मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #26 – मेघ भक्तीचा ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक  भावप्रवण कविता  “मेघ भक्तीचा”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 26 ☆

☆ मेघ भक्तीचा ☆

 

कृष्ण डोह हा सावळा

राधा उतरली आत

ठाव घेताना डोहाचा

सारी सरली ही रात

 

वीणा चिपळ्या सोबती

मेघ भक्तीचा बरसे

गाभाऱ्यात तेवणारी

मीरा तेजोमय  वात

 

राधा सत्ययुगातली

कलियुगातली मीरा

तरी सवतीचा खेळ

चाले अजून दोघीत

 

नागवेलीचं हे पान

वाटे नागिणीचा फणा

फास झाडाच्या भोवती

तिनं टाकलेली कात

 

वन सारं बासरीचं

तिच्या सोबती नाचतं

धून राधेच्या प्राणाची

नित्य वाजे बासरीत

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 26 – गुलाबी  गुड़िया ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक अत्यंत भावुक लघुकथा    “गुलाबी  गुड़िया ”। 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 26 ☆

☆ लघुकथा – गुलाबी  गुड़िया ☆

 

‘आरुषि’ अपने मम्मी-पापा की इकलौती संतान। उसे बहुत ही प्यार से रखा था। सब कुछ आरुषि के मन का होता था। कहीं आना-जाना  क्या पहनना, क्या खाना। छोटी सी आरुषि की उम्र 6 साल थी। खिलौने से दिनभर खेलना और मम्मी पापा से दिन भर बातें करना। सभी को अच्छा लगता था। खिलौने में सबसे प्यारी उसकी एक गुड़िया थी। प्यार से उसका नाम उसने गुलाबी रखा था। दिन भर गुड़िया से बातें करना, उसको कपड़े पहनाना, कभी छोटी सी साइकिल पर बिठा कर चलाना। गुलाबी से मोह इतना कि रात में भी उसे अपने साथ सुलाती थी।

एक दिन मम्मी-पापा के साथ घूमने निकली। आरुषि अपनी गुड़िया को भी ले गई थी। रास्ते में अत्यधिक भीड़ होने की वजह से मम्मी ने कहा “आरू, गुड़िया हम रख लेते हैं। आप संभल कर गाड़ी (दुपहिया वाहन) पर बैठो”। आरुषि गुड़िया को मम्मी को पकड़ा कर पापा के सामने जा बैठी। सब खुश होकर गाना गाते हुए चले जा रहे थे। अचानक सामने से आती ट्रक की चपेट में तीनों बुरी तरह घायल हो गए। अस्पताल में आरुषि और पापा तो बच गए परंतु मम्मी का देहांत हो गया। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आरुषि को कैसे समझाया  जाए। अंतिम विदाई के समय सभी की आंखें नम थी। परंतु आरुषि चुपचाप सब कुछ देख रही थी। सभी ने कहा मम्मी भगवान के घर चली गई। जब अर्थी ले जाने लगे, तभी आरुषि दौड़कर अपने कमरे में गई और अपनी प्यारी गुड़िया को लेकर आई और मम्मी के पास रखते हुए बोली “भगवान घर मम्मी अकेले जाएगी, मैं नहीं रहूंगी तो कम से कम गुलाबी के साथ बात करेंगी। सभी शांत और भाव विभोर थे आखिर इस नन्ही बच्ची को कैसे समझाएं।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 7 ☆ बादल गीत ☆ – श्री प्रयास जोशी

श्री प्रयास जोशी

(श्री प्रयास जोशी जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आदरणीय श्री प्रयास जोशी जी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स  लिमिटेड भोपाल से सेवानिवृत्त हैं।  आपको वरिष्ठ साहित्यकार  के अतिरिक्त भेल हिंदी साहित्य परिषद्, भोपाल  के संस्थापक सदस्य के रूप में जाना जाता है। 

ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  करेंगे ।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने यात्रा संस्मरण श्री सुरेश पटवा जी की कलम से आप तक पहुंचाई एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक सतत पहुंचा रहे हैं।  हमें प्रसन्नता है कि  श्री प्रयास जोशी जी ने हमारे आग्रह को स्वीकार कर यात्रा  से जुडी अपनी कवितायेँ  हमें,  हमारे  प्रबुद्ध पाठकों  से साझा करने का अवसर दिया है। इस कड़ी में प्रस्तुत है उनकी कविता  “बादल गीत”। 

☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 7– बादल गीत ☆

 

हाथ जोड़ कर, अम्मा बोली

हाथ जोड़ कर बाबा

हाथ जोड़ कर/नद्दी-नाले

हाथ जोड़ कर

गइया-बछिया

कुत्ता-बिल्ली, मुर्गा-मुर्गी

हाथ जोड़ कर/भेड़-बकरियां

सब कह रए हैं

रुकजा बादल

–हाथ जोड़ कर, दादा बोले

हाथ जोड़ कर अम्मा

रुकजा बादल

सीड़ गइ /घर की दीवारें

टपकों से घर

भर गओ भैइया

मोड़ा-मोड़ी मचल रहे

बाहर जाबे कों/रुकजा बादल

खेतों में घुटनों तक पानी

मिट्टी बह गइ

आने-जाने की गड़बाटें

पगडंडी के संग /जैसे खो गइं…

रामभरोसे को डुकरा

बीमार धरो है/घर में बादल

हाथ जोड़ कर अम्मा बोली

हाथ जोड़ कर बाबा

रुकजा बादल

 

©  श्री प्रयास जोशी

भोपाल, मध्य प्रदेश

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (7) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

 

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध च ।

मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्‌।।7।।

 

इससे मुझको याद कर हर दम लड़ संग्राम

ऐसी मन औ” बुद्धि रख निश्चित आठों याम।।7।।

 

भावार्थ :  इसलिए हे अर्जुन! तू सब समय में निरंतर मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर। इस प्रकार मुझमें अर्पण किए हुए मन-बुद्धि से युक्त होकर तू निःसंदेह मुझको ही प्राप्त होगा।।7।।

 

Therefore, at all times remember me only and fight. With mind and intellect fixed (or absorbed) in me, thou shalt doubtless come to me alone.।।7।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – आउट ऑफ बॉक्स ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  –  आउट ऑफ बॉक्स

 

माप-जोखकर खींचता रहा

मानक रेखाएँ जीवन भर

पर बात नहीं बनी..,

निजी और सार्वजनिक

दोनों में पहचान नहीं मिली,

आक्रोश में उकेर दी

आड़ी-तिरछी, बेसिर-पैर की

निरुद्देश्य  रेखाएँ

यहाँ-वहाँ अकारण,

बिना प्रयोजन..,

चमत्कार हो गया!

मेरा जय-जयकार हो गया!

आलोचक चकित थे-

आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग का

ऐसा शिल्प आज तक

देखने को नहीं मिला,

मैं भ्रमित था,

रेखाएँ, फ्रेम, बॉक्स,

आउट ऑफ बॉक्स,

मैंने यह सब

कब सोचा था भला?

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

सुबह 10.45 बजे,27.11.19

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 23 – राजनीति ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनकी एक कविता  “राजनीति। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 23 ☆

 

☆ कविता – राजनीति  

 

राजनीतिज्ञ

हाथ देखकर

भूत भविष्य

और वर्तमान

बता सकता है।

राजनीतिज्ञ

ऐसे हाथ

उठा देता है

और

कई बार हाथ

देखने के पहले

काट भी देता है।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 6 ☆ विचार ☆ – श्री प्रयास जोशी

श्री प्रयास जोशी

(श्री प्रयास जोशी जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आदरणीय श्री प्रयास जोशी जी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स  लिमिटेड भोपाल से सेवानिवृत्त हैं।  आपको वरिष्ठ साहित्यकार  के अतिरिक्त भेल हिंदी साहित्य परिषद्, भोपाल  के संस्थापक सदस्य के रूप में जाना जाता है। 

ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  करेंगे ।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने यात्रा संस्मरण श्री सुरेश पटवा जी की कलम से आप तक पहुंचाई एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक सतत पहुंचा रहे हैं।  हमें प्रसन्नता है कि  श्री प्रयास जोशी जी ने हमारे आग्रह को स्वीकार कर यात्रा  से जुडी अपनी कवितायेँ  हमें,  हमारे  प्रबुद्ध पाठकों  से साझा करने का अवसर दिया है। इस कड़ी में प्रस्तुत है उनकी कविता  “विचार ”। 

☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 6 – विचार  ☆

 

तुम्हारे साथ

तुम्हारे

लेखक की

दो बड़ी

दिक्कत हैं

 

एक तो यह

कि तुम्हारा

लेखक

किसी को

स्वर्ग का

रास्ता

नहीं  बताता

और दूसरा

यह कि

दूसरों की तरह

यह

अमर भी

नहीं

होना चाहिता

 

ऐसा किसलिये?

ऐसा

इसीलिये।

 

©  श्री प्रयास जोशी

भोपाल, मध्य प्रदेश

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सूचनाएं /Information – ☆ हिंदी आंदोलन परिवार – रजतजयंती समारोह, पुणे ☆

 ☆ सूचनाएं /Information ☆

 ☆ हिंदी आंदोलन परिवार – रजतजयंती समारोह के अंतर्गत

*हिंदी आंदोलन परिवार, पुणे, राष्ट्रभाषा महासंघ, मुंबई और महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, पुणे के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी*

*हिंदी: घोषित राजभाषा, उपेक्षित राष्ट्रभाषा*

शनि  दि. 14 दिसम्बर 2019

समय- प्रात: 10 बजे

स्थान- लकाकी सभागृह, मराठा चेंबर ऑफ कॉमर्स, स्वारगेट कॉर्नर, पुणे

 

*पंजीकरण एवं जलपान* –  प्रातः 9:30 से 10:00

*उद्घाटन सत्र* –  प्रातः 10:00 बजे

*उद्घाटनकर्ता- डॉ. सदानंद भोसले* (हिंदी विभागाध्यक्ष, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय)

*अध्यक्ष*- *डॉ. सुशीला गुप्ता* (उपाध्यक्ष, राष्ट्रभाषा महासंघ, मुंबई)

 

*वक्तव्य*- 

*श्री ज. गं. फगरे*   (संचालक, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, पुणे)

*श्री संजय भारद्वाज* (अध्यक्ष, हिंदी आंदोलन परिवार, पुणे)

 

*संचालन- सौ.स्वरांगी साने*

*प्रथम सत्र* 11.45 से 1.45 बजे तक

 

*अध्यक्ष- डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय* (हिंदी विभागाध्यक्ष, मुंबई विश्वविद्यालय)

*विशेष अतिथि- डॉ. दामोदर खडसे* (प्रसिद्ध साहित्यकार)

 

*वक्तव्य-*

*डॉ. नीला बोर्वणकर*  ( पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, आबासाहेब गरवारे महाविद्यालय)

*डॉ. शशिकला राय* (एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय)

*डॉ. राजेन्द्र श्रीवास्तव* सहायक महाप्रबंधक (हिंदी), बैंक ऑफ महाराष्ट्र

*श्री महेश अग्रवाल* (ट्रस्टी एवं संरक्षक, राष्ट्रभाषा महासंघ, मुंबई)

 

*संचालन- डॉ. अनंत श्रीमाली*

 

*भोजनावकाश* –  अपराह्न 1.45 से 2.30 बजे

*द्वितीय सत्र* –  अपराह्न 2.30 से 3.30 बजे

 

*मेरी भाषा के लोग* – ‘क्षितिज’ द्वारा साहित्यिक रचनाओं की प्रस्तुति।)

*समापन सत्र* – *प्रतिनिधि प्रतिक्रियाएँ एवं प्रश्नोत्तर*

*चायपान-* – संध्या 4:45 बजे

 

*विनीत*

*सुधा भारद्वाज* (कार्यकारिणी संयोजक, हिंदी आंदोलन परिवार, पुणे)

*डॉ. अनंत श्रीमाली* (महासचिव, राष्ट्रभाषा महासंघ, मुंबई)

*ज. गं फगरे* (संचालक, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, पुणे)

सम्पर्क- *9890122603, 9819051310*

 

*नोट-* 

1) पंजीकरण पहले आएँ, पहले पाएँ के आधार पर। आसनक्षमता पूरी हो जाने पर पंजीकरण की प्रक्रिया रोक दी जाएगी।

2) कुछ आसन आरक्षित हैं।

3) विद्यार्थियों के लिए आई कार्ड लाना अनिवार्य है।

4) कार्यक्रम को सुचारू रखने के लिए समयपालक की व्यवस्था की गई है।

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #- 25 – मासिक पाळी ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  शिक्षिका के कलम से  तरुण युवतियों के लिए एक शिक्षाप्रद भावप्रवण कविता  – “मासिक पाळी। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 25 ☆ 

 

 ☆ मासिक पाळी

 

तारूण्याच्या उंबऱ्यावर

स्त्रीत्वाची ही निशाणी।

म्हणे कोणी ओटी आली

लेक झाली हो शहाणी।

 

जुने नवे घाल मेळ

भावनांचा नको खेळ।

योग्यतेच ठेवी ध्यानी ,

होई व्यर्थ जाता वेळ।

 

नको जाऊ गोंधळून

सुचिर्भुत रहा दक्ष

जरी धोक्याचे हे वय

ध्येयावरी ठेवी लक्ष।

 

लागू नये नजर दुष्ट

तुला जपते जीवापाड।

जरी जाचक भासली

माझी बंधने ही  द्वाड।

 

हवे मर्यादांचे भान

घेता उंच तू भरारी।

श्रेष्ठ संस्कृती सभ्यता

सदा जपावी अंतरी।

 

जप तारूण्याचा ठेवा

जाण जीवनाचे मोल।

प्रकृतीने दिले तुज

असे स्त्रीत्व अनमोल।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ जीवन पथ ☆ – सुश्री शुभदा बाजपेई

सुश्री शुभदा बाजपेई

(सुश्री शुभदा बाजपेई जी  हिंदी साहित्य  की गीत ,गज़ल, मुक्तक,छन्द,दोहे विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं। सुश्री शुभदा जी कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं एवं आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर  कई प्रस्तुतियां। आज प्रस्तुत है आपकी  एक  अतिसुन्दर कविता “जीवन पथ ”. )

☆  जीवन  पथ  ☆

छोड़ो किस्से बात पुरानी

नया जमाना नई कहानी

 

गाँव बन गए भूल भुलैया

शहर बहुत भाता है भैया

रोजी रोटी के जुगाड़ में

दिन भर खटता है रामैया

नियति रोज उसको दौड़ाती

तब जुड़ता है दाना पानी!

 

झूठे वादों ने लूटा है

खुशियों का दामन छूटा है

व्याकुल  मन अब क्यों रोता है

सगा नहीं कोई होता है

जीवन पथ पर निकल पड़े हैं

चलती मन मे खींचा तानी।।

 

कहीं बबूलों के जंगल हैं

कहीं महकती अमराई है

पीले करने हाथ सिया के

उर में चिंता गहन समाई है

किससे मन की व्यथा बताये

दुनिया लगती है वीरानी।।

 

© सुश्री शुभदा बाजपेई

कानपुर, उत्तर प्रदेश

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