हेमन्त बावनकर
लोकतन्त्र का महाभारत
निजी टी वी चैनल “हमारे अपने” के स्टुडियो से टी वी पत्रकार संजय को बार-बार फोन आ रहे थे। बहुत दिनों से कुछ नया और कोई अच्छी रिपोर्टिंग नहीं हुई है। आखिर दूर-दराज के गाँव के एकमात्र अंधों में काने शिक्षित बुजुर्ग मातादीन को बड़ी मुश्किल से मोबाइल पर इंटरव्यू के लिए पटाया। फिर उस दिन तो बड़ा गज़ब हो गया। संजय की दूर-दराज के गाँव में खड़ी ओ बी वेन का संचार परलोक में बैठे धृतराष्ट्र से जुड़ गया। दूसरी ओर से पिक्चर नहीं आ रही थी सिर्फ आवाज ही आ रही थी।
“सर! मैं संजय!”
“हाँ, कहो मैं धृतराष्ट्र!”
संजय चौंका – “धृतराष्ट्र!”
संजय को लगा कि जरूर स्टुडियो में कोई वरिष्ठ मित्र ले रहा है मजा, या पा गया है कोई मौका। धृतराष्ट्र को लगा कि महाभारत हुए एक युग बीत चुका है और ये संजय क्यों लगा रहा है धरती से चौका?
“संजय तुम्हारी आँखों देखी महाभारत को युग बीत गया। अब कौन सी महाभारत बाकी है?”
“यहाँ तो आये दिन महाभारत होती रहती है।“
“आए दिन! क्या कह रहे हो? मुझे विस्तार से बताओ।”
अब संजय को भी मजा आने लगा।
“सर, मेरे कहने का मतलब है आए दिन तो चुनाव होते रहते हैं। कभी ग्राम, कभी जिला, कभी प्रदेश तो कभी देश के। और हर चुनाव में महाभारत होता है।“
“ये क्या कह रहे हो? क्या धर्म नाम की वस्तु नहीं रही?”
“सर, वो तो आपके युग की बात है। आपके समय में या तो धर्म होता था या अधर्म और जातियाँ भी गिनती की चार होती थीं। अब तो इतने धर्म और इतनी जातियाँ हो गईं हैं कि आपको क्या बताऊँ सर? चीरहरण और शीलहरण तो मामूली बात है। फिर शीलहरण की तो कोई उम्र ही नहीं रही। पांडव दिखने वाले भी बहती गंगा में हाथ धो लेते हैं।“
“फिर शासन कैसे चलता है? और महाभारत किसके मध्य हो रही है?”
अब संजय के चौंकने की बारी थी। फिर भी संभलते हुये बोला।
“सर, जितने महाभारत में राजा नहीं थे उतने तो नेता हो गए हैं। क्योंकि कोई भी नेता राजा से कम नहीं है। रही बात महाभारत किसके मध्य हो रहा है? तो मैं आपको अपनी रिपोर्टिंग देने से पहले बता दूँ कि यदि आज देवकीनंदन भी यहाँ आ जाएँ तो कहीं कन्फ़्यूज ना हो जाएं कि कौरव कौन हैं और पांडव कौन हैं? शकुनि तो अनगिनत हो गए हैं सर। आज तो शकुनि भी कन्फ़्यूज है कि जिस दुर्योधन को चुनाव के द्यूतक्रीडा की चाल समझा रहा है वो कल सारे दाँव सीख कर कहीं पांडवों से न जा मिले। दुर्योधन की सेना का कौन नेता कब पांडव के पक्ष से लड़ेगा और पांडवों की सेना का कौन नेता दुर्योधन के पक्ष से लड़ेगा ये तो आप काल से ही पूछ लेना। रही बात युधिष्ठिर की, तो उनके जैसे जुआरी तो बहुत मिलेंगे पर सत्य बोलने वाला सारी धरती पर एक भी नहीं मिलेगा। फिर आपके समय में युद्ध में थोड़ा बहुत छल कपट तो हुआ होगा। अब तो हर युद्ध छल से ही जीता जाता है। सूर्यास्त पर युद्ध की समाप्ति का शंख नहीं बजता। आए दिन अभिमन्यु चक्रव्यूह में घेर कर मारा जाता हैं। इसे लोकतंत्र में चक्रव्यूह नहीं भीडतंत्र (मोबोक्रेसी) कहते हैं। लोग कहते हैं कि युद्ध और प्यार में सब जायज है। अब अर्जुन जैसा कोई योद्धा नहीं जिसे भगवत गीता के ज्ञान की आवश्यकता पड़े। मुरलीधर तो सब जानते हैं इसलिए शान्त हैं, मुस्कुरा रहे हैं, बांसुरी की धुन पर सबको नचा रहे हैं और “यदा यदा हि धर्मस्य …..” के तर्ज पर अवतार लेने को तैयार ही नहीं हैं। पता नहीं दीनदयाल स्वयं को प्रकट करने के लिए कितना समय और लगाएंगे? क्या इन राजाओं द्वारा इतने धर्मों और जातियों के दीनों की आपस में कोई और महाभारत करवाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं? टीआरपी के लिए चैनलों पर लोकतन्त्र के मतदाता सैनिकों को गुमराह करने वाली बहस और फेक न्यूज़ के बारे में कुछ कह नहीं सकता सर, मेरी तो नौकरी ही चली जाएगी।”
इधर संजय पूरी महाभारत का पोस्टमार्टम करने को तैयार था और उधर धृतराष्ट्र को कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा था।
“संजय, तुम ये सब क्या कह रहे हो? मुझे तुम्हारी महाभारत समझ ही नहीं आ रही।“
अब संजय का दिमाग भी कुछ पक सा रहा था। उसे लगा कि उसे अब मुद्दे पर आना चाहिए। फिर मातादीन भी बार-बार उठने की फिराक में था।
“सर, मज़ाक छोड़िए। ये आपकी महाभारत जाए … । मेरे सामने मातादीन अपने चार-पाँच कार्ड ले कर बैठा है। उसका इंटरव्यू सीरियसली रिकार्ड करेंगे, लाइव दिखाएंगे या रिकार्ड कर के भेजूँ?”
“संजय, महाभारत में ये मातादीन कौन आ गया और ये रिकार्डिंग, कार्ड … ये सब क्या है?”
संजय अब झल्ला गया था। मोबाइल में अभी भी सिग्नल नहीं थे और बैटरी भी जा रही थी।
“सर, अब आप चुपचाप सुनते जाइए। मैं अपने मोबाइल पर भी रिकार्ड कर रहा हूँ। आपको नहीं दिख रहा हो तो रिकार्डिंग से काम चला लेंगे।“
धृतराष्ट्र आश्चर्यचकित – “क्या……?”
इधर संजय ने मातादीन का इंटरव्यू लेना शुरू कर दिया।
“आइये हम अपने दर्शकों को मिलवाते हैं, गाँव के एक ऐसे एकमात्र शिक्षित निवासी श्री मातादीन जी से जिनके गाँव तक बिजली के तार तो पहुँच गए पर करंट नहीं पहुंचा। इनका कहना है कि ये कई बार तारों को छू कर भी देख चुके हैं। हमने इन्हें समझाया कि आप ऐसी गलती ना करें दुर्घटना हो सकती है। और मातादीन जी आप ये इतने सारे कार्ड लेकर क्यों आए हैं और आपको इन कार्डों से क्या शिकायत है? जरा हमारे दर्शकों को बताएं।”
मातादीन जिंदगी में पहली बार कैमरे के सामने आया था। गाँव के लोग-लुगाइयाँ और बच्चे सतर्क हो गए। मातादीन कैमरे से आँख ही नहीं मिला पा रहा था। संजय ने आँखों और हाथों से इशारा किया। और मातादीन दायें बाएँ देखते हुए धाराप्रवाह शुरू हो गया।
“सब लोगन को हाथ जोड़ के राम राम। वो तो साहब हम बीच-बीच में तार इसलिए छू के देख लेते रहे। काहे कि हमने देखा रहा पिछली बार मंत्री जी ने तीस मील दूर के पड़ोस के पहाड़ी गाँव की बिजली का साठ मील दूर के जिले दफ्तर में बैठ कर बटन दबा कर उदघाटन करी रही। काहे कि उनकी गाड़ी पहाड़ पे नहीं चढ़ पाई रही।“
“अच्छा और आप ये कार्ड क्यों ले कर आए हैं?”
मातादीन कार्ड दिखाते हुए बोला “साहब हम ठहरे गाँव के। साहब हमें अपनी छोटी सी बुद्धि में या बात समझ नहीं आ रही कि ये तीन-चार कारड किस काम के?”
संजय ने एक-एक कार्ड कैमरे में दिखाते हुए समझाया।
“देखो ये है आधार कार्ड जो आपकी पहचान है। ये है वोटर कार्ड जिसकी मदद से आप वोट डाल सकते हैं और यह है पैन कार्ड जिसकी मदद से आप अपनी आयकर की जानकारी दाखिल कर सकते हैं। और जो ये जो चौथा कार्ड आपके हाथ में है उसे एटीएम कार्ड कहते हैं जिसकी मदद से आप बैंक के एटीएम से पैसा निकाल सकते हैं।“
“साहब ये जो आपने पहले तीन कारड बताए हैं इनको सम्हाल सम्हाल कर हमारी जान निकल रही है। चौथे एटीएम कारड ने तो हमारी जान ही निकाल दी।?
“ऐसा क्या हो गया?
“हमारी मोटी बुद्धि के मुताबिक जब आधार कारड बनाते समय हमारी उँगलियों के निशान और आँख की पुतलियाँ तक जांच लई और एटीएम कारड से हवा में हमारे बैंक से जोड़ दई तो पहले तीन कारड की जानकारी जोड़ के एकई कारड काहे नहीं दे देते। आखिर सभी दफ्तर तो एकई सरकार के ठहरे। लगता है उनमें कोई तालमेल ही नहीं है। जब पिछली बार वोट डालने गए रहे तो पता चला कोई और मातादीन नकली वोटर कारड से हमारा वोट डाल चुका रहा। काहे नहीं हमारे आधार कारड को वोटिंग मशीन से जोड़ देते जो हमारे अंगूठे के निशान से हमें पहचान लेता। ऐसई इसी कारड से आयकर की जानकारी भी ले लेते। साहब ये तो हम अपनी छोटी मोटी बुद्धि से कह रहे हैं। यदि गलत कह रहे तो साहब हमें माफ करना आप लोग हमसे बहुतई समझदार ठहरे। हम तो कह रहे हैं साहब आप तो इसमें हमारे ट्रेक्टर और मोटर साइकिल की भी जानकारी ठूंस दो। फिर देखो हम कैसे इस कारड को अपनी जान से भी ज्यादा संभाल कर रखते हैं? फिर मजाल है कोई दूसरा मातादीन हमारा नकली कारड लेके बजार में घूमता फिरे? आगे तो आप लोग बहुतई समझदार हो साहब?“
“आपका अपना चैनल मातादीन जी की समस्या को शासन से अवगत कराने की पूरी कोशिश करेगा। मातादीन जी कार्डों के बारे में आपकी और कोई समस्या हो तो आप हमें बताइये हम आपकी समस्या को ऊपर तक पहुंचाने की पूरी कोशिश करेंगे।“
“बस साहब एटीएम कार्ड से भी बहुत परेशान हैं। बैंक वाले बार-बार कहते हैं कि किसी को अपने कार्ड की जानकारी बिलकुल ना देना और बैंक वाले खुद फोन कर-कर के जानकारी मांगते हैं।“
“मातादीन जी आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूँ कि बैंक कभी भी ऐसी कोई जानकारी नहीं मांगता। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। अब हम आपको स्टुडियो ले चलते हैं। आपका अपना चैनल के लिए कैमरा मेन अर्जुन के साथ मैं संजय। आप देखते रहिए आपका अपना चैनल।“
इतने में क्लिक की आवाज आई और ओ बी वैन में स्टुडियो का चित्र उभरा। संजय का संपर्क स्टुडियो के टेकनीशियन दिनेश से जुड़ गया।
संजय चौंक कर स्क्रीन की ओर देखते हुए पूछता है – “धृतराष्ट्र कहाँ है?”
दिनेश पूछता है – “कौन धृतराष्ट्र?”
“अरे यार जिससे अभी मेरी बात हो रही थी? माता दीन का इंटरव्यू रिकार्ड हो गया ना।”
“कौन धृतराष्ट्र? कौन मातादीन? कैसा इंटरव्यू?”
“संजय सर ….. संजय सर ….. उठिए वो गाँव आ गया है। कोई मातादीन पंचायत भवन के बाहर गाँव के लोग लुगाइयों और बच्चों के साथ आपका इन्तजार कर रहा है।”
ड्राइवर कृष्ण कुमार ओ बी वैन में पीछे लेटे टी वी पत्रकार संजय को नींद से उठा रहा था। और संजय नींद में उठकर कभी ओ बी वेन के मॉनिटर को तो कभी ओ बी वेन की खिड़की के बाहर शोर मचाती भीड़ को देख रहा था।
© हेमन्त बावनकर