हिन्दी साहित्य – कविता – * चलो बुहारें….. * – डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

चलो बुहारें…..

 

चलो जरा कुछ देर स्वयं के

अंतर में मुखरित हो जाएं

अपने मन को मौन सिखाएं।

 

जीवन को अभिव्यक्ति देना

शुष्क रेत में नौका खेना

दूर क्षितिज के स्वप्न सजाए

पंखहीन पिंजरे की मैना,

बधिर शब्द बौने से अक्षर

वाणी की होती सीमाएं। अपने मन को…..

 

बिन जाने सर्वज्ञ हो गए

बिन अध्ययन, मर्मज्ञ हो गए

भावशून्य, धुंधुआते अक्षर

बिन आहुति के यज्ञ हो गए,

समिधा बने, शब्द अंतस के

गीत समर्पण के तब गायें। अपने मन को…..

 

तर्क वितर्क किये आजीवन

करता रहा जुगाली ये मन

रहे सदा अनभिज्ञ स्वयं से

पतझड़ सा यह है मन उपवन,

महक उठें महकाएं जग को

क्यों न हम बसन्त बन जाएं। अपने मन को…..

 

कब तक भटकेंगे दर-दर को

पहचानें सांसों के स्वर को

खाली हों कल्मष कषाय से

चलो बुहारें अपने घर को

करें किवाड़ बन्द, बाहर के

फिर भीतर, एक दीप जलाएं। अपने मन को….

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’




आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (7) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

 

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम ।

नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ॥

कौरव सेना का वर्णन-

अपने पक्ष जो प्रमुख हैं,उन्हें सुनें व्दिज श्रेष्ठ

निज सेना के नायकों में , जो परम् विशिष्ट।।7।।

 

भावार्थ :  हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान हैं, उनको आप समझ लीजिए। आपकी जानकारी के लिए मेरी सेना के जो-जो सेनापति हैं, उनको बतलाता हूँ॥7॥

 

“Know also,  O  best  among  the  twice-born,  the  names  of  those  who  are  the  most distinguished amongst ourselves, the leaders of my army! These I name to thee for thy information.॥7॥

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




English Literature – Book-Review/Abstract – The Frozen Evenings – Ms. Neelam Saxena Chandra

The Frozen Evenings

The Frozen Evenings Poetry collection by Authorspress India, written by Ms. Neelam Saxena Chandra

There are evenings which just freeze. You sit on the banks of the river called life and simply observe within. You neither contemplate, nor worry about the weight of memories, nor procrastinate; you are just there in those instants. You undertake a journey within and let the thoughts just surface like a bubble and then vanish with the flow. “The Frozen Evenings” is a collection of fifty poems that written by Limca Book of Records Holder, Neelam Saxena Chandra, in such moments.

Excerpts from the book – The Frozen Evenings

 

THE POETRY

Either the poetry

Should be so soothing

That you’d wish to spend

One cool evening under its shade,

Or it should be so beautiful

That you’d long

To pick a flower from its bed

And enjoy its fragrance,

Or it should be so romantic

That you’d run to be

In its embrace for long

Or it should suffocate you

Making you yearn

For every drop of life

Or it should arouse anger

Against the dogmas and rigidity

Making you wriggle in pain

Or it should sting you

Making you so blue

That its tint refuses

To leave you for long!

A poem is wonderful

Only when it can evoke

Those razor sharp reactions!

Amazon Link : The Frozen Evenings




हिन्दी साहित्य- लघुकथा – * “गम” ले * – डॉ . प्रदीप शशांक

डॉ . प्रदीप शशांक 

“गम” ले 
सिर पर रखी बड़ी टोकरी में तीन -चार गमले लिये एक  वृद्ध महिला कालोनी में ” ले गमले …. ले गमले ” की आवाज लगाती  हुई  आ रही थी ।
श्रीमती जी ने उसे आवाज देकर बुलाया ,उसके सर पर रखी टोकरी को अपने हाथों का सहारा देकर नीचे उतरवाया और उससे पूछा – “कितने के दिये ये गमले ?”
उसने कहा- “ले लो बहन जी , 100 रुपये में एक गमला है ।” श्रीमतीजी ने महिला सुलभ स्वभाव वश मोलभाव करते हुए एक गमला 60 रुपये में मांगा ।
“बहिन जी , नही पड़ेगा । हम बहुत दूर से सिर पर ढोकर ला रहे हैं , धूप भी तेज हो रही है । जितनी जल्दी ये गमले बिक जाते तो हम घर चले जाते । आदमी बीमार पड़ा है घर पर ,उसके लिए दवाई भी लेकर जाना है । ऐसा करो बहिनजी ये तीनों गमले 250 रुपये में रख लो ।”
श्रीमती जी ने कहा –“3 गमले रखकर क्या करेंगे।”
“ले लो बहिनजी, दो गमले लिये हम और कितनी देर भटकेंगे ।” कहते हुए उसके चेहरे पर उदासी छा गई ।
श्रीमती जी ने उसके चेहरे पर छाये गम के बादलों को हटाते हुए उससे तीनों गमले खरीद लिये ।
250 रुपये अपने बटुए में रखते हुए उसके चेहरे पर जो खुशी एवं सन्तोष के भाव झलक रहे थे ,उसे देखकर श्रीमती जी को भी यह अहसास हो गया था कि 250 रुपये में किसी के गम ले कर यदि उसे थोड़ी खुशी दे दी तो सौदा बुरा नही है ।
© डॉ . प्रदीप शशांक 
जबलपुर (म . प्र .)



आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (4-6) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

 

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ।

युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ।।4।।

 

भीमार्जुन सम वीर है , रण में शूर महान

ध्रुपद विराट औ सात्यकी ,धनुधर कुशल समान।।4।।

 

धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्‌।

पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङवः ।।5।।

 

धृष्टकेतु,चेकितान है, काशिराज बलवान

पुरूजित,कुंतीभोज, सब नर श्रेष्ठ,शैव्य समान।।5।।

 

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्‌।

सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ।।6।।

 

युधामन्यु सा पराक्रमी उतमौजा बलवान

अभिमन्यु व द्रौपदी सुत सब रथी महान।।6।।

 

भावार्थ :  इस सेना में बड़े-बड़े धनुषों वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र- ये सभी महारथी हैं॥4-6॥

 

4. “Here are heroes, mighty archers, equal in battle to Bhima and Arjuna, Yuyudhana, Virata and Drupada, of the great car (mighty warriors),

5. “Drishtaketu, Chekitana and the valiant king of Kasi, Purujit, and Kuntibhoja and Saibya, the best of men,

6. “The strong Yudhamanyu and the brave Uttamaujas, the son of Subhadra (Abhimanyu, the son of Arjuna), and the sons of Draupadi, all of great chariots (great heroes)

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




हिन्दी साहित्य – कविता – * दुनिया भर के बेटों की ओर से… * – श्री विवेक चतुर्वेदी

श्री विवेक चतुर्वेदी 

दुनिया भर के बेटों की ओर से…

(प्रस्तुत है जबलपुर के युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी की एक भावप्रवण कविता  – श्री जय प्रकाश पाण्डेय)

 

एक दिन सुबह सोकर

तुम नहीं उठोगे बाबू…

बीड़ी न जलाओगे

खूँटी पर ही टंगा रह जाएगा

अंगौछा…

उतार न पाओगे

 

देर तक सोने पर

हमको नहीं गरिआओगे

कसरत नहीं करोगे ओसारे

गाय की पूँछ ना उमेठेगो

न करोगे सानी

दूध न लगाओगे

 

सपरोगे नहीं बाबू

बटैया पर चंदन न लगाओगे

नहीं चाबोगे कलेवा में बासी रोटी

गुड़ की ढेली न मंगवाओगे

सर चढ़ेगा सूरज

पर खेत ना जाओगे

 

ओंधे पड़े होंगे

तुम्हारे जूते बाबू…

पर उस दिन

अम्मा नहीं खिजयाऐगी

जिज्जी तुम्हारी धोती

नहीं सुखाएगी

बेचने जमीन

भैया नहीं जिदयाएंगे

 

उस दिन किसी को भी

ना डांटोगे बाबू

जमीन पर पड़े अपलक

आसमान ताकोगे

पूरे घर से समेट लोगे डेरा बाबू … तुम

दीवार पर टंगे चित्र

में रहने चले जाओगे

फिर पुकारेंगे तो हम रोज़

पर कभी लौटकर ना आओगे ।।

 

© विवेक चतुर्वेदी




मराठी साहित्य – मराठी कथा / लघुकथा – * दुर्दम्य * – सुश्री ज्योति हसबनीस

सुश्री ज्योति हसबनीस

दुर्दम्य

(प्रस्तुत है  सुश्री ज्योति  हसबनीस जी   की  एक भावुक लघुकथा दुर्दम्य। )

एssss सुनंदाsss अत्यंत चिरक्या आणि घोगऱ्या आवाजातली हाक आणि त्या पाठोपाठ दणदण पायऱ्या उतरणारी मोंगोल वळणाची , उमलू घातलेली, घट्ट दोन वेण्यांचे हेलकावे मिरवणारी मुलगी आणि तिच्या उतरण्याकडे अनिमिष नजरेने बघणारा जिन्याच्या पहिल्या पायरीवर असलेला पूर्ण पुरूषाच्या वाटेवरचा मोंगोल चेहरेपट्टीचा मुलगा ..काळजात चर्रर्र झालं ते दृष्य बघून ! मतिमंद म्हंटलीत तरी निसर्गाने आपलं काम चोख बजावलं होतं. शारीरिक बदलाची चाहूल आणि प्रीतीची कोवळीक नजरेत उतरली होती. पण ह्या साऱ्याचं रूपांतर कशात होणार ह्या जाणीवेने मात्र माझं मन सुन्न झालं, आणि झर्रकन् भूतकाळात गेलं.

माझ्या कळत्या वयात एक कुटुंब आमच्या घराशेजारी राहायला आलं होतं. त्या कुटुंबात एक छोटा मुलगा आजूबाजूच्या समवयस्क मुलांच्या टिंगल टवाळीचा विषय झाला होता. त्याला आपल्यात खेळायला घेणं तर दूरच पण त्याच्या बोलण्यावर हंसणं, त्याच्यावर उगाचच दादागिरी करणं, त्याला चिडवणं हा त्या मुलांचा दिनक्रम ठरलेला. शेवटी वैतागून आईचं त्याला घरात डांबून ठेवणं आणि त्याने आसुसून खिडकीतून मुलांचे खेळ बघणं हे त्याने स्विकारलं होतं. काहीच दिवसांत त्यांची परत दुसऱ्या गांवी बदली झाली आणि माझ्याही मनातून हळूहळू त्याची खिडकीतली आसूसलेली नजर, आणि लाळभरला चेहरा पुसट तर झाला. पण मतिमंद मुलांच्या आयुष्याबद्दल एक प्रकारचं कुतूहल मात्र निर्माण झालं.

मतिमंद मुलांची शाळा आणि लागून असलेलं वर्कशाॅप नेहमीच खुणवायचं मला. आतल्या जगाबद्दल एक प्रकारची उत्सुकता मनात असायची. कसं असेल ते जग, काय वय असेल त्या जगाचं, काय चौकट असेल तिथल्या शिस्तीची, आपसात खेळत वाढत मैत्रीचे धागे गुंफले जात असतील का, की कुठलीही गोष्ट आकलनाच्या अल्याड अथवा पल्याडचा टप्पा गाठता न आल्यामुळे सारं जगच गोठल्यासारखं झालं असणार ?

खरंच बधीर व्हायला झालं होतं मला असंख्य विचारांनी !

मुख्य प्रवाहात आपलं मूल न सोडता त्याचं वेगळं स्वतंत्र अस्तित्व समर्थपणे जपत, दुर्दम्य आशावादाचं खतपाणी घालून त्या अस्तित्वाला अर्थ देण्याचा प्रयत्न करणारे कितीतरी पालक त्या शाळेत मी बघितले. त्या दुर्बल मनस्क मुलांना शारीरिक आणि बौद्धिक क्षमतांची जाणीव करून देण्यासाठी राबराब राबणारे, आपुलकीने त्यांच्याशी वागणारे कितीतरी स्निग्ध चेहरे मला चकित करून गेले. थोड्याफार फरकाने एकसारखाच बुद्ध्यांक असलेली केवळ आकाराने वाढलेली लहान-मोठी मुलं काळजात एक कळ उमटवून गेलीत. त्यांचे आपसातले खेळ, विशिष्ट आवाजातलं न कळणारं आपसातलं संभाषण, निर्विकार चेहऱ्यावरचे शून्यातले डोळे, लाळेची संततधार, सारं मुख्य प्रवाहाच्या अगदी विरूद्ध दिशेने जाणारं भासत होतं. पण त्याच वेळी मुख्य प्रवाहात त्यांना मिसळता यावं, ह्या जगाचा एक भाग आपणही आहोत ह्याचं आत्मभान त्यांना यावं, समर्थपणे आपल्या पायावर उभं राहण्याइतपत सक्षमता त्यांच्यात यावी म्हणून विविधांगांनी कसून मेहनत घेण्याची तिथल्या संस्थेची जिद्द बघितली आणि मनोमन हात जोडले मी त्यांच्या चिकाटीला ! आणि मनोमन हात जोडले मी पालकांच्या दुर्दम्य आशावादाला आणि अंगभूत सजग पालकत्वाला!!

थोडा वेळच त्यांच्या सान्निध्यात मी राहिले पण मन अगदी विषण्ण झालं. उदास झालं . नैराश्यानं घेरलंच मला. आयुष्याची ही बाजू कधी मी फारशी जवळून बघितलीच नव्हती, पुसटशी ओळख ह्या जगाशी कधीतरी झाली होती पण काळाच्या प्रवाहात ती कधीच मागे पडली होती. खरंच त्या क्षणी नियती माणसाला हातचं बाहुलं करून ती त्याच्याकडे बघत विकट हास्य करतेय असा भास झाला मला आणि त्याचक्षणी तिच्या कचाट्यातून झुंजारपणे स्वत:ची सुटका करून विजयी स्मित करणाऱ्या शूर माणसाचा साक्षात्कारही झाला मला ! पराधीन आहे जगती पुत्र मानवाचा हे जरी खरं असलं तरी वाट्याला न आलेल्या उजव्या दानाने हताश न होणारा ‘पुत्र मानवाचाही’ तितकाच खरा ! आयुष्याची घडी नीट नेटकी बसविण्यासाठी अविरत झटणाऱ्या  माणसाच्या ह्या झुंजार वृत्तीला लाख लाख सलाम !

© ज्योति हसबनीस

नागपूर




आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (3) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्‌।

व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥

दुर्योधन ने कहा (पांडव सेना का वर्णन)

योग्य शिष्य,गुरू आपके द्रुपद पुत्र के हाथ

व्यूह रचित पांडवों की ,सेना देखें नाथ।।3।।

भावार्थ :  हे आचार्य! आपके बुद्धिमान्‌शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिए॥3॥

Behold,  O  Teacher,  this  mighty  army  of  the  sons  of  Pandu,  arrayed  by  the  son  of Drupada, thy wise disciple! ॥3॥

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




आध्यात्म / SPIRITUAL – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (2) – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

संजय उवाच

दृष्टवा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।

आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्‌॥

संजय ने कहा-

पांडव सेना व्यूह रत दुर्योधन ने देख

गुरू द्रोण के पास जा बोला बचन विशेष।।2।।

भावार्थ :  संजय बोले- उस समय राजा दुर्योधन ने व्यूहरचनायुक्त पाण्डवों की सेना को देखा और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा॥2॥

Sanjaya said:     Having seen the army of the Pandavas drawn up in battle array, King Duryodhana then

approached his teacher (Drona) and spoke these words ॥2॥

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




मराठी साहित्य – मराठी आलेख – *एकांतातला आरसेमहाल* – सुश्री ज्योति हसबनीस

सुश्री ज्योति हसबनीस

एकांतातला आरसेमहाल

(प्रस्तुत है  सुश्री ज्योति  हसबनीस जी  का आलेख  एकांतातला आरसेमहाल)

एकांत किती हवाहवासा वाटतो . आपलाच आपल्याशी संवाद  साधायला, अंतर्मनात डोकावून बघायला, त्रयस्थासारखं स्वत:कडे निरखून बघायला , प्रत्येक कोनातून स्वत:ला न्याहाळायला !

ह्या एकांताचं आणि स्वमग्न मनाचं अगदी गाढ नातं आहे. एकांताच्या रूपात अवतरलेला आरसेमहाल आणि स्वमग्न मनाच्या प्रतिबिंबीत झालेल्या असंख्य छबी ..मोठं विलोभनीय दृष्य असतं ते. प्रत्येकच छबी स्वत:चं असं खास रुप घेऊन आलेली. कधी ती मैत्रिणींबरोबर भातुकलीत रमलेली असते, तर कधी अंगणातल्या ठिक्करबिल्ल्याच्या खेळात रमलेली, तर कधी शाळेच्या बाकावर बसून कवितेच्या जगात रममाण झालेली , तर कधी टारझनबरोबर आफ्रिकेच्या दाट जंगलात हरवलेली तर कधी श्रावणात झाडाला बांधलेल्या झोक्यावर बसून आकाशाशी स्पर्धा करत ऊंच ऊंच झोके घेणारी !

मध्येच एखादी छबी डोकावते डोळ्यात भरारीचं स्वप्न जागवणारी, तिचं तिचं आकाश शोधणारी, शोधलेल्या आकाशात जोडीदाराला सामावून घेणारी आणि नव्या जोमाने जणू इंद्रधनूच्या शोधात निघालेली ही छबी फारच लोभस भासते. तिच्या डोळ्यातील चमक बरंच काही बोलून जाते. तिच्या चेहऱ्यावरचे तृप्त भाव सुखाचा मूलमंत्रच जणू सांगू बघतात ..

 

आणि …अचानकच तिच्या अवती भवती वेगवेगळे भेसूर चेहरे डोकवायला लागतात …नको असलेले क्षण आणि त्यांनी व्यापलेले ठाण मांडून बसलेले त्या त्या घेरलेल्या क्षणांचे भेसूर चेहरे ..कितीही ठरवलं तरी ढवळून निघालेल्या तळातून सारं बाहेर येणारच ना ..आरसेमहालच तो, येणारी छबी लपून राहणार का …ती तर प्रतिबिंबीत होणारच..आणि एकांताच्या रूपातला तो आरसेमहाल एकदमच अंगावर येऊ बघतो, पण ….हीच वेळ असते स्वमग्न मनाला सावरायची, आधार द्यायची, फक्त आणि फक्त सुंदर तेच बघायला शिकवण्याची ! एकांताशी सुरेल नातं जोडायला शिकवण्याची !

नको असलेल्या कटू आठवणींचं ओझं किती वाहायचं, बोचकं बांधून भिरकावता आलंच पाहिजे आणि हिंमत करून एकदा भिरकावल्यावर, मागे वळून वळून त्या बोचक्याकडे कटाक्ष टाकणं, पुन: त्याला काखोटीला मारणं तर केवळ आत्मघातकीच !

 

एकांत आणि एकांतातलं स्वमग्न मन ह्यांच्यात सुसंवाद साधता यायला हवाच !

एकांतातल्या ह्या आरसेमहालातले स्वमग्न मनाचे चेहरे कायम उजळ हवेत, हंसरे हवेत, प्रसन्न हवेत  ! सगळ्या उजळ चेहऱ्यांनी हा आरसेमहाल कायम लखलखताच दिसायला हवा !!

 

*ज्योति हसबनीस*