होते हैं । नाड़ियाँ सूचना या भौतिक प्रवाह के माध्यम हैं जो शरीर के विभिन्न भागों से बहती हैं । प्रत्येक चक्र एक विशेष दर और वेग पर कपंन करता है । ऊर्जा परिपथ (सर्किट) के निम्नतम बिंदु पर चक्र कम आवृत्ति पर कार्य करते हैं । निम्नतम बिंदु पर उनका तत्व स्थूल होता हैं और वह स्थूल जागरूकता की स्थिति बनाते हैं । ऊर्जा परिपथ के शीर्ष के चक्र उच्च आवृत्ति पर कार्य करते हैं, जैसे जैसे शरीर में नीचे से ऊपर की ओर बढ़ते है चक्रों की आवृति बढ़ती जाती है और जागरूकता उच्च बुद्धिमत्ता की ओर बढ़ती जाती है ।

पहले चक्र को आधार या ‘मूलाधार चक्र’ कहा जाता है । मूल का अर्थ है ‘जड़’ या ‘मुख्य’ और आधार का अर्थ ‘नींव’ है, इसलिए ‘मूलाधार चक्र’ अन्य चक्रों और पूरे प्राणिक शरीर के लिए आधार के रूप में कार्य करता है ।

आत्मा के बाहर शरीर के पाँच आवरण होते हैं और वे बाहर से अंदर की ओर अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश और आनंदमय कोश हैं । सभी चक्र ‘प्राणमय कोश’ के अधीन आते हैं क्योंकि ‘प्राणमय कोश’ शरीर के अंदर के सभी प्राणों के सभी कार्यों के लिए मंच का कार्य करता है जो कि ऊर्जा कि मूल इकाई है और सभी चक्र भी इस ऊर्जा के भंडार गृह का ही कार्य करते हैं । यदि आप विभिन्न कोशों के नाम देखते हैं तो वे अन्नमय कोश, प्राणमय कोश आदि हैं कोश का अर्थ है शरीर या आश्रय (आत्मा का) ।

अन्नमय दो शब्दों का संयोजन है, अन्न का अर्थ है शरीर और मस्तिष्क के विकास के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थ और ‘मय’ या ‘माया’ का बहुत गहरा अर्थ है कि यह शरीर हमारी एक ‘झूठी’ या नकली पहचान है जो एक दिन समाप्त हो जानी है । तो अन्नमय कोश का अर्थ है एक ‘शरीर’, या बाहरी निकाय से निर्मित शरीर जो आकश-समय परिसर में दिखाई देता है या जिस शरीर को अन्य अनुभव कर सकते हैं या देख सकते हैं । तो अन्नमय कोश का अर्थ है अन्न (भोजन) से बना आश्रय, जो एक दिन नष्ट हो जाता है । प्राणमय कोश जैसे अन्य चार निकायों का भी लगभग समान अर्थ जैसे प्राणमय कोश के लिए एक दिन प्राण से बना शरीर नष्ट हो जाएगा इत्यादि अन्य कोशों के लिए । अंत में ‘आनंदमय कोश’ का अर्थ है कि एक दिन आनंद या खुशी का आश्रय समाप्त हो जाएगा और इस तरह जब ये सभी पाँचों आश्रय नष्ट हो जाएंगे, तब केवल शुद्ध आत्मा ही रहेगी और उसी को मोक्ष या निर्वाण या अनंत का ज्ञान कहा जाता है ।

विभिन्न प्रकार के कोशों ने हमारी आत्मा को पाँच अवास्तविक सीमाओं से ढक रखा है । एक-एक करके, जब हमारे विभिन्न कोशों से संबंधित कर्म जलते जाते हैं या हमारे कर्मों का असर ख़त्म हो जाता हैं, तो सभी कोश अदृश्य हो जाते हैं और केवल आत्मा बचती है जो ईश्वर में विलीन हो जाती है ।

हमारे शरीर में कई छोटी छोटी नाड़ियाँ होती हैं जो वाहक के रूप में कार्यकरती हैं और हमारे शरीर में सूचना को एक बिंदु से दूसरे बिंदुतक ले जाने का कार्य करती हैं । ये हमारे शरीर के अंदर विद्युत चुम्बकीय संकेतो के रूप में कार्य करते हैं । पुराने ऋषि हमारे शरीर के अंदर 72,000 नाड़ियों का उल्लेख करते हैं ताकि सूचनात्मक प्रवाह सक्रिय रह सके ।

नाड़िया हमारे शरीर की हर कोशिकाओं, और भागों को अपने विशालजाल-तंत्र के माध्यम से ऊर्जा प्रदान करती हैं और विभिन्न प्रकार के प्राणों को आगे और पीछे की दिशा में ले जाती हैं । शरीर के भीतर कुछ महत्वपूर्ण नाड़िया हैं, जिनमें तीन और भी अधिक महत्वपूर्ण हैं । पहली को ईड़ा या गंगा या चंद्रमा या चुंबकीय नाड़ी कहा जाता है, दूसरी को पिंगला या यमुना या विद्युतीय नाड़ी कहा जाता है, और तीसरी सबसे महत्वपूर्ण है, जो सुषुम्ना या सरस्वती या अग्नि नाड़ी है ।

ईड़ा ऋणात्मक ऊर्जा का वाह करती है । शिव स्वरोदय ईड़ा द्वारा उत्पादित ऊर्जा को चन्द्रमा के सदृश्य मानता है अतः इसे चन्द्रनाड़ी भी कहा जाता है । इसकी प्रकृति शीतल, विश्रामदायक और चित्त को अंतर्मुखी करनेवाली मानी जाती है । इसका उद्गम मूलाधार चक्र माना जाता है – जो मेरुदण्ड में सबसे नीचे स्थित है । स्वरयोग के अनुसार जब श्वास का प्रवाह बाईँ नसिका-रंध्र में होता है तो वह मानसिक कार्यों के हेतु मनस शक्ति प्रदान करती है । इससे माँशपेशियों में शिथिलता आती है और शरीर का तापमान कम होता है । यह इस बात का भी संकेत है कि इस अवधि में मन अन्तर्मुखी तथा सृजनात्मक होता है । ऐसी स्थिति में मनुष्य को थकाने वाले और परिश्रम के कार्य को टालना चाहिए ।

शरीर के दाये भाग में पिंगला नाड़ी होती है । इससे शरीर में प्राण शक्ति का वहन होता है जिसके फलस्वरूप शरीर में ताप बढ़ता है । इससे शरीर को श्रम, तनाव और थकावट सहने की क्षमता प्राप्त होती है। यह मनुष्य को बहिर्मुखी बनाती है । पिंगला नाड़ी में सूर्य का निवास रहता है । जिस समय पिंगला नाड़ी कार्य करती है उस समय साँस दाहिने नथने से निकलती है । प्रणतोषिणी में बहुत से कार्य गिनाए गए हैं जो यदि पिंगला नाड़ी के कार्यकाल में किए जायँ तो शुभ फल देते हैं—जैसे, कठिन विषयों का पठनपाठन, स्त्रीप्रसंग, नाव पर चढ़ना, सुरापान, शत्रु के नगर ढाना, पशु, बेचना, जुई खेलना, इत्यादि ।

सुषुम्ना नाड़ी वह नाड़ी है जो नाड़ी का जिस स्थान पर मिलन होता है, उसी स्थान से निकल कर आज्ञा-चक्र से होते हुए मूलाधार स्थित मूल में लिपटी हुई कुण्डलिनी-शक्ति (Serpent Fire) रूप सर्पिणी के मस्तक पर जाकर लटक जाती है तत्पश्चात् यह नाड़ी कुण्डलिनी-शक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हुए स्वाधिष्ठान-चक्र, मणिपूरक-चक्र, अनाहत्-चक्र एवं विशुद्ध-चक्र होते हुए आज्ञा-चक्र में पहुँचकर ‘सः’ रूप आत्मा के स्थान पर खुली हुई पड़ी रहती है । दूसरे शब्दों में सुषुम्ना नाड़ी वह नाड़ी है जो आत्मा (सः) रूप चेतन शक्ति को जीव रूप अहम रूप में परिवर्तन हेतु कुण्डलिनी-शक्ति रूप आत्मा से एक-दूसरे को मिलने का मार्ग प्रशस्त करते हुए दोनों को जोड़ती है । सुषुम्ना नाड़ी की सांसारिक कोई उपयोगिता नहीं होती परन्तु (शिव और शक्ति से मिलने अर्थात) इसके बिना योग की कोई क्रिया नहीं की जा सकती ।

ग्रहस्थ वर्ग के लिए ईड़ा नाड़ी और पिंगला नाड़ी नियत है परन्तु योगी-यति, ऋषि-महर्षि, सन्त-महात्मा आदि के लिए सुषुम्ना नाड़ी ही नियत की गयी है । ईड़ा और पिंगला नाड़ी सुख, प्रसन्नता आदि के लिए हैं तो सुषुम्ना नाड़ी आनन्द और शान्ति के लिए नियत की गई है । ईड़ा और पिंगलानाड़ी सांसारिक सुखोपलब्धि कराने वाली होती हैं तो सुषुम्ना नाड़ी ब्रम्हानन्दोपलब्धि कराने वाली होती है । सुषुम्ना नाड़ी आत्मिक अथवा शाक्तिक कार्यों में जितनी ही सुगमता पूर्वक सफलता उपलब्ध कराती है, सांसारिक कार्यों में उतनी ही दुरूहता और विध्न उत्पन्न करती है । सांसारिक लाभ किसी भी रूप में इससे हासिल नहीं हो सकता है ।

प्रत्येक चक्र एक से अधिक नाड़ियों का मिलन स्थल होता है जैसे मूलाधार चक्र में चार नाड़ियों का मिलन होता हैं । ऋषियों ने इन नाड़ियों को कमल की पंखुड़ियों के रूप में बताया है । तो मूलाधार चक्र में चार कमल पंखुड़िया होती हैं ।

यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एक चक्र ऐसी नाड़ियों का मिलान स्थल होता है जो लगभग एक ही प्रकार के संकेतों को स्थानांतरित करता है । उदाहरण के लिए मूलाधार चक्र की ओर आने वाली और वहाँ से शरीर के अन्य भागों की ओर जाने वाली नाड़ियों में एक ही तरह की चेतना से युक्त संकेत होते हैं अर्थात पृथ्वी तत्व से संबंधित विभिन्न प्रकार की संवेदनाएं । इसी प्रकार दूसरे चक्र या स्वाधिष्ठान चक्र की छः नाड़ियों में जल तत्व से संबंधित संवेदनाएं होती है जो की मूलाधार चक्र के तत्व पृत्वी की संवेदनाओं की तुलना में पूर्णतया पृथक होती है । जैसा कि आप जानते हैं, प्रत्येक चक्र एक तत्व से संबंधित है । आज्ञा चक्र के बाद प्राण और चेतना के बीच कोई अंतर नहीं रह जाता है और केवल ब्रह्माण्डीय जागरूकता ही शेष रहती है ।

मूलाधार चक्र और इसके तत्व पृथ्वी को लो । पृथ्वी तत्व में प्राण के कंपन शून्य या सबसे कम होते हैं । यह वास्तव में पदार्थ की ‘जड़ता’ की अवस्था है या आप इसे प्रकृति के ‘तामस’ गुण के रूप में बेहतर ढंग से समझ सकते हैं । जैसे जैसे हम पहले से दूसरे से तीसरे चक्र तक जाते हैं इसी तरह, संबंधित तत्वों में प्राण के कंपन बढ़ते रहते हैं और आज्ञाचक्र में अधिकतम संभव हो जाते हैं । क्योंकि अंजना या आज्ञा चक्र में, प्राण के कंपन अधिकतम संभव होते हैं, इसलिए आप ब्रह्मांड के किसी भी कोनों से अधिकतम संभव दूरी से जानकारी को प्राप्त कर सकते हैं इसे ही दिव्य दृष्टि या अतिन्द्रिय दृष्टि (clairvoyance) कहा जाता है । अर्थात अगर हम अंजना चक्र पर ध्यान केंद्रित करते हैं तो अंतर्ज्ञान संभव है ।

‘अनाहत चक्र’ जो की शरीर के सात चक्रों में मध्य का होता है, का तत्व वायु है और इस अनाहत चक्र में प्राण के कंपन नीचे के तीनों चक्रों से ज्यादा होते हैं, लेकिन अंजना और ‘सहस्रार चक्र’ से कम होते हैं, और यहाँ तत्व गतिशील रूप में या प्रकृति के ‘राजस’ गुण में होता है । इसी तरह से सातवें चक्र ‘सहस्रार’ की बात करें तो वहाँ पर प्राण के कंपन अनंत हो जाते हैं इसलिए यहाँ कोई फर्क नहीं पड़ता है की तत्व की अवस्था द्रव्य है या ऊर्जा, यहाँ केवल चमकदार चेतना का वास होता है । प्राण मूलाधार चक्र में उत्पन्न होता है, मणिपुर में संग्रहित, विशुद्धी में शुद्ध और अंजना से शरीर के विभिन्न भागों को वितरित किया जाता है । यहाँ मूलाधार चक्र में प्राण उत्पन्न होने का तात्पर्य है कि मूलाधार चक्र में प्राण उस रूप में आ जाता जैसे कि शरीर को आवश्यक होता है जैसे कि मैं पहले भीप्राणोंऔर उप-प्राणों के विषय में समझा चूका हूँ ।

मैं इसे आपको और विस्तार से समझाऊंगा । पदार्थ ऊर्जा की एक अभिव्यक्ति है । हम इसे प्रसिद्ध समीकरण ऊर्जा = द्रव्यमान x प्रकाश की गति का वर्ग या ‘सांख्य दर्शन’ से हम कह सकते हैं कि राजस  = तामस x प्रकाश की गति का वर्ग । इसी तरह ऊर्जा भी चेतना की एक अभिव्यक्ति है । हम उपरोक्त समान समीकरण बना सकते हैं और कह सकते हैं, चेतना = ऊर्जा x M, जहाँ M गुणांक है, जो विचारों की गति को दर्शाता है (मन की गति) ।

पूरे अभिव्यक्ति के लिए हम दोनों समीकरणों का गठबंधन कर सकते हैं अर्थात चेतना = ऊर्जा x M + द्रव्यमान x प्रकाश की गति लेकिन मन की गति M>>>>>प्रकाश की गति ।

तांत्रिक इस चेतना को शिव और ऊर्जा को शक्ति कहते हैं । संख्या दर्शन में, इस चेतना को ‘पुरुष’ कहा जाता है और ऊर्जा को ‘प्रकृति’ कहा जाता है और वेदांत के अनुसार, इसी चेतना को ‘ब्रह्म’ कहा जाता है और ऊर्जा को ‘माया’ कहा जाता है । तो हम कह सकते हैं कि चेतना, M के साथ सीधे आनुपातिक है, जो विचारों की गति है । क्या आप मन की गति के विषय में जानते हैं? यह आँखों की झपकी के भीतर ब्रह्मांड में कहीं भी यात्रा कर सकता है । हिंदू इतिहास में रथों के कई ऐसे उदाहरण हैं, जो विचारों की गति से उड़ सकते थे । यहाँ तक ​​कि जब भगवान राम ने रावण को हराकर उसका वध कर दिया, और लंका से अयोध्या जाने के लिए तैयार थे, तब मैंने उन्हें पुष्पक विमान से अयोध्या जाने का अनुरोध किया, जो मन की गति से कहीं भी यात्रा कर सकता था । अब यह उपरोक्त स्पष्टीकरण से बहुत स्पष्ट है कि मन की गति सीधे चेतना पर निर्भर करती है। उस स्थिति में, पुष्पक विमान की गति उस व्यक्ति की चेतना पर निर्भर करती है जो उसे उड़ा रहा हो ।

 

© आशीष कुमार  

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मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 26 ☆ स्वातंत्र्य ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है।  श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होतं आहे रे ” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  उनकी काव्य विधा चारोळी में रचित एक कविता  “स्वातंत्र्य ”। उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 26 ☆

☆ स्वातंत्र्य ☆ 

(काव्य प्रकार:-चारोळी)

 

स्वातंत्र्य म्हणजे काय

स्वच्छंदीपणे आयुष्य

जगण्याचा अनुभव

अपेक्षितसे मनुष्य !!१!!

 

स्वातंत्र्य म्हणजे काय

हवं तेव्हा हव्याजागी

हिंडण्याची अनुमती

नको ती परवानगी!!२!!

 

स्वतंत्र्य म्हणजे स्वैर

नव्हे वागणं बोलणं

त्याने होतं  सारं सैल

आणि नको ते घडणं !!३!!

 

स्वातंत्र्य ही संकल्पना

हक्क  जाणीवेची जोड

हेच मनात रुजलं

स्वातंत्र्याला नाही तोड !!४!!

 

स्वातंत्र्यपूर्व काळात

सत्ता होती परकीय

जनतेची परवड

सारे पाहती स्वकीय!!५!!

 

मिळविण्यास स्वातंत्र्य

गेले फासावर नर

वेगे शत्रूसी झुंजत

झाले शहीद हो वीर !!६!!

 

काळ्या पाण्याची हो शिक्षा

भोगली नरवीरांनी

मिळविण्यास स्वातंत्र्य

झटले एकवटुनी !!७!!

 

त्यांचे करूया स्मरण

ज्यांनी देश घडविला

चरणी नमूया सारे

त्यांच्या अमर स्मृतीला !!८!!

 

©®उर्मिला इंगळे

सतारा

9028815585

!!श्रीकृष्णार्पणमस्तु!!

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मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ कोरोना वायरस – सावधानी ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव सामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है विश्व भर में फैली महामारी कोरोना वाइरस के संक्रमण से सावधानी बरतने का आह्वान करती एक समसामयिक, प्रेरक एवं विचारणीय कविता  “कोरोना वायरस – सावधानी )

 ☆ कोरोना वायरस – सावधानी ☆

कोरोनाची

आहे साथ

स्वच्छतेची

करा बात. . . !

 

विषाणूचा

प्रादुर्भाव

संसर्गाचा

अंतर्भाव.. . !

 

नको भिती

ठेवा धीर

उकळूनी

प्यावे नीर.. . . !

 

आयुर्वेद

योग्य मात्रा

अफवांची

नको यात्रा.. . . !

 

वैद्यकीय

सल्ला घेऊ

कोरोनाला

मात देऊ.. . . !

 

स्वच्छ ठेवू

घरदार

ठेवू रोग

सीमा पार. . . . !

 

प्रवासाचे

टाळू बेत

रोगी वारे

जाऊ देत. . . . !

 

आपणच

राहू  दक्ष

संसर्गाचा

नको पक्ष.. . !

 

रोग  असो

कोणताही

निष्काळजी

आता नाही. . . !

 

सावधानी

बाळगूया

आरोग्यास

सांभाळूया.. . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #18 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #18 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

बाहर भीतर एक रस, सरल स्वच्छ व्यवहार ।

कथनी-करनी एक सी, यही धर्म का सार ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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